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इस महिला उद्यमी ने 5 लाख रुपये से शुरू किया क्राफ्ट बिजनेस, एक साल में 1 करोड़ रुपये का कारोबार करने को है तैयार

इस महिला उद्यमी ने 5 लाख रुपये से शुरू किया क्राफ्ट बिजनेस, एक साल में 1 करोड़ रुपये का कारोबार करने को है तैयार

Thursday February 27, 2020 , 4 min Read

'मेक इन इंडिया' के सपने से प्रेरित होकर, जयपुर के एक इंजीनियर जोड़े ने क्राफ्ट सेक्टर (शिल्प क्षेत्र) में सफलता की कहानी लिखी है। पूर्णिमा सिंह और उनके पति चिन्मय बांठिया ने गांवों से अकुशल महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शुभम क्राफ्ट को शुरू किया। इसे शुरू करने के लिए दोनों ने एक सिक्योर कॉर्पोरेट जॉब को छोड़ दिया, ताकि वे कागज की लुगदी के उत्पाद और घास की टोकरी बना सकें।


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कागज की लुगदी को पैपियर माचे (papier mache) भी कहा जाता है, यह सांचे में ढली हुई कागज की लुगदी होती जिसके बक्‍स आदि बनते हैं। शुभम क्राफ्ट को 5 लाख रुपये के निवेश के साथ शुरू किया गया था, और इस साल यह 1 करोड़ रुपये का कारोबार करने के लिए तैयार है।


शुभम क्राफ्ट के संस्थापक पूर्णिमा और चिन्मय, दोनों एनआईटी कुरुक्षेत्र से इंजीनियरिंग स्नातक हैं। पूर्णिमा ने जहां तीन साल तक पेट्रोफैक इंजीनियरिंग सर्विसेज में काम किया, वहीं चिन्मय ने मु-सिग्मा के लिए काम किया।


पहुँच

पूर्णिमा कहती है,

“मुझे हमेशा हाउस हेल्प, रिक्शा चालक, सब्जी और फल-विक्रेता, आदि से बात करने और उनके व्यवसाय और जीने के तरीके दोनों को समझने की आदत है। मैं समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों का समर्थन करने के लिए कुछ करना चाहती थी। यही शुभम क्राफ्ट के पीछे का एजेंडा था।"


इस दंपति ने पैपियर माचे हैंडक्राफ्ट पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया और इसके लिए उन्होंने राजस्थान के कुछ गाँवों की पहचान की जहाँ वे महिलाओं को शिल्प में प्रशिक्षित कर सकते थे। महिलाओं को पहले कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया गया और फिर उत्पादन टीम में शामिल किया गया।


वे कहती हैं,

“पैपियर माचे प्रोडक्ट्स आर्ट का एक टुकड़ा है जिसे इन ग्रामीण महिलाओं द्वारा पुनर्जीवित किया गया है। यह कलाकृति हाथ से तैयार की गई है और यह कलाकृति जयपुर के ग्रामीण लोगों के खोए हुए कौशल की याद दिलाती है। उत्पाद श्रेणी में प्राकृतिक घास की टोकरी जोकि प्लास्टिक या धातु का विकल्प है और टेराकोटा उत्पाद शामिल हैं।"
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गांव की महिलाओं को सशक्त बनाना

शुभम क्राफ्ट तीन अकुशल महिलाओं के साथ शुरू किया गया था, और आज पांच गांवों की 35 कुशल महिला कलाकार हैं। यह बी 2 बी व्यवसाय है जिसमें उत्पादों की बिक्री सीधे घर सजावट और बिग साइज रिटेल चैन के थोक विक्रेताओं के साथ होती है। उद्यम ने उन महिलाओं को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाई है जो अब अपने कौशल के प्रति आश्वस्त हैं और आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गई हैं।


पूर्णिमा कहते हैं,

हम एक वित्त वर्ष की अवधि में 20,000 रुपये से 1 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली कंपनी के रूप में बड़े हुए हैं। हम पूरे यूरोप और अमरीका के खरीदारों द्वारा पसंद किए गए उपयोगी उत्पादों में आधे मिलियन टन से अधिक कचरे को परिवर्तित करने में सक्षम हैं।”


पूर्णिमा कहती हैं कि हमारे उत्पादों को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया दिल खुश करने वाली रही है। लॉन्च के सिर्फ डेढ़ साल में, शुभम क्राफ्ट्स ने यूरोप, कनाडा, उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर में ग्राहकों के साथ कारोबार किया है।


बदलती मानसिकता

पूर्णिमा के अनुसार, सबसे बड़ी चुनौती महिलाओं को उनके गाँवों की सीमाओं से बाहर निकालना है और उनकी मानसिकता को बदलना है। वे कहती हैं,

“एक और बड़ी चुनौती बेसिक बातों के लिए लड़ने की थी। बिजली बोर्ड के सहायक अभियंता के कार्यालय में हर दिन चक्कर लगाने के बाद बिजली कनेक्शन प्राप्त करने में हमें तीन महीने लग गए। इसके अलावा, जब हमने कच्चे माल की खोज की, तो हमने महसूस किया कि अपशिष्ट भी महंगा था। हर जगह एक सिंडिकेट है जिसकी चेन में आप नहीं जा सकते। लेकिन बहुत प्रयास के बाद, हम आपूर्तिकर्ताओं को खोजने में सक्षम थे।”


रोमांचक अवसर

पूर्णिमा का कहना है कि भविष्य रोमांचक नई संभावनाओं से भरा है। “हम हर प्रदर्शनी में अपनी प्रोडक्ट लाइन बदलते हैं। इसका तात्पर्य 700 विभिन्न शैलियों और सामग्री के क्रमांकन से है। भविष्य में, हम अपनी टीम का विस्तार करना चाहते हैं, ग्रामीण महिलाओं के जीवन को अधिक प्रभावित करना चाहते हैं, और राजस्व के मामले में अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी विनिर्माण सुविधा का विस्तार करना चाहते हैं। टीम में वृद्धि, कौशल, और उत्पादन स्केल में बढ़ोत्तरी का मतलब अधिक व्यावसायिक मात्रा के लिए तत्परता से है।"


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चिन्मय और पूर्णिमा


पूर्णिमा कहती हैं,

“प्रोडक्ट पोर्टफोलियो के लिए, हमने बेकार पत्थरों से छोटे पत्थर की नक्काशी और ग्राहक की मांग के आधार पर टेराकोटा को जोड़ा है। हमने कुख्यात 'पराली' से घास की टोकरियाँ बनानी शुरू कर दी हैं, जो कि फसल कटाई के दौरान हरियाणा और पंजाब में बड़े पैमाने पर जलाई जाती हैं, जिससे दिल्ली में साल में कम से कम दो बार घुटन होती है।”