World Diabetes Day: जानिए टेक्नोलॉजी कैसे डायबिटीज मैनेजमेंट को बना रही है आसान
माना जा रहा है कि 2025 तक डायबिटीज से 10% लोग प्रभावित हो जाएंगे. डायबिटीज सबसे महंगी बीमारियों में से एक मानी जाती है जिसके लिए स्ट्रिक्ट हेल्थ रूटीन को फॉलो करना होता है.
भारत में पिछले दो दशक से रूरल और अर्बन दोनों पॉपुलेशंस में डायबिटीज (Diabetes) काफी बढ़ चुका है, जिससे सभी उम्र और जेंडर के लोग प्रभावित हैं. 76+ मिलियन पॉपुलेशन इससे पीड़ित है, इंडिया डायबिटीज के पेशेंट्स की दूसरा सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है. ऐसा माना जा रहा है कि 2025 तक डायबिटीज से 10% लोग प्रभावित हो जाएंगे. आज विश्व डायबिटीज दिवस के दिन आइए जानते हैं कैसे तकनीकी एडवांसमेंट से इस जानलेवा बीमारी का मैनेजमेंट हो रहा है आसान।
डायबिटीज सबसे महंगी बीमारियों में से एक मानी जाती है जिसके लिए स्ट्रिक्ट हेल्थ रूटीन को फॉलो करना होता है. यह वह जगह है जहां मोस्ट एडवांस टेक्नीक और सॉल्यूशंस जो ऑटोमेटेड और स्ट्रीमलाइंड डायबिटीज केयर मेथड्स को ऑफर करते हैं, प्रैक्टिस में आते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), बिग डेटा एनालिटिक्स और कंटिन्यू ग्लूकोज मॉनिटरिंग (सीजीएम) के साथ सभी टेक्नोलॉजी सफलताएं डायबिटीज को बढ़ने से रोकने के लिए मिलकर काम करती हैं.
डायबिटीज के मैनेजमेंट के लिए, इंडिया में डायबिटीज पेशेंट्स की हेल्थ मॉनिटर, डाइट प्रोग्राम और प्रोफेशनल गाइडेंस देने के लिए डीप लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है. पेशेंट्स के हाई-रिज़ॉल्यूशन रेटिनल स्कैन से, एआई-पावर्ड एल्गोरिदम डायबिटिक रेटिनोपैथी की अर्ली आइडेंटिफिकेशन को सम्भव करते हैं.
टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के उद्देश्य से स्पेसिफिक थेरापीटिक टेक्नीक्स ने ब्लड ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल करना आसान किया है. आर एंड डी एडवांसेज ने थेरापीटिक एप्रोचेस को बनाया है जो सिर्फ टारगेटेड नहीं बल्कि इफेक्टिव भी हैं. टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट के रिज़ल्ट के तौर पे ग्लूकोज मॉनिटरिंग सिस्टम और इंसुलिन एडमिनिस्ट्रेशन डिवाइसेज दोनों विकसित किए गए हैं. डॉक्टरों, देखभाल करने वालों और पेशेंट्स सहित किसी इंसान के डायबिटिक मैनेजमेंट में कई स्केटहोल्डर्स के रोल्स को इंटीग्रेट करना और डिफाइन करना आसान बना दिया गया है. रिसर्च और डेवलपमेंट इनिशिएटिव्स के साथ-साथ कई एंपायरिकल जांचों ने डायबिटीज के मैनेजेंट में कुशल ग्लूकोज मॉनिटरिंग डिवाइसेज की वैल्यू को साबित किया है.
कई अलग-अलग डिवाइसेज अब उपलब्ध हैं, जैसे कन्वेंशनल ग्लूकोमीटर से लेकर और ज्यादा नॉवेल कॉम्बिनेशन डिवाइसेज और पहुंच जैसे आर्टिफिशियल पैंक्रियाज, टेक्नोलॉजीज और इक्विपमेंट जो कंटिन्यू ग्लूकोज मॉनिटरिंग (सीजीएम) में मदद कर सकते हैं, ज़्यादा पॉपुलर हो गए हैं. सीजीएम कन्वेंशनल ग्लूकोज मॉनिटरिंग मेथड्स पर कई प्रूवेन एडवांटेज देता है. मॉडर्न सेंसर टेक्नीक ने सीजीएम डिवाइसेज को बना पाना सम्भव बना दिया है जो ब्लड शुगर ट्रेंड्स की एनालिसिस करने, पैटर्न की पहचान करने और मेडिसिन मोडिफिकेशन करने के लिए डिस्क्रीट, प्रयोग करने में आसान और जरूरी हैं.
ब्लड शुगर मॉनिटरिंग की क्लैरिटी और सीजीएम सिस्टम की ड्यूरेबिलिटी को इंप्रूव करने के लिए नॉन-इनवेसिव लिंक्ड सेंसर की एडवांसमेंट ज़रूरी है. मॉनिटरिंग के मैथड की भी कई एंगल्स से स्टडी की गई है. स्किन पैचेज की सबसे मिनिमली इनवेसिव मेथड्स में से एक के रूप में जांच की जा रही है; इफेक्टिवनेस बढ़ाने के लिए कई सेंसर प्लेटफार्मों के साथ माइक्रोनीडल्स का टेस्ट किया जा रहा है. स्किन पैचेज में गैस सेंसर, रेडियो-वेव टेकनीक से लेकर माइक्रोनीडल्स आदि का इस्तेमाल होता है.
स्टैंडअलोन डिवाइसेज के अलावा, डायबिटीज के मैनेजमेंट और मॉनिटरिंग के लिए कॉम्बिनेशन और इंटीग्रेटेड एप्रोचेज ज़्यादा से ज़्यादा कॉमन होते जा रहे हैं. ये गैजेट रिमोट मॉनिटरिंग के अलावा लिंक्ड केयर में मदद कर सकते हैं जो कंटिन्यू, मॉड्यूलर और टारगेटेड हैं. सीजीएम में इस्तेमाल के लिए और डायबिटिक रेटिनोपैथी को ठीक करने के लिए बायोसेंसर और मेडिकेशन डिलीवरी मैटेरियल वाले स्मार्ट कॉन्टैक्ट लेंस की जांच की जा रही है. इंसुलिन डिस्पेंसर के रूप में काम करने के अलावा, स्मार्ट पेन पैटर्न ट्रैकिंग और थेरेपी के लिए खुराक की जानकारी स्टोर कर सकते हैं.
आर्टिफिशियल पैंक्रियाज और दूसरी बायोनिक डिवाइसेज इंसुलिन की खुराक देने के लिए पैंक्रियाज एक्शन को दोहरा सकते हैं, और एआई प्लेटफार्मों के साथ उनका कनेक्शन उन्हें ज़रूरी खुराक का पता लगाने में सक्षम करता है जबकि सेंसर कंटिन्यू ग्लूकोज मॉनिटरिंग (सीजीएम) का सपोर्ट करते हैं. कॉम्बिनेशन डिवाइसेज न केवल मॉनिटरिंग और थेरेपी देते हैं, बल्कि वे डेटा को बनाए रख सकते हैं और इसे हेल्थ एक्सपर्ट को भेज सकते हैं ताकि अगर जरूरी हो तो वो जल्दी एक्टिव हो सकें.
हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को डेटा तक फ़ौरन पहुंच देने के लिए, सेल्फ मॉनिटर को आसान बनाने, हाई और लो के पूर्वानुमान के लिए, मेडिकेशन को सही तरीके से मोडिफाई करने और खतरनाक डायबिटीज के झटके और मॉर्बिडिटी को रोकने के लिए डिजिटल टेकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. सीजीएम, डेटा एनालिटिक्स, विशेष रूप से प्रिस्क्रिप्टिव एनालिटिक्स और एआई प्लेटफॉर्म के साथ मदद करने के अलावा, इंसुलिन की सही खुराक के कैलकुलेशन में पूर्वानुमान में भी मदद करते हैं. इसके अलावा, ऐप्स का इस्तेमाल डाइट को प्रोग्राम करने, न्यूट्रीशनल डेटा देने और कैलोरी कंजप्शन में भी होता है. अच्छी बात ये है कि 21% सीएजीआर के साथ, डिजिटल डायबिटीज मॉनिटरिंग सॉल्यूशन 2027 तक कई बार इस्तेमाल किए जाने की उम्मीद है.
(लेखक ट्रिविट्रॉन हेल्थकेयर की ग्रुप चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर चंद्रा गंजू हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं, YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)
Edited by Anuj Maurya