विश्व पर्यटन दिवस: विश्व के सबसे बड़े घुम्मकड़ों की कहानी
पूरा देश आज विश्व पर्यटन दिवस(World Tourism Day) मना रहा है. इस दिन की शुरुआत 1980 में हुई थी. संयुक्त राष्ट्र विश्व व्यापार संगठन (UNWTO) द्वारा इसे शुरू किया गया था. इस दिन के लिए 27 सितंबर के चुने जाने के पीछे भी एक अहम कारण है. 1970 में इसी दिन UNWTO को मान्यता मिली थी. लेकिन इसे मनाने की औपचारिक शुआत 27 सितंबर 1980 में हुई.
इस ख़ास दिन को मानाने के लिए हर साल एक नई थीम चुनी जाती है. इस साल की थीम है Rethinking Tourism. कोरोना महामारी के दौरान लोगों ने अपने घरों से निकलना बंद करदिया था, जिसका प्रभाव पर्यटन पर सबसे ज्यादा हुआ. इसके चलते ये साल पर्यटन को गति देने कि दिशा में अहम है.
हर साल विश्व पर्यटन दिवस की मेजबानी एक देश करता है. इस साल ये ज़िम्मेदारी इंडोनेशिया निभा रहा है. इंडोनेशिया के बाली में इसे मनाया जा रहा है. आज हम आपको बताएंगे उन महान यात्रीयों के बारे में जिन्होंने अपनी यात्रा के दौरान बताया अलग-अलग रास्ते,सभ्यता,संस्कृतियों के बारे में.
ह्वेनसांग(Hiuen Tsang)
Hiuen Tsang एक चीनी बौद्ध भिक्षु थे. बौद्ध धर्म की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए, ह्वेनसांग खैबर दर्रे से हिमालय पार कर भारत आ गए थे. इस यात्रा में करीब 17 साल लग गए.पश्चिमी क्षेत्रों पर अपनी किताब ‘ग्रेट टैंग रिकॉर्ड्स’ में, ह्वेनसांग ने भारत की तत्कालीन सामाजिक संरचना, शासकों, वास्तुकला के बारे में बात की है.ह्वेनसांग ने भारतीय शासक हर्षवर्धन के शासन काल में भारत की यात्र की थी. राजा हर्षवर्धन के निमंत्रण पर वह कन्नौज में लगभग आठ वर्ष (635-643 ई.) रहे.
ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा के अनुभवों का इतना सटीक वर्णन किया था कि, 19वीं और 20वीं सदी के वैज्ञानिकों को प्राचीन स्थलों को खोजने में बहुत मदद मिली.
लेडफ एरिक्सन (Ladef Erickson)
ऐसा माना जाता है कि जोर्स अन्वेषक लेइफ एरिक्सन (970—1020) उत्तर अमेरिका महाद्वीप की यात्रा करने वाले पहले यूरोपीय थे. एरिक्सन ने Christopher Columbus से 500 वर्ष पहले ही उत्तर अमेरिका की यात्रा कर ली थी। 'सागा आफ द ग्रीनलैण्डर्स' नामक किताब के अनुसार, लेइफ एरिक्सन का जन्म आइसलैण्ड में हुआ था तथा उन्होंने विनलैण्ड में एक उपनिवेश की स्थापना की थी, जिसे आज न्यूफाउण्डलैण्ड द्वीप (कनाडा) में लौंस—ओ—मैडों के नाम से जाना जाता है.
मार्को पोलो(1252-1324)
1270 कि शुरुआत में इटालवी के खोजकर्ता Marco Polo अपने पिता और चाचा के साथ एशिया का पता लगाने के लिए यात्रा पर निकल पड़े थे. मार्को पोलो ने फारस, अफगानिस्तान, मंगोलिया और चीन की यात्रा की थी. उन्होंने जो रास्ता अपनाया उसे अब सिल्क रूट के नाम से जाना जाता है.
सिल्क रूट प्राचीनकाल और मध्यकाल में ऐतिहासिक व्यापारिक-सांस्कृतिक मार्गों का एक समूह था, जिसके माध्यम से एशिया, यूरोप और अफ्रीका जुड़े हुए थे. इसका सबसे जाना-माना हिस्सा उत्तर में था, जो चीन से होकर पश्चिम की ओर पहले मध्य एशिया फिर यूरोप में जाता था और एक शाखा भारत की ओर जाती थी.
उनकी 26 साल की लंबी यात्रा का वर्णन उनकी किताब Travels Of Marco Polo में किया गया है.
इब्न बतूता(1304-77)
Ibn Battuta इतिहास में अब तक के सबसे महान खोजकर्ताओं में से एक हैं. इब्न बतूता एक मोरक्कन थे, जिन्होंने ने अफ्रीका, एशिया और दक्षिणपूर्वी यूरोप के इस्लामी क्षेत्रों की यात्रा की थी. इब्न बतूता ने 1325 में 21 वर्ष कि उम्र में अपनी यात्रा शुरू कि थी. उन्होंने भारत, चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया, मालदीव तक पहुँचने के लिए हिमायालय को भी पार किया. सिर्फ 30 वर्षों में इब्न बतूता ने लगभग 120,000 किलोमीटर की दूरी तय की थी. इब्न बतूता ने अपनी यात्रा के अनुभव अपनी लिखी हुई क़िताब रिहला (यात्रा) में साझा किए हैं.I
राहुल सांकृत्यायन(1893-1963)
Rahul Sankrityayan का जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले में 9 अप्रैल 1993 को हुआ था। उनके बाल्यकाल का नाम केदारनाथ पाण्डेय था. राहुल हिंदी यात्रासाहित्य के पितामह कहे जाते हैं. चौदह वर्ष की अवस्था में ही राहुल कलकत्ता चले गए. मन में ज्ञान प्राप्त करने के लिए गहरा असंतोष होने के चलते उन्होंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया. राहुल उस दौर की उपज थे, जब ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत भारतीय समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और राजनीति सभी संक्रमणकालीन दौर से गुजर रहे थे. सन् 1930 में श्रीलंका जाकर वे बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गये,तभी से उनका नाम ‘राहुल’ पड़ गया और सांकृत्य गोत्र के कारण वे सांकृत्यायन कहलाए.
राहुल ने दक्षिण भारत यात्रा के दौरान संस्कृत-ग्रन्थ, तिब्बत प्रवास के दौरान पालि-ग्रन्थ तो लाहौर यात्रा के दौरान अरबी भाषा सीखकर इस्लामी धर्म-ग्रन्थों का अध्ययन किया. 30 भाषाओं के जानकार और 140 किताबों के लेखक हैं राहुल. साल 1958 में उन्हें साहित्य अकादमी अवॉर्ड और 1963 में पद्मभूषण सम्मान मिला. राहुल सांकृत्यायन को अपने दौर का कबीर भी कहा जाता है. इन्होने कोलकाता, काशी, दार्जिलिंग, तिब्बत, नेपाल, चीन, श्रीलंका, सोवियत संघ जैसे कई देशों में भ्रमण किया था.
घुम्मकड़ शाश्त्र, शैतान की आँख, जादू का मुल्क के साथ-साथ राहुल सांकृत्यायन ने 100 से ज्यादा किताबें लिखीं हैं.