पहाड़ से पलायन रोकने के लिए यमकेश्वर की आर्किटेक्ट नम्रता ने बनाई नई राह
यमकेश्वर (पौड़ी गढ़वाल) की नम्रता दिल्ली में आर्किटेक्ट की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने गाँव कंडवाल लौटकर अपने पति गौरव और भाई दीपक कंडवाल के साथ भांग के उत्पादों का 'हेम्प एग्रोवेंचर्स' नाम से स्टार्टअप शुरू कर दिया है। भांग के बीज और रेशे से रोजमर्रा में काम आने तरह-तरह के उत्पाद बना रही हैं।
भांग पर रिसर्च अभी तक सिर्फ विदेशों में ही होता रहा है लेकिन बदलते समय में अब उत्तराखंड के युवा भी भांग के नफा-नुकसान पर नजर टिकाने लगे हैं। यमकेश्वर (पौड़ी गढ़वाल) की नम्रता दिल्ली में आर्किटेक्ट की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने गाँव कंडवाल लौटकर अपने पति गौरव और भाई दीपक कंडवाल के साथ भांग के उत्पादों का 'हेम्प एग्रोवेंचर्स' नाम से स्टार्टअप शुरू कर दिया है।
भांग के बीज और रेशे से रोजमर्रा में काम आने उत्पाद बना रहीं नम्रता बताती हैं कि भांग का पूरा पौधा बहुपयोगी होता है। इसके बीजों से निकलने वाले तेल से औषधियां बनती हैं। इसके अलावा इससे बहुत सारे उपयोगी सामान भी बनते हैं। उन्होंने पति गौरव के साथ मिलकर काफी रिसर्च के बाद पहाड़ पर भांग के पौधों को रोजगार का जरिया बना लिया। इससे न सिर्फ भांग के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है बल्कि पहाड़ के गांवों से होने वाले पलायन पर भी रोक लगना संभव हो सकेगा।
नम्रता के इस स्टार्टअप को हाल ही में नेपाल में आयोजित एशियन हेंप समिट-2020 में बेस्ट उद्यमी का पुरस्कार मिला है। इस समिट में विश्व के हेंप पर आधारित 35 अलग-अलग स्टार्टअप्स ने हिस्सा लिया।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने न केवल नम्रता के काम की तारीफ की, स्टार्टअप में 10 लाख रुपये की मदद भी की है। सीएम का कहना है कि उनको बेहद खुशी है, राज्य में नई स्टार्टअप नीति कारगर साबित हो रही है। नेपाल तक हमारी स्टार्टअप नीति को पहचान मिलना इसका जीता जागता उदाहरण है। गोहेंप एग्रोवेंचर्स की पूरी टीम को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। इस तरह के स्टार्टअप से राज्य में स्वरोजगार के साथ-साथ लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। युवाओं में इसके प्रति खासा उत्साह है।
नम्रता बताती हैं कि उत्पादों की ऑनलाइन मार्केटिंग भी करती हैं। हम कागज के लिए पेड़ों को काटते हैं, जबकि भांग चार महीने की फसल होती है। चार महीने की इस फसल में इतना फाइबर मिल जाता है, जो हम जंगलों में कई साल पुराने पेड़ों से मिलता है। इसके तने से एक बिल्डिंग मटेरियल बनता है, और ये कोई नया इनोवेशन भी नहीं है।
उत्तराखंड में ये पुराने समय होता आ रहा है। वह आर्किटेक्ट हैं तो इसे ज्यादा बेहतर तरीके से जानती हैं। अगर हम उत्तराखंड की बात करें तो इसकी ईंटों का ये बेस्ट मटेरियल है। ये बहुत हल्का होता है। उत्तराखंड वैसे भी भूकंप प्रभावित जोन है, इसलिए यहां के लिए यह जरूरी और बड़े काम का प्रॉडक्ट है।
दीपक कांडवाल का कहना है कि भांग के फाइबर से हमने डायरी भी बनाई है और इसके बीज से तेल निकाला है, जिसमें ओमेगा 3, 6, 9 के साथ ही प्रोटीन कंटेंट भी बहुत ज्यादा है। खास बात यह है कि भांग से निर्मित उत्पादों को सात से आठ बार तक रिसाइकिल किया जा सकता है।
देश में जल्द ही भांग के पौधों से बनी ईंटों से बनाए घर और स्टे होम नजर आएंगे। भांग से बायोप्लास्टिक तैयार कर प्रदूषण पर भी रोक लगाई जा सकती है। बायोप्लास्टिक को आसानी के प्रयोग किया जा सकता है।
गौरव अपने गांव में भांग के ब्लॉक बना रहे हैं, जिससे वे घर बनाकर होमस्टे योजना शुरू करने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कंडवाल गांव में एक लघु उद्योग लगाया गया है, जहां पर भांग से साबुन, शैंपू, मसाज ऑयल, ब्लॉक्स इत्यादि बनाए जा रहे हैं।