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हैदराबाद के एक स्टार्टअप ने बनाया ऐसा ऐप, जो खांसी की तुरंत जांच से पहचान लेगा टीबी का संक्रमण

हेल्थकेयर स्टार्टअप 'डॉक्टरनल' खतरनाक बीमारी टीबी से इस तरह लड़ रहा है... 

हैदराबाद के एक स्टार्टअप ने बनाया ऐसा ऐप, जो खांसी की तुरंत जांच से पहचान लेगा टीबी का संक्रमण

Monday April 09, 2018 , 5 min Read

आंकड़ों की मानें तो औसत रूप से भारत में हर मिनट में टीबी की वजह से एक आदमी की मौत होती है। ऐसे हालात में तकनीक के ज़रिए इस बीमारी से लड़ने की मुहिम के तहत हैदराबाद आधारित हेल्थकेयर स्टार्टअप ‘डॉक्टरनल’, टीबी के सटीक, सहज और किफ़ायती इलाज के लिए लगातार प्रोजेक्ट्स चला रहा है।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


भारत की आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा टीबी के संक्रामक बैक्टीरिया की चपेट में है। आशंका है कि इनमें से अधिकतर आबादी लैटेंट टीबी से प्रभावित है। लैटेंट टीबी इन्फ़ेक्शन यानी इसमें मरीज़, माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से ग्रसित होता है, लेकिन उसे ऐक्टिव ट्यूबरकुलोसिस नहीं होता।

विश्व की आबादी का एक तिहाई हिस्सा टीबी के जानलेवा रोग से पीड़ित है। 2016 के आंकड़ों के मुताबिक़, अकेले भारत में टीबी की वजह से 423,000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। आंकड़ों की मानें तो औसत रूप से भारत में हर मिनट में टीबी की वजह से एक आदमी की मौत होती है। ऐसे हालात में तकनीक के ज़रिए इस बीमारी से लड़ने की मुहिम के तहत हैदराबाद आधारित हेल्थकेयर स्टार्टअप ‘डॉक्टरनल’, टीबी के सटीक, सहज और किफ़ायती इलाज के लिए लगातार प्रोजेक्ट्स चला रहा है। 2016 में शुरू हुए इस स्टार्टअप के सीईओ और फाउंडर राहुल पथरी कहते हैं कि स्थिति इतनी गंभीर है कि भारत को दुनिया की टीबी कैपिटल माना जाने लगा है।

अनुमान के मुताबिक़, भारत की आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा टीबी के संक्रामक बैक्टीरिया के चपेट में है। आशंका है कि इनमें से अधिकतर आबादी लैटेंट टीबी से प्रभावित है। लैटेंट टीबी इन्फ़ेक्शन यानी इसमें मरीज़, माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से ग्रसित होता है, लेकिन उसे ऐक्टिव ट्यूबरकुलोसिस नहीं होता।

राहुल कहते हैं कि उनका लक्ष्य रहता है कि जांच 95 प्रतिशत तक सटीक हो। डॉक्टरनल के माध्यम से भारत की हेल्थकेयर इंडस्ट्री में ऐसे उत्पादों के विकल्प पेश किए जा रहे हैं, जिनके माध्यम से टीबी का पता लगाना बेहद सहज बनाया जा रहा है। इतना ही नहीं रियल टाइम स्क्रीनिंग और उनके परिणामों की मदद से संक्रमण को कम के कम करने में भी सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं। राहुल दावा करते हैं कि डॉक्टरनल बेहद किफ़ायती सुविधाएं मुहैया करा रहा है और देश के कोने-कोने तक पहुंचने की लगातार कोशिश में है।

राहुल बताते हैं कि मेडिकल तकनीक के लगातार विकास के बावजूद भी देश में टीबी की स्थिति इतनी गंभीर होने के सबसे बड़े कारण हैं; महंगा और परेशान करने वाला इलाज और सबसे मुख्य रूप से टीबी के भ्रामक पॉज़िटिव/निगेटिव टेस्ट आदि। राहुल ने जानकारी दी कि उन्हें भी आईजीआरए और मैनटॉक्स के टेस्ट कराने पड़े हैं, जिनको विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी चुनौती दी जा चुकी है।

राहुल ने बताया कि उनके परिवार में कई लोगों और कुछ दोस्तों को भी यह बीमारी रह चुकी है, इसलिए गंभीरता से विचार करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि समस्या बीमारी की सही और सटीक जांच से भी जुड़ी हुई है। इसके बाद ही उन्होंने टीबी की सही समय पर सटीक जांच के उद्देश्य के साथ 2016 में डॉक्टरनल की शुरूआत की और अपनी सोच से सहमत लोगों की एक टीम बनाई।

राहुल ने बताया कि कंपनी का सबसे प्रभावी और लोकप्रिय प्रोडक्ट है ‘टिम ब्री’, जिसके माध्यम से पॉइंट ऑफ़ केयर टीबी स्क्रीनिंग की सुविधा दी जा रही है। टिम ब्री की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी देते हुए राहुल ने बताया कि यह एक स्क्रीनिंग ऐप है, जिसमें माइक्रोफ़ोन के जरिए कफ़ या खांसी की आवाज़ रिकॉर्ड होती है। हेल्थकेयर कर्मचारियों द्वारा इस आवाज़ की जांच की जाती है और आपको तुरंत ही पता चल जाता है कि आपका कफ़, टीबी पॉज़िटिव है या नहीं।

अगर जांच में रिपोर्ट पॉज़िटिव आती है तो रिवाइज़्ड नैशनल ट्यूबरकुलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम या फिर संबद्ध पल्मोनोलॉजिस्ट्स (श्वांस रोग विशेषज्ञों) और सहयोगी डायग्नोस्टिक सेंटर्स के माध्यम से मरीज़ों को सहयोग दिलाया जाता है। इसके साथ-साथ इलाज के दौरान दवाइयों और सही आहार के बारे में जानकारी भी दी जाती है। अभी तक डॉक्टरनल की कोर टीम ने अनुदानों समेत कुल 150,000 डॉलर्स का फंड जुटा लिया है। राहुल ने जानकारी दी कि हैदराबाद और तेलंगाना में कई पायलट प्रोजेक्ट्स भी चल रहे हैं और स्थानीय श्वांस रोग विशेषज्ञों का पूरा सहयोग लिया जा रहा है। टेलिमेडिसिन हेल्थ कैंप्स की भी सहायता ली जा रही है।

डॉक्टरनल की टीम 

डॉक्टरनल की टीम 


राहुल ने बताया कि अभी तक पायलट प्रोजेक्ट्स में उन्हें टीबी की चपेट में आ चुके या आशंकित करीब 2,000 लोग मिल चुके हैं और गिनती अभी भी जारी है। डॉक्टरनल को आईआईआईटी-हैदराबाद, एआईआर मेकर, सिंगापुर, ऊबर एक्सचेंज, एआईएम स्मार्ट सिटी, स्टार्टअप नेक्सस और बीआईआरएसी का सहयोग भी हासिल है। आगामी महीनों में डॉक्टरनल, अधिक से अधिक अस्पतालों में अपने पायलट प्रोजेक्ट्स लॉन्च करने पर विचार कर रहा है।

अपने प्रोजेक्ट्स से मिली सीख के बारे में बात करते हुए राहुल ने कहा कि ग्रामीण समुदायों में धीरे-धीरे लोग अपने माता-पिता या अन्य बड़े लोगों से टीबी के बारे में बात करने में सहज हो गए हैं, जो एक सकारात्मक पहलू है। साथ ही, उन्होंने कहा कि यह एक संक्रामक रोग है, इसलिए डॉक्टरनल की टीम को फ़ूल-प्रूफ़ प्रोटोकॉल्स बनाने की ज़रूरत है और इस बात का ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि मास स्क्रीनिंग के दौरान किसी भी तरह ही चूक न हो।

फ़िलहाल डॉक्टरनल सब्सक्रिप्शन के आधार पर अपनी सुविधाएं दे रहा है, जहां पर यूज़र्स को 0-100 रुपए (बिज़नेस टू गर्वनमेंट मॉडल) तक का चार्ज देना पड़ता है। राहुल ने बताया कि इसके अतिरिक्त हाइब्रिड बिज़नेस टू बिज़नेस मॉडल के तहत एक पूरा सॉल्यूशन का पैकेज भी ख़रीदा जा सकता है, जिसमें सब्सक्रिप्शन एक साल बाद शुरू होता है, लेकिन उपभोक्ता को हार्डवेयर, ऐल्गोरिद्म्स, रिपोर्टिंग और ईएमआर के लिए पहले भुगतान करना होता है। राहुल और उनकी टीम की योजना है कि 2019 तक अस्थमा, फेफड़ों और सांस संबंधी अन्य रोगों के लिए भी सुविधाएं शुरू करने की।

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