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आम बजट 2018-19 : 'फुस्सी बम' होगा या देश के विकास में मजबूत कदम!

आम बजट 2018-19 : 'फुस्सी बम' होगा या देश के विकास में मजबूत कदम!

Friday January 26, 2018 , 8 min Read

वर्ष 2018-19 के आम बजट सत्र का पहला चरण 29 जनवरी से 9 फरवरी तक चलेगा। इसके बाद बजट सत्र समाप्त हो जाएगा। दूसरा चरण पांच मार्च से छह अप्रैल तक रहेगा। संसद का बजट सत्र राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के अभिभाषण से शुरू होगा। संसद के दोनों सदनों का यह संयुक्त सत्र 30 जनवरी को होगा। 31 जनवरी को आर्थिक सर्वेक्षण के लोकसभा के पटल पर रखे जाने की उम्मीद है और उसके अगले दिन आम बजट पेश किए जाने की संभावना है।

अरुण जेटली (फाइल फोटो)

अरुण जेटली (फाइल फोटो)


 वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2017-18 में व्यक्तिगत आयकर की सबसे छोटी स्लैब को घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया था, जिसका लाभ सिर्फ कम आय वालों को ही नहीं, ज़्यादा कमाने वालों तक भी पहुंचने की संभावना थी लेकिन उसने टैक्स विशेषज्ञों को निराश किया। उन्हें उम्मीद थी कि सेक्शन 80सी के तहत करमुक्त बचत सीमा में बढ़ोतरी हो जाएगी।

वर्ष 2018-19 का संसद का बजट सत्र चार दिन बाद 29 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। लोकसभा सचिवालय के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार रविवार को शाम साढ़े सात बजे संसद के ग्रंथालय भवन के कमेटी कक्ष में लोकसभा अध्यक्ष ने सभी राजनीतिक दलों के नेताओं की बैठक बुलाई है। इसमें बजट सत्र के दौरान उठने वाले संभावित मुद्दों और सदन के कार्यसंचालन को लेकर विचार विमर्श किया जाएगा। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार के मुताबिक बजट सत्र का पहला चरण 29 जनवरी से 9 फरवरी तक चलेगा। इसके बाद बजट सत्र समाप्त हो जाएगा। दूसरा चरण पांच मार्च से छह अप्रैल तक रहेगा। संसद का बजट सत्र राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के अभिभाषण से शुरू होगा।

संसद के दोनों सदनों का यह संयुक्त सत्र 30 जनवरी को होगा। 31 जनवरी को आर्थिक सर्वेक्षण के लोकसभा के पटल पर रखे जाने की उम्मीद है और उसके अगले दिन आम बजट पेश किए जाने की संभावना है। बजट को फरवरी के अंत में प्रस्तुत किए जाने की ब्रिटिशकालीन परंपरा को खत्म करते हुए पिछले साल जेटली ने पहली बार आम बजट को एक फरवरी को पेश किया था। इसका तर्क यह है कि एक अप्रैल से नए वित्त वर्ष की शुरुआत से पहले सभी बजट प्रस्तावों को मंजूरी मिल जाए ताकि समय पर धन की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। इस बदलाव के साथ ही रेल बजट को अलग से पेश करने की परंपरा को भी समाप्त कर इसे आम बजट में ही मिला दिया गया था।

यद्यपि बजट की समीक्षा करने का काम साल दर साल कठिन होता जा रहा है, बजट अब ठोस आंकड़ों की बजाए लंबे-लबे वाक्यों का रूप लेने लगा है, फिर भी आने वाले बजट-2018-19 से देश के हर वर्ग के करोड़ों लोगों को तरह-तरह की उम्मीदें हैं लेकिन इससे पहले आइए, एक नजर जान लेते हैं कि 2017-18 के बजट पर कैसी-कैसी प्रतिक्रियाएं रही थीं। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2017-18 में व्यक्तिगत आयकर की सबसे छोटी स्लैब को घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया था, जिसका लाभ सिर्फ कम आय वालों को ही नहीं, ज़्यादा कमाने वालों तक भी पहुंचने की संभावना थी लेकिन उसने टैक्स विशेषज्ञों को निराश किया। उन्हें उम्मीद थी कि सेक्शन 80सी के तहत करमुक्त बचत सीमा में बढ़ोतरी हो जाएगी।

इसके अलावा बच्चों के लिए पढ़ाई भत्ता, मेडिकल री-इम्बर्समेंट तथा होस्टल भत्ता जैसे कुछ भत्ते बहुत साल पहले निर्धारित किए गए थे, सो, उस बजट में उन्हें भी बढ़ाया जा सकता था लेकिन वैसा नहीं किया गया। उस आम बजट में छोटी कंपनियों को तो कर में राहत दी गई लेकिन बड़े उद्योगों के लिए कुछ नहीं किया गया। उस वक्त नोटबंदी का असर झेल रहे उद्योग जगत ने वित्त मंत्री को एक लंबी वि-लिस्ट सौंपी थी। यद्यपि अफोर्डेबल हाउसिंग को 'इंफ्रास्ट्रक्चर स्टेटस' देने पर रियल इस्टेट कारोबारी खुश हुए थे। बजट में किफायती आवासों को भी बुनियादी ढांचे का दर्जा दे दिया गया था, जिसकी लंबे समय से मांग थी। रियल इस्टेट ने उसका स्वागत किया था आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन ने उसे 'एक सामान्य बजट' करार दिया था। पीएम नरेंद्र मोदी ने उस बजट को देश के विकास के लिए एख मजबूत कदम कहा था, जबकि विपक्ष ने उसे 'सूटबूट की सरकार' और 'अमीरों के सरकार' का बजट होने का आक्षेप लगाया था।

राहुल गांधी ने कहा था कि हम आतिशबाजी की उम्मीद कर रहे थे, यह तो 'फुस्सी बम' निकला, लेकिन उन्होंने राजनीतिक चंदे पर नए नियम का स्‍वागत किया था। ममता बनर्जी ने बजट को बताया विवादास्पद, अनुपयोगी, आधारहीन, मिशनविहीन बताया था। पिछले बजट में मनरेगा के मद में 11 हजार करोड़ रुपए का इजाफा करते हुए 48000 करोड़ रुपए की घोषणा हुई थी। चीन, पाकिस्‍तान की चुनौती का सामना करने के लिए रक्षा बजट में जबर्दस्‍त इजाफा किया गया था। सड़क, रेल, एयरपोर्ट के आधुनिकीकरण के लिए 3.96 लाख करोड़ रुपये दिए गए थे। पिछले बजट में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कई बड़े ऐलान भी किए थे, मसलन, तीन लाख रुपये से अधिक के नकद लेनदेन प्रतिबंध लगा दिया गया था। व्यक्तिगत आयकर के मामले में मध्यवर्ग को राहत देते हुए वित्तमंत्री ने ढाई से पांच लाख तक की आय पर लगने वाले 10 फीसदी कर को घटाकर पांच फीसदी कर दिया था।

इस बार जब पहली फरवरी को वर्ष 2018-19 का आम बजट भाषण वित्त मंत्री अरुण जेटली लोक सभा में पढ़ रहे होंगे, यह उनके मौजूदा कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट होगा। इस बीच विशेषज्ञ मान रहे हैं कि जीएसटी लागू होने के बाद सरकार के पास अप्रत्यक्ष करों में किसी बड़े बदलाव की गुंजाइश नहीं है। 2018 का आयात बिल पांच लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। कच्चे तेल की कीमतों में और वृद्धि की वजह से कड़े वित्तीय उपायों की जरूरत होगी। तेल एवं गैस उद्योग ने सरकार से आगामी बजट में खोज एवं उत्पादन को बुनियादी ढांचा क्षेत्र का दर्जा दिए जाने की मांग की है। इसके अलावा उद्योग चाहता है कि घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर करों की दर को कम किया जाए तथा आयात पर निर्भरता घटाई जाए।

इसके अलावा उद्योग ने प्राकृतिक गैस को जल्द से जल्द माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत लाने की मांग की है, ताकि पर्यावरण के अनुकूल ईंधन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जा सके और गैस आधारित अर्थव्यवस्था की ओर रुख किया जा सके। टैक्स भरने वालों को हर साल आम बजट का बेसब्री से इंतजार रहता है। रोजमर्रा के खर्च इतने बढ़ गये हैं कि वर्तमान टैक्स स्तर के ढांचे में बदलाव किए जाने की उम्मीद काफी बढ़ गई है। एक बहुत बड़ी जनसंख्या को टैक्स से पूरी तरह बाहर रखना, सरकार के लिए आमदनी की दृष्टि से काफी हानिकारक है, लेकिन टैक्स बचाने में लोगों की मदद करने के लिए विभिन्न धाराओं के तहत छूट की सीमा को बढ़ाया जा सकता है।

वर्तमान में एक टैक्सपेयर आयकर अधिनियम की धारा 80 CCE के अनुसार धारा 80C, 80CCC और 80 CCD(1) के तहत हर साल 1.5 लाख रुपये तक टैक्स कटौती का लाभ उठा सकता है। इस सीमा को 2014 में 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये किया गया था। इससे पहले आखिरी बार 2003 में इसे संशोधित किया गया था। इस तरह पिछले 14 साल में इस धारा के तहत सिर्फ 50% संशोधन किया गया है। इसलिए इस सीमा को बढ़ाकर 2 से 3 लाख रुपये के आसपास कर देना चाहिए। इससे टैक्स भरने वालों के हाथ में थोड़े ज्यादा पैसे आएंगे, जिसका इस्तेमाल वे सोने खरीदने और अन्य लिक्विड एसेट्स में निवेश करने के बजाय फाइनैंशल असेट्स में निवेश करने में करेंगे।

इस बीच बताया जा रहा है कि इस साल आम बजट से जनता को काफी उम्मीदें हैं। एक तरफ जहां नोटबंदी और जीएसटी की मार ने व्यापारी वर्ग की कमर तोड़ दी है वहीं, दूसरी तरफ बढ़ती महंगाई से आम जनता परेशान है। कर्मचारी वर्ग के लिए सरकार के पास खुशखबर जरूर है। खबरों की मानें तो सरकार बजट 2018-19 में ग्रैचुटी में बढ़ोतरी करने की तैयारी कर रही है। इस बजट सत्र में 'पेमेंट ऑफ ग्रेचुटी अमेंडमेंट बिल 2017' पास करने की तैयारी है। लेबर मिनिस्ट्री के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बिल को बजट सत्र में पास कर दिया जाएगा। बिल पास होते ही प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों की टैक्स फ्री ग्रेचुटी 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपए कर दी जाएगी।

इसका एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए सरकार फॉर्मल सेक्टर के कर्मचारियों को राहत देना चाहती है। इस बिल में यह प्रावधान भी है कि आगे से ग्रेचुटी की रकम बढ़ाने के लिए संसद से मंजूरी लेने की जरूत नहीं होगी। सरकार इसे सिर्फ नोटिफिकेशन के जरिए बढ़ा सकती है। इसके अलावा सूत्रों की मानें तो इस बजट में मोबाइल हेल्थ सर्विसेज को बनाने और बढ़ाने पर भी सरकार का विशेष जोर रहने वाला है। मोबाइल हेल्थ सर्विसेस का सीधा मतलब है, मोबाइल ऐप के जरिए डॉक्टर से बीमारी के बारे में सलाह लेना और चेक अप कराना। सूत्र बताते हैं कि मोबाइल हेल्थ सेवा के लिए सरकार आगामी बजट में पांच सौ करोड़ रुपए के अतिरिक्त फंड का एलान कर सकती है।

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