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मां की बीमारी ने बदल की इस वैज्ञानिक की सोच, अब गांव में आर्गेनिक खेती को दे रहे हैं बढ़ावा

मां की बीमारी ने बदल की इस वैज्ञानिक की सोच, अब गांव में आर्गेनिक खेती को दे रहे हैं बढ़ावा

Sunday September 30, 2018 , 6 min Read

 अगर आप कभी तमिलनाडु की सीमा पर स्थित पेनाग्राम गांव जाते हैं, तो आपको वहां खेतों में काम करते हुए 40 वर्षीय हरिनाथ मिलेंगे। ये हरिनाथ पेशे से वैज्ञानिक हैं लेकिन अब इन्होंने अपने आप को एक ऐसे व्यवयास में लगाया हुआ है जो बहुत कम देखने को मिलता है।

हरिनाथ

हरिनाथ


वैसे तो तमिलनाडु का पेनाग्राम गांव काफी छोटा है लेकिन यहां के किसान देश के किसानों से काफी अलग हैं। इसका बड़ा कारण है डॉ. हरि नाथ कासीगनेसन का किसानों की मदद के लिए काम करना। 

ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो अमेरिका में किसी टॉप लेवल की नौकरी छोड़ वापस अपने देश में अपने पेशे से हटकर काम करते हों। लेकिन इस वैज्ञानिक ने एक मिसाल पेश की है। अगर आप कभी तमिलनाडु की सीमा पर स्थित पेनाग्राम गांव जाते हैं, तो आपको वहां खेतों में काम करते हुए 40 वर्षीय हरिनाथ मिलेंगे। ये हरिनाथ पेशे से वैज्ञानिक हैं लेकिन अब इन्होंने अपने आप को एक ऐसे व्यवयास में लगाया हुआ है जो बहुत कम देखने को मिलता है। वैसे तो आपको डॉ. हरिनाथ कासीगनेसन देखने में एक साधारण किसान से अलावा और कुछ नहीं लेंगे लेकिन जब आप गूगल करेंगे तो उनकी उपलब्धि देख चौंक सकते हैं।

आपको देखकर अचरज हो सकता है कि मिट्टी से सना गमछा और सफेद बनियान पहने खेत के किनारे पर बैठा ये शख्स इतना साधारण कैसे हो सकता है। डॉ. हरिनाथ कासीगनेसन ने अमेरिका में अपनी अच्छी खासी नौकरी और एक प्रतिष्ठित औषधि शोध वैज्ञानिक का दर्जा इसलिए छोड़ा ताकि वे अपने गांव में ओर्गेनिक खेती और परंपरागत औषधीय पौधे उगाने का काम कर सकें। वे ऐसे इसलिए भी करते हैं ताकि आम लोगों भी अच्छी फसल उगा सकें।

वैसे तो तमिलनाडु का पेनाग्राम गांव काफी छोटा है लेकिन यहां के किसान देश के किसानों से काफी अलग हैं। इसका बड़ा कारण है डॉ. हरि नाथ कासीगनेसन का किसानों की मदद के लिए काम करना। चेन्नई से स्नातकोतर की पढ़ाई पूरी करने के बाद हरिनाथ ने भारत में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में भी काम किया था। वे कहते हैं कि डीआरडीओ में काम करने के दौरान उन पर पूर्व भारतीय राष्ट्रपति डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम का गहरा असर पड़ा। डॉ. कलाम की सहजता का असर हरिनाथ पर इस कदर पड़ा कि उन्होंने भी लोगों के सरोकार के लिए काम करने का बीड़ा उठा लिया।

समाचार ऐजेंसी 'भाषा' के साथ बातचीत करते हुए डॉ. हरिनाथ ने बताया कि एक दशक से अधिक समय तक डीआडीओ में काम करने के बाद वह साल 2005 में अमेरिका चले गए। अमेरिका में उन्होंने दवाइयों को लेकर काफी काम किया। दिल से जुड़ी बीमारियों की बहुत सी दवाएं उन्होंने तैयार की और इस दौरान उन्होंने कई अन्तरराष्ट्रीय दवा कंपनियों के साथ भी काम किया। हरिनाथ ने करीब एक दशक तक चार्ल्सटन की साउथ केरोलिना मेडिकल यूनीवर्सिटी में औषधि वैज्ञानिक के तौर पर काम किया। यहां काम करने के दौरान उन्हें कुछ अलग करने का मन हुआ।

बहुत कम उम्र में अपने पिता को खो देने के बाद मां ने हरिनाथ को पाला पोशा। जिसके चलते हरि नाथ को बचपन से खेती के कामों में लगना पड़ा। लॉजिकल इंडियन को दिए अपने इंटरव्यू में हरिनाथ बताते हैं कि उनका गांव एक जंगल के निकट है जिससे उनका बचपन हरियाली में बीता। वे कहते हैं, "मैं किसानों से भरे गांव में शिक्षकों के परिवार में पैदा हुआ था।" अमेरिका में दिल से जुड़ी बीमारियों की बहुत सी दवाएं तैयार करने के साथ-साथ हरिनाथ ने कई सारे रिसर्च पेपर पब्लिश किए। यही नहीं उनके नाम कई सारी दवाओं के पेटेंट भी हैं जो उन्होंने खुद तैयार की हैं।

हरिनाथ बताते हैं कि कैसे उन्होंने वापस अपने खेतों में लौटने का विचार किया। वे कहते हैं, "एक समय के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मेरी अधिकतर रिसर्च उन लोगों के जीवन तक नहीं पहुंच पा रही है जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी। मैं केवल कॉर्पोरेट फार्मास्युटिकल हाउसों के मुनाफे के लिए काम कर रहा था।" बुरे पल को याद करते हुए हरिनाथ बताते हैं कि रिटारमेंट के बाद जब वापस घर लौटा तो मां को बढ़ती उम्र में गठिया और स्पोंडेलाइटिस की बीमारी ने जकड़ लिया और उनके डाक्टर ने उन्हें दर्दनिवारक दवा खाने की सलाह दी, जिससे फायदा होने की बजाय उन्हें अल्सर हो गया।

वे कहते हैं, "उसके बाद, मां को पेन किलर इंजेक्शन दिए जाने लगे। लेकिन उन पर इन सभी दवाओं ने असर करना बंद कर दिया। "उनकी हालत दिन पर दिन खराब हो रही थी। मैं खुद कोर मेडिकल फील्ड में था, मुझे यह देखते हुए काफी दर्द हो रहा था कि मैं अपनी मां की देखभाल करने में भी असफल हूं।" इसके बाद हरिनाथ ने परंपरागत उपचार विधियों को खोजना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने मोरिंगा ओलीफेरा (ड्रमस्टिक पत्तियां) के स्वास्थ्य लाभों के बारे में एक रिव्यू आर्टिकल पढ़ा जिसका स्थानीय लोककथाओं में एक दवा के रूप में उल्लेख किया गया था।

हरिनाथ बताते हैं, "मेरे सुझाव पर, मेरी मां ने हर सुबह उबला हुआ मोरिंगा रस पीना शुरू कर दिया। जिसके फलस्वरूप वह बेहद कम समय में पूरी तरह से ठीक हो गईं।" हरिनाथ हंसते हुए कहते हैं कि उनकी मां अब मोरिंगा पेड़ के लिए एक मंदिर बनाने की योजना बना रही हैं। इस घटना के तुरंत बाद, उन्होंने अपने गांव में स्थायी रूप से लौटने का फैसला किया और परंपरागत हर्बल दवाओं और कार्बनिक खेती के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए एक सामाजिक मिशन शुरू किया। इसका ही नतीजा निकला कि उन्होंने वापस भारत आने का फैसला किया।

भारत में वापसी

जनवरी 2015 में वापस भारत आने से पहले डॉ हरि नाथ ने कार्बनिक खेती पर लंदन में व्यापक शोध किया। अपनी मां के प्रोत्साहन के साथ, उन्होंने थोड़ी जमीन खरीदी और अनाज, जड़ी बूटियों, फलों और सब्जियों की रासायनिक मुक्त खेती शुरू की। वे कहते हैं, "मैंने तमिलनाडु में चावल की दुर्लभ और विलुप्त हो गईं किस्मों जैसे मैपिलई सांबा, किचिली सांबा, करंग कुरुवाई और वसनई सीरागा सांबा की पहचान के लिए काफी ट्रैवल किया। चावल की इन किस्मों में उच्च औषधीय शक्तियां हैं। इनका उल्लेख सिद्ध साहित्य (प्राचीन तमिल औषधीय सिद्धांत) में भी किया गया है। मैंने मोरिंगा, करी पत्तियों, आमला इत्यादि की खेती करना शुरू किया।" हरिनाथ ने मोरिंगा बुलेट (मोरिंगा अर्क के साथ बने न्यूट्रास्यूटिकल उत्पाद) तैयार किया है। मोरिंगा बुलेट ने गठिया, मधुमेह, एनीमिया व ब्लड प्रेशर से पीड़ित कई स्थानीय लोगों के लिए चमत्कार किए हैं। हरिनाथ कहते हैं, "मैंने आगे के शोध के लिए डीआरडीओ में अपने कुछ प्राकृतिक चिकित्सा नमूनों को प्रस्तुत किया है।"

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