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'आउटलाइन इंडिया' के लिए ‘प्रेरणा’ की ही ज़रूरत है...

महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया बदलने का जज्बा लेकर शुरू किया सर्वेक्षण का काम‘आउटलाइन इंडिया’ के द्वारा शोध और सर्वेक्षण के काम को एक नई दिशा दी है प्रेरणा नेसामाजिक योजनाओं को तैयार करने में सहायक डाटा तैयार करती है साहसिक टीमकई देशी और विदेशी अध्ययनों को करने में मदद दे रही है ‘आउटलाइन इंडिया’

'आउटलाइन इंडिया' के लिए ‘प्रेरणा’ की ही ज़रूरत है...

Wednesday April 29, 2015 , 6 min Read

उच्च गुणवत्ता वाले मैदानी सर्वेक्षण करने वाले संगठन ‘आउटलाइन इंडिया’ की संस्थापक प्रेरणा मुखर्या का मानना है कि महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार में परिवर्तन लाये जाने की जरूरत है और महिलाओं के प्रति लोगों के नजरिये में बदलाव का समय आ चुका है। वह इस बात से सहमत हैं कि महिलाओं के लिये कई काम वास्तव में बहुत कठिन होते हैं। विशेषकर भारतीय परिदृश्य में जहां कामकाजी महिलाओं को कई तरह की चुनौतियों से दो-चार होना पड़ता है।

प्रेरणा मुखर्या

प्रेरणा मुखर्या



लोगों के इसी नजरिये को बदलने की बेकरारी उन्हें सर्वेक्षण (फील्डवर्क) के क्षेत्र में ले आई और यह काम अब उनके जीवन का ध्येय बन चुका है। प्रेरणा शोध के क्षेत्र में अपना पहला कदम रख रहे ‘आउटलाइन इंडिया’ के साथ क्षेत्र से डाटा संग्रहण, विभिन्न विश्वविद्यालयों के लिये अनुसंधान और नीति सलाहकार का काम करने के अलावा सरकारी प्रबुद्ध-मंडल और दानदाता एजेंसियों के साथ समन्वय के काम में लगी हुई हैं। यह एक विचित्र संयोग ही है कि आउटलाइन इंडिया की टीम में इस समय महिला सदस्यों का बोलबाला है और वे हर काम स्वयं करने में सक्षम हैं। चाहे फील्ड वर्क हो या नेटवर्किंग का काम या फिर विभिन्न परियोजनाओं के लिये बोली लगाने का काम हो ये किसी से पीछे नहीं रहती। इसके अलावा विभिन्न संस्थाओं के प्रमुखों के साथ काम करने में भी ये महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर लगातार आगे बढ़ रही हैं।


आउटलाइन इंडिया से पहले प्रेरणा शोध और शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही थीं जहां उन्होंने कई महीनों का समय डाटा संकलन और उसकी छंटाई में बर्बाद किया। प्रेरणा कहती हैं कि, ’’हमने अपना काफी समय नियमावली तैयार करने, सर्वेक्षकों को प्रशिक्षण देने और सर्वेक्षण उपकरणों के प्रारूप तैयार करने और संशोधनों में व्यतीत किया लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और हमारे द्वारा प्राप्त डाटा गुणवत्ता के मामले में बिल्कुल बेकार था। यह बहुत निराशाजनक था और मैं इसके पीछे के कारण को समझने में नाकाम थी। ऐसे में मैंने विकास के क्षेत्र में ऐसे व्यवसाय के मौके को देखा जिसमें कोई दावेदार नहीं था।’’

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वे आगे कहती हैं, ‘‘इस समय पर मैंने भारत में डाटा संग्रहण के काम का तरीका बदलने के साथ ही उसमें जवाबदेही, प्रमाणिकता और प्रोत्साहन लाने के लिये ‘आउटलाइन इंडिया’ को स्थापित करने के बारे में विचार करना शुरू किया।’’


‘आउटलाइन इंडिया’ को स्थापित करने से पहले उन्होंने काफी समय तक गहन विचार किया और कई मिलने वालों से विचार-विमर्श किया। उन्होंने इस बारे में वल्र्ड बैंक में काम करने वाले अपने एक वरिष्ठ से विशेष रूप में विमर्श किया जिन्होंने उनसे कहा, ‘‘प्रेरणा, बचपना छोड़ो। अगर यह बात तुम्हें परेशान कर रही है तो इस दिशा में जल्द से जल्द कुछ करो,’’ वे याद करती हैं।


क्या इसी एक बात ने प्रेरणा को इस चुनौतीपूर्ण काम को अपने कंधों पर लेने के लिये प्रेरित किया? ‘‘प्रेरणा हर जगह है। मैंने कुगफू पांडा की एनीमेशन फिल्म को दस से अधिक बार देखा है और मैं उसके संदेश ‘अगर आप कुछ करना चाहते हैं तो उस काम को चुनौती की तरह लें’ में पूरा यकीन था,’’ प्रेरणा कहती हैं।


प्रेरणा आगे कहती हैं कि, ‘‘मैंने बिना किसी संपर्क के सिर्फ एक लैपटाॅप और अपने बैंक खाते में 2 लाख रुपये के साथ इस काम को शुरू किया था। शुरुआती तीन महीनों के भीतर ही मेरा लैपटाॅप क्रैश हो गया और मुझे ऐसा लगा कि मेरे सिर पर आसमान टूट पड़ा है। उस समय मैंने यह सीखा कि किसी बड़े काम को करते हुए छोटी-मोटी दिक्कतों पर परेशान होने की जरूरत नहीं है। अगर आप एक बार कुछ करने की ठान लें तो आप सफलता की ऊँचाईयों को छू सकते है।’’


इस युवा तुर्क के लिये ‘आउटलाइन इंडिया’ का सफर बलिदान और विकल्प से भरा रहा है। आउटलाइन शुरू करने के लगभग 6 महीने बाद ही मुंबई की एक विकास परामर्शदाता कंपनी ने उनके इस स्टार्ट-अप का अधिग्रहण कर उन्हें अनुसंधान का प्रमुख बनाने की पेशकश की लेकिन प्रेरणा को यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया।


‘आउटलाइन इंडिया’ प्रारंभ करने के कुछ समय बाद ही उनका जीवन बिल्कुल बदल गया और उनके सामने नई तरह की चुनौतियां मुंह बाएं खड़ी थीं। कई बार देर रात 1 बजे आने वाले टेलीफोन, कभी-कभी पूरे सप्ताह खाली बैठना, ऐन मौके पर सर्वेक्षक का बीमार पड़ जाना, उपभोक्ताओं का अपनी समय-सीमा को बिना आगाह किये आगे बढ़ा देना जैसी समस्याओं से प्रेरणा को लगातार जूझना पड़ा। लेकिन धुन की पक्की यह टीम सामने आने वाली चुनौतियों से डरी नहीं और सफलता की राह पर लगातार आगे बढ़ती गई। जल्द ही इस टीम को शिक्षा और शोध के क्षेत्र के कुछ जाने-माने लोगों का सहयोग और मान्यता मिली और लगातार यात्रा करने के विकल्प के साथ ही ये लोग एक बड़े से उद्यान वाले दफ्तर में बैठे थे।


प्रेरणा कहती हैं कि, ‘‘आउटलाइन में मुझे काम के साथ घूमने का भी भरपूर मौका मिलता है और वर्ष में तीन बार अवकाश का मिलना तो एक बोनस के समान है। फिलहाल मैं बेल्जियम में आयोजित होने वाले ‘टुमारोलैंड संगीत समारोह’ में जाने की तैयारियों में व्यस्त हूँ।’’


‘‘स्पाइडरमैन के मशहूर डायलाग - महान शक्ति के साथ महान जिम्मेदारी आती है कि तर्ज पर मैं मानती हूँ कि समाज में परिवर्तन लाने के लिये आपको परिपूर्ण डाटा की जरूरत होती है,’’ एक प्रतिबद्ध समाज सुधारक की सोच को दर्शाती हैं।


प्रेरणा आगे कहती हैं कि, ‘‘डाटा ही मुख्य कुंजी है और अगर हमें भारत में एक समावेशी विकास माॅडल को तैयार करना है तो हमें इकट्ठे किये जाने वाले डाटा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना होगा।’’ ‘आउटलाइन इंडिया’ के लिये सर्वेक्षक के तौर पर मुख्यतः ऐसे स्थानीय लोगों को वरीयता दी जाती है जिन्हें वहां के लोगों, स्थानों और व्यवहार के बारे में अधिक जानकारी होती है। प्रेरणा आगे बताती हैं कि, ‘‘यह इन लोगों के साथ भावनात्मक संबंध बनाने जैसा होता है। हम अपने सर्वेक्षकों इस बात को समझाते हैं कि कैसे यह अध्ययन इन लोगों के घर, समुदाय, गांव और लोगों को एक लंबे अंतराल के दौरान प्रभावित करेगा और इन लोगों के जीवन में इसके कितने सकारात्मक प्रभाव होंगे।’’


‘आउटलाइन इंडिया’ लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिये कटिबद्ध है इसके लिये वह सर्वेक्षण उपकरणों के निर्माण और सेवाओं के निगरानी और मूल्यांकन के साथ प्रशिक्षण कार्यशालाओं की मेजबानी करने के अलावा साक्षात्कार करने और समूह चर्चा करने से लेकर रिपोर्ट तैयार करने तक के काम कर रहे हैं। 20 वर्षीय प्रेरणा कहती हैं कि, ‘‘हमारा प्रयास है कि सामाजिक योजनाओं को तैयार करने के दौरान हमारा काम नीतिगत फैसले, सुधार और मूल्यांकन को सुधारने में मदद कर सके।’’


वर्तमान में ‘आउटलाइन इंडिया’ कई बड़ी परियोजनाओं पर जोर-शोर से काम कर रही है। केरल में धर्म और शिक्षा पर ब्रांडीज़ विश्वविद्यालय के लिये एक शोध करने के अलावा यह टीम ब्रिक्स देशों के बच्चों (ये भारतीय बच्चों) के बीच खेल प्रशिक्षण सामग्री में डिजिटल उपकरणों के प्रयोग के लिये सीसेम स्ट्रीट के साथ काम कर रहे हैं। इसके अलावा इनके पास टोक्यो यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश काउंसिल के लिये भी कुछ अध्ययन करने के प्रोजेक्ट हैं।


‘आउटलाइन इंडिया’ की भविष्य की योजनाओं के बारे में जानकारी देते हुए इसकी उत्साहित संस्थापक बताती हैं कि, ‘‘वर्तमान में हमारी वर्ल्ड बैंक के लिये एक अध्ययन और देश के उत्तर पूर्व की एक राज्य सरकार से कुछ बड़ा करने के बारे में बातचीत चल रही है और जल्द ही हमें इसमें सफलता मिलने की उममीद है।’’