हिंदुओं के हक के लिए आवाज उठाने वाली कृष्णा कुमारी ने पाकिस्तान की सीनेट में पहुंचकर रचा इतिहास
जो थी कभी बंधुआ मजदूर, उसने सिंध प्रांत की सीनेटर बनकर रचा इतिहास...
एक किसान के यहां पैदा हुईं कृष्णा ने अपने परिवार के साथ दूसरों के यहां बंधुआ मजदूर के तौर पर काम किया है। नगरपार्कर के धनागम गांव की रहने वाली कृष्णा मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर लंबे समय से काम करती रही हैं।
पाकिस्तान में इसके पहले भी एक हिंदू महिला सीनेटर के तौर पर चुनी जा चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई दलित महिला इस पद पर नहीं पहुंच पाई थी। सिंध प्रांत से ही रत्ना भगवानदास चावला पीपीपी की तरफ से सीनेटर पद पर पहुंची थीं।
पाकिस्तान में हिंदू दलित महिला कृष्णा कुमारी कोल्ही ने सिंध प्रांत की सीनेटर बनकर इतिहास रच दिया है। वह पहली हिंदू दलित महिला हैं जो पाकिस्तान में सीनेटर चुनी गई हैं। 39 वर्षीय कृष्णा बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व वाले पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) का प्रतिनिधित्व करती हैं। पीपीपी के एक प्रवक्ता ने यह जानकारी दी। एक किसान के यहां पैदा हुईं कृष्णा ने अपने परिवार के साथ दूसरों के यहां बंधुआ मजदूर के तौर पर काम किया है। नगरपार्कर के धनागम गांव की रहने वाली कृष्णा मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर लंबे समय से काम करती रही हैं।
वह सिंध की महिला आरक्षित सीट से चुनी गई हैं। उनके साथ कुर्तुलैन मारी भी सीनेटर के पद पर चुनी गई हैं। कृष्णा ने कहा, 'मैं काफी खुश हूं। ये मेरे लिए अप्रत्याशित था। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे सीनेटर के पद के लिए चुना जाएगा।' कृष्णा का जीवन काफी कष्टमय रहा। उनकी शादी 16 साल में ही कर दी गई थी जब वह स्कूल में ही थीं। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और समाज शास्त्र में पोस्ट ग्रैजुएशन किया। अपने भाई वीरजी कोल्ही से प्रभावित होकर वह राजनीति में उतरीं। वीरजी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मानवाधिकार के लिए काम करते हैं।
वीरजी ने समाज के वंचित माने जाने वाले तबके थार समुदाय के लिए काफी काम किया। लेकिन एक झूठे आरोप में उन्हें जेल में डाल दिया गया। अभी भी वह जेल में ही है। कृष्णा का परिवार ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता संघर्ष में भी शामिल रहा है। पाकिस्तान में इसके पहले भी एक हिंदू महिला सीनेटर के तौर पर चुनी जा चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई दलित महिला इस पद पर नहीं पहुंच पाई थी। सिंध प्रांत से ही रत्ना भगवानदास चावला पीपीपी की तरफ से सीनेटर पद पर पहुंची थीं। उनका कार्यकाल 2006 से 2012 तक रहा था।
कृष्णा कोल्ही जब सिर्फ 10 साल की थीं तभी उन्हें उमरकोट जिले के जमींदार ने मजदूरी करने के लिए रख लिया था। जब वे 9वीं कक्षा में पहुंचीं तो 16 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई। लेकिन उनके पति ने उनका सपोर्ट किया और वे अपनी पढ़ाई पूरी क पाईं। उन्होंने सिंध यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में पोस्ट ग्रैजुएशन किया। वह काफी समय तक मानवाधिकार और अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकार के लिए लड़ती रही हैं। सिंध प्रांत में बच्चों के लापता होने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। वहां ऑनर किलिंग, जबरन धर्मांतरण और बंधुआ मजदूरी जैसी समस्याएं बेहद आम हैं। सबसे ज्यादा अत्याचार हिंदू महिलाओं पर होता है। कृष्णा उनकी आवाज बनकर सामने आई हैं।
कृष्णा जिस पीपीपी पार्टी से सीनेट में पहुंची हैं उसका महिलाओं को राजनीति और प्रशासन में हिस्सेदारी देने का रिकॉर्ड काफी अच्छा रहा है। पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री पीपीपी से ही थीं। नेशनल असेंबली की पहली महिला स्पीकर, अमेरिका में पाकिस्तान की पहली महिला एम्बैस्डर भी पीपीपी की ही देन थी। अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान पीपीपी ने नेशनल एसेंबली में महिलाओं के लिए 70 फीसदी सीटें आरक्षित कर दी हैं।
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