चीफ जस्टिस की विदाई: जानिए न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा द्वारा दिए गए 8 ऐतिहासिक फैसले
देश में न्याय की अंतिम चौखट सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो गए। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐसे महत्वपूर्ण फैसले लिए जिनका असर आने वाले समय में देखने को मिलेगा।
3 अक्टूबर 1953 को ओडिशा के कटक में जन्में दीपक मिश्रा ने मधूसूदन लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल की और 14 फरवरी 1977 को कानून की दुनिया में पदार्पण किया। उन्होंने सबसे पहले ओडिशा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की थी।
देश में न्याय की अंतिम चौखट सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो गए। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐसे महत्वपूर्ण फैसले लिए जिनका असर आने वाले समय में देखने को मिलेगा। उनके फैसलों से भारत की सामाजिक, राजनीतिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत पर सीधा सरोकार होगा। फिर चाहे महिलाओं को बराबरी का हक देने की बात हो या फिर एक स्त्री को पति की संपत्ति बनाने वाले अडल्ट्री कानून को खत्म करने की बात हो, जस्टिस दीपक मिश्रा ने ऐसे फैसले दिए जिससे भारत में एक नए प्रगतिशील समाज की नींव रखी जा सके।
3 अक्टूबर 1953 को ओडिशा के कटक में जन्में दीपक मिश्रा ने मधूसूदन लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल की और 14 फरवरी 1977 को कानून की दुनिया में पदार्पण किया। उन्होंने सबसे पहले ओडिशा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की थी। उन्हें 1996 में ओडिशा हाई कोर्ट का अडिशनल जज बनाया गया मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में स्थायी जज और बाद में पटना हाई कोर्ट में बतौर मुख्य न्यायधीश के तौर पर कार्यभार संभाला। वह 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट में मुख्य न्यायधीश के तौर पर नियुक्त हुए। इसके बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। 28 अगस्त 2017 को उन्हें मुख्य न्यायधीश की जिम्मेदारी मिली। सुप्रीम कोर्ट में अपने 13 महीने के कार्यकाल में दीपक मिश्रा को कई तरह के विरोधों का सामना करना पड़ा। उन्हें सुप्रीम कोर्ट के ही साथी जजों द्वारा विरोध सहना पड़ा तो विपक्ष ने उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया।
अपने कार्यकाल के आखिरी कुछ हफ्तों में दीपक मिश्रा द्वारा लिए गए फैसले भारत में सामाजिक संरचना को एक नए सिरे से परिभाषित करेगी। फिर चाहे व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात हो या फिर लैंगिक समानता की, दीपक मिश्रा ने हर एक मामले में प्रगतिशील सोच के साथ हर नागरिक को बराबरी का अधिकार प्रदान करने वाले फैसले सुनाए।
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को दिलाया प्रवेश
केरल में पेरियार टाइगर रिजर्व के बीच में स्थित हिंदू तीर्थस्थल सबरीमाला में अयप्पा मंदिर में हर साल 40 से 50 लाख भक्त दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन अभी तक इस मंदिर में 10 से 50 साल की स्त्रियों का प्रवेश वर्जित था। इसके लिए कई महिला अधिकार संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। पिछले हफ्ते 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में सुनवाई करने वाली जजों की पीठ ने 27 साल के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। दीपक मिश्रा ने सबरीमाला मंदिर के फैसले में महिलाओं को अधिकार दिलाया और धार्मिक स्वतंत्रता को संवैधानिक नैतिकता और समानता के आधार पर परिभाषित किया।
लव जिहाद
इसी साल 8 मार्च को जब केरल की एक हिंदू लड़की ने मुस्लिम से शादी कर ली तो केरल हाई कोर्ट ने शादी को रद्द कर उसे लव जेहाद की संज्ञा दे दी और लड़की को उसके गार्जियन के हवाले कर दिया। हदिया नामक इस लड़की का केस जब चीफ जस्टिस के सामने आया तो चीफ जस्टिस ने बतौर संवैधानिक गार्जियन महिला के अधिकार को प्रोटेक्ट किया और इस बात को तरजीह दी कि हर व्यक्ति को अपने पार्टनर चुनने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट का लाइव प्रसारण करने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत सुप्रीम कोर्ट से ही होगी। कोर्ट ने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग के आदेश से अदालत की कार्यवाही में पारदर्शिता आएगी और यह लोकहित में होगा। सुनवाई का सीधा प्रसारण होने से पक्षकार यह जान पाएंगे कि उनके वकील कोर्ट में किस तरह से पक्ष रख रहे हैं।
प्राइवेट कंपनियों द्वारा आधार के इस्तेमाल पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने आधार की अनिवार्यता को लेकर बड़ा फैसला दिया। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कुछ शर्तों के साथ आधार को वैध किया। आधार की संवैधानिकता कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखी गई है। वहीं सिम कार्ड को आधार से लिंक कराने के लिए टेलीकॉम कंपनियां ग्राहकों को बाध्य नहीं कर सकेंगी। इस फैसले ने स्कूलों, बैंक खाते, मोबाइल सिम आदि के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता खत्म कर दी पर फिर भी कुछ स्थानों पर आधार कार्ड जरूरी होगा।
धारा 377 को गैर आपराधिक बनाना
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया जिसके तहत सहमति से परस्पर अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध था। कोर्ट ने अपने ही साल 2013 के फैसले को को पलट दिया। कोर्ट ने धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त करते हुए कहा कि इससे संविधान में प्रदत्त समता के अधिकार और गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होता है। इस फैसले के बाद समलैंगिकों को बड़ी राहत मिली। अब सहमति के साथ अगर समलैंगिक समुदाय के लोगों का शारीरिक संबंध बनाना अपराध के दायरे में नहीं आएगा।
इन फैसलों के अलावा आधी रात को कोर्ट में आतंकी याकूब मेमन की फांसी पर फैसला सुनाना, निर्भया गैंगरेप के अभियुक्तों को फांसी की सजा सुनाने जैसे कई फैसले न्यायाधीश दीपक मिश्रा के जज रहते हुए लिए गए। सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल को अलविदा कहते हुए जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि इंसाफ का चेहरा और रवैया दोनों मानवीय होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सच्चाई का कोई रंग नहीं होता। उन्होंने कहा कि ग़रीब के आंसू और अमीर के आंसू बराबर होते हैं. CJI ने कहा कि मैं भी युवा पीढ़ी का हिस्सा हूं।
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