अमीर और दौलतमंद होने के फ़र्क को समझने के लिए पढ़िए यह किताब
हम सब अमीर लोगों में बहुत दिलचस्पी लेते हैं. कैसे वह अमीर बने? उनके राज क्या हैं? वह अपने पैसों के साथ क्या करते हैं? हम जनना चाहते हैं की कैसे हम उनकी दौलत का एक छोटा सा हिस्सा हासिल कर सकते हैं. यह किताब हमारे बीच रह रहे करोड़पति लोगों की आदतों को समझाने के बारे में है.
थॉमस जे. स्टैनले एक मार्केटिंग प्रोफेसर थे और विलियम डैनको उनके स्टूडेंट. बाद में स्टैनले डैनको के मेंटर बने और दोनों ने मिलकर यह किताब लिखी जो 1996 में प्रकाशित हुई.
करोड़पति लोग कैसे दीखते हैं? क्या वे ख़ास तरह के कपडे पहनते हैं? क्या उनकी कलाई पर बंधी घडी बहुत महँगी होती है? क्या करोड़पति के नाम करोड़पतियों वाले होते हैं? स्टैनले और डैनको जब यह किताब लिख रहे थे, उन्होंने जाना की अमीर उनके पास होने वाली चीज़ों की वजह से अमीर नहीं कहलाते हैं. कोई बहुत अमीर हो सकता है और आपको पता भी नहीं चलेगा. हो सकता है जो गाडी वे चलाते हों या जिस जगह पर रहते हो उनके अमीर होने का पता ना चलने दें. इस किताब में अमीर और दौलतमंद का फ़र्क बताया गया है. ऑथर्स के मुताबिक, अमीर वो होते हैं जो अच्छी आमदनी कमाने के साथ-साथ अपनी लाइफस्टाइल को भी अच्छा रखते हैं. और जो लोग एक हाई लाइफस्टाइल रखने के बजाय बहुत अच्छे एस्सेट्स रखते हों, इस किताब में उन्हें दौलतमंद कहा गया है.
इस किताब में ऑथर्स ने उन सब को करोड़पति माना है जिनकी नेट-वर्थ 1 मिलियन यूएस डॉलर्स यानी लगभग 7-8 करोड़ रुपये हों. इस स्टैण्डर्ड के हिसाब से सिर्फ 3.5 प्रतिशत घरों को ही दौलतमंद माना जा सकता है. आबादी के इतने छोटे से प्रतिशत को ही इस किताब का विषय-वस्तु क्यूँ बनाया गया? उसका कारण यह है कि ये दौलत पूरी तरह से हासिल करने लायक है. ये वो करोड़पति हैं जो हम सब के बीच रहते हैं. यह किताब रियल-लाइफ मिलीएनर्स के बारे में है. किताब का उद्देश्य इसके रीडर्स को यह बताना है की वो खुद करोड़पति कैसे बन सकते हैं.
किताब की मुख्य बातें:
सेल्फ-एम्प्लॉयमेंट सबसे अच्छा तरीका है दौलतमंद होने के लिए- ‘सेल्फ-हेल्प’ केटेगरी के अन्य किताबों की तरह यहाँ भी ऑथर्स ने सेल्फ-एम्प्लॉयमेंट को पैसे कमाने का सबसे कारगर तरीका बताया है.
मितव्यता आपको दौलतमंद बना सकती है- आप कितने पैसे कमाते हैं से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है आप कितने पैसे बचाते हैं. पैसे को लाइफस्टाइल पर खर्च करने के बजाय या तो कहीं इन्वेस्ट करना चाहिए या बचत करनी चाहिए. मितव्यता, ऑथर्स के अनुसार, आपको ‘ना’ कहने की शक्ति प्रदान करती है. अगर बॉस के साथ नहीं बनती है तो आप उन्हें ‘ना’ कह सकते हैं.
अपने बच्चों को पैसे की वैल्यू सिखाएं- किताब का एक हिस्सा परिवार के बारे में भी है जिसमें अपने खर्च का हिसाब रखने से लेकर अपने बच्चों और पैसों से उनके सम्बन्ध विकसित करने के बारे में विस्तार से लिखा गया है. ऑथर्स लिखते हैं कि अमीर लोगों के बच्चे के खुद ना अमीर बनने की संभावना ज्यादा होती है. इसीलिए यह जरुरी है की अमीर पेरेंट्स अपने बच्चों को पैसे की अहमियत सिखाएं, उन्हें अपनी दौलत का एहसास ना होने दें. उन्हें यह बताएं की ज़िन्दगी पैसों से बढ़कर है.
आंकड़ों पर टिकी हुई यह किताब करोड़पतियों के रियल-लाइफ इंटरव्यू के जरिये उनके मजेदार किस्सों से भरी हुई है. किस्सों के बावजूद और आंकड़ों की भरमार की वजह से उबाऊ लग सकती है. करोडपति बनने के प्रैक्टिकल टिप्स और उस वक़्त के मार्केट का मिज़ाज पढने की काबिलियत चाहिए होती है जो इस किताब के जरिये पाठक को नहीं मिलती है और शायद किसी भी किताब से नहीं मिल सकती हो. 90’s में लिखी हुई यह किताब आज के रीडर्स को शायद आउटडेटेड लगे. अमेरिकन मिलीएनर्स पर रिसर्च करके लिखी हुई यह किताब अमेरिकाऔर यूरोप से बाहर के लोगों के लिए शायद बहुत मददगार साबित न हो.
बुक रिव्यु की हमारी इस श्रृंखला में हम बिज़नस, फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट पर ‘सेल्फ-हेल्प’ श्रेणी की किताबों का रिव्यु आप तक पपहुंचाएंगे.