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दिव्यांग बच्चों के लिये खास पार्क, ताकि अक्षमता भुला बच्चे कर सकें मस्ती

दिव्यांग बच्चों के लिये खास पार्क, ताकि अक्षमता भुला  बच्चे कर सकें मस्ती

Friday December 21, 2018 , 5 min Read

चेन्नई के दिव्यांग बच्चों के पास अब आनंदित होने की एक बिल्कुल ही अलग वजह है। शहर के नगर निगम ने हाल ही में विभिन्न प्रकार की शारीरिक अक्षमताओं से जूझ रहे बच्चों के लिये अपनी तरह के पहले संवेदी पार्क का उद्घाटन किया।

पार्क में खेलते बच्चे

पार्क में खेलते बच्चे


1,529 वर्गमीटर के क्षेत्र में बनाया गया, यह पार्क संथोम इलाके में चैथे ट्रस्ट लिंक रोड पर स्थित है। पार्क में अंतरिक्ष के अंदर उज्ज्वल रंगों से सुसज्जित स्पर्ष करके महसूस करने वाली दो दीवारें हैं।

चेन्नई में मौजूद शारीरिक रूप से अक्षम या फिर दिव्यांग कहे जाने वाले बच्चे अब इस पार्क में विभिन्न झूलों इत्यादि का आनंद ले सकते हैं और ऐसा करते हुए उनकी संवेदनात्मक क्षमताओं में भी वृद्धि देखने को मिलेगी। चेन्नई के दिव्यांग बच्चों के पास अब आनंदित होने की एक बिल्कुल ही अलग वजह है। शहर के नगर निगम ने हाल ही में विभिन्न प्रकार की शारीरिक अक्षमताओं से जूझ रहे बच्चों के लिये अपनी तरह के पहले संवेदी पार्क का उद्घाटन किया।

इस पार्क के निर्माण और डिजाइन को तैयार करने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा कविता कृष्णमूर्ति के 12 वर्ष पुराने एनजीओ किलिकिलि का जिसे इस नेक काम को पूरा करने के लिये ऐसे कई माता-पिता का समर्थन मिला जो विभिन्न प्रकार की अक्षमताओं से जूझ रहे अपने बच्चों के लिये एक ऐसे विशेष क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे जहां उनके बच्चे आराम से खेल सकें। ग्रेटर चेन्नई काॅर्पोरेशन ने इस परियोजना के लिये विशेष रूप से 1.5 करोड़ रुपये दिये।

ऐसे एक पार्क को तैयार करने की योजना का खाका तीन वर्ष पूर्व तब खींचा गया था जब कविता कृष्णमूर्ति चेन्नई में स्थायी रूप से रहने के लिये आईं और डिसेबिलिटी राईट्स एलायंस ने उनसे इस पार्क को डिजाइन करने के लिये संपर्क किया। इस डिजाइन को अमली जाना पहनाने के लिये किलिकिलि ने सिटी वक्र्स नामक एक निजी वास्तुकला फर्म का सहारा लिया।

1,529 वर्गमीटर के क्षेत्र में बनाया गया, यह पार्क संथोम इलाके में चैथे ट्रस्ट लिंक रोड पर स्थित है। पार्क में अंतरिक्ष के अंदर उज्ज्वल रंगों से सुसज्जित स्पर्ष करके महसूस करने वाली दो दीवारें हैं। बच्चों की संवेदी धारणा को बढ़ाने के लिए, दीवारों को टायर, चूड़ियों, खोल और अन्य सामग्रियों की सहायता से डिजाइन किया गया है।

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इसके अतिरिक्त रेत, कंकड़, लकड़ी, फाइबर, और कंक्रीट का उपयोग करके बच्चों के चलने के लिये स्टेपिंग स्टोन्स और इनफिनिटी वाॅकवेज़ का निर्माण किया गया है। इसके अलावा व्हीलचेयर पर बैठने को मजबूर बच्चों को समायोजित कर सकने के लिये सैंडबैंक और स्विंग जैसी सवारी और सुविधाएं हैं और दृष्टिहीन विकलांग, ऑटिस्टिक बच्चों के लिए जमीन से लगी मैरी-गो-राउंड को भी तैयार किया गया है।

पार्क के डिजाइन के बारे में बात करते हुए कविता ने द हिंदू को बताया,‘‘चेन्नई जैसे शहर के लिये एक सुलभ पार्क मिलना बेहद महत्वपूर्ण है। इसके अलावा हमनें इसे डिजाइन करने से पहले बच्चों के साथ संपर्क साधा और साथ ही हमारे पास राय देने के लिये अक्षमता के क्षेत्र में काम करने वाले माता-पिता, शिक्षकों, चिकित्सकों सहित अन्य लोगों का भी साथ मिला।’’

यह सुनिश्चित करने के लिये कि खेलने के दौरान गिरने पर किसी को भी चोट न लगे जमीन को पूरी तरह से फाइबर से ढका गया है। अटेंशन डेफिसिट हाइपरक्टिविटी सिंड्रोम (एडीएचडी) वाले बच्चों की सहायता के लिए, स्लाइड्स और क्लाइंबर्स को इस तरह से डिजाइन किया गया है जिससे उन्हें संभालने औैर संचालित करने के क्रम में बच्चों को ध्यान केंद्रित करने और नियंत्रण करने में मदद मिलेगी।

द न्यूज मिनट को दिये गए एक साक्षात्कार में कविता कहती हैं, 'यहां पर एक ऐसा गाने वाला पत्थर है जो पानी से अपने हाथ गीले करके रगड़ने पर खुद ही वाइब्रेट करने लगेगा। इसे एयोविल के कुछ लड़कों द्वारा तैयार किया गया है और यह काफी प्यारा है। इसके अलावा ऐसे खिलौने भी लगाए गए हैं जो हवा के चलने पर या फिर हिलाये जाने पर संगीत की लहरियां देते हैं, भी लगाए गए हैं। ये काफी प्रोत्साहित करने वाले हैं।'

दिव्यांगों के लिये अनुकूलित ऐसे अन्य पार्कों की शुरुआत के पीछे के कारण के बारे में बात करते हुए कविता कहती हैं, 'वर्ष 2005 में मैं तब अपने चार साल के बेटे को बेंगलुरु के एक पार्क में लेकर गई तब मुझे इस बात का अहसास हुआ कि उस पार्क में एक भी ऐसा बच्चा नहीं खेल रहा था जो शारीरिक रूप से किसी भी तरह से अक्षम हो। इसके अलावा पार्क का डिजाइन कुछ ऐसा था कि व्हीलचेयर पर बैठने वाले बच्चे या फिर दृष्टिहीन बच्चे वास्तव में पहुंच ही नहीं सकते थे। इसके अलावा आॅटिज्म या फिर दिमाग संबंधी विकलांग बच्चों के लिये समाज में अपनाया जाना ही अपने आप में एक बड़ी समस्या थी। वे दूसरे बच्चों के साथ कभी नहीं घुल-मिल सकते थे। तब मुझे अहसास हुआ कि तमाम बच्चों के लिये एक समावेशी और अच्छे से डिजाइन किये गए पार्क की बेहद सख्त जरूरत है।'

अब इस पार्क के साथ चेन्नई इस तरह के विकलांग-अनुकूलित पार्कों वाले शहर के बैंडवेगन में शमिल हो गया है। बेंगलुरु में ऐसे तीन पार्क जबकि मेंगलुरु और नागपुर में एक-एक हैं।

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