आज विश्व कविता दिवस पर रेनर मरिया रिल्के की कविता के साथ इरफान खान
विश्व कविता दिवस: कविता है जहां-जहां, जीवन है वहां-वहां...
आज विश्व कविता दिवस है, तो जहां भी जीवन है, कविता है, वहां तक आज का दिन है, जब हमारे पास चारो तरफ, इर्दगिर्द रंग पसरा होता है, सन्नाटे का रंग, जिसमें सिर्फ अपने खयालात रंगे होते हैं, उस रंग में अपने कई रूप नजर आने लगते हैं, अगर उनमें ही एक रंग कविता का हो तो मृत्यु को ललकारते हुए इरफान खान एक कविता के संग हो लेते हैं, वह लंदन के किसी होटेल से अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी ही परछाई की एक तस्वीर पोस्ट करते हैं, जिसके साथ मशहूर पोएट रेनर मरिया रिल्के की एक खूबसूरत कविता भी होती है।
दुआएं मांगना ...और मिल जाना, जो भी मांगता है, देने वाले को नहीं जानता है, एक अदृश्य आस्था होती है जो उसे ऐसा करने के लिए विवश करती है। कवि केदारनाथ सिंह हों या इरफान खान, कथाकार दूधनाथ सिंह हो व्यंग्यकार सुशील सिद्धार्थ, दुआएं हर किसी के लिए मांगी जाती हैं, कोई हमारे बीच रह जाता है, लगता है दुआ की दुहाई सुन ली गई, जो चला जाता है, उसका विछोह, उसकी जुदाई हमे रुलाती है। हमे ठीक से रोने भी नहीं आता है। रोते-रोते हंसने लगते हैं, खुद को समझाने की कोशिश करने लगते हैं, जीवन के तंतु ढूंढते हैं ऐसे वक्त में कि हो, न हो, कोई उम्मीद शेष रह गई हो, हमारे होने, न होने में। केदारनाथ सिंह चले गए, दूधनाथ, सिद्धार्थ भी, जैसेकि अभी-अभी। इरफान खान लंदन में इलाज करा रहे हैं। वह बॉलीवुड ही नहीं, हॉलीवुड का भी बड़ा नाम हैं।
फिल्म 'हिंदी मीडियम' वाले इरफान, इन दिनों 'न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर' से जूझ रहे हैं। वह लिखते हैं - 'कभी एक रोज आप दिन में उठते हो और आप को अचानक से ये जान कर झटका लगता है कि जीवन में सब कुछ सही नहीं चल रहा। पिछले कुछ दिनों से मेरा जीवन एक सस्पेंस स्टोरी जैसा हो गया है। मुझे नहीं पता था कि दुर्लभ कहानियों को तलाश करते-करते मेरा सामना एक दुर्लभ बीमारी से हो जाएगा। मेरा परिवार और करीबी दोस्त मेरे साथ हैं और हम इस कठिन परिस्थिति से बाहर निकलने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। मेरा सभी से निवेदन है कि जब तक मैं खुद अपनी बीमारी के बारे में खुल के न बताऊं, कृपया आप लोग अपनी ओर से कुछ भी अनुमान न लगाएं। जब मुझे इस बारे में कुछ भी पता चलेगा तो मैं आपको जरूर बताऊंगा। तब तक के लिए मेरी सलामती की दुआ करें। आज विश्व कविता दिवस है, तो जहां भी जीवन है, कविता है, वहां तक आज का दिन है, जब हमारे पास चारो तरफ, इर्दगिर्द रंग पसरा होता है, सन्नाटे का रंग, जिसमें सिर्फ अपने खयालात रंगे होते हैं, उस रंग में अपने कई रूप नजर आने लगते हैं, अगर उनमें ही एक रंग कविता का हो तो मृत्यु को ललकारते हुए इरफान खान एक कविता के संग हो लेते हैं, वह लंदन के किसी होटेल से अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी ही परछाई की एक तस्वीर पोस्ट करते हैं, जिसके साथ मशहूर पोएट रेनर मरिया रिल्के की एक खूबसूरत कविता भी होती है। रिल्के के बारे में किंचित जानकारी है कि उन्होंने उपन्यास और अनेक काव्य संग्रह रचे। उनके पत्र भी काफी चर्चित रहे। रूस, फ्रांस, इटली की यात्राए के बाद उनकी जिंदगी सफर स्वीटज़रलैंड में थमा। रिल्के की कविता में इरफान खान ईश्वर को याद करते हुए हमेशा साथ रहने की दुआ करते हैं- ''(God speaks to each of us as he makes us, then walks with us silently out of the night. These are the words we dimly hear: You, sent out beyond your recall, go to the limits of your longing. Embody me. Flare up like a flame and make big shadows I can move in. Let everything happen to you: beauty and terror. Just keep going. No feeling is final. Don’t let yourself lose me. Nearby is the country they call life. You will know it by its seriousness. Give me your hand #rainermariarilke)''
वैसे भी इन दिनो बॉलिवुड झटके पर झटके झेल रहा है। श्रीदेवी गईं। इरफान शतायु हों, बस यही दुआ कर रहा हर कोई। इरफान लिखते हैं - 'जिसकी उम्मीद न हो, वह आपको आगे बढ़ने में मदद करता है, बीते कुछ दिन ऐसे ही गुजरे हैं। मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का पता चला है और यह काफी मुश्किल रहा है लेकिन मेरे आसपास के लोगों के प्यार और ताकत ने मुझमें उम्मीद जगाई है। इस जर्नी में मुझे विदेश भी जाना पड़ेगा और मैं आप सबसे प्रार्थना करता हूं कि अपनी शुभकामनाएं भेजते रहें। जैसी कि अफवाहें उड़ रही हैं न्यूरो का मतलब हमेशा दिमाग से नहीं होता, पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप गूगल सर्च कर लें। जो लोग मेरी तरफ से यह खबर पढ़ने का इंतजार कर रहे थे, उम्मीद है कि इसके बाद और ज्यादा स्टोरीज के साथ वापस आऊंगा।....लोगों के प्यार और ताकत ने मुझमें उम्मीद जगाई है।'
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इरफान ने जिस कवि रेनर मरिया रिल्के की कविता को अपनी हैरान-परेशान जिंदगी के लम्हों के साथ जोड़कर दुनिया को पढ़ने के लिए दिया है, उनकी एक चर्चित कविता है- 'प्रेम'। विश्व कविता दिवस पर आइए, पढ़ ही लेते हैं जिंदगी के सपनीले संदेश देती यह पूरी कविता-
प्रेम, अनजाने परों पर आसीन
मैं, स्वप्न के अंतिम सिरे पर
वहाँ मेरी खिड़की है
रात्रि की शुरूआत जहां से होती है
और वहाँ दूर तक मेरा जीवन फैला हुआ है
वे सभी तथ्य मुझे घेरे हुए हैं
जिनके बारे में मैं सोचना चाहती हूं
तल्ख, घने और निशब्द
पारदर्शी क्रिस्टल की तरह आर पार चमकते हुए
मेरे अंदर स्थित शून्य को लगातार सितारों ने भरा है
मेरा हृदय इतना विस्तृत इतना कामना खचित
कि वह मानो उसे विदा देने की अनुमति मांगता है
मेरा भाग्य मानो वही अनलिखा
जिसे मैंने चाहना शुरू किया अनचीता और अनजाना
जैसे कि इस अछोर अपरास्त विस्तृत चरागाह के
बीचोंबीच मैं सुगंधों भरी सांसों के आगे-पीछे झूलती हुई
इस भय मिश्रित आह्वान को
मेरी इस पुकार को
किसी न किसी तक पहुंचना चाहिए
जिसे साथ साथ बदा है किसी अच्छाई के बीच लुप्त हो जाना
और बस।
रिल्के इस 'प्रेम' कविता में लिखती हैं कि '.....वहाँ दूर तक मेरा जीवन फैला हुआ है।' हर कविता में जीवन का अतीत होता है, वर्तमान और भविष्य भी। हर कविता एक जीवन होती है, उसमें जीवन के ही तमाम रंग होते हैं, उन रंगों में कविता-विश्व हमें तरह तरह से दिखता है। देश के बड़े कवि केदारनाथ सिंह को अलविदा हुए अभी दो दिन ही गुजरे हैं। उनके शब्दों में जिंदगी के अनेकशः रंग रुपायित होते हैं, जैसे समस्त कविता-विश्व, जैसे विश्व में कविता और कविता में विश्व। हमारे समय के एक और महत्वपूर्ण कवि रघुवीर सहाय लिखते हैं -
अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि जिसमें छंद घूम कर आय
घुमड़ता जाय देह में दर्द
कहीं पर एक बार ठहराय,
कि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूँ
वही दो बार शब्द बन जाय
बताऊँ बार-बार वह अर्थ
न भाषा अपने को दोहराय।
अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि कोई मूड़ नहीं मटकाय
न कोई पुलक-पुलक रह जाय
न कोई बेमतलब अकुलाय,
छंद से जोड़ो अपना आप
कि कवि की व्यथा हृदय सह जाय
थाम कर हँसना-रोना आज
उदासी होनी की कह जाय।
विश्व-कविता दिवस पर ऐसी अनेक कविताएं याद आती हैं, जिनसे पता चलता है कि कविता की राह कितनी कठिन और कविता की दुनिया कितनी विशाल, क्षितिज के ओर-छोर तक। लेकिन आज कविता के मंच की बात, फेसबुक की कविता की बात, किताब की कविता और मंच की कविता की बात, कविता के ज्यादा सुने जाने और कम पढ़े जाने की बातें होने लगी हैं। ऐसे में कविताएं चोरी हो जाने का प्रसंग कवि मुकुट बिहारी सरोज के शब्दों में कुछ इस तरह प्रस्फुटित होता है-
चोरी कर ले गया बावरे अपने कवि की, पीड़ित कवि की
ऐसे कवि की जिसने तेरा दर्द गीत के स्वर में गाया
जिसकी भरी जवानी में भी स्वप्न एक रंगीन न आया ।
जिसने चोरी कभी नहीं की तेरे जलते अरमानों से
जिसने मुँह न चुराया अब तक, दुखियों के गीले गानो से
ऐसे कवि की कुटिया में घुसते, लज्जा तो आई होगी
कदम-कदम पर दबी-ढँकी बैठी विपन्नता तुझे देख कर
बेचारी बेहद शरमाई तो होगी ।
छूते छूते मेरा आँसू भरा खजाना एक बार रोया तो होगा
तय है तेरे हाथों में आते ही सपना हिलकी भर-भर रोया होगा ।
लेकिन तू नासमझ अर्थ का दीवाना क्या लोभी निकला
कवि की चोरी करते-करते तेरा अन्तस ज़रा न पिघला
और न गिरते गिरते सम्हला कुटिया को तो देख लिया होता ओ पापी !
दीवारों का मौन, फर्श की पहिचानी-सी घिरी उदासी
लेकिन तू तो पत्थर निकला और न गिरते-गिरते सम्हला ।
क्योंकि अबोध दुधमुँहों के तू आँसू पीकर आया होगा
अधनंगी पत्नी के घावों को खुद सी कर आया होगा
तू तो आता नहीं मगर जठराग्नि तुझे ले आई होगी.
भूख तुझे ले आई होगी, प्यास तुझे ले आई होगी ।
तेरे अरमानो का धारक सोने की लंका में होगा
स्वर्ग-नरक के दो पाटों के बीच बड़ी शंका में होगा
सम्भव है तेरे जीवन की पहली-पहली चोरी होगी
दृढ़ता से कह सकता हूँ मैं इससे पहले तेरी बुद्दि अछूती होगी, कोरी होगी ।
इससे पहले तू रामायण झूम-झूम कर गाता होगा
मन्दिर-मन्दिर में जा-जाकर अपनी व्यथा सुनाता होगा
सन्तोषो से अपनी अग्नि बुझाता होगा ।
कुछ भी हो पर तेरा निश्चय बहुत बुरा था, बुरा किया है
तूने अपने ही जनकवि की मस्ती तक को चुरा लिया है
इतना तो विश्वास किया होता तूने मेरी कविता पर
मैं लिखवा लेता मुक्त हँसी के छन्द आँसुओं की सरिता पर
आज नहीं तो कल सपनों को नंगे पैरों आना होगा
जो कुछ भी रच देता है वह इन्सानों को गाना होगा
लेकिन तूने अपने कवि को आकाशी माया ही जाना
बिलकुल ही झूठा अनुमाना ।
तूने ही मजबूर कर दिया मैं अब तुझको एक लुटेरा-लम्पट कह दूँ
तूने ही मजबूर कर दिया मैं तुझको अब एक छिछोरा-कायर कह दूँ
अपने पर तो थोड़ा-सा विश्वास किया होता ओ पागल
मेरे बदले तू ही लेता देख धरा की छाती घायल
मर्दानों की तरह बदलता अपने दोहन की गाथाएँ
विद्रोही की तरह निकलता बाँहों में लेकर ज्वालाएँ
इतना ही तो होता तू मर जाता लड़ते-लड़ते रण में
लेकिन तेरा रक्त जगा जाता ज्वालामुखी धरती के सोये कण-कण में
कोई कहता मुक्ति-दूत था कोई कहता वह सपूत था
कितना प्यारा दिन होता जब दीवानों की टोली तुझको शीश झुकाती
आने वाली पीढ़ी तुझ पर फूल चढ़ाती
लेकिन आज कलंकित कर दी पौरुष की वज्रों सी छाती
तूने आज बुझा डाली है अपने कर से अपनी बाती
अंधियारी के आशिक़ ! मेरा दीप बुझाना नहीं सरल था
उसमे नेह नाम को ही था उसमे बेहद भरा गरल था ।
अच्छा किया पीर दे डाली और लबालब कर दी प्याली
लेकिन ज़रा देख भी लेना चुपके-चुपके पीछे-पीछे
मैं तूफ़ान बना चलता हूँ या चलता हूँ आँखे मीचे
बहरहाल, विश्व-कविता दिवस पर आज हमें दुआ करनी चाहिए कि इरफान खान जल्द पूरी तरह स्वस्थ होकर ब्रिटेन से वतन लौट आएं। करोड़ों देश वासियों को उनके लौटने का बेसब्री से इंतजार है। उनका पूरा नाम है इरफान अली खान। वह हिन्दी ही नहीं, अंग्रेजी फ़िल्मों और टेलीविजन के भी चर्चित अभिनेता हैं। उन्होने द वारियर, मकबूल, हासिल, द नेमसेक, रोग, ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर और द अमेजिंग स्पाइडर मैन जैसी फिल्मों मे अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। हासिल फिल्म के लिये उन्हे वर्ष 2004 का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। वह बालीवुड की तीस से ज्यादा फिल्मों मे अभिनय कर चुके हैं। वर्ष 2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में उनको फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिल चुका है।
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