….ताकि हम और आप चैन से सो सकें, इसलिए जागते हैं 'चेतन'
ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ चेतन ने उठाई आवाज...अब तक 300 से ज्यादा लोगों के खिलाफ दर्ज हो चुका है केस...चेतन के चाहने वालों में पीएम मोदी भी शामिल...
घर में कोई बीमार हो या फिर बच्चे की परीक्षा चल रही हो, ऐसे में अगर आपके घर के बगल में कोई तेज आवाज़ में डीजे या फिर लाउडस्पीकर बजा रहा हो तो गुस्सा आना लाजमी है. आपकी तरह बनारस में भी लोग हर रोज ऐसी ही घटना से दो चार होते थे. वो भी बरसों से. कभी भजन-कीर्तन के नाम पर मंदिरों में लगा भोंपू तो कभी अजान और तकरीर के नाम पर मस्जिदों से उठने वाली आवाज़. बची हुई कसर, बारात और दूसरे तरह के आयोजनों में गीत संगीत के नाम पर सजने वाली महफिलें निकाल देती हैं. साल का शायद ही कोई ऐसा दिन या रात हो जब बनारस के लोग चैन की नींद सो सकें. कानफोड़ू आवाजों के बीच रात गुजारना यहां के लोगों ने अपनी नियति मान ली थी. लेकिन बनारस में एक ऐसा शख्स है जो पूरी रात जागता है ताकि लोग सुकून की नींद ले सकें. लोग रातों में चैन की नींद सोयें, इसलिए यह शख्स अपनी नींद खराब करता है. नाम है चेतन उपाध्याय. जुनून और जज्बा ऐसा कि पिछले 8 सालों से यह शख्स बनारस में ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ अभियान छेड़े हुए है.
ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ आंदोलन क्यों ?
चेतन उपाध्याय ने ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ क्यों आंदोलन छेड़ा. आखिर वो कौन से कारण थे जिसने चेतन को समाजसेवा की राह चुनने के लिए मजबूर किया. ये जानने से पहले आपको चेतन के बारे में बताते हैं. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय(बीएचयू) से ग्रेजुएशन करने के बाद चेतन ने दिल्ली के प्रतिष्ठित आईआईएमसी से पत्रकारिता में डिप्लोमा किया. इसके बाद कई संस्थानों में काम भी किया। चेतन की जिंदगी में सबकुछ ठीक चल रहा था. दूसरे युवा की तरह नौकरी पेशा जिंदगी से चेतन और उनका परिवार खुश था. चूंकि चेतन की रूचि सामाजिक कार्य करने में भी लगातार रही इसलिए उन्होंने सन् 2000 के अंत में 'सत्या फाउण्डेशन' की स्थापना की, जिसके तहत प्राकृतिक जीवन शैली, संगीत, ध्यान और योग के द्वारा लोगों को सुकून और शांति देने का कार्य शुरू किया. ज़िंदगी अपनी गति से चलती रही. बात है 8 फरवरी 2008 की। चेतन के पिता का ऑपरेशन हुआ. पिता की देखभाल के लिए चेतन भी घर आ गए. इसी दौरान दस फरवरी की रात एक ऐसा वाकया हुआ, जिसने चेतन की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी. उस रात चेतन के बीमार पिता सोने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनके घर के बगल में तेज डीजे की वजह से पिता को दिक्कतें हो रही थी. काफी कोशिशों के बाद भी चेतन के पिता सो नहीं पा रहे थे. पिता की छटपटाहट को देख चेतन ने डीजे बंद कराने की कोशिश की, लेकिन वैवाहिक कार्यक्रम का हवाला देकर लोगों ने चेतन की बात अनसुनी कर दी. थक हार कर चेतन ने 100 नंबर पर फोन किया, पर कोई खास रिपॉन्स नहीं मिला. अंत में चेतन ने एसपी सिटी को फोन कर शिकायत की तब कहीं जाकर डीजे बंद हुआ. अगले दिन ये बात अखबार की सुर्खियाँ बनीं तो लोगों ने एसपी सिटी के साथ-साथ चेतन की भी तारीफ करनी शुरु कर दी। किसी ने चेतन से कहा कि हमारे माता-पिता आपके माता-पिता नहीं हैं क्या? यकीनन यह पूरे शहर की समस्या थी और लोग चाहते थे कि चेतन इस समस्या से पूरे शहर को मुक्ति दिलायें.
योर स्टोरी से बात करते हुए चेतन बताते हैं
"मेरी जिंदगी में दस फरवरी की उस रात की सुबह अब तक नहीं हुई. उस वाकये के बाद मैंने प्रण किया कि अब ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ आंदोलन खड़ा करना है ताकि फिर किसी के घर में कोई बुजुर्ग या बीमार बेचैन ना रहे. उस दिन के बाद से आज तक मैं लगातार आंदोलन को मजबूत करने में लगा हुआ हूँ"
ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ कैसे खड़ा किया आंदोलन ?
दस फरवरी के उस घटना के बाद चेतन सड़कों पर उतर आए. चेतन ने पहले से ही सक्रिय अपनी संस्था 'सत्या फाउंडेशन' के बैनर तले ही ध्वनि प्रदूषण विरोधी मुहिम के तहत कुछ लोगों को अपने साथ जोड़ा. पर्चे के साथ चेतन पैदल ही बनारस की सड़कों पर घूमते. ध्वनि प्रदूषण को लेकर लोगों को जागरुक करते. उसके दुष्प्रभाव के बारे में लोगों को बताते. इससे संबंधित नियमों को समझाते. शुरुआती दौर में चेतन ने दो सौ पर्चे छपवाए, लेकिन उनके उत्साह को देख शहर के कुछ डॉक्टर भी साथ खड़े हो गए और उनके काम में हाथ बँटाने लगे. चेतन बताते हैं,
"लोगों का साथ तो मिल रहा था और पुलिस वाले भी अपेक्षित सहयोग दे रहे थे, मगर लोगों में कानून का भय पैदा नहीं हो रहा था"
लिहाजा अपने आंदोलन को मजबूत शक्ल देने के लिए चेतन ने कानून का सहारा लेना शुरू किया. 'सूचना के अधिकार' कानून को अपनी लड़ाई में हथियार बनाया और अक्टूबर 2009 में पुलिस विभाग से यह जानकारी मांगी गई कि ध्वनि प्रदूषण के मामलों में अब तक कितने मुकदमे दर्ज किए गए हैं. इस सूचना पर पुलिस विभाग की ओर से जो जवाब मिला वो बेहद हैरान करने वाला था. ध्वनि प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ बनारस में एक भी केस दर्ज नहीं था. इस जवाब के बाद मीडिया में बनारस पुलिस की जमकर किरकिरी हुई. आरटीआई से मिली ये जानकारी चेतन के लिए आंशिक कामयाबी के तौर पर थी.
योर स्टोरी से बात करते हुए चेतन बताते हैं कि
"ध्वनि प्रदूषण के नियमों को लेकर लोगों में भय की कमी थी. पुलिस भी लोगों पर हाथ डालने से कतराती थी. लेकिन इस वाकये के बाद पुलिस विभाग में काफी परिवर्तन आया. ध्वनि प्रदूषण के मामलों को आमतौर पर हल्के में लेने वाली पुलिस अब सतर्क दिखने लगी. शिकायत आने पर पुलिस उन्हें अनसुना नहीं करती थी. बल्कि आगे बढ़कर कार्रवाई करना शुरु कर दी."
चेतन की कोशिशों का ही नतीजा था कि 25 नवंबर 2009 को पुलिस ने ध्वनि प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करने वाले एक शख्स के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. बनारस के पुलिस विभाग के इतिहास में इस तरह का ये पहला मुकदमा था. हालांकि इसके बाद ये सिलसिला तेजी से आगे बढ़ा.
आंदोलन की राह में थे कई रोड़े
ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ चेतन की ये जंग इतनी आसान नहीं थी. धार्मिक और सांस्कृतिक शहर होने के नाते बनारस में आए दिन कार्यक्रम होते रहते हैं. इन कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल होना आम बात थी. ध्वनि प्रदूषण के नाम पर धार्मिक कार्यक्रमों में खलल डालने की हिम्मत पुलिस में भी नहीं थी, लेकिन चेतन चैन से बैठने वालों में से नहीं थे. उन्होंने आगे बढ़कर इस तरह के कार्यक्रमों की मुखालफत की. चेतन के अड़ियल रवैये का ही नतीजा है कि संकट मोचन मंदिर में होने वाले पांच दिवसीय कार्यक्रम में अब रात दस बजे के बाद बाहरी दीवार पर लगे लाउडस्पीकर बंद हो जाते हैं. चेतन बताते हैं कि कई बार उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा. चेतन ने जब दुर्गापूजा पंडालों में होने वाले ध्वनि प्रदूषण की बात उठाई तो शहर के एक बीजेपी विधायक धरने पर बैठ गए. कई दिनों तक रस्साकशी चलती रही. अंत में बीजेपी विधायक को अपनी भूल का एहसास हुआ और आज वे इस अभियान के प्रशंसक हैं. इसी तरह बेनियाबाग मैदान में रात भर के मुशायरे और शहर के मुस्लिम इलाकों में रात में चलने वाले का लाउडस्पीकर का विरोध किया तो कई लोग विरोध पर उतर आये. मगर ऐसी घड़ी में मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने साथ दिया और कहा कि रात ऐशा की अंतिम नमाज़ के बाद का समय सोने के लिए होता है. इस दौरान कोई भी खटर-पटर या लाउडस्पीकर बजाना, इस्लाम धर्म के खिलाफ है. उनकी इस एक अपील के कारण काफी असर पड़ा.
डीजे और बैंडवालों का मिला साथ
अपने आंदोलन को और धार देने के लिए चेतन ने डीजे वालों को साथ लेने का फैसला किया. वे जानते थे कि ध्वनि प्रदूषण का सबसे बड़ा जरिया डीजे वाले ही हैं. शुरूआती स्तर पर बहुत कम डीजे वाले उनके साथ आए. साल 2010 में चेतन ने अपने स्तर से डीजेवालों का एक सम्मेलन करवाने के साथ ही उनकी एक यूनियन भी बनवाई ताकि शहर के अंदर कोई मनमानी ना कर सके. ध्वनि प्रदूषण के इस जंग में चेतन के साथ शहर के डीजे वाले भी खड़े दिखाई पड़ रहे हैं. रात दस बजे के बाद ये डीजे वाले अपना लाउडस्पीकर खुद ही बंद कर देते हैं और दिन के दौरान भी बेहद धीमा. सिर्फ डीजे वाले ही नहीं बैंडवालों को भी इस मुहिम में जोड़ा गया. चेतन बताते हैं कि लगातार 21 दिनों तक वे शहर के कोने कोने की खाक छानते रहे और इन बैंडवालों का भी एक बड़ा सम्मेलन करवाया. बैंडवालों को रात 10 बजे के ध्वनि प्रदूषण कानून के पक्ष में शपथ दिलवाई. नतीजा आज बैंडवाले उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं. असर इतना है कि अधिकतर बैंडवालों ने रात दसे के बाद की बुकिंग बंद कर दी
शहर में दिखने लगा है असर
चेतन बताते हैं कि उनकी मुहिम का असर अब दिखने लगा है. आठ सालों की कड़ी मेहनत के बाद अब लोग ध्वनि प्रदूषण को लेकर चर्चा करते हैं. चेतन के मुताबिक कुछ साल पहले तक उनके पास हर रोज फोन के जरिए 60 से 70 शिकायतें आती थीं लेकिन अब ये संख्या घट रही है. जागरुकता इतनी बढ़ी है कि रात दस बजते ही लोग खुद ब खुद लाउडस्पीकर और डीजे बंद करने लगे हैं. चेतन इसे अपनी से ज्यादा जनता की उपलब्धि मानते हैं .चेतन की संस्था 'सत्या फाउण्डेशन' से लगभग दो हजार कार्यकर्ता जुड़े हैं, जो ध्वनि प्रदूषण से जुड़ी शिकायतें सुनते हैं और उसका निदान ढूंढते हैं. शहर के हर थाने पर और तमाम सार्वजनिक स्थानों पर 'सत्या फाउण्डेशन' का बोर्ड लगा है जिस पर चेतन उपाध्याय का नंबर अंकित है. हालांकि अपनी पहचान छुपाकर शियाकत करने वालों के लिए भी एक हेल्पलाइन नंबर 09212735622 दिया गया है. ध्वनि प्रदूषण के मामलों से निबटने के लिए पुलिस भी चेतन की मदद लेती है. देश के तमाम जिलों में और पुलिस ट्रेनिंग सेंटरों में चेतन को ध्वनि प्रदूषण के विविध आयामों और कानूनी प्रावधानों पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया जाता है. शहर में कहीं भी ध्वनि प्रदूषण हो. बस एक रिंग करिए, चेतन उपाध्याय पुलिस के सहयोग से दिन में भी ध्वनि को कम करा देते हैं और रात 10 बजे के बाद स्विच ऑफ करा देते हैं। कभी-कभी जरूरत पड़ने पर अपनी टीम के साथ मौके पर भी पहुंच जाते हैं. उनकी कोशिशों का ही नतीजा है कि आज की तारीख में ध्वनि प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करने वाले लगभग तीन सौ लोगों के खिलाफ अलग अलग धाराओं में केस दर्ज है.
ऐसा नहीं है कि चेतन के चाहने वाले सिर्फ कुछ लोग ही हैं बल्कि फैंस की लिस्ट में शहर के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं.....पिछले साल सितंबर में शहर प्रवास के दौरान चेतन उपाध्याय ने नरेंद्र मोदी से मुलाकात की....चेतन ने पीएम को भी ध्वनि प्रदूषण के बाबत कुछ सुझाव दिए..... चेतन के मुताबिक इसके बाद इस साल फरवरी में यात्रा के ठीक पहले उन्होंने पीएम से शहर के अंदर हेलीकाप्टर से नहीं आने की और संसदीय क्षेत्र में रात्रि विश्राम की सलाह दी.....जिसका असर भी देखने को मिला और अंतिम क्षणों में पीएम का संशोधित प्रोटोकॉल आ गया। .......चेतन इसे अपनी एक उपलब्धि के तौर पर देख रहे हैं..... चेतन उपाध्याय की मेहनत का ही नतीजा है कि बिना कैनोपी वाले, 5 किलोवाट जेनेरेटर के शोर पर भी वाराणसी की पुलिस कार्रवाई करती है…. और अकेले वाराणसी की पुलिस है कि दिन के दौरान भी शिकायत मिलने पर लाऊडस्पीकर को धीमा करवा देती है… बाकी रात 10 बजे स्विच ऑफ करने का नियम तो है ही….. दर्जनों प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित चेतन उपाध्याय की संस्था "सत्या फाउण्डेशन" ने आज तक न तो कोई सरकारी अनुदान लिया है और न ही उनकी संस्था को कोई विदेशी धन मिला है…..
चेतन अपनी इस जंग को और तेज़ करने में लगे हैं.....उनकी कोशिश है कि ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ ज्यादे से ज्यादे लोगों को जागरुक किया जाए ताकि हम अपने बच्चों को एक स्वस्थ जिंदगी दे सके.....यकीनन बनारस से उठी यह आवाज़ काबिल-ए-तारीफ है....जरुरत है कि चेतन की कोशिशों के साथ पूरा देश उठ खड़ा हो.....ताकि ध्वनि प्रदूषण को जड़ से उखाड़ा जा सक