युवाओं को काबिल बनाने के लिए शुरू की संस्था, 1500 युवाओं को मिल चुका है रोज़गार
कई रिसर्च रिपोर्ट स्टडीज बताती हैं कि देश में हर साल ग्रेजुएट होने वाले 50 लाख युवाओं में मात्र 30% ही “एम्प्लायबल” या कहें रोजगार के लायक हैं। तो क्या आज की शिक्षा हमें कल के रोजगार के लिए तैयार करती है? क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था में युवाओं में इक्कीसवीं सदी के कौशल का विकास करती है?
कुछ इन्हीं सवालों से ओतप्रोत होकर 'मेधा' नाम के संस्था की संकल्पना हुई। पिछले 7 सालों में क़रीब 35 शिक्षण संस्थाओं में अपने करियर सर्विसेज़ बूटकैंप के माध्यम से मेधा ने तकरीबन 5000 छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षित किया है और उन सभी को करियर संबंधी अवसर प्रदान करने में लगी है।
करीब 1500 युवाओं को जॉब से जोड़ा जा चुका है। मेधा से ट्रेनिंग प्राप्त युवाओं में 60% से ज़्यादा छात्राएं हैं । मेधा के करियर सर्विसेज़ सेंटर उप्र के 20 डिग्री कॉलेज, 2 राज्य विश्वविद्यालय, 5 पॉलिटेक्निक सहित 2 सरकारी आईटीआई में चल रहे हैं । मेधा के 3 करियर सर्विसेज़ बूटकैंप कई शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम का अंग बन चुके हैं।
कई रिसर्च रिपोर्ट स्टडीज बताती हैं कि देश में हर साल ग्रेजुएट होने वाले 50 लाख युवाओं में मात्र 30% ही ऐसे होते हैं जिन्हें रोजगार मिल सकता है। ये आंकड़ा हमारे एजुकेशन सिस्टम की बदहाली को बयां करता है। हम 21वीं सदी में आ गए हैं, लेकिन अभी अपने युवाओं को इस लायक नहीं तैयार कर पाए कि उन्हें नौकरी मिल सके। हम उन्हें स्किल प्रदान करने में असफल साबित हुए। बनारस के रहने वाले व्योमकेश और अमेरिका के क्रिस ने मिलकर इस समस्या पर गंभीरता से सोचा। उन्होंने युवाओं को स्किल प्रदान करने और उन्हें काम करने के काबिल बनाने के लिए 'मेधा' नाम की एक संस्था बनाई। यह संस्था युवाओं को ट्रेनिंग देती है और स्किल डेवलपमेंट प्लान के तहत उन्हें काबिल बनाती है।
इन दोनों शख्सियत ने पिछले 7 सालों में करीब 35 कॉलेजों और शिक्षण संस्थानों में अपने करियर सर्विसेज़ बूटकैंप के माध्यम से मेधा ने क़रीब 5000 छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षित किया है। इससे युवाओं को करियर बनाने में आसानी होती है। अबतक करीब 1500 युवाओं को जॉब से जोड़ा जा चुका है। इस पहल की खास बात ये है कि 'मेधा' से ट्रेनिंग प्राप्त करने वाले युवाओं में 60% से ज़्यादा छात्राएं हैं। 'मेधा' के करियर सर्विसेज़ सेंटर उत्तर प्रदेश के 20 डिग्री कॉलेज, 2 राज्य विश्वविद्यालय, 5 पॉलिटेक्निक सहित 2 सरकारी आईटीआई में चल रहे हैं। इतना ही नहीं कई शिक्षण संस्थानों में तो 'मेधा' को एक पाठ्यक्रम के तौर पर ही शामिल कर लिया गया है।
इस पहल की शुरुआत करने वाले व्योमकेश और क्रिस 2005-06 में कारपोरेट में जॉब करते हुए इन सवालों पर चर्चा करते थे। व्योमकेश उत्तर प्रदेश के बनारस से आते हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान ही इन समस्याओं का सामना करना पड़ा था। वहीं क्रिस अमेरिका के रहने वाले हैं। दोनों एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी कर रहे थे। जहां वे युवाओं को ट्रेनिंग देते थे। युवाओं को ट्रेनिंग देते वक्त उन्हें लगता था कि उन्हें कॉलेज के स्तर पर अभी काफी कुछ सीखने की जरूरत है। इसी वजह से उन्होंने 2011 में 'मेधा' की स्थापना की। यह संस्था स्कूल व कॉलेज के छात्रों को लाईफ़ स्किल्स, डिजिटल साक्षरता, इंडस्ट्री एक्सपोज़र के साथ-साथ करियर मेंटरशिप प्रदान करती है।
'मेधा' का उद्देश्य छात्रों को शिक्षा से करियर तक की यात्रा में सहयोग करना है। मेधा हर छात्र में छुपी प्रतिभा को पहचानने व उसको निखारने के साथ-साथ करियर ऑप्शन बनाने में ट्रेनिंग व मेंटरशिप के माध्यम से सहयोग करती है। 'मेधा' का विजन है कि देश के हर शिक्षित युवा को करियर निर्माण के सभी अवसर मिलें। लखनऊ से 180 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है, गनाई ढीह। चंद्रमणि का पूरा परिवार वहीं रहता है, जब चंद्रमणि के पिता ने उन्हें को लखनऊ के पास एक सरकारी पॉलीटेक्निक में डिप्लोमा करने भेजा तो उनका सपना था कि उनका बेटा एक दिन पढ़ाई पूरी करके आईएएस अफसर बने।
डिप्लोमा के पहले ही साल में चंद्र को समझ आ गया था कि अफसर बनने के लिए वो अपने परिवार का जरूरी पैसा और इतने साल बर्बाद नहीं कर सकता। वो जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था और अपने परिवार की मदद करना चाहता था। उसकी पढ़ाई मार्केटिंग और सेल्स की थी और उसके अगल बगल ऐसी कोई कंपनी नहीं थी जहां वो इंटर्नशिप कर सके। मेधा ने चंद्रमणि के के कॉलेज में करियर एडवांसमेंट बूटकैंप लगाया। इसके जरिये चंद्रमणि को एक शूज कंपनी एलन कूपर में इंटर्नशिप मिल गई। इस इंटर्नशिप में चंद्रमणि के लगन और मेहनत देखते हुए मेधा की टीम ने उसे लखनऊ में एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी के स्टोरी का नौकरी का अवसर दिया। चंद्रमणि को इस स्टोर में फैशन कंसल्टेंट की पोस्ट मिल गई।
2013 में जब 18 वर्षीय रीता ने कॉलेज में मेधा क्लास ज्वॉइन की तब इनके घर में कमाने वाले सिर्फ उनके पिता थे। रीता किसी भी कीमत पर नौकरी करना चाहती थी। उसके पिता बीमार रहने लगे थे। अब उनसे खेतों में मजदूरी का काम नहीं होता था। ऐसी परिस्थिति में भी रीता अपने गांव से 15-20 किलोमीटर दूर रोज साइकिल से कॉलेज जाती थीं। रीता की इंटर्नशिप के लिए मेधा ने यूरेका फोर्ब्स में बात चलाई। ये कंपनी वॉटर प्यूरीफायर, वैक्यूम क्लीनर बेचती है। और उनके पास इंटर्नशिप के तौर पर केवल सेल्स का काम होता है। स्टूडेंट्स को घर घर जाकर लोगों को प्रोडक्ट्स की जानकारी देनी थी।
कंपनी वालों का मानना था कि ऐसे कामों में लड़कियां नहीं जा सकतीं। मगर 'मेधा' ने उन्हें समझाया कि रीता एक 'मेधा ट्रेंड' लड़की है, वो अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है। वो कोई भी काम कर सकती है। कंपनी ने रीता को मौका दिया। इस इंटर्नशिप के लिए रीता अपने घर से 45 किलोमीटर साइकिल चलाकर आती थी। लड़कियों को इंटर्नशिप पर भी न रखने वाली कंपनी ने रीता को नौकरी का ऑफर दिया। आज रीता उस कंपनी में सेल्स मैनेजर हैं, उनकी सैलरी दोगुनी हो चुकी है। रीता के अंडर में चार लोगों की टीम है। और अब रीता साइकिल से नहीं अपनी कमाई से खरीदी गई स्कूटी पर जाती हैं।
व्योमकेश ने योरस्टोरी हिंदी से बताया, 'स्किल डेवलपमेंट एक सतत प्रक्रिया है, तथा यह किसी एक कोर्स या प्लेसमेंट पर ख़त्म नहीं होती । शिक्षा व कौशल विकास दो नहीं एक हैं, दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। देश में चल रहे स्किलिंग प्रोग्राम्स को हमें शिक्षा व्यवस्था से जोड़कर (ना कि पृथक करके) देखना होगा व करियर निर्माण को शिक्षा का लक्ष्य बनाना होगा तभी देश की युवाशक्ति को देश के विकास में लगाया जा सकेगा।' मेधा उत्तर प्रदेश के लगभग सभी क्षेत्रों में कार्यरत है व उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तर भारत व पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी अपने काम को ले जाना चाहती है।
वे कहते हैं, 'देश के सबसे ज़्यादा युवा उत्तर व पूर्वी भारत से आते हैं जबकि रोज़गार के अवसर इन क्षेत्रों में सबसे कम हैं। देश का समग्र विकास इन क्षेत्रों के विकास के बिना अधूरा है। इसलिए हम इन क्षेत्रों में काम करना चाहते हैं। अगले 3 सालों में हमारा लक्ष्य 1 लाख युवाओं तक करियर सर्विसेज़ पहुंचाना है।' भविष्य में मेधा, इच्छुक युवाओं को नौकरी के साथ-साथ स्वरोज़गार के लिए तैयार करना चाहती है । इसके लिए वर्तमान में आंत्रप्रेन्योरशिप बूटकैंप पर काम चल रहा है।
व्योमकेश कहते हैं, 'जिन क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर कम हैं, वहां युवाओं को आगे आकर उद्यम लगाने होंगे, हमे युवा उद्यमी तैयार करने होंगे। छोटे व मंझोले उद्योग ही सबसे अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करेंगे। ऐसे में हमें पोटेंशियल आंत्रप्रेन्योर्स को ट्रेनिंग व मेंटरशिप के साथ उनके उद्यमों को इन्क्यूबेट करने की भी आवश्यकता है। हम इस स्पेस को भी बारीकी से देख रहे हैं।'
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