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‘माई’ और ‘गो-माई’ से अगले 10 सालों में मिलेगा 5 करोड़ लोगों को रोजगार

सौर्य चरखे और गाय की वजह से किसान और मजदूर होंगे मालामाल

‘माई’ और ‘गो-माई’ से अगले 10 सालों में मिलेगा 5 करोड़ लोगों को रोजगार

Thursday August 16, 2018 , 8 min Read

महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाये बिना एक समृद्ध, सम्पन्न और श्रेष्ठ राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती है। वे बताते है कि चीन के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 42 फीसदी है, जबकि भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान 20 फीसदी के आसपास है।

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सरकार अपनी नयी योजना के तहत किसानों और मजदूरों से 10 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मूत्र और 5 रुपये किलो के हिसाब से गोबर खरीदने की पक्षधर है। यानी हिसाब बिल्कुल साफ है, एक गाय, या भैंस या फिर बैल से भी किसान को हर दिन औसत 200 रुपये मिलेंगे। 

केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गिरिराज सिंह ने महिलाओं, किसानों और मजदूरों को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाने के लिए दो बड़ी योजनाओं का सूत्रपात किया है। उन्हें विश्वास है कि उनकी इन दो योजनाओं/ परियोजनाओं से देश में नयी क्रांति की शुरुआत हुई है और इन दोनों की वजह से आने वाले 10 सालों में 5 करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा। उनका कहना है कि उनकी ये दोनों योजनाएँ महात्मा गांधी, राम मनोहर लोहिया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की सुझाई अर्थ-नीति पर आधारित हैं। गिरिराज सिंह ने अपनी इन योजनाओं को ‘माई’ यानी माता और ‘गाई’ यानी गो-माता नाम दिया है। पहली योजना का मूलाधार है सौर चरखा और दूसरी योजना की केंद्र बिंदु है गाय। गिरिराज सिंह का दावा है कि सौर चरखा और गाय की वजह से किसान बचेंगे, किसानों के बचने से खेत बचेंगे, खेतों के बचने से गाँव बचेंगे और गाँवों के बचने से देश बचेगा।

सौर चरखा और गाय की मदद लेते हए किस तरह से उनका मंत्रालय देश में गाँवों की अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाते हुए किसानों, मजबूरों और महिलाओं की ताकत बढ़ाएगा, इस बात को समझाने के लिए गिरिराज सिंह तथ्यों, आंकड़ों और अपने अनुभवों का सहारा लेते हैं।

गिरिराज सिंह के मुताबिक, हर इंसान को सालाना 25 से 32 मीटर के कपड़े की जरूरत पड़ती है। हर इंसान के लिए कपड़ा भी मूलभूत जरूरत है, यानी हर इंसान के लिए कपड़ा जरूरी है। भारत में जितने कपड़े का इस्तेमाल हो रहा है उसमें खाड़ी का हिस्सा केवल 0.5 फीसदी है, यानी एक फीसदी भी नहीं। भारत के कपड़ा बाज़ार में हैण्डलूम का शेयर 12 फीसदी है, जबकि होजरी का 22 फीसदी। भारत में करीब 65 फीसदी कपड़ा पॉवरलूम का है। बड़ी बात यह भी है कि भारत में कपड़ा-उद्योग कारोबार के तेजी से बढ़ने की प्रबल संभावना है। एक अनुमान के मुताबिक अगले पांच सालों में भारत का कपड़ा उद्योग 108 अरब डॉलर से दोगुना होकर 223 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है।

लेकिन, दूसरे उद्योगों की तरह ही भारत के कपड़ा उद्योग में भी महिलाओं की भागीदारी काफी कम है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इसी बात को ध्यान में रखते गाँवों की महिलाओं को कपड़ा उद्योग खासतौर से, खाड़ी उद्योग से जोड़ने का काम शुरू किया है। वे मानते हैं कि महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाये बिना एक समृद्ध, सम्पन्न और श्रेष्ठ राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती है। वे बताते है कि चीन के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 42 फीसदी है, जबकि भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान 20 फीसदी के आसपास है। 

केंद्रीय मंत्री की कोशिश है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर दिलाये ताकि उनकी ताकत बढ़े और वे आत्म निर्भर और स्वाभिमानी हो सकें। महिला सशक्तिकरण का लक्ष्य लेकर गिरिराज सिंह के नेतृत्व में उनके मंत्रालय ने ‘शौर चरखा मिशन’ की शुरुआत की है। चूँकि इस मिशन का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक तौर पर सक्षम और मजबूत बनाना है गिरिराज सिंह ने इस बड़ी परियोजना को ‘माई’ यानी माता का नाम दिया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पिछले दिनों, 27 जून 2018, को संयुक्त राष्ट्र एमएसएमई दिवस के अवसर पर इस योजना की विधिवत शुरूआत की।

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महत्वपूर्ण बात यह भी है गिरिराज सिंह द्वारा गोद लिये गये गांव खनवां में ‘माई’ योजना को प्रयोगात्मक तौर पर शुरू किया गया था। गाँव में महिलाओं के विकास के लिए सौर चरखा लगवाया गया। चरखा परियोजना के सद्परिणाम भी सामने आए हैं। सौर चरखों की वजह से एक-एक कर गाँव की महिलाओं की समस्याएँ दूर हो रही हैं और उनके छोटे-बड़े सपने साकार होने लगे हैं। अपने निर्वाचन क्षेत्र नवादा में पड़ने वाले खनवां गाँव में सौर चरखे के कामयाब प्रयोग से उत्साहित गिरिराज सिंह ने ‘माई’ योजना को अगले 10 सालों में कम से कम 1 लाख पंचायतों में लागू करने का अटल फैसला लिया है।

खनवां गाँव के अपने कामयाब प्रयोग के अनुभव ‘योरस्टोरी’ के साथ साझा करते हुए गिरिराज सिंह ने बताया कि गांव की करीब 1200 महिलाओं को रोजगार मिला है और ये सभी महिलाएं सोलर चरखा से सूता काटकर 10000 से 25000 रुपया हर महीने कमा रही हैं और इस आमदनी की वजह से वे खुद के साथ-साथ अपने परिवार को भी मजबूत बना रही हैं। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक सौर चरखे की वजह से खनवां गाँव की महिलाओं को सालाना 6 करोड़ मिलने की संभावना है। अगर यही सौर चरखा परियोजना दूसरे बड़े गावों में शुरू की गयी तो सालाना 12 से 20 करोड़ के राजस्व-प्राप्ति की संभावना है। जब गांव में महिलाएं सालाना 10 से 20 करोड़ रुपये का राजस्व जुटाएंगी, तब गरीबी अपने आप गायब हो जाएगी।

इतना ही नहीं, महिलाएं भी देश के विकास में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। गिरिराज सिंह का यह भी मानना है कि सौर चरखा योजना की वजह से चार बड़े फायदे हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। पहला फायदा - गांवों से किसानों और मज़दूरों का पलायन नहीं होगा, दूसरा - हर हाथ को रोजगार मिलेगा, तीसरा - चूंकि महिलाओं को रोजगार मिल रहा है, कामकाज और कई मामलों में उन्हें खुद से निर्णय लेने का मौका मिलेगा, चौथा - गांधी, लोहिया और दीन दयाल उपाध्याय का सपना साकार होगा, जिसमें हर गांव समृद्ध रहेगा। सौर चरखे से सूत बनाकर बेचने की इस परियोजना से आने वाले सालों में लाखों महिलाएं स्वरोजगारी होंगी, साथ ही सम्पन्न और शक्तिशाली भी।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की दूसरी महत्वाकांक्षी परियोजना के केंद्र में है गाय। उनका मानना है कि गाय और भैंस का दूध बेचकर किसानों को ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है। एक लीटर दूध पर उन्हें सिर्फ पाँच रुपये का फायदा हो रहा है। लेकिन कई किसान और मजदूर ये नहीं जानते कि गाय, भैंस और बैल के मूत्र और गोबर से भी उन्हें फायदा मिल सकता है। किसानों और ग्रामीण मज़दूरों की मदद करने के मकसद से केंद्र सरकार ने जानवरों का मूत्र और गोबर खरीदकर उससे कई तरह के उत्पाद बनाने का फैसला किया है। केंद्रीय मंत्री ने विविध सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं की रिपोर्टों का हवाला देते हुए बताया कि भारत में गाय, भैंस और बैल हर दिन औसत 10 से 12 लीटर का मूत्र विसर्जन करते हैं और करीब 12 किलो का गोबर देते हैं।

सरकार अपनी नयी योजना के तहत किसानों और मजदूरों से 10 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मूत्र और 5 रुपये किलो के हिसाब से गोबर खरीदने की पक्षधर है। यानी हिसाब बिल्कुल साफ है, एक गाय, या भैंस या फिर बैल से भी किसान को हर दिन औसत 200 रुपये मिलेंगे। यानी एक गाय या भैंस से मूत्र और गोबर की वजह से किसान को सालाना 60 हजार मिल सकते हैं। अगर किसान के पास गाय और भैंस ज्यादा हैं तो उसे मूत्र और गोबर की वजह से ज्यादा आमदनी होगी। गाय या गो-माई योजना की वजह से कई फायदे होने की उम्मीद है। उदाहरण के लिए गांव के लोग एक बार फिर से पशुओं को संपदा मानेंगे और उनकी देखभाल और संख्या बढ़ाने की कोशिश करेंगे।

यह पूछे जाने पर कि सरकार और सरकारी संस्थाएं गो-मूत्र और गोबर का इस्तेमाल कैसे करेंगी? केंद्रीय मंत्री ने बताया कि गोबर से खाद बनाया जाएगा और इस खाद का इस्तेमाल जैविक खेती के लिए होगा। अलग-अलग शोध और अनुसंधान से यह साबित हुआ है कि गोबर से बना हुआ खाद हर मायने में सुरक्षित है और इससे भूमि की उर्वरकता बढ़ती है। गोबर से बना खाद रासायनिक खाद की तुलना में बहुत बढ़िया परिणाम देता है। गोबर से बने खाद के इस्तेमाल से खेतों में उत्पादन के दुगुना होने की भी संभावना है। सरकार का इरादा किसानों को अपने गांवों में गोबर से बनने वाले खाद की यूनिट लगाने के लिए हर मुमकिन मदद देने भी है। इतना ही नहीं,सरकार गोबर से ऐसी मूर्तियाँ बनाने पर भी विचार कर रही है जिनका पूजा के बाद नदी या तालाब में विसर्जन कर दिया जाता है।

प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों की वजह से नदी और जलाशय प्रदूषित हो रहे हैं। अगर गोबर से बनी मूर्तियों का इस्तेमाल किया जाय, तो प्रदूषण नहीं होगा और गोबर के गुणों की वजह से पानी बेहतर होगा। गिरिराज सिंह के अनुसार, गाय, बैल, भैंस के मूत्र और बालों से कीटनाशक बनाये जाएंगे और इससे भी रासायनिक कीटनाशकों से होने वाले दुष्परिणामों से बचा जा सकेगा। कोशिश होगी कि गो-मूत्र से बनने वाले अमीनो-एसिड की यूनिटें भी गांव में ही लगाई जाएं,ताकी इसका सीधा फायदा भी किसानों को ही मिले।

यानी, केंद्रीय मंत्री के अनुसार, सौर्य चरखा, गाय और भैंस के गोबर और मूत्र से गाँवों की अर्थ-व्यवस्था को मजबूत किया जाएगा। अगर केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम राज्य मंत्री का सपना/संकल्प साकार हुआ तो आने वाले वर्षों में माई और गो-माई योजना/परियोजना से हर पंचायत सालाना 12 से 20 करोड़ का राजस्व जुटा पाएगी।

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