‘चलते-फिरते’ क्लासरूम्स के ज़रिए पिछड़े बच्चों का भविष्य संवार रहा यह एनजीओ
क्या हमने कभी हमारे ही समाज के उस तबके के बारे में सोचा है, जिन्हें शिक्षा या भविष्य जैसी चीज़ों के बारे में सोचने से पहले, जीने की ज़रूरतों के बारे में सोचना पड़ता है।
एचयूएचटी ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2001 की प्राकृतिक आपदा के दौरान कदम रखा था। फ़िलहाल यह एनजीओ देश में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति को बेहतर बनाने की जुगत में लगा हुआ है।
बच्चे हमारे आने वाले भविष्य के निर्माता हैं और इनके सकारात्मक विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण साधन है, शिक्षा। आर्थिक रूप से समृद्ध लोग इस बात की वक़ालत बड़ी ही सहजता के साथ कर सकते हैं, लेकिन क्या हमने कभी हमारे ही समाज के उस तबके के बारे में सोचा है, जिन्हें शिक्षा या भविष्य जैसी चीज़ों के बारे में सोचने से पहले, जीने की ज़रूरतों के बारे में सोचना पड़ता है। अगर हम उनके सामने ऐसी आदर्शवादी सोच परोसेंगे तो शायद वे ठीक ढंग से प्रतिक्रिया भी नहीं देना चाहेंगे।
ख़ैर, समय अपने साथ संतुलन लेकर आता है और नकारात्मक पहलुओं को काटने के लिए आशा की किरण हमेशा मौजूद होती है। इस बात की ही मिसाल पेश करता है, 'कोलकाता का हेल्प अस हेल्प देम' (एचयूएचटी) एनजीओ। यह गैर-सरकारी संगठन कोलकाता के बच्चों के लिए शिक्षा का तोहफ़ा लेकर आया है और इस बात का ख़्याल रख रहा है कि शिक्षा जैसी आवश्यक चीज़ पर सबका बराबर अधिकार तो ही, साथ-साथ शिक्षा के साधनों तक उनकी पहुंच भी बराबर हो। एचयूएचटी एनजीओ की इस मुहिम का नाम है, 'स्कूल ऑन व्हील्स'।
एचयूएचटी ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2001 की प्राकृतिक आपदा के दौरान कदम रखा था। फ़िलहाल यह एनजीओ देश में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति को बेहतर बनाने की जुगत में लगा हुआ है। 2006 में शुरू हुई इस मुहिम ने 10 बच्चों के साथ शुरुआत की थी और आज की तारीख़ में 300 से भी ज़्यादा विद्यार्थी इससे जुड़े हुए हैं और इसका लाभ उठा रहे हैं।
एचयूएचटी ने 2006 में मलिकपुर में स्कूल खोलकर, अपनी मुहिम का आग़ाज़ किया था, लेकिन 'स्कूल ऑन व्हील्स' को 2013 में लॉन्च किया गया। इस कार्यक्रम की सबसे ख़ास बात यह है कि जो बच्चे स्कूल तक जाने में सक्षम नहीं हैं, अब स्कूल ख़ुद चलकर उनके पास आ रहा है! 'स्कूल ऑन व्हील्स' कार्यक्रम के अंतर्गत पढ़ाई के लिए कुर्सी या मेज़ की ज़रूरत नहीं पड़ती बल्कि शिक्षक और विद्यार्थी पूरी ऊर्जा के साथ पोर्टेबल क्लासरूम्स में अपनी पढ़ाई को अंजाम देते हैं।
इन बच्चों के पास न तो रहने के लिए घर हैं और न ही पेट भरने का कोई स्थाई इंतज़ाम, इसलिए पढ़ाई के बाद एनजीओ इन्हें अच्छा और सेहतमंद भोजन भी उपलब्ध कराता है।
ऐसे चलते-फिरते क्लासरूम देखे हैं आपने!
रोज़ाना सुबह 7.30 बजे इस एनजीओ की एक बस शोभा बाज़ार के पास आती है। यह बाज़ार एशिया के सबसे रेड लाइट ज़िले सोनागाछी से बेहद ग़रीब है। सोनागाक्षी में 10,000 से भी ज़्याद सेक्स वर्कर्स रहते हैं। शोभा बाज़ार के बाद बस बाग़ बाज़ार, बेलगछिया आदि जगहों पर जाती है। एक बस शहर का उत्तरी हिस्सा नापती है और दूसरी दक्षिणी हिस्सा। एनजीओ के कार्यकर्ताओं से मिली जानकारी के मुताबिक़, रोज़ाना एनजीओ की दो बसें शहर का चक्कर लगाती हैं और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने और जागरूक बनाने की कोशिश करती हैं।
रोज़ाना सुबह 7.30 बजे से शाम 6 बजे तक क्लासेज़ चलती हैं। बच्चे भी पूरी गंभीरता के साथ पढ़ने का प्रयास करते हैं। यहां तक कि 5 साल तक के बच्चे भी इस कार्यक्रम का लाभ उठा रहे हैं। क्लास शुरू होने से पहले बच्चे प्रार्थना और मेडिटेशन करते हैं। इसके बाद उन्हें अच्छी आदतों के बारे में बताया जाता है। बस के अंदर एक जीवंत क्लासरूम तैयार करने की पूरी कोशिश की गई है, जो बच्चों को बेहत प्रभावित भी करती है।
एचयूएचटी की कोशिश सिर्फ़ यहीं तक सीमित नहीं है। व्यवस्थित पढ़ाई के लिए एनजीओ कई बच्चों को स्कूल भी भेजता है और उनकी पढ़ाई वगैरह का पूरा खर्चा भी उठाता है। मलिकपुर स्थित स्कूल में बच्चों के संपूर्ण विकास का ख़ास ध्यान रखा जाता है। पूरे देश से विशेषज्ञ स्काइप के ज़रिए इन बच्चों से जुड़ते हैं और उनकी भाषा को सुधारने का प्रयास करते हैं। इन बच्चों के लिए कलाम लाइब्रेरी भी खोली गई है, जिसमें करीबन 2,000 किताबें हैं। स्कूल में साइंस लैब आदि की भी पूरी व्यवस्था रखी गई है।
पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों के खेलने और उनकी फ़िटनेस का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। एनजीओ ने नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ इन्फ़र्मेशन टेक्नॉलजी के साथ करार किया है, ताकि इन पिछड़े बच्चों को कंप्यूटर की भी विधिवित शिक्षा दी जा सके। साथ ही, स्किल ऐकडमी ऑफ़ इंडिया के कोच इन बच्चों को स्विमिंग भी सिखाते हैं। एचयूएचटी के कार्यक्रम से जुड़े 3 बच्चे राज्य स्तर और 7 बच्चे ज़िला स्तर की स्पोर्ट्स प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं।
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