पत्थरबाजी करने वाली लड़की आज कश्मीर की फुटबॉल टीम को कर रही है लीड
अफ्शां की फुटबॉलरों वाली जिंदगी आज से 4 साल पहले शुरू हुई थी तब वे 17 साल की थीं। अब वे प्रदेश के लिए खेलती हैं। पिछले साल वह राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली महिला फुटबॉलर थीं।
हालांकि अफ्शां खुद ही पत्थरबाजी का विरोध करती रही हैं। वे हमेशा से इसके खिलाफ रही हैं, लेकिन एक वाकए के बाद उन्हें हाथ में पत्थर लेकर सड़क पर उतरना पड़ा।
वे कहती हैं कि यहां के विरोध प्रदर्शनों में युवाओं की मौत पर उन्हें रोना आता है। अफ्शां का एक छोटा भाई भी है। वह कहती हैं कि उसे कहीं भी बाहर भेजने से पहले वे दस बार सोचती हैं।
जम्मू-कश्मीर की अफ्शा आशिक की कहानी हमारी पीढ़ी को इंस्पायर करने की कूव्वत रखती है। सिर्फ 21 साल की उम्र में प्रदेश की फुटबॉल टीम का नेतृत्व करने वाली अफ्शा ने कश्मीर के बारे में लोगों की धारणा को बदलने में अहम भूमिका निभाई है। वह एक ऐसे समाज से आती हैं जहां महिलाओं को घर से बाहर यूं निकलना अच्छा नहीं माना जाता। लेकिन अफ्शां ने इस रूढ़िवादी सोच को दरकिनार रखते हुए अपनी ख्वाहिशों को तरजीह दी और आज वो अपने सपने पूरे करने की राह पर निकल पड़ी है। लेकिन यह सब बदला इसी साल 24 अप्रैल को।
इसी साल 24 अप्रैल को अफ्शा अपने कोच और साथी फुटबॉलरों के साथ हाथ में पत्थर लेकर सड़क पर उतर आई थीं। उन्होंने बताया, 'जम्मू और कश्मीर पुलिस ने हमारे साथ बुरा बर्ताव किया था। उन्होंने हमारी टीम की एक फुटबॉलर को थप्पड़ मार दिया था। जिसके विरोध में हमारे साथियों ने विरोध करने को कहा और हम सड़क पर उतरे थे।' हालांकि अफ्शां खुद ही पत्थरबाजी का विरोध करती रही हैं। वे हमेशा से इसके खिलाफ रही हैं, लेकिन एक वाकए के बाद उन्हें हाथ में पत्थर लेकर सड़क पर उतरना पड़ा।
वे कहती हैं, 'सच कहूं तो मुझे हिंसक विरोध प्रदर्शनों से नफरत है। इससे हमारे युवाओं का ही नुकसान होता है। अगर युवा पीढ़ी का विकास नहीं होगा तो हम आगे नहीं बढ़ सकते।' अफ्शां की फुटबॉलरों वाली जिंदगी आज से 4 साल पहले शुरू हुई थी तब वे 17 साल की थीं। अब वे प्रदेश के लिए खेलती हैं। पिछले साल वह राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली महिला फुटबॉलर थीं। उनके कोच ने बताया कि अफ्शां बहुत बेहतरीन गोलकीपर है, लेकिन कम लड़कियां होने की वजह से उसे पुरुषों की टीम में प्रैक्टिस करना पड़ता है।
अफ्शां के सपने काफी बड़े हैं। वह भारत की नैशनल फुटबॉल टीम के लिए खेलना चाहती हैं और देश नाम रोशन करना चाहती हैं। जम्मू और कश्मीर के हालात पर वह कहती हैं कि राज्य में शांति की सख्त जरूरत है। वे कहती हैं कि यहां की बहुसंख्यक आबादी अमनपसंद है, लेकिन कुछ लोगों की वजह से यहां अशांति व्याप्त है और सुकून चाहने वाले लोगों की कोई सुनता नहीं है। वे कहती हैं कि यहां के विरोध प्रदर्शनों में युवाओं की मौत पर उन्हें रोना आता है। अफ्शां का एक छोटा भाई भी है। वह कहती हैं कि उसे कहीं भी बाहर भेजने से पहले वे दस बार सोचती हैं।
इसी हफ्ते मंगलवार को अफ्शां ने अपनी 23 सदस्यीय फुटबॉल टीम के साथ देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की। उन्होंने कहा, 'गृहमंत्री से मिलने का हमारा एक ही मकसद था कि जम्मू और कश्मीर का स्पोर्ट्स आगे जाए। वहां की सरकारी कई सारे पहल कर रही है, लेकिन केंद्र सरकार के सपोर्ट के बगैर हम आगे नहीं बढ़ सकते।
आधे घंटे तक चली बैठक में गृहमंत्री से कहा कि अगर जम्मू-कश्मीर में उचित खेल आधारभूत ढांचा तैयार किया जाता है तो युवा आतंकवाद और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों से इतर अपने कौशल को निखारने के लिए प्रेरित होंगे और राज्य का नाम चमकाएंगे। उन्होंने कहा, 'मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। मैं विजेता बनना चाहती हूं और राज्य व देश को गौरवान्वित करने के लिए कुछ करना चाहती हूं।' अफ्शां अभी मुंबई के एक क्लब के लिए खेल रही है।
यह भी पढ़ें: भारत की पहली महिला IAS के बारे में जानते हैं आप?