साढ़े आठ एकड़ में गन्ना लगाकर मंगल ने साल भर में कमाए पांच लाख
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
छत्तीसगढ़ के भोरमदेव और पंडरिया में खुले शक्कर कारखाने से कबीरधाम जिले के 21 हजार से ज्यादा किसानों की आमदनी बढ़ी है। आर्थिक रूप से सक्षम होने के साथ ही किसानों की जीवनशैली में भी सुधार आया है।
धान और चने के लिए पानी पर निर्भर रहना पड़ता था। बारिश नहीं होने से नुकसान अलग। इसलिए जब फैक्ट्री लगी तो अन्य किसानों की तरह मंगल ने भी गन्ने की खेती शुरू कर दी। पहले दो से तीन एकड़ में बोआई की। फायदा देखा तो साढ़े आठ एकड़ में गन्ना लगाना शुरू कर दिया।
छत्तीसगढ़ के भोरमदेव और पंडरिया में खुले शक्कर कारखाने से कबीरधाम जिले के 21 हजार से ज्यादा किसानों की आमदनी बढ़ी है। आर्थिक रूप से सक्षम होने के साथ ही किसानों की जीवनशैली में भी सुधार आया है। किसान मंगललाल के पास दस एकड़ खेत हैं। पहले वे पारंपरिक खेती कर धान और चना उगा रहे थे। कारखाना खुला तो उन्नत खेती अपना ली। अब साढ़े आठ एकड़ में सिर्फ गन्ना लगाते हैं और हर साल चार से पांच लाख कमाते हैं। धान और चने के लिए पानी पर निर्भर रहना पड़ता था। बारिश नहीं होने से नुकसान अलग। इसलिए जब फैक्ट्री लगी तो अन्य किसानों की तरह मंगल ने भी गन्ने की खेती शुरू कर दी। पहले दो से तीन एकड़ में बोआई की। फायदा देखा तो साढ़े आठ एकड़ में गन्ना लगाना शुरू कर दिया।
बाकी डेढ़ एकड़ में धान की खेती कर रहे हैं। मंगल का कहना है कि खाने के लिए धान और चना उगाते हैं। उन्होंने बताया कि कवर्धा, सहसपुर लोहारा, पंडरिया आदि क्षेत्र के तकरीबन हर गांव में गन्ने की पैदावार हो रही है। फसल होते ही सारा गन्ना कारखाने में खप जाता है। किसानों को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता। इसके बाद राशि मिलते ही किसान अपने काम में निवेश करने की सोचता है। बताया गया कि 13-14 सालों में कई छोटे किसानों ने अपनी आमदनी तीन से चार गुनी कर ली है। हरेक के पास ट्रैक्टर है। दुपहिया और चार पहिया वाहनों की भी कोई कमी नहीं। गन्ने की पैदावार करने वाला तकरीबन हर किसान पक्के मकान में रहता है। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहा है और फसल बेचकर मिलने वाली राशि को अच्छी जगह निवेश करने की सोच रहा है।
मंगल ने बताया कि पहले उसके पास पक्का मकान नहीं था। झोपड़ीनुमा कच्चे मकान में ही गुजर बसर होता था। पहले साल गन्ने की खेती की। आमदनी समझ में आई। रकबा बढ़ाया। दूसरे साल अच्छी फसल हुई तो सबसे पहले ट्रैक्टर फाइनेंस कराया। इसके बाद तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता गया। आज खुद का मकान है। घर में दुपहिया वाहन है। इसके अलावा प्लाट भी खरीद रखे हैं। परिवार सुखी है। गन्ने की खेती में सभी हाथ बंटाते हैं और फैक्ट्री तक छोड़ने भी जाते हैं। भोरमदेव का सहकारी कारखाना पुराना है। इसकी पेराई क्षमता 3500 टीसीडी है। गन्ने की फसल से हो रही प्रॉफिट को देखते हुए जब किसान इसकी खेती की तरफ आकर्षित हुए तो पैदावार अधिक होने लगी।
इसके बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने दो साल पहले ही पंडरिया में लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल सहकारी कारखाने की घोषणा की, जो अस्तित्व में आ चुका है। इसकी पेराई क्षमता 2500 टीसीडी है। दोनों कारखानों में पावर प्लांट भी लगा हुआ है और 20 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी होता है। दाेनों ही कारखानों में हर साल पेराई का लक्ष्य रखकर उसे पूरा करने की कोशिश की जाती है ताकि किसानों की फसलों का पूरा-पूरा उपयोग किया जा सके। इस साल दोनों कारखानों को मिलाकर सात लाख 93 हजार पांच मेटरिक टन गन्ने की खरीदी हुई और शत-प्रतिशत पेराई भी। इससे छह लाख 75 हजार 925 क्विंटल शक्कर का उत्पादन किया गया। अगस्त तक की स्थिति में 50 रुपए प्रति क्विंटल की मान से गन्ना बोनस भी दिया गया। इसमें 39.65 करोड़ के विरुद्ध प्रथम किस्त में 28 करोड़ रुपए प्राप्त किए गए। इस तरह सरकार भी गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है।
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