कर्नाटक का यह किसान परंपरागत खेती में तकनीक का उपयोग कर पेश कर रहा मिसाल
कर्नाटक के डोडबालापुर के रहने वाले किसान अशोक कुमार का किसानी का सफर लगभग 25 साल पहले शुरु हुआ था। 1989 में राज्य में भयंकर सूखा पड़ा था जिससे किसानों की हालत खस्ताहाल कर दी थी।
अशोक के पास न केवल खेती-किसानी का अच्छा अनुभव है बल्कि उन्होंने इस क्षेत्र में काफी अध्ययन भी किया है। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस बेंगलुरु से मास्टर्स की डिग्री हासिल की है।
अशोक कुमार ऐसे किसान हैं जिनके अपनाए गए मॉडल पर अगर काम किया जाए तो देश में किसानों की लगभग सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है। कर्नाटक के डोडबालापुर के रहने वाले किसान अशोक कुमार का किसानी का सफर लगभग 25 साल पहले शुरु हुआ था। 1989 में राज्य में भयंकर सूखा पड़ा था जिससे किसानों की हालत खस्ताहाल कर दी थी। उस वक्त उन्होंने पानी की खोज में 189 बोरवेल किए लेकिन सिर्फ 14 में ही सफलता मिली। पानी की कमी से अशोक की स्थिति बदहाल हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने आजीविका चलाने के लिए कुछ नया करने के बारे में सोचा।
अशोक ने काफी पहले ही खेती में तकनीक की जरूरत को महसूस कर लिया था। उन्होंने इसकी शुरुआत करने के लिए 1989 में अपने पिता से कुछ रकम उधार के तौर पर ली और 200 एकड़ भूमि पर खेती शुरू कर दी। उन्होंने सिंचाई के लिए माइक्रो इरिगेशन की मदद से ड्रिप, माइक्रो, मिस्ट और स्प्रिंकलर जैसे सिस्टम का इस्तेमाल किया। इससे काफी कम कीमत पर सिंचाई की जरूरत पूरी हो गई। इसके पहले उस इलाके में सारे किसान सिर्फ बारिश पर निर्भर रहते थे। 55 वर्षीय अशोक कहते हैं, 'तकनीक के माध्यम से ही युवाओं को खेती के लिए आकर्षित किया जा सकता है।'
अशोक का कहना है कि भारत में किसानों के बीच जानकारी का आभाव है। इसलिए वे किसान समुदाय के बीच जाकर उन्हें जागरूक करने का काम करते हैं। अशोक बताते हैं, 'मैं उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करके उत्पादन की लागत पर नियंत्रण करना चाहता था और साथ में मार्केट ट्रेंड के मुताबिक अप टू डेट भी रहना चाहता था। मेरा मानना है कि समावेषी कृषि ऐसा मॉडल है जिससे भारत के कृषि संकट को दूर किया जा सकता है।' वे कहते हैं कि इस तकनीक की मदद से खेती में अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
अशोक के पास न केवल खेती-किसानी का अच्छा अनुभव है बल्कि उन्होंने इस क्षेत्र में काफी अध्ययन भी किया है। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस बेंगलुरु से मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। वहां उन्होंने खेती में कम पैसों से लाभ कमाने के तरीकों के बारे में काफी अध्ययन किया। वह ऐसे किसान हैं जो खेती के परंपरागत तरीकों के साथ तकनीक का इस्तेमाल कर अच्छा मुनाफा कमाते हैं।
लगभग एक दशक पहले अशो ने अपने खेती के साथ-साथ मुर्गीपालन की शुरुआत की थी। इससे उन्हें अतिरिक्त आय होने लगी। इसके बाद उन्हें जब थोड़े अधिक पैसे मिलने लगे तो उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की ओर ध्यान दिया। इससे उन्हें हर साल 15-20 प्रतिशत की ग्रोथ मिली। आज उनकी कंपनी एक करोड़ से ज्यादा चिकन का उत्पादन करती है। अशोक की कंपनी कर्नाटक के मंगलौर, बंटवाल, अन्नावटी, कुनिगल, सुलिया जैसी जगहों के किसानों के साथ मिलकर काम करती है।
उनकी कंपनी 'मां फार्म्स' मुर्गी पालन से जुड़ी सारी जरूरतें किसानों को मुहैया कराती है। वे किसानों की उत्पादित फसलों को अच्छे दाम पर खरीद लेते हैं औऱ फिर उससे मुर्गियों के लिए दाना तैयार कराते हैं। 'मां फार्म्स' मीट और अंडे दोनों के लिए मुर्गी पालन करती है। वे किसानों से कॉन्ट्रैक्ट पर मुर्गियां पलवाते हैं और उन्हें चूजे से लेकर दाना और तकनीकी सलाह सब मुहैया करवाते हैं। किसानों को मुर्गियों की गुणवत्ता के मुताबिक पैसे दिए जाते हैं।
यह भी पढ़ें: किसानों को समृद्ध करने के साथ ही शुगर जैसी बीमारियां कम कर सकता है यह चावल