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तीन छात्रों ने शुरू किया पुआल से कप-प्लेट बनाने का स्टार्टअप

तीन छात्रों ने शुरू किया पुआल से कप-प्लेट बनाने का स्टार्टअप

Friday October 19, 2018 , 6 min Read

अब फसल अपशिष्टों से भी ईको-फ्रेंडली उत्पाद बनाने की पद्धति विकसित हो चुकी है। आईआईटी, दिल्ली के इन्क्यूबेशन सेंटर से जुड़े 'क्रिया लैब्स' स्टार्टअप के तीन छात्रों अंकुर कुमार, कनिका प्रजापत और प्रचीर दत्ता धान के पुआल से कप और प्लेट बना रहे हैं।

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दिल्ली में हवा के प्रदूषण से निपटने के लिए इमरजेंसी एक्शन प्लान लागू हो गया है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) ने वायु प्रदूषण रोकने के लिए गत सोमवार से इमरजेंसी प्लान लागू किया है। 

आईआईटी-दिल्ली के छात्र अंकुर कुमार, कनिका प्रजापत और प्रचीर दत्ता ने चार साल पहले ग्रीष्मकालीन परियोजना के रूप में पराली (धान का पुआल) से कप और प्लेट बनाने का 'क्रिया लैब्स' स्टार्टअप शुरू किया था। उस समय वे बी.टेक कर रहे थे। उनका विचार था कि फसल अपशिष्टों से जैविक रूप से अपघटित होने योग्य बर्तन बनाने की तकनीक विकसित हो जाए तो प्लास्टिक से बने प्लेट तथा कपों का इस्तेमाल कम किया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने एक प्रक्रिया और उससे संबंधित मशीन विकसित की और पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया। अंकुर कुमार बताते हैं कि जल्द ही हमें यह एहसास हो गया कि मुख्य समस्या कृषि कचरे से लुगदी बनाने की है, न कि लुगदी को टेबलवेयर में परिवर्तित करने की।

'क्रिया लैब्स' के मुख्य संचालन अधिकारी अंकुर कुमार बताते हैं कि इस तकनीक की मदद से किसी भी कृषि अपशिष्ट या लिग्नोसेल्यूलोसिक द्रव्यमान को होलोसेल्यूलोस फाइबर या लुगदी और लिग्निन में परिवर्तित किया जा सकता है। लिग्निन को सीमेंट और सिरेमिक उद्योगों में बाइंडर के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। लगभग उसी समय, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की समस्या उभरी और पराली जलाने से इस खोज का संबंध एक बड़ा मुद्दा बन गया। उसी दौरान हमने इस नयी परियोजना पर काम करना शुरू किया था। हमारी कोशिश कृषि अपशिष्टों से लुगदी बनाना और उससे लिग्निन-सिलिका के रूप में सह-उत्पाद को अलग करने की थी। हमने सोचा कि अगर किसानों को उनके फसल अवशेषों का मूल्य मिल जाए तो वे पराली जलाना बंद कर सकते हैं।

इस प्रकार सितंबर 2017 में 'क्रिया लैब्स' को स्थापित किया गया। अभी स्थापित की गई यूनिट में प्रतिदिन 10 से 15 किलोग्राम कृषि अपशिष्टों का प्रसंस्करण किया जा सकता है।

गौरतलब है कि हर साल सर्दियों की शुरुआत होते ही पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में लाखों टन पराली (धान का पुआल, जड़ें) जला दी जाती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, इस मौसम में अब तक पराली जलाने की पंजाब में 700 और हरियाणा में 900 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। नासा के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक देश के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में फसल अवशेष जलाने के कारण धुएं और धुंध का गुबार महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और ओडिशा तक फैल रहा है।

धान की पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कई उपाय किये जा रहे हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के इन्क्यूबेशन सेंटर से जुड़े स्टार्टअप 'क्रिया लैब्स' ने अब फसल अपशिष्टों से ईको-फ्रेंडली कप और प्लेट जैसे उत्पाद बनाने की पद्धति विकसित की है। अपनी नयी विकसित प्रक्रिया का उपयोग करके तीनों छात्रों ने धान के पुआल को कप और प्लेट के निर्माण के लिए एक इकाई स्थापित की है, जो आमतौर पर प्रचलित प्लास्टिक प्लेटों का विकल्प बन सकती है।

धान के पुआल में 10 प्रतिशत तक सिलिका होती है, जिसकी वजह से अधिकतर औद्योगिक प्रक्रियाओं में इसका उपयोग करना मुश्किल होता है। शोधकर्ताओं ने एक विलायक-आधारित प्रक्रिया विकसित की है, जिसकी मदद से सिलिका कणों के बावजूद फसल अवशेषों को औद्योगिक उपयोग के अनुकूल बनाया जा सकता है। फिलहाल, 'क्रिया लैब्स' के संस्थापक-निर्माता छात्र धान के पुआल से बनी लुगदी से टेबलवेयर बना रहे हैं। उनका कहना है कि अब वे इससे जुड़ा पायलट प्लांट स्थापित करना चाहते हैं, जिसकी मदद से प्रतिदिन तीन टन फसल अवशेषों का प्रसंस्करण करके दो टन लुगदी बनायी जा सकेगी। इस तरह के प्लांट उन सभी क्षेत्रों में लगाए जा सकते हैं, जहां फसल अवशेष उपलब्ध हैं। 'क्रिया लैब्स' को अगर रणनीतिक पार्टनर और निवेशक मिलते हैं तो बाजार की मांग के अनुसार वह उत्पादन इकाइयों में परिवर्तन करके उसे फाइबर और बायो-एथेनॉल जैसे उत्पाद बनाने के लिए भी अनुकूलित कर सकते हैं।

दिल्ली में हवा के प्रदूषण से निपटने के लिए इमरजेंसी एक्शन प्लान लागू हो गया है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) ने वायु प्रदूषण रोकने के लिए गत सोमवार से इमरजेंसी प्लान लागू किया है। इस बीच नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) ने कुछ सेटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं, जिससे यह साबित हो रहा है कि पिछले साल की तुलना में इस साल पराली जलाने का स्तर घटा है। नासा की उपग्रह तस्वीरों से पता चलता है कि पंजाब और हरियाणा में किसानों ने इस महीने के शुरू में पराली जलाना शुरू किया है। नासा ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि पंजाब और हरियाणा में पिछले 10 दिनों में, खासकर अमृतसर, अंबाला, करनाल, सिरसा और हिसार समेत इनके आसपास के क्षेत्रों में पराली जलाए जाने का स्तर बढ़ा है।

यद्यपि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण(एनजीटी) पहले ही पंजाब के साथ ही हरियाणा व उत्तर प्रदेश में इस पर रोक लगाने का आदेश दे चुका है, राजधानी दिल्ली में पराली से उत्पन्न प्रदूषण के चलते हवा की क्वालिटी लगातार खराब हो रही है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कल ही इस मुद्दे पर पंजाब, हरियाणा और केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह समझ से परे है कि पूरे एक साल तक केंद्र, पंजाब और हरियाणा की सरकारों की तरफ से आश्वासन के बावजूद पराली समस्या की रोकथाम के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

उधर, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पराली न जलाने की एवज में किसानों को सौ रुपये प्रति क्विंटल मुआवजा देने की मांग की है। केंद्रीय वित्त आयोग के मुताबिक, सिर्फ पराली से नहीं, बल्कि उद्योग-धंधों, निर्माण कार्यों, वाहनों से भी प्रदूषण फैल रहा है। किसानों के खेत में फसली अवशेष के निस्तारण के लिए वित्त आयोग हरियाणा व पंजाब को आर्थिक मदद की पेशकश कर सकता है। पंजाब और हरियाणा के गांवों में पराली जलाए जाने के बाद जहां पिछले साल राजधानी दिल्ली पर स्मॉग का अंधेरा छाया रहा था, वहीं इस बार भी पराली जलाने के चलते प्रशासन अलर्ट है। लोगों के जेहन में यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या फिर से वायु प्रदूषण का मुख्य कारण हरियाणा में जलाई जाने वाली पराली है।

गौरतलब है कि नासा द्वारा उतारी गई तस्वीरों के मुताबिक, पंजाब और हरियाणा में किसानों ने इस महीने की शुरुआत में पराली जलाना शुरू कर दिया था। पराली की वजह से बढ़ते प्रदूषण की समस्या को देखते हुए हरियाणा जिले के करनाल में उपायुक्त डॉक्टर आदित्य दहिया ने चेतावनी जारी कर दी है कि किसान खेतों में पराली न जलाएं। नाभा (पंजाब) के गांव कलार माजरा नाम के किसान बीर दलविंदर सिंह पराली न जलाने की सरकार की अपील को अपने पड़ोसियों और गांववालों तक पहुंचा रहे हैं। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी गांव के इस पर्यावरण सहयोगी कदम की तारीफ की है। अब गांव के करीब 70 प्रतिशत लोगों ने पराली न जलाने का फैसला किया है। गांव ने इससे निपटने का एक सरल और कारगर तरीका अपनाया है। खेत जोतकर पराली को मिट्टी में दबा देते हैं।

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