ठेले पर आइसक्रीम बेच रहा इंटरनेशनल मुक्केबाज
देश का दुर्भाग्य है कि पत्थर तोड़कर परिवार का पेट भरने वाले झारखंड के हॉकी चैंपियन गोपाल भेंगरा, अंबाला रेलवे स्टेशन पर कुली का काम कर रहे नेशनल हॉकी मेडलिस्ट तारा सिंह की तरह ही वर्ल्ड चैंपियन बॉक्सर दिनेश कुमार कर्ज चुकाने के लिए आजकल ठेले पर आइसक्रीम बेच रहे हैं।
हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के जन्मदिन पर नेताओं की भाषण बाजी तो हर साल पूरा देश सुनता है लेकिन भारत के अनेक नामवर खिलाड़ियों की जमीनी हकीकतें कुछ और हैं।
फिलहाल तो हम बात कर रहे हैं सड़क पर आइसक्रीम का ठेला लगाकर घर-गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे हरियाणा के वर्ल्ड चैंपियन बॉक्सर दिनेश कुमार की, लेकिन उससे पहले पिछले साल का एक और वाकया याद कर लेते हैं। भारतीय क्रिकेटर सुनील गावस्कर गुमनाम अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी गोपाल भेंगरा से रांची (झारखंड) के आदिवासी बहुल तोरपा इलाके के सुदूर उयुर गुरिया गांव में मिलते हैं तो उनके घर में मानो खुशियों की बहार आ जाती है। अपने मामूली से खपरैल वाले घर के दरवाजे पर जब लुंगी-जर्सी में खड़े बहत्तर साल के आदिवासी भेंगरा से गावस्कर की मुलाकात होती है, उन्हे अपने वे दिन याद आ जाते हैं, जब बचपन में वह माड़-भात खाकर बांस के स्टिक से घंटों खेला करते थे।
वह गरीबी की वजह से तीसरी क्लास तक ही पढ़ पाए। उस वक्त भी दिहाड़ी खटते रहे। बड़े हुए तो फौज में भर्ती होकर दशकों तक हॉकी में जबरदस्त शॉर्ट कॉर्नर हिट से बड़े-बड़ो को हैरत में डालते रहे। रिटायर हुए तो मामूली पेंशन से घर नहीं चल पाता था। किसी के आगे हाथ फैलाने में स्वाभिमान आड़े आ जाता। तत्कालीन सांसद सुशीला केरकेट्टा से मदद मांगी। कुछ नहीं मिला। पत्थर तोड़ने की मजदूरी करने लगे। जब सुनील गावस्कर की कंपनी 'चैंप्स' से पहली बार उन्हे आर्थिक मदद मिली, फफक कर रो पड़े। आज भी उन्हे 'चैंप्स' से ही साढ़े सात हज़ार रुपए हर महीने मिलते हैं।
खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के मामले में हरियाणा तो देश में सबसे आगे रहता है लेकिन भारत का क्यूबा यानी मुक्केबाजी की मंडी कहे जाने वाले भिवानी क्षेत्र के दिनेश कुमार, जो वर्ष 2008 में बीजिंग ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, आज आर्थिक तंगी से दो-दो हाथ कर रहे हैं। इंटरनेशनल बॉक्सर दिनेश कुमार आजकल भिवानी (हरियाणा) में दो जून की रोटी और उधारी चुकाने के लिए सड़कों पर आइसक्रीम का ठेला लगाते हैं। वही दिनेश कुमार, जिन्होंने कभी भारत के लिए सत्रह गोल्ड, एक सिल्वर, पांच ब्रॉन्ज मेडल जीते थे। घरेलू तंगी में आज वह भी सरकार से मदद मांग रहे हैं लेकिन सुनता कौन है! दिनेश के पिता ने कभी उनको इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भेजने के लिए कर्ज लिया था, आज उसे ही चुकाने के लिए पिता के साथ आइसक्रीम बेच रहे हैं। दिनेश चाहते हैं कि सरकार उन्हे नौकरी दे।
हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के जन्मदिन पर नेताओं की भाषण बाजी तो हर साल पूरा देश सुनता है लेकिन भारत के अनेक नामवर खिलाड़ियों की जमीनी हकीकतें कुछ और हैं। अंबाला के एक ऐसे ही हॉकी खिलाड़ी हैं तारा सिंह। उन्होंने नेशनल लेवल पर हॉकी खेलते हुए कई मेडल जीते, लेकिन आर्थिक तंगी में आज कुली का काम कर रहे हैं। सरकार से कोई मदद नहीं मिली तो परिवार का पेट भरने के लिए अंबाला कैंट रेलवे स्टेशन पर कुली बन गए। फिर भी उनका हॉकी से मोह भंग नहीं हुआ है। आज भी हर शाम अपने बच्चों को हॉकी खेलने के लिए स्टेडियम ले जाते हैं। अपने दिन यादकर उनकी आंखें भीग जाती हैं। तब वह गोल पर गोल दागा करते थे। उन्होंने वर्ष 1999 की नेशनल हॉकी प्रतियोगिता में हरियाणा के लिए खेलते हुए शानदार प्रदर्शन किया था। उनके जबर्दस्त खेल की बदौलत ही उनकी टीम ने कई मैच जीते थे। आज अपनी किस्मत को रोते हैं।
हरियाणा की एक ऐसी ही अर्जुन अवॉर्ड सम्मानित महिला खिलाड़ी सविता पूनिया। वह पिछले दस साल से भारतीय सीनियर टीम के साथ खेल रही हैं। उनको भी सरकार से नौकरी मिलने का इंतजार है। इस स्टार गोलकीपर को बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है। वह बताती हैं कि खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने उन्हें नौकरी का आश्वासन दिया है। उन्हे उम्मीद है कि नौकरी का इंतजार खत्म हो जाएगा तो वह पूरा ध्यान खेल पर लगाएंगी। उनको जब भी कोई पदक या पुरस्कार मिलता है, उनकी मां का पहला सपना होता है, अब तो नौकरी पक्की। वह कहती हैं कि एशियाड में हम भले ही गोल्ड नहीं जीत पाए, रजत पदक ने तो टीम के हौसले बुलंद किए ही।
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