तुर्की, ऑस्ट्रेलिया तक शांति का संदेश दे रही कश्मीरी नीसा की सूफी पेंटिंग
कविता हो या पेंटिंग, कला जब मानवता की हिफाजत में चित्रित होने लगती है, अपने आप उसका दर्जा बाकी हर काम से ऊंचा हो जाता है। सूफी पंथ में अटूट आस्था रखने वाली कश्मीर की एक ऐसी ही छात्रा बद्र-अ-नीसा भट्ट दुनिया को शांति का संदेश दे रही हैं। तुर्की, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में उनकी पैंटिग्स की एग्जीबिशन लग चुकी हैं।
बद्र-अ-नीसा कहती हैं कि उनकी पेंटिंग्स में आग, चंद्रमा जैसे प्रतीक भी आध्यात्मिकता के प्रतीक है। वह कश्मीरी रहस्यवादी हब्बाखून, लालाडेड को पढ़ती रहती हैं।
कश्मीरी छात्रा बद्र-अ-नीसा भट्ट की सूफी पंथ में अटूट आस्था है, जिसे वह अपनी कला के माध्यम से देश-दुनिया में पहुंचा रही हैं। कला का काम सिर्फ अलग-अलग रंगों से चित्रित कैनवास ही नहीं है बल्कि आध्यात्मिकता का स्पर्श इसे और जीवंत बनाता है, इससे कला का दुनिया से संवाद स्थापित होता है। उनके लिए कला प्रेम की एक भाषा है, जिसे वह रंगों के माध्यम से बोलती हैं। पेंटिंग उनका आदर्श रूप है। उन्हे इस बात का दुख है कि कश्मीर में कोई ऑर्ट गैलरी नहीं है, जिससे यहां के कलाकारों की राह कठिन हो जाती है।
वे अपने हुनर का आसानी से लोगों के बीच प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। वह भले ही सूफी पंथ पर विश्वास करती हों, वह दुनिया के सभी धर्मों का सम्मान करती हैं। अपनी पेंटिंग से वह विश्व शांति का संदेश देती हैं। अब तक तुर्की, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में उनकी पैंटिग्स की एग्जीबिशन लग चुकी है। सूफी कला में यद्यपि महिलाओं का कम ही उल्लेख आता है, लेकिन वह अपनी पैटिंग्स में सूफी महिलाओं को खुलकर रेखांकित करती हैं। उनको यह हुनर और कामयाबी अपने परिवार के सहयोग से मिली है। उनकी पेंटिंग में पूरा परिवार मदद करता है।
बद्र-अ-नीसा भट्ट ने सुल्तान उल अरिफेन वक्फ पब्लिक स्कूल से दसवीं तक और ग्रीन वैली एजुकेशनल इंस्टीट्यूट से अपनी बाकी स्कूली शिक्षा पूरी की है। उनकी पढ़ाई आज भी जारी है। उनकी पेंटिंग के अलावा सूफी साहित्य और सूफी संगीत में भी गहरी रुचि है। वह मौलाना रुमी से से प्रेरित हैं। वह कहती हैं कि मेरी सोच एक तरह का जुनून है, जो कलाकार या कवि को दैवी कृपा से मिलता है। मेरी सभी पेंटिंग्स और कविताओं से परे मुझे सूफी सच की तलाश रहती है। यह खोज ही मुझे अरबी और फारसी जैसी सुंदर भाषाओं से प्यार करना सिखाती है। इन दो भाषाओं के साहित्य से उनका आत्मिक लगाव है।
वान गोग उनका पसंदीदा कलाकार है। वह आदर्शवादी हैं। उनके काम को बेतुका या पागलपन भी कहा जा सकता है लेकिन यह हुनर उनके दिल को छूता है और उनकी पेंटिंग में कला के रूप में प्रस्फुटित होता है। इसके लिए वह लिखती भी हैं। वह कहती हैं कि यह ऐसा कुछ नहीं है, जिसे आप बनने के लिए चुनते हैं, यह तो आदमी के अंदर उसके जन्मदिन से ही होता है। अपनी सफलता का श्रेय वह अपने शिक्षक और माता-पिता को देती हैं, जिन्होंने इस हुनर को पॉलिश कर चमकाया है। अपना यह कौशल संवारने में उनको कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
बद्र-अ-नीसा कहती हैं कि उनकी पेंटिंग्स में आग, चंद्रमा जैसे प्रतीक भी आध्यात्मिकता के प्रतीक है। वह कश्मीरी रहस्यवादी हब्बाखून, लालाडेड को पढ़ती रहती हैं। इसके अलावा मौलाना रुमी, सरमद काशीनी, इब्न अरबी आदि सूफी संत उनके पसंदीदा हैं। उन्हे लगता है कि जीवन लिखने का सबसे आदर्श विषय है, वह कविता में हो या पेटिंग में। यह अहसास उनको रंग और खुशियों से भर देता है, कैनवास पर उनके चित्रों में आकार लेता है। उनकी कविताएं भी जीवन की ही व्याख्या हैं। उनकी रहस्यवादी पेंटिंग उनकी वास्तविक आत्मा का वर्णन करती है क्योंकि हम पहले इंसान नहीं बल्कि आध्यात्मिक प्राणी हैं। उन्हे हमेशा काले और लाल रंग में पेंट करना अच्छा लगता है, क्योंकि वे मुझे बेहतर तरीके से व्यक्त करने में मदद करते हैं। वह अपनी कला के माध्यम से एक बदलाव लाना चाहती हैं ताकि लोग अपनी आत्मा को समझ सकें और प्रकृति को और करीब से उसी तरह महसूस कर सकें, जैसे वह करती हैं।
सूफी पेंटिंग को अब हमारे देश में भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसको बढ़ावा देने के लिए हर साल आयोजित होने वाले सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में हाल ही में जब 11वां अंतर्राष्ट्रीय सूफी रंग फेस्टिवल शुरू हुआ तो जायरीनों की भीड़ उमड़ पड़ी। फिल खाना में लगी पेंटिंग प्रदर्शनी में इस्लामी तुगरे और पेटिंग के आकर्षक नमूने प्रदर्शित किए गए। कलाकारों ने लाइव सुलेख और पेंटिंग्स भी सिखाई। जायरीन ने इसमें खासी दिलचस्पी दिखाई। इस रंग फेस्टिवल में अजमेर से अक्सा खान, सना खान, सैयद नूर चिश्ती, आकाश सूर्यवंशी और ममता देवड़ा, मुंबई से शमीम कुरैशी, गुजरात से आसिफ रजा, अब्दुल कदीर, रुबीना मुल्तानी, उस्मान खत्री, शाहिद रहमान और शहाना गांधी, दिल्ली से कमर डागा, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अनीस सिद्दीकी, लखनऊ से मिस इरेना अकबर के अलावा चीन, कुवैत, दुबई, तुर्की और ईरान के भी कलाकारों ने भाग लिया।
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