कर्ज में डूबकर आत्महत्या करने वाले किसानों के बच्चों को पढ़ा रहे ये स्कूल
आत्महंता किसान की बेटी ने देखा बड़ी नौकरी का सपना
आज 'कोई परेशान है सास-बहू के रिश्तों से, किसान परेशान है कर्ज की किश्तों से।' कहाँ छिपा दें हम अपने हिस्से की शराफ़त, जिधर भी देखते हैं, बेईमान खड़े हैं। क्या खूब तरक्की कर रहा है देश देखिए, खेतो में बिल्डर, सड़कों पर किसान खड़े हैं। एक सर्वे के मुताबिक रोजाना कर्ज पीड़ित कम से कम तीन किसान आत्महत्या कर लेते हैं।
काब़िले तारीफ़ है कि यहां पढ़ने वाले बच्चे डॉक्टर-इंजीनियर बनने के सपने देखते हैं। इसी शांतिवन में पढ़-लिखकर बड़ी हुई हैं गेओराइ तहसील की पूजा किशन आऊटे। इस समय वह बीड ज़िला मुख्यालय पर कंप्यूटर विज्ञान से स्नातक कर रही हैं।
कोई कहता है कि 'मत मारो गोलियों से मुझे, मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ, मेरी मौत की वजह यही है कि मैं पेशे से एक किसान हूँ।' हमारा देश कृषि प्रधान कहा जाता है लेकिन कृषक ही हमारे देश में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं कर रहे हैं क्योंकि वे ही सबसे ज्यादा मेहनत करते हैं और उनकी ही आर्थिक स्थिति आज सबसे अधिक खराब है। आज 'कोई परेशान है सास-बहू के रिश्तों से, किसान परेशान है कर्ज की किश्तों से।' जब हम किसी किसान के दर्द या उसकी भावनाओं को व्यक्त करना चाहते हैं, उनके दुख-दर्द में शामिल होना चाहते हैं, तब या तो हम शायरी या कविता करने लगते हैं या उनके परिजनों को राहत पहुंचाने के किसी काम में जुट जाते हैं। इसी दर्द को भोग रहे महाराष्ट्र के शांतिवन की दास्तान सुनाते हुए ये पंक्तियां सहज ही मन से फूट पड़ती हैं- 'शुक्र है कि बच्चे अब शर्म से नही मरेंगे, चुल्लू भर पानी के लिए खुदा से दुआँ करेंगे।'
महाराष्ट्र के बीड ज़िले में शांतिवन एक ऐसे स्कूल का नाम है, जहां के ज्यादातर बच्चे उन ग़रीब किसान परिवारों से आते हैं, जिनके मां-बाप पिता कर्ज़ के कारण आत्महत्याएं कर चुके हैं। इस जिले में इस बार भी मानसून देर से आया था। यहीं का एक गांव है अरवि, जिसमें स्थित है शांतिवन स्कूल। जिले का एक और गांव है थलसेरा। यहां की वृद्धा लक्ष्मी बाई के पति ने कर्ज़ के चलते कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। बेटा शिवाजी खेत मज़दूरी बन गए। उनकी भी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। बहू नंदा अपने तीनों बच्चों को छोड़कर कहीं चली गई। अब लक्ष्मी बाई का किशोर वय पौत्र सूरज शिवाजी राव अपनी दोनों छोटी जुड़वां बहनों के साथ शांतिवन स्कूल में पढ़ता है।
इस स्कूल के संस्थापक और प्रधानाध्यापक हैं दीपक नागरोजे, जो बालाघाट क्षेत्र के रहने वाले हैं। वह बाबा आम्टे के विचारों से प्रभावित हैं। उन्होंने लगभग दो दशक पहले अपनी घरेलू साढ़े सात एकड़ जमीन पर शांतिवन स्कूल की स्थापना की थी। उस समय उनकी उम्र अठारह वर्ष थी। उन्ही दिनो वह बाबा आम्टे के सम्पर्क में आए थे। उनके क्षेत्र में हर दूसरे साल सूखा पड़ता है। इसी से इलाके किसान अक्सर आत्महत्याएं करते रहते हैं। ऐसे परिवारों के बच्चों को देखकर ही दीपक के मन में यह विचार आया था कि ऐसे बेसहारा बचपन के लिए सबसे बेहतर होगा, वह अपना जीवन इनकी पढ़ाई-लिखाई में लगा दें। और खुल गया शांतिवन स्कूल, बिना किसी सरकारी मदद के, नर्सरी से कक्षा दस तक। उन्होंने पहले ऐसे परिवारों की लिस्ट बनाई। उन पीड़ित परिवारों के लोगों से मिले। बच्चों से बातचीत की और उन्हें अपने स्कूल से जोड़ते चले गए। इस वक्त उनके स्कूल में लगभग एक हजार ऐसे बच्चे पढ़ रहे हैं। अब तो स्कूल का हॉस्टल भी बन गया है। स्कूल के ऐसे लगभग तीन सौ बच्चे, जिनके पिता आत्महत्याएं कर चुके हैं, वे हॉस्टल में रह रहे हैं, जहां उन्हें भोजन-कपड़े, पढ़ाई-लिखाई के सामान आदि की सुविधाएं भी स्कूल की तरफ से ही दी जा रही हैं।
काब़िले तारीफ़ है कि यहां पढ़ने वाले बच्चे डॉक्टर-इंजीनियर बनने के सपने देखते हैं। इसी शांतिवन में पढ़-लिखकर बड़ी हुई हैं गेओराइ तहसील की पूजा किशन आऊटे। इस समय वह बीड ज़िला मुख्यालय पर कंप्यूटर विज्ञान से स्नातक कर रही हैं। अन्य किसानों की तरह पूजा के पिता ने भी खेती के लिए कर्ज़ लिया था। वह कर्ज चुका नहीं पा रहे थे। उनके पास ज़मीन भी मामूली थी। पूजा के पिता तो भाई के साथ मिलकर जमीन के उस छोटे टुकड़े पर खेती करते रहते थे, ताऊ सारा पैसा ख़ुद रख लेते और कर्ज़ उनके पिता के मत्थे। जब पूजा दसवीं क्लास में पढ़ रही थीं, उनके पिता ने घर के सामने के कूएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली। वह कर्ज मांगने वालो से आजिज आ चुके थे। तब से पूजा की मां मजदूरी कर घर-गृहस्थी चला रही हैं। पूजा का सपना है कि वह पढ़-लिखकर किसी बड़ी कंपनी में जॉब मिलने के बाद मां को गांव से अपने साथ ले जाकर रखेंगी। ऐसे ही हालात पर किसी कवि ने लिखा है:
कहाँ छिपा दें हम अपने हिस्से की शराफ़त,
जिधर भी देखते हैं, उधर बेईमान खड़े हैं।
क्या खूब तरक्की कर रहा है देश देखिए,
खेतो में बिल्डर, सड़कों पर किसान खड़े हैं।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के एक सर्वे के मुताबिक पिछले पंद्रह सालों में अकेले पंजाब में बी करीब 14,667 किसानों तथा खेत मजदूरों ने आत्महत्याएं की हैं। यह सर्वे 2000-2015 के दौरान घर-घर जाकर कराया गया था। कृषि विश्वविद्यालय ने गैर सरकारी संगठनों तथा अन्य सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों के सहयोग से हाल ही में 'वर्ल्ड सुसाइड प्रीवेंशन डे' मनाया है। मालवा क्षेत्र के छह जिले लुधियाना, संगरूर, मानसा, बठिंडा, बरनाला, मोगा, लुधियाना में किए गए सर्वे से पता चला है कि कम से कम तीन किसान रोजाना आत्महत्या कर रहे हैं। करीब 83 फीसदी आत्महत्याएं कर्ज के कारण हो रही हैं। इसके अलावा 75 फीसदी आत्महत्या करने वालों में सीमांत, छोटे तथा मंझोले किसान हैं। किसान आत्महत्याएं रोकने के लिए उठाये गये कदमों के तहत नेशनल एग्रीकल्चरल साइंस की ओर से पीयू, तेलंगाना, मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय को लीड सेंटर चुना गया है।
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