एजुकेशन सेक्टर: छोटे राज्यों में बड़े-बड़े घोटाले
सामूहिक स्तर पर देश का शिक्षा विभाग इस तरह खेल रहा है पूरी युवा पीढ़ी के भविष्य के साथ...
ज्ञान के क्षेत्र में 'मां' जैसा ही एक पवित्र शब्द है 'शिक्षा', जो समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि, व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है। आज शिक्षा एक खास क्रिया-क्षेत्र में वर्गीकृत हो चुकी है, जिसका नाम है- एजुकेशन सेक्टर, जिस तरह देश के विभिन्न राज्यों से लगातार सूचनाएं मिल रही हैं, यह सेक्टर भी बड़े घोटालों का पर्याय बनता जा रहा है। राज्यों में सौ-दो सौ ही नहीं, दस हजार करोड़ रुपए तक घोटाले हो रहे हैं।
हमारा संकेत शिक्षा विभाग में भ्रष्टचार के आकड़ों का जखीरा परोसना नहीं, बल्कि हालात की उस संवेदनशीलता की ओर संकेत करना है, जो पूरी एक युवा पीढ़ी के भविष्य से सामूहिक स्तर पर खेल रही है।
देश-दुनिया में एक ओर तो एजुकेशन सेक्टर की कामयाबियां आसमान छूती दिखती हैं, मसलन, ऐपल कंपनी जल्द ही एजुकेशन से जुड़ा सॉफ्टवेयर लॉन्च करने जा रही है, सीबीएसई ने स्टूडेंट्स के लिए हेल्थ एंड फिजिकल एजुकेशन प्रोग्राम को अनिवार्य कर दिया है, मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर स्टूडेंट्स सुदृढ़ नींव पर विशेष जोर दे रहे हैं, दूसरी तरफ हमारे देश में इस सेक्टर के भीतर भ्रष्टाचारियों की बाढ़ आई है। वे बड़े-बड़े घोटालों को अंजाम देकर बेखौफ लगातार पूरी शिक्षा व्यवस्था की नींव खोखली करने में जुटे हुए हैं। देश का शायद ही कोई राज्य ऐसा हो, जहां के शिक्षा महकमे में घोटाले न हो रहे हों। कहीं प्रश्न पत्र छपाई के नाम पर सौ करोड़ का घोटाला तो कहीं पांचवीं तक की मान्यता की आड़ में 12वीं तक के बच्चों का अवैध ऐडमिशन, कहीं एसटीएफ और सीबीआई व्यापम घोटाले की जांच में जुटी हैं तो कहीं ढाई-ढाई लाख में जाली डिग्रियां बांट देने अथवा फर्जीवाड़ा कर हजारों अयोग्य छात्रों को एमबीबीएस बना देने के गड़बड़झाले। हमारे देश का एक बहुत छोटा सा राज्य हिमांचल प्रदेश। यहां तो एक अजीब ही तरह का खेल सामने आया है। नाहन क्षेत्र से मिली सूचना के अनुसार खुद शिक्षा विभाग शिक्षा यहां के तमाम मॉडल स्कूलों में प्रिंट रेट से तीन गुनी ज्यादा कीमत लेकर बैडमिंटन रैकेट सप्लाई कर रहा है।
छानबीन में पता चला है कि इसमें लाखों रुपए का घोटाला हुआ है। दस मॉडल स्कूलों के लिए सरकार की ओर से 42 लाख का बजट उपलब्ध करवाया गया, 21.50 लाख जारी कर दिए गए। एक ही सप्लायर ने सभी स्कूलों में सामान सप्लाई कर दिए। न कोई टेंडर हुआ, न रेट मांगे गए। खैर, यह तो एक छोटे से राज्य में छोटी से भ्रष्टाचार का मामूली नमूना भर है। ऐसे ही एक दूसरे छोटे राज्य छत्तीसगढ़ में प्रश्न पत्र छपाई के नाम पर 100 करोड़ का घोटाला उजागर हुआ है। खेल ये है कि छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग 35 रुपए की दर से प्रश्न पत्रों की छपाई करा रहा है जबकि अन्य राज्यों में यह दर महज सात रुपए बताई गई है। अब सोचिए कि किस तरह और कोई नहीं, बल्कि शिक्षा विभाग के अंदर बैठे लोग ही भ्रष्टाचार के खेल में अंधे हुए जा रहे हैं। ये सब ताजा मामले हैं। एजुकेशन सेक्टर के भ्रष्टाचार की पूरी सच्चाई बयान करने के लिए एक साल का वक्त भी कम पड़ जाएगा।
हमारा संकेत शिक्षा विभाग में भ्रष्टचार के आकड़ों का जखीरा परोसना नहीं, बल्कि हालात की उस संवेदनशीलता की ओर संकेत करना है, जो पूरी एक युवा पीढ़ी के भविष्य से सामूहिक स्तर पर खेल रही है। एक और छोटा सा पर्वतीय राज्य है उत्तराखंड। यहां शिक्षक भर्ती घोटाला राज्य का नाम रोशन कर रहा है। नई सरकार एनएच घोटाले की जांच की बात तो कर रही है, लेकिन शिक्षा विभाग के भर्ती घोटाले से बेखबर बनी हुई है क्योंकि इसमें कई बड़े माफिया के लपेटे में आने का अंदेशा है। जाली शैक्षणिक दस्तावेजों के आधार पर नौकरी कर रहे 41 टीचर पकड़े जाने के बाद संकेत मिले हैं कि इनकी संख्या पांच हजार तक हो सकती है। हाल ही एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने शिक्षा विभाग को 217 टीचरों के नामों की सूची सौंपते हुए इनके शैक्षिक प्रमाण पत्रों की जांच की मांग की थी।
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देश के तीन बड़े राज्य हैं, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश, लगता है, उसी आयतन में यहां के एजुकेशन सेक्टर में आए दिन खुलने वाले भ्रष्टाचार के मामले भी हैं। जहां योगी सरकार एक तरफ अपने एक साल के कार्यकाल की उपलब्धियां गिना रही है, दूसरी ओर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की हालत देश के भविष्य पर ही सवालिया निशान लगा रही है। राजधानी लखनऊ में ही बिना मान्यता के 10वीं, 12वीं तक की कक्षाएं चल रही हैं। यहां के इंडियन कॉन्वेंट पब्लिक स्कूल को मान्यता सिर्फ कक्षा पांच तक की है लेकिन मुद्दत से यहां 10वीं, 12वीं तक के एडमिशन लिए जा रहे हैं। यही नहीं, राजधानी के कई और स्कूल ऐसे हैं जो बिना मान्यता के चल रहे हैं।
अभी इसी सप्ताह प्रदेश के शाहजहांपुर बेसिक शिक्षा विभाग में 48 लाख के घोटाले का मामला प्रकाश में आया है। इसमें विभाग ने रिजल्ट कार्ड छपवाने के नाम पर लाखों रूपये के कमीशन का बन्दरबांट किया है। मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच मुद्दत से चल रही है और रसूखदार आरोपी छूटते जा रहे हैं। इसके बावजूद जांच अधिकारियों की संख्या घटती जा रही है। ढाई हजार से ज्यादा आरोपियों वाले इस मामले की जब से जांच चल रही है, 48 मौतें और लगभग दो हजार गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। इसमें मंत्री स्तर तक संलिप्तता पाई गई है। देखिए कि मध्य प्रदेश व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले का मामला 2012 में उजागर होता है, तीन साल तक चलता है, 15 जुलाई 2015 को इसकी जांच स्पेशल टास्क फोर्स से छीनकर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी जाती है, फिर भी आज तक जांच चल ही रही है।
बिहार में जाली डिग्री प्रमाणपत्र बांटने का घोटाला भी दशकों से सुर्खियों में है। वर्ष 1995 में मगध और दरभंगा विश्वविद्यालय के माध्यम से उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित अन्य राज्यों के बीएड कॉलेजों को मान्यता दी गई। वहां दो से ढाई लाख में बीएड की डिग्रियां बांटी जाती रहीं। मामले में बिहार निगरानी ब्यूरो ने 1999 में छह अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज कीं। इस मामले में शिक्षा मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव को जेल जाना पड़ा। शिक्षा राज्य मंत्री जीतनराम मांझी को अग्रिम जमानत लेनी पड़ी। 2005 में वही मांझी मुख्यमंत्री बन गए। पटना हाईकोर्ट ने 29 अप्रैल 2015 को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया, जिसमें बड़े पैमाने पर गड़बडि़यां उजागर हुईं। 2011 से 2013 के बीच 94 हजार शिक्षकों की बहाली के इस मामले में 40 हजार सर्टिफिकेट फर्जी पाए गए। तो इतने बड़े राज्य के ऐसे खतरनाक खेल को क्या कहिएगा। जो भी जानता है, माथा पकड़ लेता है।
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अब आइए, जरा दक्षिण की ओर मुखातिब होते हैं। पूरे देश को मालूम है महाराष्ट्र शिक्षा विभाग में दो सौ करोड़ का घोटाला। कुछ साल पहले तत्कालीन शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े ने अपने ही विभाग के इस हैरतअंगेज घोटालो को उजागर किया। जांच के लिए मुंबई उपनगर के कलेक्टर शेखर चन्ने की समिति बनी मगर हुआ क्या! इसके बाद और सुनिए। इसी राज्य में करीब दस हजार करोड़ रुपये का अब तक का सबसे बड़ा एजुकेशन घोटाला सामने आ चुका है। इसमें कई लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। इस केस में महाराष्ट्र के एक पूर्व मंत्री भी जांच के दायरे में हैं। और देखिए। महाराष्ट्र सरकार के दो विभागों के खजाने से ऐसे प्रति छात्र के नाम पर 48-48 हजार रुपये निकाल लिए गए, जिनको खुद पता नहीं कि वे किस कॉलेज में पढ़ते हैं। हुआ ये कि राष्ट्रपतिा महात्मा गांधी द्वारा वर्धा में स्थापित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की करीबी एक महिला ने इंडिया नॉलेज कॉर्पोरेशन और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के बीच एक अग्रीमेंट करवाया। इस अग्रीमेंट के बाद एक नई समिति का गठन हुआ जिसका नाम रखा गया- राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल।
समिति ने यूजीसी से पांच टेक्निकल कोर्सज की परमिशन ले ली। कोर्स करवाने का अधिकार राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ज्ञान मंडल को दे दिया गया। ज्ञान मंडल ने पूरे महाराष्ट्र में 262 स्टडी सेंटर दिखाए। छह-छह सौ छात्र हर सेंटर पर शो किए गए। जबकि थे एक भी नहीं। और 48-48 हजार रुपये हर छात्र के नाम पर समेट लिए गए। तो ये हो रहा है हमारे देश के शिक्षा विभाग में, जो लाखों, करोड़ों छात्रों के भविष्य के साथ एक गंभीर खिलवाड़ है, जिसे इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। फिर भी, इसी एजुकेशन सेक्टर में देश के तमाम शिक्षा विज्ञानी प्राणपण से जुटे हुए हैं।
पानीपत के गांव पूठर की दर्शना देवी जैसी शिक्षा विदुषी भी हैं, जो घर की गृहस्थी भूलकर दशकों से शिक्षा की लौ जगाए हुए हैं। इसी कड़ी के पुरखा नाम हैं मदनमोहन मालवीय, बी आर अम्बेडकर, लीलावती सिंह, सुन्दर लाल, अनंत पई, काका कालेलकर, गंगाशरण सिंह, गिजुभाई बधेका, यशपाल जैन आदि। पिछले दिनो तो प्रधानमंत्री शहीदों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा की घोषणा भी कर चुके हैं। हमारे समय में भी हर साल तमाम शिक्षक देश के लाखों छात्रों को राह दिखाते हुए राष्ट्रपति के हाथों हर सितंबर माह में राष्ट्र निर्माता के रूप में सम्मानित हो रहे हैं। आज भी हर साल 05 सितंबर का दिन देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1888-1975) के सम्मान में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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