4 सालों में 33 नदियों को नई ज़िंदगी देने वाला शख़्स
खत्म हो रही नदियों को बचाने की मुहिम में जुटा यह शख़्स, 4 सालों में 33 नदियों को दी नई ज़िंदगी
जिन लोगों की प्रदूषण फैलाने में सहभागिता है, उन्हें न अपने भविष्य का ख़्याल है और न ही दूसरों के भविष्य की परवाह। लेकिन ऐसे हालात में कुछ लोग हैं, जो ख़ुद की ज़रूरतों और काम चलाऊ ढर्रों से ऊपर उठकर, सभी के लिए सोचते हैं।
पिछले चार दशकों से लिंगराजु बतौर भूविज्ञानी, मौसम बदलने के विज्ञान और भारतीय नदियों की प्रकृति पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने माइनिंग सेक्टर से अपने करियर की शुरूआत की थी। कुछ वक़्त बाद उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें नदियों के संरक्षण की दिशा में काम करना चाहिए।
नदियों को देवी और मां मानना, यह प्रथा हमारे देश में बहुत पुरानी है। इसके बावजूद नदियों की जितनी दुर्गति हमारे देश में होती है, शायद ही किसी और जगह पर होती हो! जिन लोगों की प्रदूषण फैलाने में सहभागिता है, उन्हें न अपने भविष्य का ख़्याल है और न ही दूसरों के भविष्य की परवाह। लेकिन ऐसे हालात में कुछ लोग हैं, जो ख़ुद की ज़रूरतों और काम चलाऊ ढर्रों से ऊपर उठकर, सभी के लिए सोचते हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं, एक ऐसी ही शख़्सियत की; भूविज्ञानी (जिओलॉजिस्ट) लिंगराजु यले की।
पिछले चार दशकों से लिंगराजु बतौर भूविज्ञानी, मौसम बदलने के विज्ञान और भारतीय नदियों की प्रकृति पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने माइनिंग सेक्टर से अपने करियर की शुरूआत की थी। कुछ वक़्त बाद उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें नदियों के संरक्षण की दिशा में काम करना चाहिए।
चार सालों में 33 नदियों को दी नई ज़िंदगी
2013 से, लिंगराजु और उनकी टीम कुल 33 नदियों का पुनर्उद्धार कर चुकी है। पिछले 4 सालों से कर्नाटक की तीन प्रमुख नदियां; कुमुदावती, वेदावती और पलार अपनी नई जिंदगी जी रही हैं और इसका श्रेय लिंगराजु और उनकी टीम को जाता है। इसके अलावा लिंगराजु अपनी टीम के साथ मिलकर महाराष्ट्र में 25 नदियों, तमिलनाडु में 4 नदियों और केरल में 1 नदी, को नई जिंदगी दे चुके हैं।
लिंगराजु, कर्नाटक स्टेट रिमोट सेंसिंग ऐंड ऐप्लिकेशन सेंटर के पूर्व-निदेशक भी रह चुके हैं। फ़िलहाल लिंगराजु, नैचुरल वॉटर मैनेजमेंट के लिए जियो-हाइड्रॉलजिस्ट के तौर पर काम कर रहे हैं। लिंगराजु, इंटरनैशनल असोसिएशन फ़ॉर ह्यूमन वैल्यूज़ (आईएएचवी) के रिवर रीजुवेनेशन (नदियों का पुनर्उद्धार) प्रोजेक्ट के प्रमुख भी हैं। आईएएचवी, श्री श्री रविशंकर के आर्ट ऑफ़ लिविंग फ़ाउंडेशन का हिस्सा है। अपने एक ब्लॉगपोस्ट में वह कहते हैं कि नदियों का कायाकल्प, एक स्थायी उपाय है। उनका मानना है कि परिणाम धीरे-धीरे सामने आते हैं, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अब हमारी ग़लतियों से नदियां प्रदूषित न हों। इस सोच के साथ ही लगातार सूखती और प्रदूषित होती नदियों को बचाया जा सकता है।
ये भी पढ़ें: कभी दर-दर भटकता था ये इंजीनियर आज कमाता है करोड़ों
'प्रकृति की नकल से ही मिलेंगे स्थाई परिणाम'
उन्होंने एक महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि पिछले 10 दशकों से नदियों के वॉल्यून (आयतन) या पैटर्न (प्रारूप) में न के बराबर बदलाव हुए हैं। नदियों के सूखने का सीधा प्रभाव किसानों की आजीविका पर पड़ता है। लिंगराजु ने सुझाव दिया कि अगर सूखती नदियों को फिर से स्थापित करना है तो हमें 'प्रकृति की नकल' करनी होगी।
प्रकृति की नकल करने से लिंगराजु का अभिप्राय है कि हमें नदियों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्राकृतिक माध्यमों का सहारा ही लेना चाहिए, कृत्रिम तरीकों से लंबे समय तक बात नहीं बन सकती। लिंगराजु कहते हैं कि इसलिए ही वह मिट्टी के संरक्षण और नैचुरल वेजिटेशन पर ज़ोर देते हैं। लिंगराजु बताते हैं कि वह और उनकी टीम, 'प्रकृति की नकल' करने की कोशिश कर रहे हैं। लिंगराजु कहते हैं कि आर्टिफ़िशियल ग्राउंडवॉटर रीचार्ज प्रोग्राम एक लॉन्ग-टर्म सॉल्यूशन नहीं हो सकता, जब तक उसे नैचुरल वेजिटेशन का सहयोग न मिले। लिंगराजु कहते हैं कि हमें नैचुरल वेजिटेशन की मदद से बारिश के पानी को संरक्षित करना होगा।
क्या हैं नदियों के सूखने की प्रमुख वजहें?
लिंगराजु मानते हैं कि ज़्यादातर लोग इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करते हैं कि नदी एक सिस्टम है और पर्वत उनके बैंक हैं। इस तथ्य को आधार बताते हुए लिंगराजु ने भारत में नदियों के सूखने की प्रमुख वजहें बताईं। उन्होंने जानकारी दी कि पहाड़ों, घाटियों और समतल ज़मीनों पर प्राकृतिक वनस्पतियों में कमी, ग्राउंडवॉटर का आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल और मिट्टी की परत का लगातार बहना या ख़राब होना; ये सभी नदियों में पानी की कमी या गैरमौजूदगी के सबसे प्रमुख कारण हैं। एक और ख़ास कारक बताते हुए उन्होंने कहा कि विदेशी पौधों या पेड़ों को अधिक मात्रा में लगाने से पानी की खपत बढ़ती है, क्योंकि ये पेड़-पौधे बारिश में जितना पानी ज़मीन के अंदर संरक्षित करते हैं, उससे कहीं ज़्यादा पानी का इस्तेमाल वे ख़ुद कर लेते हैं।
काम को मिली पहचान और सराहना
लिंगराजु और उनकी टीम को असाधारण काम के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। उन्हें इनोवेटिक प्रोजेक्ट कैटिगरी में राष्ट्रपति पुरस्कार और एनएचआरडी की ओर से बेस्ट सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) प्रोजेक्ट का पुरस्कार मिल चुका है। लिंगराजु ऐंड टीम, फ़िकी (एफ़आईसीसीआई) वॉटर अवॉर्ड 2016 और भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा दिए जाने वाले एमजीएनआरईजीए पुरस्कार की दौड़ में फाइनल तक भी पहुंच चुकी है।
लिंगराजु सलाह देते हुए कहते हैं कि नदियों को बचाने के लिए उन्हें एक समग्र इकाई के रूप में देखना ज़रूरी है। नदियों की स्थिति पर अलग-अलग काम करके, परिदृश्य में बड़ा बदलाव लाना संभव नहीं। उन्होंने अपील की जल, जंगल (वन), माइनिंग और अन्य विभागों को साथ आकर काम करना चाहिए; अलग-अलग ऐक्शन प्लान्स बनाकर स्थिति में सुधार ला पाना बेहद मुश्क़िल काम है।
ये भी पढ़ें: करना है ज़िंदगी में कुछ बड़ा, तो सीखें इन बड़े लोगों से बड़ी-बड़ी बातें