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वॉटर एटीएम से पानी देने वाली लक्ष्मी राव की सफलता में छुपी है संघर्ष की अनोखी कहानी

आर्थिक तंगी के कारण नहीं बन बायी डॉक्टर... कम उम्र में हुआ विवाह और विवाह के बाद शुरू हुआ शिक्षा, नौकरी और उद्यम का नया संघर्ष .... नौकरी छोड़ लक्ष्मी राव ने स्थापित की निजी कंपनी और आज  एचआर कंस्लटेंसी... ट्रेवल के बाद पेश किया है  वाटर एटीएम... कम दाम में देशभर में साफ पानी मुहैया कराने का है लक्ष्य

वॉटर एटीएम से पानी देने वाली लक्ष्मी राव की सफलता में छुपी है संघर्ष की अनोखी कहानी

Monday December 14, 2015 , 8 min Read

असफलता के कई कारण होते हैं, लेकिन सफलता तक पहुंचने का केवल और केवल एक ही रास्ता होता है और वो है कठोर परिश्रम। अकसर लोग सफल व्यक्तियों को देखकर रातों रात उनके जैसा बनने का ख्वाब देखते हैं, वे चाहते हैं कि किसी भी तरह वे उनके जैसे सफल हो जाएं, जल्द सफलता पाने की इस चाहत में वे सभी शॉर्टकट का प्रयोग करते हैं और इस कारण अकसर उन्हें असफलता ही हाथ लगती है।सफलता वो चीज़ नहीं है, जिसे कोई एक रात में पा सकता है किसी भी व्यक्ति के सफल होने के पीछे एक कहानी छिपी होती है। एक ऐसी कहानी जिसमें उसकी मेहनत होती है, उसका संकल्प होता है और उसकी दृढ़ इच्छा शक्ति होती है। ‘ सोल्विक्स फोकस इंडिया प्राईवेट लिमिटिड ’ की संस्थापक पी लक्ष्मी राव की भी एक ऐसी ही कहानी है, जो उनकी कठोर मेहनत और जज्बे को बयां करती है।

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लक्ष्मी का जन्म विजयवाड़ा में हुआ लेकिन उनकी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश में हुई। लक्ष्मी हमेशा से डॉक्टर बनना चाहतीं थीं लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उनके लिए एमबीबीएस की महंगी कोचिंग लेना मुमकिन नहीं था, साथ ही पेड सीट के माध्यम से एडमीशन भी काफी महंगा पड़ था। इस कारण वे एमबीबीएस में एडमीशन नहीं ले पाईं। लक्ष्मी ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीएससी की।

लक्ष्मी परिवार में सबसे बड़ी बेटी थीं इसलिए घर की तरफ से शादी का भी दबाव पड़ने लगा। हालाकि वे उस समय शादी नहीं करना चाहतीं थी और आगे पढ़ना चाहतीं थीं, लेकिन अपने पिताजी के आग्रह करने पर वे शादी के लिए तैयार हो गई और 1994 में लक्ष्मी की शादी हो गई। शादी के बाद लक्ष्मी को काफी दिक्कते आईं। उनका ससुराल साउथ में था जहाँ के कल्चर और भाषा का लक्ष्मी को उतना ज्ञान नहीं था इसलिए वे थोड़ा अलग-थलग पड़ने लगीं। ससुराल की तरफ से लक्ष्मी को ज्यादा सहयोग नहीं मिला। उस दौरान लक्ष्मी ने नौकरी करने की सोची। हालाकि उन्हें इसमें भी परिवार का काफी विरोध झेलना पड़ा, लेकिन लक्ष्मी ने ठान लिया था कि अब वे पीछे नहीं हटेंगी। उन्होंने छात्रों को पढ़ाना शुरू किया और उनकी पहली सेलरी मात्र 1500 रुपये थी।

इस दौरान लक्ष्मी खुद भी शिक्षा ग्रहण करती रहीं। उनके अंदर पढ़ाई का जुनून था। उन्होंने सोचा कि अब वो आगे पढ़ाई जारी रखेंगी और एमबीए जरूर करेंगी। लक्ष्मी ने कंप्यूटर्स के काफी एडवांस कोर्सिस किए उसके बाद अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए उन्होंने ऐप्टेक में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। लक्ष्मी ने उसके बाद ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में नौकरी भी की उन्होंने मारूती कंपनी ज्वाइन की, जहाँ उनके बेहतरीन काम के लिए उन्हें बेस्ट सेल्स पर्सन का अवॉर्ड भी मिला, एक पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में अपनी प्रतिभा के बल पर अवॉर्ड जीतना काफी कठिन कार्य था। लेकिन ये लक्ष्मी का जुनून ही था, जो उन्हें कठिन से कठिन कार्य को सरलता से करवा रहा था। मारूती में काम करना लक्ष्मी के करियर के लिए काफी अच्छा साबित हुआ। उनके काम को काफी सराहा गया और इससे उन्हें काफी कॉन्फीडेन्स मिला।

लक्ष्मी बताती हैं कि वे अपने काम से बहुत खुश थीं। उनके पति भी इसी क्षेत्र में थे, लेकिन घर-गृहस्थी के साथ ऑटोमोबाइल सेक्टर में नौकरी करना आसान काम नहीं था क्योंकि त्योहारों में गाडियों की सेल ज्यादा हुआ करती थी, उस दौरान छुट्टियां नहीं मिलती थी जिस कारण उन्हें घर संभालाने में दिक्कत आने लगी। लक्ष्मी ने काफी सोचा, फिर एक दिन एकाएक उन्होंने नौकरी छोड़ दी और सिंब्यॉसिस, पुणे से एमबीए करने लगीं साथ ही उन्होंने एचआर की नौकरी करनी शुरू की सबसे पहले उन्हें बतौर एचआर एग्जीक्यूटिव की नौकरी मिली। फिर वे सीनियर एचआर हेड और उसके बाद ब्रांच हेड और फिर डायरेक्टर बनीं।

लक्ष्मी अब कुछ अपना काम करना चाहतीं थी। वे एचआर क्षेत्र की काफी बारीकियां जान चुकी थी। उन्होंने तय किया कि अब वे खुद की एक एच आर कंपनी बनाएंगी और फिर 2 सितंबर 2009 को उन्होंने ‘द फोकस इंडिया’ की नीव रखी ये एक सोल प्रोपरॉइटरशिप फर्म थी । फर्म ने शुरूआत से ही बेहतरीन काम करना शुरू किया और जल्द ही कंपनी के अच्छे काम की वजह से उनका नाम फैलने लगा। इस समय तक लक्ष्मी के पास केवल 4 लोगों की एक छोटी सी टीम थी, लेकिन लक्ष्मी जानती थीं कि उन्हें किस तरह से आगे बढ़ना है इसलिए कम स्टाफ में भी उन्हें कभी दिक्कत नहीं आई और सब काम काफी सुव्यवस्थित ढ़ंग से चलने लगा। लक्ष्मी ये भी जानती थीं कि उनके जैसी कई और कंपनियां पहले से ही मौजूद हैं, जिनकी उनसे सीधी प्रतिस्पर्धा है, लेकिन साथ ही उनको ये भी पता था कि ये कंपनियाँ कहाँ पर पीछे रह जाती हैं, इसलिए वे काफी फोकस करके और सुनियोजित तरीके के साथ आगे बढ़ रहीं थीं। भले ही उनके पास काफी कम स्टाफ था, लेकिन वे सभी काफी प्रोफेशनल थे और वहां एक बड़े कॉर्पोरेट ऑफिस की तरह ही काम होता था।

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2012 तक द फोकस इंडिया का काफी नाम हो चुका था और कई कंपनियां उनसे जुड़ने लगीं थी। तब लक्ष्मी ने सोचा क्यों न वे अपने काम को विस्तार दें और अपनी फर्म को एक कंपनी का रूप दें जिससे उन्हें अपने काम को बढ़ाने में मदद मिलेगी और वे इंटरनेशनल बाजार में भी जा सकेंगी । काफी विचार विमर्श के बाद उन्होंने अगस्त 2012 में सोल्विक्स फोकस इंडिया प्राइवेट लिमिटिड की नीव रखी इस प्रक्रिया में काफी पैसा लगना था और लक्ष्मी को उस समय पैसा उधार तक लेना पड़ा।

लक्ष्मी बताती हैं कि उस समय भी उनके पति ने उन्हें सलाह दी कि वे ये सब छोड़कर एक सुकून भरी नौकरी पकड़े, लेकिन लक्ष्मी ने उन्हें समझाया कि उन्होंने पहले भी काफी दिक्कते झेलते हुए अपने परिवार को संभाला है और वे ये काम आसानी से कर लेंगी। उसके बाद उनकी कंपनी धीरे-धीरे हर सेक्टर में एम्प्लाइज मुहैया करवाने लगी चाहे वो बीपीओ हो, बॉयोटेक्नॉलॉजी हो, रीयल एस्टेट हो, मेडिकल हो, मेनुफेक्चरिंग सेक्टर हो इसके अलावा भी काफी और सेक्टर्स में आज सोल्विक्स काम कर रहा है और छात्रों को नौकरियां प्रदान करवा रहा है।

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लक्ष्मी बताती हैं कि वे छात्रों को नौकरी के अलावा उन्हें उन नौकरियों को पाने के लिए ट्रेनिंग भी देती हैं वे खुद पूरी प्रकिया को मॉनीटर करती हैं और छात्र की क्षमता के हिसाब से उन्हें उनके लिए सबसे उपयुक्त कंपनियों में भेजती हैं।

इसके अलावा 2014 में लक्ष्मी ने गौर किया कि कॉर्पोरेट एंप्लाइज को काफी यात्रा करनी होती है और उन्हें सुविधा पहुंचाने के उद्देशय से उन्होंने ट्रेवल का भी काम शुरू किया है। कंपनी ट्रेवल से जुड़ी हर छोटी बड़ी सुविधा पहुंचाती है चाहे वो टिकट बुकिंग हो, होटल बुकिंग हो, टूर ऑपरेशन हो आदि। लक्ष्मी ने योरस्टोरी को बताया- 

"आज मैं जो भी हूं अपने पिताजी की वजह से हूं। मैं अपने पिता के काफी करीब थी मेरे पिता जी का कैंसर के कारण 2009 में देहांत हो गया था। तब से मेरे मन में था कि मैं हेल्थकेयर के क्षेत्र में भी जरूर कुछ योगदान दूं"। 

वे बताती हैं कि पानी कई बीमारियों की जड़ होता है और साफ पानी की देश भर में कमी है। साफ पानी पर हर देशवासी का हक है जो उसे नहीं मिल पा रहा है और इसी को देखते हुए नवंबर 2015 में उन्होंने वॉटर एटीएम की शुरूआत की। वॉटर एटीएम के जरिए लक्ष्मी कम दाम में देशवासियों को साफ पानी मुहैया करवाना चाहतीं हैं। इसकी कीमत भी काफी कम रखी गई है ताकि एक आम आदमी भी इसे खरीद सके। एक लीटर साफ पानी की कीमत मात्र 5 रुपये है। वॉटर एटीएम को ऑफिसिज, स्कूल्स, हॉस्पीटल्स, रेलवे स्टेशन के अलावा भी कई जगह लगाया जा सकता है। लांचिंग के साथ ही कंपनी को बेंगलूरू की एक कंपनी से 1000 वॉटर एटीएम का ऑर्डर भी मिल चुका है।

लक्ष्मी कहती हैं कि उनका उद्देश्य इसे भारत के गांवों तक पहुंचाना है, जहां साफ पानी की किल्लत है। लोगों को मजबूरी में गंदा पानी पीना पड़ता है और वे लोग बीमार पड़ जाते हैं। इस प्रोजेक्ट का मकसद मुनाफा कमाना नहीं बल्कि देश के लोगों को हेल्दी रखना है। लक्ष्मी का मानना है कि अगर भारत के लोग स्वस्थ होंगे तभी देश तरक्की कर पाएगा।

आज लक्ष्मी के पास एक बहुत डेडिकेटिड टीम है जिस पर लक्ष्मी पूरा भरोसा करती हैं। वे जानती हैं कि उनकी टीम का एक एक सदस्य काफी मेहनती हैं। अपनी सफलता में वे अपनी टीम का भी अहम योगदान मानती हैं।

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भारत के अलावा अब सोल्विक्स इंडिया दुबई में भी काम कर रही है। लक्ष्मी बताती हैं कि बिजनेस करने के पीछे उनका उद्देश्य केवल मुनाफा कमाना नहीं है बल्कि उनके लिए उनके क्लाइंट्स की संतुष्टि सबसे अहम है। इसके अलावा वॉटर एटीएम जैसे प्रोजेक्ट के जरिए वे आम लोगों को जुड़ना चाहती हैं और देश को स्वस्थ रखने की दिशा में अपना योगदान देना चाहती हैं।