आंवले की खेती करके एक अॉटो ड्राइवर बन गया करोड़पति
राजस्थान के किसान अमर सिंह ने साबित कर दिया कि पैसे पेड़ में फलते हैं...
57 साल के अमर सिंह उन तमाम किसानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो धान-गेहूं से अलग हटकर बागवानी के जरिए पैसे कमाने की चाहत रखते हैं। अमर सिंह के काम और काबिलियत को देखकर उनकी सफलता के किस्से आस-पास के इलाकों में सुनाए जाते हैं, कि किस तरह एक अॉटो ड्राइवर करोड़पति बन गया...
![image](https://images.yourstory.com/production/document_image/mystoryimage/tgoifjy8-yourstory-Amar-Singh.jpg?fm=png&auto=format)
1, 200 रुपये के 60 पौधे लगा कर कोई कैसे करोड़पति बन सकता है, इसका अविस्मरणीय उदाहरण हैं राजस्थान के अमर सिंह।
राजस्थान के एक ऑटो ड्राइवर किसान ने सिर्फ 1,200 रुपयों से आंवला के 60 पौधे रोपे थे आज उन्हीं पेड़ों से वह 26 लाख का टर्नओवर कमा रहे हैं। इन पेड़ों को बड़ा होने में 22 साल लग गए, लेकिन उनकी मेहनत आज रंग ला रही है।
57 साल के अमर सिंह उन तमाम किसानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो धान-गेहूं से अलग हटकर बागवानी के जरिए पैसे कमाने की चाहत रखते हैं। अपने काम और काबिलियत के चलते अमर सिंह को जानने वाले लोग उनकी सफलता के किस्से सुनाते नहीं थकते। अमर सिंह की मदद करने वाले ल्यूपिन ह्यूमन वेलफेयर ऐंड रिसर्च फाउंडेशन के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर सीताराम गुप्ता बताते हैं, कि अमर सिंह की बदौलत आज उनके आस-पास के तमाम लोगों को रोजगार मिलता है और महिलाएं भी उनके इस काम के जरिए सशक्त हो रही हैं।
गुप्ता कहते हैं कि हमें अमर सिंह जैसे तमाम किसानों की जरूरत है। अमर सिंह के सफल किसान बनने की कहानी थोड़ी घुमावदार और रोचक भी है।
अमर सिंह के पिता वृंदावन सिंह का देहांत 1977 में हो गया था और इस वजह से उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। उस वक्त उनके दो भाई और एक बहन काफी कम उम्र में थे, जिसके चलते घर चलाने का सारा जिम्मा उनके ऊपर आ गया।
अमर सिंह का पैतृक पेशा खेती का था और वह इसी के जरिए अपना व अपने घरवालों का पेट पालते थे। उस वक्त खेती से कुछ खास आमदनी नहीं होती थी, बस घर के लिए खाने भर का अनाज पैदा हो जाता था। इस वजह से अमर सिंह का मन खेती में नहीं लग रहा था। इसी लिए उन्होंने ऑटो चलाना शुरू कर दिया। हालांकि इसमें भी उनका मन नहीं लगा और 1985 में वह अपने ससुराल के एक परिजन के यहां गुजरात में अहमदाबाद पहुंच गए। वहां पर मणिनगर में उन्होंने रिश्तेदार की मदद से ही एक फोटो स्टूडियो खोला।
![image](https://images.yourstory.com/production/document_image/mystoryimage/u6c2k6qw-Amla-Farming.jpg?fm=png&auto=format)
अमर सिंह गुजरात में फोटो स्टूडियो का काम देख रहे थे और यहां गांव में उनकी मां सोमवती देवी मजदूरों की मदद से खेती कर रही थीं। यहां वे सरसों, गेहूं और चने की खेती करती थीं। उनसे अकेले खेती का काम नहीं संभाला जा रहा था इसलिए उन्होंने अमर को पत्र लिखकर वापस गांव बुला लिया। लेकिन गांव पहुंचकर अमर सिंह ने खेती करने की बजाय एक महिंद्रा वैन ले ली और उसे लोकल में ही चलाने लगे।
एक रोचक किस्सा शेयर करते हुए अमर सिंह बताते हैं, कि 1995 में एक दिन सुबह वह सवारी को ढो रहे थे। रास्ते में सड़क पर उन्हें अखबार का एक टुकड़ा पड़ा हुआ मिला। उस अखबार में आंवले की खेती के बारे में जानकारी दी हुई थी। अखबार में छपी जानकारी से अमर सिंह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आंवला की खेती करने का निश्चय कर लिया।
उन्होंने आस-पास से जहां से भी संभव हो सका आंवले की खेती के बारे में और जानकारी जुटानी शुरू कर दी। भरतपुर में बागवानी विभाग में एडवांस पेमेंट करने पर उन्हें आंवला के 60 पौधे मिल गए। उन्होंने इसे अपनी 2 एकड़ की जमीन पर रोप दिया। एक साल बाद उन्होंने 70 पौधे और खरीदे और उन्हें भी रोप दिया। उनकी जमीन उपजाऊ किस्म की थी और आसपास पानी का अच्छा स्रोत भी था। इस कारण सिर्फ 4-5 साल के भीतर ही उनके सारे पेड़ तैयार हो गए और कुछ ही दिनों में फल भी देने लगे। कुछ पेड़ों में 5 किलो तक आंवला निकलता था तो कुछ में 10 किलो तक। इससे सिर्फ एक साल में ही उन्हें 7 लाख की आमदनी हुई। आंवले की अच्छी मार्केट तलाशने के लिए वे मथुरा, भुसावर और भरतपुर गए जहां पर आंवले के मुरब्बे का उत्पादन होता था।
![image](https://images.yourstory.com/production/document_image/mystoryimage/piupohgs-Amla.jpg?fm=png&auto=format)
2005 में अमर ने पांच लाख के निवेश से खुद की एक फैक्ट्री खोल ली। इसके लिए उन्हें ल्यूपिन फाउंडेशन की ओर से 3 लाख रुपये भी मिले। उन्होंने पहले साल लगभग 7,000 किलो आंवले का मुरब्बा तैयार किया। इस काम में उन्होंने गांव की महिलाओं की मदद ली। उन्होंने 'अमृता' ब्रैंड से मुरब्बा बेचना शुरू किया और राजस्थान के कुम्हेर, भरतपुर, टोंक, डीग, मंदवार महवा जैसे इलाकों में मुरब्बा बेचा।
मार्केट में पहुंच कर अमर सिंह ने देखा कि बड़े आंवला 10 रुपये किलो तक बिक जाते हैं वहीं छोटे आंवले की कीमत सिर्फ 5 या 8 रुपये ही रहती है। कुछ दिनों तक तो उन्हें आंवले की अच्छी कीमत मिली लेकिन धीरे-धीरे मांग घटने के कारण उन्हें पैसा कम मिलने लगा। उनके पास व्यापारियों को कम दाम में आंवला देने के अलावा और कोई और विकल्प भी नहीं था। इस स्थिति के कारण वे धीरे-धीरे वे निराश होने लगे। फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न खुद की फूड प्रोसेसिंग फैक्ट्री लगाई जाए। दवा बनाने वाली कंपनी ल्यूपिन के एनजीओ ह्यूमन वेलफेयर एंड रिसर्च फाउंडेशन की तरफ से उन्होंने मुरब्बा बनाने की ट्रेनिंग ली।
2005 में अमर ने पांच लाख के निवेश से खुद की एक फैक्ट्री खोल ली। इसके लिए उन्हें ल्यूपिन फाउंडेशन की ओर से 3 लाख रुपये भी मिले। उन्होंने पहले साल लगभग 7,000 किलो आंवले का मुरब्बा तैयार किया। इस काम में उन्होंने गांव की महिलाओं की मदद ली। उन्होंने 'अमृता' ब्रैंड से मुरब्बा बेचना शुरू किया और राजस्थान के कुम्हेर, भरतपुर, टोंक, डीग, मंदवार महवा जैसे इलाकों में मुरब्बा बेचा। उनका बिजनेस अच्छा खासा बढ़ता ही गया। वे इसे और बढ़ाने के लिए लोन चाहते थे लेकिन बैंकों में ब्याज दर अधिक होने की वजह से वे एक बार फिर से ल्यूपिन फाउंडेशन के पास गए। ल्यूपिन फाउंडेशन ने उनकी खूब मदद की। उन्हें न केवल सिर्फ 1 प्रतिशत ब्याजदर पर लोन मिला बल्कि फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से फूड का लाइसेंस भी मिला। उन्हें काफी कम समय में ही यह लोन भी चुकता कर दिया।
धीरे-धीरे अमर सिंह का बिजनेस बढ़ता ही गया और 2015 में उन्होंने 400 क्विंटल आंवले का उत्पादन किया। 2012 में अमर सिंह ने अपनी यूनिट का फिर से रजिस्ट्रेशन कराया और कंपनी का नाम 'अमर मेगा फूड प्राइवेट लिमिटेड' रख दिया। उनकी कंपनी में आंवले उगाने से लेकर, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन के काम पर उनकी पूरी नजर रहती है। हर साल लगभग 26 लाख से अधिक रुपये का टर्नओवर होने के बावजूद अमर सिंह काफी सादगी से जिंदगी बिता रहे हैं। उन्होंने अपने पुराने वाले घर की मरम्मत कराई और डिलिवरी के लिए एक नया वाहन भी लिया। उनका बड़ा बेटा बीए कर रहा है और छोटा बेटा अभी बारहवीं में है। उनकी बेटी अभी बीएड कर रही है। अमर सिंह की पत्नी भी उनके काम में पूरा सहयोग देती हैं।
आंवला उगाने के साथ ही बची हुई जमीन पर वह मिर्च, टमाटर और आलू की खेती भी करते हैं। अमर सिंह ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर यह साबित कर दिया है कि पैसे पेड़ पर भी फल सकते हैं।