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एक गुमनाम हीरो: इंडियन एयरफोर्स के इकलौते परम वीर चक्र विजेता निर्मलजीत सिंह सेखों

एक गुमनाम हीरो: इंडियन एयरफोर्स के इकलौते परम वीर चक्र विजेता निर्मलजीत सिंह सेखों

Friday September 08, 2017 , 5 min Read

जिस वक्त सेखों वीरगति को प्राप्त हुए उस वक्त उनकी उम्र महज 28 साल थी। उससे कुछ ही महीने पहले उनकी शादी हुई थी। निर्मलजीत सिंह सेखों की वीरता की वजह से उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

परमवीर चक्र विजेता निर्मलजीत सिंह सेखों

परमवीर चक्र विजेता निर्मलजीत सिंह सेखों


 निर्मल अपने पिता से काफी प्रभावित थे और शायद यही वजह थी कि उन्होंने भी एयरफोर्स में जाकर देश की सेवा करने का सपना देखा। लेकिन उस वक्त वह काफी छोटे थे। 

पाकिस्तानी एयरफोर्स की तरफ से ज्यादा विमान थे इसलिए सेखों को अपनी जान गंवानी पड़ी और उनका विमान जम्मू कश्मीर के बडगाम में ध्वस्त हो गया। उनकी इस वीरता को पाकिस्तान की एयरफोर्स के रिटायर्ड एयर-कोमोडोर कैसर तुफैल ने अपनी किताब ग्रेट एयर बैटल्स ऑफ पाकिस्तान में लिखा है।

16 दिसंबर 1971 को भारतीय सैनिकों ने अपने अदम्य साहस से पाकिस्तान को पराजित कर दिया था। इस युद्ध में कई सैनिकों ने अपनी जान की आहूति दे दी। उस युद्ध को लगभग 46 साल बीत रहे हैं, लेकिन उन सैनिकों की शहादत को देश अब भी याद करता है। उसी युद्ध में इंडियन एयरफोर्स के पहले और इकलौते परमवीर चक्र विजेता निर्मलजीत सिंह सेखों ने भी अपनी जान गंवा दी थी। आज हम आपको उन्हीं शहीद निर्मलजीत की कहानी बताने जा रहे हैं, जो इंडियन एयरफोर्स के असली हीरो और सितारे रह चुके हैं।

पंजाब के लुधियाना जिले में इसेवाल ढाका गांव में निर्मलजीत का जन्म 17 जुलाई सन 1943 को हुआ था। उनके पिता त्रिलोचन सिंह सेखों इंडियन एयरफोर्स में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे। निर्मल अपने पिता से काफी प्रभावित थे और शायद यही वजह थी कि उन्होंने भी एयरफोर्स में जाकर देश की सेवा करने का सपना देखा। लेकिन उस वक्त वह काफी छोटे थे। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एयरफोर्स के लिए तैयारी शुरू कर दी। उनकी मेहनत रंग लाई और 4 जुलाई 1967 को उन्हें एयरफोर्स में बतौर फ्लाइंग ऑफिसर की जिम्मेदारी भी मिल गई।

1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच भयंकर युद्ध छिड़ा और पाकिस्तान की एयरफोर्स ने भारत के एय़रफोर्स कैंपों पर हमला करने की योजना बनाई। अमृतसर, पठानकोट और श्रीनगर जैसे एयरफोर्स स्टेशनों पर हमला करने की पाकिस्तान की योजना थी। श्रीनगर में ही सेखों की तैनाती थी। वह 18वीं स्क्वैड्रन का जिम्मा संभाल रहे थे। उन्हें अपने सीनियर और दोस्त गुमान के साथ फाइटर प्लेन उड़ाने की जिम्मेदारी मिली। गुमान ने ही सेखों को फाइटर एयरक्राफ्ट उड़ाने की ट्रेनिंग दी थी और उसके प्रति प्रेम पैदा किया था। उस वक्त सेखों को हर कोई भाई के नाम से जानता और बुलाता था।

14 दिसंबर की सुबह पाकिस्तानी एयरफोर्स के छह F-86 सैबर जेट भारत की श्रीनगर एयरफोर्स कैंप को निशाना बनाने के लिए पेशावर से उड़ान भर चुके थे। पाकिस्तान की तरफ से विंग कमांडर चंगेजी अपने फ्लाइट लेफ्टिनेंट दोतानी, अंद्राबी, मीर, बेग और युसुफजई के साथ भारत की ओर हमला करने के लिए बढ़ रहे थे। ठंड की धुंध का फायदा उठाते हुए ये विमान भारतीय सीमा को पार करके अंदर दाखिल हो चुके थे। सैबर विमानों की वजह से किसी को इसके बारे में मालूम भी नहीं चल पाया था। उस वक्त श्रीनगर में भारतीय सेना के पास कोई रेडार नहीं था जिससे कि किसी हवाई घुसपैठ का पता चल सके। कुछ सूत्रों से घुसपैठ का पता चलता था।

भारत पाक युद्ध में इस्तेमाल हुआ Gnit लड़ाकू विमान

भारत पाक युद्ध में इस्तेमाल हुआ Gnit लड़ाकू विमान


आजादी के बाद से अब तक हुई लड़ाई में सेना के 21 जवानों को मरणोपरांत व जीवित रहते हुए देश के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है।

जिस वक्त पाकिस्तानी वायुसैनिक भारत में घुसपैठ कर रहे थे उसी वक्त संयोग से भारतीय वायुसेना के जवानों को इसका पता चला। पता चलते ही पूरे एयरबेस कैंप में इसकी चेतावनी दे दी गई। तुरंत ही गुम्मन और 'भाई' सेखों ने भागते हुए एयर ट्रैफिक कंट्रोल से फाइटर प्लेन उड़ाने की जिम्मेदारी मांगी। लेकिन रेडियो फ्रीक्वेंसी सही न होने के कारण उनका एटीसी से संपर्क नहीं हो पाया। अब दोनों के पास कोई और चारा भी नहीं था। इसी असमंजस में दोनों ने सिर्फ दो जोड़ी बमों के साथ फाइटर प्लेन को रनवे पर लेकर निकल गए।

सेखों ने जैसे ही उड़ान भरी वैसे ही उन्होंने देखा कि उनके पीछे पाकिस्तानी प्लेन उड़ रहे हैं। इसी वक्त पाकिस्तानी विंग कमांडर चंगेजी ने भारतीय एयरबेस पर हमला करने का आदेश दे दिया। थोड़ी देर के लिए सेखों का ध्यान हटा और वैसे ही पाकिस्तानी वायुसैनिक दोतानी ने हमला कर दिया। पहले के एयरक्राफ्ट में अब हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें नहीं थीं। इसीलिए सेखों पाकिस्तानी सेना पर हमला नहीं कर पा रहे थे। लेकिन फिर भी सेखों ने पाकिस्तानी सेना के दो विमानों को ध्वस्त कर दिया। पाकिस्तानी एयरफोर्स की तरफ से ज्यादा विमान थे इसलिए सेखों को अपनी जान गंवानी पड़ी और उनका विमान जम्मू कश्मीर के बडगाम में ध्वस्त हो गया। उनकी इस वीरता को पाकिस्तान की एयरफोर्स के रिटायर्ड एयर-कोमोडोर कैसर तुफैल ने अपनी किताब ग्रेट एयर बैटल्स ऑफ पाकिस्तान में लिखा है।

जिस वक्त सेखों वीरगति को प्राप्त हुए उस वक्त उनकी उम्र महज 28 साल थी। उससे कुछ ही महीने पहले उनकी शादी हुई थी। निर्मलजीत सिंह सेखों की वीरता की वजह से उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। वह पहले और इकलौते ऐसे एयरफोर्स के वीर थे जिन्हें भारत के सर्वोच्च गैलेंट्री अवॉर्ड से नवाजा गया। आजादी के बाद से अब तक हुई लड़ाई में सेना के 21 जवानों को मरणोपरांत व जीवित रहते हुए देश के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है। निर्मल जीत जैसे सैनिक हमारी फौज के युवाओं के साथ ही देश के अन्य युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।

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