आॅस्ट्रेलिया संसद में दक्षिण-एशियाई मूल की अकेली प्रतिनिधि लीसा सिंह का सफरनामा
वे वर्ष 1902 में कलकत्ता छोड़कर गन्ने के खेतों में काम करने के लिये फीजी पहुंचे एक बंधुआ मजदूर की प्रपौत्री हैं। ऐसा माना जाता है कि खुद को राजपूत वंश की संतान मानने वाली सीनेटर लीसा सिंह आस्ट्रेलियाई संसद में पहुंचने वाली दक्षिण-एशियाई मूल की पहली प्रतिनिधि हैं। होबार्ट, तस्मानिया में पैदा हुई और पली-बढ़ी लीसा वर्ष 1960 से 1970 तक फीजी की संसद के सांसद रहे राम जती सिंह की पौत्री हैं जिनका फीजी को स्वतंत्रता दिलवाने में एक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
लीसा कहती हैं, ‘‘मेरे पिता वर्ष 1963 में पढ़ने के लिये फीजी आए। मैं एक भारतीय-फीजी पिता और एक एंग्लो-आॅस्ट्रेलियाई माता की संतान के रूप में बड़ी हुई। मैं हिंदू और कैथोलिक दोनों ही धर्मों की समझ और शिक्षा के साथ बड़ी हुई हूँ।’’
वर्ष 2003 में ईराक युद्ध के खिलाफ उनकी सक्रियता को देखते हुए उन्हें वर्ष 2004 में होबार्ट की नागरिकता प्रदान की गई। दो बच्चों की माँ, लीसा ने यूनिवर्सिटी आॅफ तस्मानिया से सोशल जियोग्राफी में आॅनर्स के साथ कला में स्नातक करने के अलावा मैक्वायर यूनिवर्सिटी से मास्टर आॅफ इंटरनेशनल रिलेशंस किया है।
लीसा कहती हैं कि वे हमेशा लोगों की मदद करने के साथ-साथ उनका जीवन स्तर सुधारने की दिशा में हमेशा से ही सक्रिय रही हैं। इसके अलावा वे तस्मानियन वर्किंग वोमेन्स सेंटर की निदेशक भी रही हैं जहां वे पेड पेरेंटल लीव और समान वेतन के लिये मुहिम चलाती रहीं।
इसके अलावा उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ और वाईडब्लूसीए तस्मानिया के अध्यक्ष की भूमिका का भी बखूबी निर्वहन किया है। लीसा कहती हैं, ‘‘मैंने महिलाओं के आंदोलन में एक सक्रिय भूमिका निभाने के अलावा होबार्ट वोमेन हेल्थ सेंटर और राज्य सरकार की सलाहकार परिषद की बोर्ड सदस्य के रूप में भी काम किया है।’’
आॅस्ट्रेलियाई लेबर पार्टी में शामिल होने की बाबत उनका कहना है कि कोई भी व्यक्ति जिसकी समानता, निष्पक्षता, सामाजिक न्याय और स्थिरता के प्रगतिशील मूल्यों में विश्वास है उसके लिये यह पार्टी एक प्राकृतिक क्षेत्र है।
लीसा ने तस्मानियाई राज्य की संसद में एक मंत्री के रूप में कार्य किया। वर्ष 2011 में लीसा ने सीनेट की फ्रंट बेंच में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और जल के शैडो पार्लियमेंट्री सेक्रेटरी के रूप में काम करना प्रारंभ किया।
लीसा कहती हैं, ‘‘मैं विभिन्न संसदीय समितियों के साथ काम करने के अलावा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के साथ आॅस्ट्रेलिया में बहुसंस्कृतिवाद और सहायता और विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका का अध्ययन करने के लिये हुई जांच की सदस्य रही हूँ। मैं आॅस्ट्रेलिया के लार्ड गवर्नमेंट एशियन सेंचुरी व्हाइट पेपर के लिये कोकस लाइज़न को-आॅर्डिनेटर भी रह चुकी हूँ।’’
वे आॅस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीय मूल के लोगों के लिये होली, दीपावली, नवरात्र सहित विभिन्न त्यौहारों के दौरान वहां समारोह इत्यादि करके मनवाने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गिलार्ड सरकार के दौरान उन्होंने आॅस्ट्रेलिया में निवास कर रहे भारतीय मूल के लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों के मुद्दे पर चर्चा करने के लिये उपमहाद्विपीय मंत्रालयी समिति की अध्यक्षता भी कर चुकी हैं।
इसके अलावा लीसा लोवी इंस्टीट्यूट, आॅस्ट्रेलिया-इंडिया इंस्टीट्यूट के अलावा भारत और आॅस्ट्रेलिया में स्थित आॅस्ट्रेलिया-इंडिया राउंडटेबल की भी सदस्य रही हैं। लीसा कहती हैं, ‘‘मैंने बीते वर्ष विदेश मामलों के शैडो मंत्री तान्या प्लिबरसेक के साथ भारत की यात्रा की और भारत-आॅस्ट्रेलिया संबंधों को लेकर उच्च स्तरीय बैठकों की भी साक्षी बनी।’’
एक तरफ जहां उनकी उपलब्धियों की सूची काफी लंबी है लीसा ने अपने जीवन में अनंत चुनौतियों का भी सामना किया है। लीसा कहती हैं कि पढ़ने वाले दो युवा बेटों की परवरिश करना और अपने लिये एक करियर का निर्माण करना ऐसी चुनौतियां हैं जिनमें दृढ़ संकल्प और अनुशासन की सख्त आवश्यकता है। उनके सामने एक और चुनौती एक राजनीतिक दल का भाग होना और चुनौतियों का सामना करना रहा खासकर तब जब शरणार्थी नीति को लेकर उनके विचार अपनी पार्टी के विचारों और नीतियों से जुदा हों।
वे कहती हैं कि उनके सामने एक और चुनौती एक ऐसी संसदीय प्रणाली का हिस्सा बनना रहा है जिसमें अभी भी महिलाओं के मुकाबले पुरुषों का वर्चस्व है। हालांकि लैंगिक पूर्वाग्रह प्रत्यक्ष नहीं दिखते लेकिन लीसा का कहना है कि यह कहना उचित होगा कि रास्ते में बाधाएं अभी मौजूद हैं जिसके चलते महिलाओं के लिये राजनीतिक मान्यता प्राप्त करना पुरुषों के मुकाबले अधिक कठिन काम है।
लीसा कहती हैं, ‘‘लैंगिक समानता और समान अवसर के लिये लगातार संघर्ष करना मेरे राजनीतिक मिशन का एक अभिन्न भाग हैं। मेरी अपनी पार्टी भी लैंगिक असामनता और महिलाओं की भूमिका को बढ़ावा देने को लेकर काफी गंभीर है।’’ वर्तमान में संसद में लिबरल पार्टी के 22 प्रतिशत की तुलना में आॅस्ट्रेलियाई लेबर पार्टी की 45 प्रतिशत सदस्य महिला हैं।
इसके अलावा लीसा भारत-आॅस्ट्रेलिया के संबंधों को लेकर भी काम कर रही हंै। वे कहती हैं कि एक बहुसांस्कृतिक राष्ट्र होने के चलते आॅस्ट्रेलियाई संसद के लिये विविध होना बहुत आवश्यक है। लीसा कहती हैं, ‘‘मुझे इस बात का भान है कि कई भारतीय-आॅस्ट्रेलियाई मुझे आॅस्ट्रेलियाई राजनीति में अपनी आवाज के रूप में देखने के अलावा अपनी संस्कृति और समाज के प्रतिनिधि के रूप में देखते हैं और यह मेरे लिये बहुत गर्व की बात है। मैं भारत-आॅस्ट्रेलिया संबंधों को लेकर काफी सक्रिय रही हूँ जिसे मैं परस्पर-सांस्कृतिक प्रशंसा और सहयोग के निर्माण के लिये एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में देखती हूँ।’’
बीते वर्ष भारत और आॅस्ट्रेलिया के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने की दिशा में किये गए असाधारण प्रयासों के लिये लीसा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक - प्रवासी भारतीय सम्मान अवार्ड से नवाजा गया। उन्हें यकीन है कि भारत और आॅस्ट्रेलिया के सामने एक उज्जवल भविष्य है जिसे भारत के साथ प्रधानमंत्री गिलार्ड के द्विपक्षीय संरेखण से काफी बल मिला है।
सामाजिक और आर्थिक समानता, गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन कार्रवाई, शरणार्थियों के अधिकारों, एक स्वच्छ पर्यावरण और परमाणु निरस्त्रीकण की दिशा में गंभीरता के चलते लीसा का उद्देश्य इन मुद्दों को लेकर अपनी लड़ाई जारी रखने का है। इसके अलावा वे विभिन्न प्रष्ठभूमि से आने वाले लोगों को संसद का सदस्य बनने के लिये प्रेरित करना चाहती हैं। उनका कहना है कि अगला वर्ष चुनावी वर्ष है। अगले वर्ष वे राजनीति में हों या न हों वे सार्वजनिक जीवन में एक मजबूत योगदान देने का काम करती रहेंगी।
लीसा कहती हैं, ‘‘भारतीय मूल की एक महिला के रूप में मैंने अपने करियर और योगदान के रूप जो भी पाया है मैं उसे लकर काफी गर्वांवित हूँ और मुझे उम्मीद है कि मैं मजबूत आकांक्षाओं वाली अन्य पारंपरिक महिलाओं के लिये एक उदाहरण स्थापित करने में सफल रहूँगी।’’