हिंदी सिनेमा अगर सौरमंडल है तो उसके सूरज हैं दिलीप कुमार
बॉलीवुड में दिलीप कुमार एक ऐसे अभिनेता के रूप में शुमार किये जाते है जिन्होंने दमदार अभिनय और जबरदस्त संवाद अदायगी से सिने प्रेमियों के दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म 'देवदास' के उस दृश्यों को कौन भूल सकता है जिसमें पारो के गम में देवदास यह कहते है 'कौन कमबख्त पीता है जीने के लिये।' उनकी गमजदा आवाज दिल की गहराई को छू जाती है।
दिलीप कुमार ने फिल्मों में विविधिता पूर्ण अभिनय कर कई किरदारों को जीवंत कर दिया। यही वजह है कि फिल्म 'आदमी ' में दिलीप कुमार के अभिनय को देखकर हास्य अभिनेता ओम प्रकाश ने कहा था 'यकीन नही होता फन इतनी बुंलदियों तक भी जा सकता है।'
दिलीप कुमार वो हिंदी सिनेमा के वो सितारे हैं, जिन्हें बॉलीवुड के कई सुपरस्टार अपना रोल मॉडल मानते हैं। बॉलीवुड में दिलीप कुमार एक ऐसे अभिनेता के रूप में शुमार किये जाते है जिन्होंने दमदार अभिनय और जबरदस्त संवाद अदायगी से सिने प्रेमियों के दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म 'देवदास' के उस दृश्यों को कौन भूल सकता है जिसमें पारो के गम में देवदास यह कहते है 'कौन कमबख्त पीता है जीने के लिये।' उनकी गमजदा आवाज दिल की गहराई को छू जाती है।
दिलीप कुमार ने फिल्मों में विविधिता पूर्ण अभिनय कर कई किरदारों को जीवंत कर दिया। यही वजह है कि फिल्म 'आदमी' में दिलीप कुमार के अभिनय को देखकर हास्य अभिनेता ओम प्रकाश ने कहा था 'यकीन नहीं होता फन इतनी बुंलदियों तक भी जा सकता है।'
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता सर्वाधिक फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त करने का कीर्तिमान दिलीप कुमार के नाम दर्ज है। दिलीप कुमार को अपने सिने कैरियर में आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
विदेशी पर्यटक उनकी अभिनीत फिल्मों में उनके अभिनय को देखकर कहते है हिंदुस्तान में दो ही चीज देखने लायक है एक ताजमहल दूसरा दिलीप कुमार। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता सर्वाधिक फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त करने का कीर्तिमान दिलीप कुमार के नाम दर्ज है। दिलीप कुमार को अपने सिने कैरियर में आठ बार फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिल्म इंडस्ट्री में दिलीप कुमार उन गिने चुने चंद अभिनेता में एक है जो फिल्म की संख्या से अधिक उसकी गुणवत्ता पर यकीन रखते है इसलिये उन्होंने अपने छह दशक लंबे सिने करियर में लगभग 60 फिल्मों में अभिनय किया।
आशा को आज भी है दिलीप कुमार का इंतजार
भले ही दिलीप साहब ने 90 साल से भी ज्यादा उम्र के हो गए हैं लेकिन आज भी लोग उनके रोमांस और रोमांटिक किरदार को याद करते हैं। तभी तो बीते जमाने की मशहूर अभिनेत्री आशा पारिख ने भी हाल में ही कहा कि उन्हें आज भी दिलीप साहब की हां का इंतजार है, वो आज भी उनके साथ एक फिल्म करना चाहती हैं। क्योंकि अपने लंबे करियर में आशा पारिख को दिलीप कुमार के साथ एक भी फिल्म करने का मौका नहीं मिला है।
पाकिस्तान से हिंदुस्तान का सफर
दिलीप का जन्म 11 दिसंबर 1922 में पेशावर में हुआ। दिलीप कुमार के 12 भाई-बहन थे और इनके पिता का नाम लाला गुलाम सरवर था, जो कि पेशावर के जमीदार और फल व्यापारी हुआ करते थे। दिलीप कुमार ने नासिक के पास बरनेस स्कूल से अपनी पढ़ाई की औ र 1930 में उनका पूरा परिवार मुंबई में सैटल हो गया। पुणे में दिलीप कुमार की मुलाकात एक कैंटीन के मालिक ताज मोहम्मद से हुई। ताज की मदद से दिलीप कुमार ने आर्मी क्लब में सैंडविच स्टॉल लगाया। कैंटीन कांट्रैक्ट से 5000 की बचत के बाद, दिलीप कुमार मुंबई वापस लौट आए।
इसके बाद दिलीप कुमार ने पिता की मदद करने के लिए काम तलाशना शुरू किया। इसी दौरान चर्चगेट में दिलीप कुमार की मुलाकात डॉ. मसानी से हुई। दिलीप कुमार को बॉम्बे टॉकीज में काम करने का प्रस्ताव मिला, इसके बाद दिलीप कुमार की मुलाकात बॉम्बे टॉकीज की मालकिन देविका रानी से हुई। जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचान मुंबई आने का न्यौता दिया। पहले तो दिलीप कुमार ने इस बात को हल्के से लिया लेकिन बाद में कैंटीन व्यापार में भी मन उचट जाने से उन्होंने देविका रानी से मिलने का निश्चय किया।
ज्वार भाटा से की करियर की शुरुआत
देविका रानी ने युसूफ खान को सुझाव दिया कि यदि वह अपना फिल्मी नाम बदल दे तो वह उन्हें अपनी नई फिल्म 'ज्वार भाटा' में बतौर अभिनेता काम दे सकती है। देविका रानी ने युसूफ खान को वासुदेव, जहांगीर और दिलीप कुमार में से एक नाम को चुनने को कहा। दिलीप कुमार ने अपना करियर 1944 में ज्वार भाटा से किया लेकिन, इस फिल्म में उन्हें नोटिस ही नहीं किया गया। इसके बाद 1947 में जुगनू में नूरजहां के अपोजिट वे हीरो बनकर पर्दे पर आए और बॉक्स ऑफिस पर छा गए। इसके बाद कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों से अपनी एक्टिंग का जादू दर्शकों पर बनाए रखा।
वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म 'शक्ति' हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बेहतरीन क्लासिक फिल्मों में शुमार की जाती है ।इस फिल्म में दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन ने पहली बार एक साथ काम कर दर्शको को रोमांचित कर दिया।अमिताभ बच्चन के सामने किसी भी कलाकार को सहज ढंग से काम करने में दिक्कत हो सकती थी लेकिन फिल्म शक्ति में दिलीप कुमार के साथ काम करने में अमिताभ बच्चन को भी कई दिक्कत का सामना करना पड़ा। फिल्म 'शक्ति' के एक दृश्यों को याद करते हुये अमिताभ बच्चन बताते है कि फिल्म के क्लाइमैक्स में जब दिलीप कुमार उनका पीछा करते रहते है तो उन्हें पीछे मुडक़र देखना होता है जब वह ऐसा करते है तो वह दिलीप कुमार की आंखों में देख नही पाते है और इस दृश्य के कई रीटेक होते है।
दादा साहब फाल्के से लेकर निशान-ए-इम्तियाज़
फिल्म जगत में दिलीप कुमार के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुये उन्हे वर्ष 1994 मे फिल्म इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावे पाकिस्तान सरकार ने उन्हें वहां के सर्वोच्च सम्मान 'निशान-ए-इम्तियाज' से सम्मानित किया ।
उस दौर में भी दिलीप एक फिल्म के लिए 5 से 10 लाख की साइनिंग अमाउंट लेते थे। दिलीप कुमार पहले एक्टर हैं, जिन्हें 1954 में फिल्मफेयर के बेस्ट एक्टर अवॉर्ड से नवाजा गया था।
दिलीप साहब की बॉयोग्राफी से कुछ मजेदार किस्से उन्हीं की जुबानी
क्यों ठुकराई मदर इंडिया?
मैं मदर इंडिया से पहले दो फिल्मों में नर्गिस का हीरो रह चुका था। ऐसे में उनके बेटे के रोल का प्रस्ताव जमा नहीं। जब महबूब खान ने मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई तो मैं अभिभूत हो गया। मुझे लगा कि यह फिल्म हर कीमत पर बनाई जानी चाहिए. फिर उन्होंने नरगिस के एक बेटे का रोल मुझे ऑफर किया। मैंने उन्हें समझाया कि मेला और बाबुल में उनके साथ रोमांस करने के बाद यह माकूल नहीं होगा।
क्यों करते थे रिहर्सल?
देविका रानी ने जब मुझे समेत कई एक्टर्स को बॉम्बे टॉकीज में नौकरी दी, तो साथ में इसके लिए भी ताकीद किया कि रिहर्सल करना कितना जरूरी है। उनके मुताबिक एक न्यूनतम लेवल का परफेक्शन हासिल करने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है। फिर ये सीख मेरे साथ शुरुआती वर्षों तक ही नहीं रही। बहुत बाद तक मैं मानसिक तैयारी के साथ ही सेट पर शॉट के लिए जाता था। मैं साधारण से सीन को भी कई टेक में और लगातार रिहर्सल के बाद करने के लिए कुख्यात था।
सितार बजाना कब सीखा?
1960 में मेरी एक फिल्म आई थी कोहिनूर। ये फिल्म मेरे लिए खास है क्योंकि मैंने एक्टिंग के अलावा भी इसके लिए बहुत कोशिशें कीं। सितार सीखने के लिए मैं घंटों अभ्यास करता था। इसी दौरान मेरी मीना कुमारी से दोस्ती भी मजबूत हुई। हम दोनों ही पर्दे पर अपने इमोशनल ड्रामा के लिए मशहूर थे। मगर इस फिल्म में दोनों ही कॉमेडी कर रहे थे।