रेगिस्तान को हरा-भरा करने में जुटा 81 साल का बुजुर्ग, क्रिकेट के इस बड़े दिग्गज ने भी की तारीफ
रेगिस्तान को हरा-भरा करने की इनकी कोशिश को आज सभी सलाम कर रहे हैं। अब तक 35 हज़ार पेड़ लगा चुके राणाराम बिश्नोई पिछले 50 सालों से अथक प्रयास कर रहे हैं।
इस समय पर्यावरण बचाने और क्लाइमेट चेंज मुद्दे को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है। इस परेशानी का स्थाई समाधान खोजने के लिए दुनिया के ताकतवर देश कई सम्मेलन कर चुके हैं। 16 साल की स्वीडिश क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने तो इसके लिए #FridaysForFuture कैंपेन तक चलाया हुआ है। सरकारें कितनी भी योजनाएं क्यों ना चला लें लेकिन जब तक समस्या के समाधान में आम लोगों की सहभागिता नहीं होगी, तब तक समाधान होना मुश्किल है।
लगा चुके हैं 35 हज़ार पेड़
पर्यावरण बचाने के लिए कई लोग अपने निजी स्तर पर काम कर रहे हैं और उनकी सराहना भी की जानी चाहिए। ऐसे ही एक शख्स हैं 81 साल के राणाराम बिश्नोई। राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले राणाराम पिछले 50 सालों से रेगिस्तान को हरा-भरा करने में लगे हुए हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और जूनून की बदौलत अब तक 35,000 से अधिक पेड़ लगा चुके हैं। इनमें नीम, रोहिड़ा, खेजड़ी, कांकेरी, बोगनवेलिया और बबूल के पेड़ शामिल हैं।
राणाराम बिश्नोई बंजर जमीन पर केवल बीज ही नहीं डालते बल्कि उसकी पूरी देखरेख भी करते हैं। वह अपने कंधे पर मटका लेकर पौधों में पानी डालते हैं। मटके के अलावा ऊंट गाड़ी पर टैंक में पानी ले जाकर वह एक-एक पौधे में डालते हैं।
18 साल की उम्र से शुरू की पहल
इंडिया टुडे मैगजीन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 18 साल की उम्र में वह समझ गए थे कि रेगिस्तान को हरा-भरा करने के लिए सरकारें प्रयास नहीं कर रही हैं। इसके लिए आम लोगों को ही कोशिश करनी होगी। बस फिर वहीं से राणाराम ने अपने आसपास के रेगिस्तान को हरा-भरा करने का प्रण लिया। उन्हें जब भी आकाश में घने बादल दिखते, वह हर तरफ बीज फेंक दिया करते। इनमें अधिकतर पौधे राजस्थान की झुलसती गर्मी में सूख जाते थे लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
बीज फेंकने के अलावा वह कई पौधों को पॉलिथिन में लगाकर उन्हें उगाते और पानी की कमी वाले राजस्थान में वह घड़ों में पानी लाकर उनमें डालते। धीरे-धीरे पौधों में पानी देने के लिए इसके लिए वह डीप पाइप विधि का प्रयोग करने लगे।
केन्द्रीय मंत्री के खिलाफ लड़ा था चुनाव
पर्यावरण के प्रति उनका गहरा लगाव है। अपने पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर एक बार उन्होंने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ चुनाव भी लड़ा लेकिन भारी अंतर से हारे। चुनाव के लिए फंडिंग का इंतजाम भी उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए क्राउड फंडिंग से किया था।
वह केवल पेड़ पौधों के लिए ही नहीं बल्कि पक्षियों के लिए भी काम कर रहे हैं। अपने उगाए पेड़ों पर वह घौंसले टांग देते हैं। इनमें पक्षी आकर रहते हैं। साथ ही वह जब भी बारिश के मौसम में कहीं जाते हैं तो साथ में जगह-जगह पर बीज डालते जाते हैं। उनका मानना है कि अगर एक भी बीज अंकुरित होता है तो उनकी मेहनत सफल हो जाएगी।
बड़े-बड़े लोग हैं प्रयासों के कायल
कई लोगों ने राणाराम की कोशिशों की सराहना करते हुए उनकी तारीफ की है। वीवीएस लक्ष्मण से लेकर इंडियन फॉरेस्ट ऑफिसर (IFS) परवीन कासवान तक सभी उनके प्रयासों के कायल हैं। उनके अथक प्रयासों और मेहनत का ही नतीजा है कि आज उनका घर और आसपास का इलाका एक पर्यटन केंद्र के रूप में बदल चुका है।
यहां पर केवल देसी ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी आते हैं। हाल ही में दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित मैगजीन टाइम ने पर्यावरण के लिए काम कर रही एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग को साल 2019 का पर्सन ऑफ द इयर घोषित किया है। ग्रेटा की स्टोरी आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
ग्रेटा थनबर्ग के अलावा कई ऐसे लोग भी हैं जो पर्यावरण बचाने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं लेकिन वे दुनिया की नजर में नहीं आ सके। अगर सरकारें खुद पर्यावरण के लिए कुछ कर नहीं सकतीं तो उसे चाहिए कि कम से कम ऐसे लोगों को जरूरी सुविधा उपलब्ध करवाए और इन्हें प्रोत्साहित करे। ...क्योंकि पर्यावरण है तो हम हैं।