पूजा के बासी फूलों से निखिल गम्पा बना रहे हैं अगरबत्तियां
मंदिरों, तीर्थस्थलों पर चाढ़ाए जाने के बाद बेकार समझ कर फेंक दिये जाने वाले फूलों से निखिल गम्पा बना रहे हैं हर महीने 60-70 किलो तक अगरबत्तियां...
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएट निखिल गम्पा अपने नाम एक अनोखी कामयाबी दर्ज करा चुके हैं। उनका स्टार्टअप किसी को चौंकाता ही नहीं, बल्कि प्रोत्साहित और ताकीद भी करता है कि कोई इस तरह का प्रयोग करके बी लाखों में एक शुमार हो सकता है! निखिल के चौकन्ना दिमाग ने उस चीज को अपनी आय के स्रोत और तमाम महिलाओं के लिए रोजगार में तब्दील कर लिया, जो मंदिरों, तीर्थस्थलों पर चढ़ाए जाने के बाद प्रतिदिन टन मात्रा में कचरे की तरह फेंक दिया जाता है।
मुंबई के निखिल गम्पा की अक्ल की दाद देनी पड़ेगी। उनके बारे में जानते समय माखनलाल चतुर्वेदी की ये पंक्तियां याद आती हैं- 'मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेक, मातृभूमि को शीश चढ़ाने जिस पर पथ जाएं वीर अनेक।' बात फूलों की हो रही है। महारती गम्पा का स्टार्टअप फूलों के एक अजीबोगरीब कारोबार से जुड़ा है।
पहले निखिल को अपना आइडिया आध्यात्मिक दृष्टि से अनुचित लगा, लेकिन उसी क्षण उनके दिमाग में एक पल के लिए ऐसा आइडिया कौंधा, जिससे भविष्य की एक बड़ी योजना ने मन ही मन उनके भीतर आकार ले लिया। डस्टबीन्स में जमा किए पूजा के बासी फूलों से वह हर महीने लगभग साठ-सत्तर किलो अगरबत्तियां बना रहे हैं। सुखद है कि अगरबत्तियां भी पूजा के ही काम आती हैं।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएट निखिल गम्पा अपने स्टार्टअप 'ग्रीन वेव' नाम से एक ऐसी कामयाबी दर्ज करा चुके हैं, जो किसी को चौंकाती ही नहीं, बल्कि प्रोत्साहित और ताकीद भी करती है कि कोई इस तरह का प्रयोग करके लाखों में 'एक' शुमार हो सकता है। देखिए न, कि निखिल के चौकन्ना दिमाग ने उस चीज को अपनी आय के स्रोत और तमाम महिलाओं के लिए रोजगार में तब्दील कर लिया, जो मंदिरों, तीर्थस्थलों पर चढ़ाए जाने के बाद प्रतिदिन टनों मात्रा में कचरे की तरह फेंक दिया जाता है। डस्टबीनों में जमा किए पूजा के बासी फूलों से वह हर महीने लगभग साठ-सत्तर किलो अगरबत्तियां बना रहे हैं। सुखद है कि अगरबत्तियां भी पूजा के ही काम आती हैं।
मुंबई के निखिल गम्पा की अक्ल की दाद देनी पड़ेगी। उनके बारे में जानते समय माखनलाल चतुर्वेदी की ये पंक्तियां याद आती हैं- 'मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेक, मातृभूमि को शीश चढ़ाने जिस पर पथ जाएं वीर अनेक।' बात फूलों की हो रही है। महारती गम्पा का स्टार्टअप फूलों के एक अजीबोगरीब कारोबार से जुड़ा है। अपने आसपास के जीवन से मिले अनुभव किसी भी आंत्रेप्रेन्योर को कामयाबी की सीढ़ियों तक पहुंचा सकते हैं। हर किसी के व्यवहार जगत में ऐसा बहुत कुछ घटता रहता है, जिस पर गौर करते चलें तो अपने लिए ही नहीं, समाज के लिए भी सबब बन सकते हैं, अपनी सक्सेस से लोगों के लिए उदाहरण बन सकते हैं। ऐसे ही कामयाब शख्स हैं निखिल गम्पा। उन्होंने उस चीज़ को अपनी आय का स्त्रोत बनाया है, जिसे आमतौर पर कचरा करार कर दिया जाता है।
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निखिल गम्पा उन दिनों मध्य प्रदेश के सफर पर थे। संयोगवश उस दौरान उन्हें एक दिन मंदिर में विश्राम करना पड़ा। वहां उन्होंने देखा कि मूर्तियों पर भारी मात्रा में चढ़ाया गया फूल कूड़े की तरह फेंका जा रहा है। पहले तो उन्हें आध्यात्मिक दृष्टि से यह अनुचित लगा लेकिन उसी क्षण उनके दिमाग में एक पल के लिए ऐसा आइडिया कौंधा, जिससे भविष्य की एक बड़ी योजना ने मन ही मन उनके भीतर आकार ले लिया। निखिल ने सोचा कि इस तरह तो देश के सभी मंदिरों से रोजाना न जाने कितनी मात्रा में फूल फेंक दिए जाते होंगे। इनकी क्यों न रिसाइकिलिंग कर कोई नया सामान तैयार किया जाए। एक तात्कालिक मुश्किल ये रही कि बीमार पड़ जाने के कारण उन्हें वहां कुछ वक्त गुजारना पड़ा।
आम के आम, गुठलियों के दाम, कहावत को चरितार्थ करने वाली अपनी ताजा योजना की कामयाबी की दिशा में कदम बढ़ाने से पहले टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस से सोशल आंत्रेप्रेन्योरशिप में मास्टर गम्पा ने सर्वप्रथम इस सम्बंध में विशेषज्ञों से सम्पर्क किया और उनके सहयोग से मुम्बई में 'ग्रीन वेव' संस्था गठित की।
अब शुरू हुआ 'ग्रीन वेव' का पहला प्रबंधन कौशल। मुंबई के मंदिरों के आसपास डस्टबीन रखवा दिए गए। अगले दिन से ही मंदिरों का कचरा उन डस्टबीन्स तक पहुंचने लगा। संस्था से जुड़ी महिलाओं के माध्यम से डस्टबीन में पड़े फूल गम्पा के कार्यस्थल पर जमा करने के साथ ही उसे सुखाया जाने लगे। सूख जाने के बाद उससे अगरबत्तियां तैयार की जाने लगीं।
कचरे के फूलों से अब गम्पा की कार्यशाला में हर महीने लगभग साठ-सत्तर किलो अगरबत्तियां तैयार की जा रही हैं। काम चल निकला है। अब वह रोजाना प्रोडक्शन के बारे में गंभीरता से विचार कर रहे हैं। गम्पा ने एक पंथ दो काज ही नहीं, बल्कि कई काज साध लिये हैं। एक तो मंदिरों के इर्द-गिर्द साफ-सफाई रहने लगी है और दूसरी, इस काम के शुरू होने से बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार मिला है, साथ ही बासी-कचरा फूलों से एक अच्छा-खासा उद्यम खड़ा कर लिया गया।