Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory
search

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT

सरकारी स्कूल के बच्चों को साइंस पढ़ाने के लिए इस युवा ने छोड़ दी लाखों की नौकरी

सरकारी स्कूल के बच्चों को साइंस पढ़ाने के लिए इस युवा ने छोड़ दी लाखों की नौकरी

Friday September 22, 2017 , 4 min Read

श्रीधर ने अपने चार छात्रों की कर्ज लेकर मदद की ताकि दिहाड़ी मजदूर के बच्चे जापान में रोबो कप 2017 में रोबॉट्स निर्माण में अपनी प्रतिभा दिखा सके। 

बच्चों को रोबोटिक्स सिखाते श्रीधर

बच्चों को रोबोटिक्स सिखाते श्रीधर


उनके लक्ष्य में ऐसे बच्चे शामिल हैं जिनके पास पढ़ने की अच्छी सुविधा नहीं मिल पाती है। उन्होंने बेंगलुरु के सेवा भारती गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल में रोबोटिक्स मेंटर के रूप में काम करना शूरू कर दिया।

श्रीधर अपनी कड़ी मेहनत बर्बाद नहीं होने देना चाहते थे इसलिए पैसा इकट्ठा करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। उन्होंने क्राउडफंडिंग के जरिए 2.4 लाख रुपये इकट्ठा किए ताकि गरीब बच्चों का सपना पूरा हो सके।

देश के सर्वश्रेष्ठ साइंस स्कूल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु ( IISc) से पासआउट 33 साल के श्रीधर ने सरकारी स्कूल के बच्चों को साइंस की अच्छी पढ़ाई उपलब्ध करवाने के लिए अपनी मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ दी। उनकी जिंदगी की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो समाज की भलाई के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं। श्रीधर ने हाल ही में चार छात्रों के सपने को पूरा करने के लिए न सिर्फ अपने पास से पैसे दिए बल्कि कर्ज लेकर भी उन छात्रों की मदद की। तैंतीस साल के श्रीधर पी कोई साधारण सरकारी स्कूल के टीचर नहीं हैं। वह सेवा भारत राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय, बेंगलुरु में रोबॉटिक्स पढ़ाते हैं।

श्रीधर ने अपने चार छात्रों की कर्ज लेकर मदद की ताकि दिहाड़ी मजदूर के बच्चे जापान में रोबो कप 2017 में रोबॉट्स निर्माण में अपनी प्रतिभा दिखा सके। उन्होंने अपनी सेविंग्स से जुटाए कुछ पैसे छात्रों की मदद में लगाए और बाकी 2.40 लाख रुपये लोन लेकर छात्रों को दिया। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) के पूर्व छात्र श्रीधर मठिकेरे से विवेकनगर तक 13 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय करके स्कूल आते हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में श्रीधर ने बताया, 'आईआईएससी ( IISc) से इंजिनियरिंग में मास्टर्स पूरा करने के बाद मैं बहुत अच्छी नौकरी कर रहा था। उसी समय मैंने स्वंयसेवी के तौर पर सरकारी स्कूलों और झुग्गी-झोपड़ियों में पढ़ाना शुरू किया। मैं प्रैक्टिकल और मजेदार तरीके से बच्चों को साइंस पढ़ाना चाहता था। पुणे में मैं एक आईटी फर्म के साथ काम कर रहा था। वहां अपने तीन साल के दौरा मुझे अकसर आश्चर्य होता था कि बच्चे साइंस से प्यार कैसे कर सकते हैं। 2014 में मैं बेंगलुरु आया। यहां मैंने सेवा भारती राजकीय विद्यालय में अक्षरा फाउंडेशन द्वारा स्थापित रोबॉटिक्स लैब में मेंटर के तौर पर जॉइन किया।'

IISc से इंस्ट्रूमेंशन में मास्टर करने वाले श्रीधर ने पुणे की एक मल्टीनेशनल कंपनी के साथ कुछ सालों तक काम किया था, लेकिन वह हमेशा यही सोचते रहते थे कि उनके काम से प्रत्यक्ष रूप से समाज के लिए कुछ योगदान नहीं हो पा रहा है। इसी वजह से उन्होंने अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी और सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के लिए सरल तरीके से इंजीनियरिंग सिखाने में लग गए। उनके लक्ष्य में ऐसे बच्चे शामिल हैं जिनके पास पढ़ने की अच्छी सुविधा नहीं मिल पाती है। उन्होंने बेंगलुरु के सेवा भारती गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल में रोबोटिक्स मेंटर के रूप में काम करना शूरू कर दिया।

पिछले साल, श्रीधर के छात्रों ने 'मास्टर माईंड्स' नाम से एक टीम बनाई और छात्रों के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद दुनियाभर के टैलेंटेड स्टूडेंट के बीच होने वाले प्रोग्राम रोबोकप में हिस्सा भी लिया। लेकिन इस साल यह प्रतियोगिता जापान में आयोजित होनी थी। सरकारी स्कूल के बच्चों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे इसमें हिस्सा ले सकें। क्योंकि यहां पर पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों के माता-पिता मजदूर होते हैं। श्रीधर अपनी कड़ी मेहनत बर्बाद नहीं होने देना चाहते थे इसलिए पैसा इकट्ठा करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। उन्होंने क्राउडफंडिंग के जरिए 2.4 लाख रुपये इकट्ठा किए ताकि गरीब बच्चों का सपना पूरा हो सके। 

यह भी पढ़ें : दो बच्चों की मां बनने के बाद सुची मुखर्जी ने बनाया भारत का पहला फीमेल फैशन पोर्टल 'लाइमरोड'