Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

एनजीओ की मदद से गांवों को मिला साफ पानी का तोहफा, बदतर से बेहतर हुए हालात

सिर्फ 5 रुपये में इस गांव के लोगों को मिलता है साफ पानी...

एनजीओ की मदद से गांवों को मिला साफ पानी का तोहफा, बदतर से बेहतर हुए हालात

Thursday February 08, 2018 , 6 min Read

पुरी जिले के उगलपुर गांव की सौदामिनी पलई बताती हैं कि वह इस बात से खुश हैं कि उनके परिवार के सदस्यों को अब पीने योग्य पानी पर्याप्त मात्रा में मिल पा रहा है और इसके लिए उन्हें ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है।

संरक्षित पानी का उपयोग करतीं महिलाएं

संरक्षित पानी का उपयोग करतीं महिलाएं


कनस ब्लॉक में बाढ़ की आशंका अधिक रहती है क्योंकि यह चिल्का झील के किनारे से पास है और इसके आस-पास दया नदी की 6 सहायक नदियां हैं। बाढ़ के दौरान, नदी का पानी प्रदूषित हो जाता है।

पुरी (ओडिशा) के कनस ब्लॉक के गांव पिछले कुछ समय तक पीने के पानी की समस्या जूझते थे और बीमारियों से घिरे रहते थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं और इसमें योगदान है, सोलार और ऑक्सफैम इंडिया गैर-सरकारी संगठनों का। दोनों ने मिलकर गांवों में पानी को शुद्ध करने की व्यवस्था की और गांव वालों की जिंदगी को पहले से बेहतर बनाया। पुरी जिले के उगलपुर गांव की सौदामिनी पलई बताती हैं कि वह अब इस बात से खुश हैं कि उनके परिवार के सदस्यों को अब पीने योग्य पानी पर्याप्त मात्रा में मिल पा रहा है और इसके लिए उन्हें ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है। कुछ साल पहले तक हालात बिल्कुल विपरीत थे। गांव की महिलाओं को परिवार के लिए पीने का पानी जुटाने के लिए खासी जद्दोजहद करनी पड़ती थी।

यह गांव चिल्का झील से 15 किमी की दूरी पर है और यहां जमीन के पानी में आयरन की मात्रा अधिक है। साथ ही, यह पानी खारा भी है। इसके अलावा उगलपुर के नजदीक बहने वाली दया नदी की सहायक नदी मखरा का पानी भी प्रदूषित है। इसके बावजूद, गांव के लोग और खासतौर पर महिलाएं, इन दो स्त्रोतों पर ही निर्भर हैं। सुहागपुर गांव की 35 वर्षीया कुनी प्रधान ने भी कुछ ऐसी ही कहानी बताई। गांव की महिलाएं और युवतियां तालाब से पानी लाती थीं। गांव के लोग इस तालाब में बर्तन और कपड़े धोते थे और नहाने के लिए भी इसी का इस्तेमाल करते थे। गांव के लोग तालाब के आस-पास ही शौच भी करते थे। इन सब कारणों की वजह से पानी पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका था और बीमारी का घर बन चुका था। बरसात में समस्याएं और भी बढ़ जाती थीं।

आपदाएं और पानी में पनपने वाली बीमारियां

पुरी जिला, समुद्री तट से लगभग 150 किमी दूर है। इस इलाके में चक्रवात और बाढ़ जैसी आपदाएं आती रहती हैं और पानी के जमाव की समस्या अक्सर बनी रहती है। कनस ब्लॉक में बाढ़ की आशंका अधिक रहती है क्योंकि यह चिल्का झील के किनारे से पास है और इसके आस-पास दया नदी की 6 सहायक नदियां हैं। बाढ़ के दौरान, नदी का पानी प्रदूषित हो जाता है। आपदा के दौरान और बाद में पीने के पानी की समस्या से यहां की आबादी बेहद परेशान रहती थी और गांव को कई रोगों का संक्रमण घेर लेता था। शहरों की गंदगी नदी के पानी के साथ मिलकर गांव वालों की परेशानी और बढ़ा देती था।

तालाब का साऱ पानी

तालाब का साऱ पानी


अक्टूबर 2013 में फैलिन नाम के चक्रवात ने उड़ीसा के तट पर दस्तक दी थी। कनास ब्लॉक के लगभग सभी गांव, इस आपदा से बुरी तरह प्रभावित हुए थे। ग्रामीणों को पास की एक सुरक्षित जगह पर शिफ्ट कर दिया गया था और लगभग 1 महीने तक उन्हें वहीं रहना पड़ा था। सौदामिनी जी ने अंग्रेजी वेबसाइट ‘विलेज स्कवेयर’ से बात करते हुए जानकारी दी कि बाढ़ का पानी उतरने के बाद जब गांव वाले वापस लौटे, तब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी पीने के पानी की। पानी के टैंकर्स हर गांव तक नहीं पहुंच पाते थे और गांव वालों को पानी के अभाव में रहना पड़ता था। गांव वाले नदी से पानी लाते थे और कुछ घंटों तक उसे स्थिर रहने देते थे ताकि पानी की गंदगी नीचे बैठ जाए।

सौदामिनी जी ने बताया कि गंदगी बैठने के बाद ऊपर के पानी को दूसरे बर्तन में निकालकर, उसे उबाला जाता था और उसमें क्लोरीन की गोलियां डाली जाती थीं। तब कहीं पानी पीने योग्य होता था। उगलपुर के लोग ट्यूबवेल के पानी का इस्तेमाल नहीं करते थे क्योंकि उसका स्वाद अच्छा नहीं था और महक भी खराब थी। इस वजह से गांव के लोग सिर्फ नदी के पानी पर निर्भर थे और अक्सर बीमार भी पड़ जाया करते थे।

टूयूबवेल का पानी हुआ पीने लायक

हालांकि आयरन, लेड और आर्सेनिक की तरह विषैला नहीं होता है, लेकिन उससे पानी का स्वाद और महक खराब होते हैं। साथ ही, कुछ घंटों बाद पानी लाल पड़ जाता है। गांव वालों से बात करने पर पता चला कि आयरन की मात्रा इतनी ज्यादा थी कि जिस बर्तन में पानी रखा जाता था, वह भी लाल पड़ जाता था। गांव की इतनी दयनीय स्थिति देखकर दो गैर-सरकारी संगठनों, सोलार और ऑक्सफैम इंडिया ने मिलकर उगलपुर में ट्यूबवेल्स के लिए आयरन रिमूवल प्लांट्स (आईआरपी) लगवाए। एनजीओ के सचिव हरिश्चंद्र दास ने बताया कि बाढ़ के दौरान ट्यूबवेल भी प्रदूषित हो जाते हैं, इसलिए उन्होंने हैंड पम्प की ऊंचाई बढ़वा दी।

image


आईआरपी के पास 2000 लीटर पानी की क्षमता है और इसे एक दिन में चार बार भरा जाता है। मोटर पंप, पानी को आईआरपी के सबसे ऊपर के चैंबर तक पहुंचाता है और इसके बाद फिल्टर हुआ पानी, नीचे के चैंबर्स में इकट्ठा होता जाता है। फिल्टर हुए पानी की महक और स्वाद, दोनों ही ठीक होते हैं।

तालाब का पानी भी हुआ साफ

सुहागपुर गांव के लोग, साफ पानी के लिए तालाब पर निर्भर थे। प्रधान ने बताया कि गांव के करीब 1000 लोग, इस तालाब पर ही निर्भर हैं। चक्रवात के बाद सोलार और ऑक्सफैम इंडिया ने गांव में फ्लड-प्रूफ पॉन्ड सैन्ड फिल्ट्रेशन (पीएसएफ) यूनिट लगाई। इसकी मदद से ग्रामीणों को पीने का पानी उपलब्ध होने लगा। टैंक को 6 चैंबर्स में बांटा गया है, जिनमें पत्थर के टुकड़े, बालू और चारकोल मौजूद है। गांव वाले आखिरी चैंबर से साफ पानी निकालते हैं।

कनास ब्लॉक के गांवों में कुल 5 आईआरपी यूनिट्स और 2 पीएसएफ यूनिट्स लगाई जा चुकी हैं। हरिश्चंद्र दास ने बताया कि पहले इन यूनिट्स को बिजली से चलाया जा रहा था, लेकिन बिजली की कमी की समस्या की वजह से अब इन यूनिट्स को सौर ऊर्जा से चलाया जा रहा है।

सुधरे हालात

ग्रामीण समुदायों से जानकारी मिली की पहले की अपेक्षा डाइरिया, टायफॉइड और पीलिया के केस अब बहुत कम हो गए हैं और इसकी वजह है साफ पानी की उपलब्धता।

इन यूनिट्स के लगने के बाद से गांवों की महिलाओं की जद्दोजहद बहुत कम हो गई है। अब पीने के पानी के लिए उन्हें जूझना नहीं पड़ता। गांव की महिलाओं का कहना है कि अब उनके समय की भी बचत होती है और दूसरे कामों को समय दे पाती हैं। पहले, बारिश के समय में युवतियां अपनी मां की मदद के लिए अक्सर स्कूल छोड़ दिया करती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। इन यूनिट्स को मैनेज करने के लिए हर घर से सिर्फ 5 रुपए लिए जाते हैं।

यह भी पढ़ें: केरल का यह आदिवासी स्कूल, जंगल में रहने वाले बच्चों को मुफ्त में कर रहा शिक्षित