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इंसानियत की मिसाल: मुस्लिम संगठन ने हिंदू लड़की की भरी एक लाख रुपये की फीस

इंसानियत की मिसाल: मुस्लिम संगठन ने हिंदू लड़की की भरी एक लाख रुपये की फीस

Wednesday May 16, 2018 , 4 min Read

केरल में एक मुस्लिम संगठन ने पैसे इकट्ठे कर एक जरूरतमंद हिंदू लड़की की एक लाख की फीस भरी। उन्होंने इस बात की परवाह नहीं की कि लड़की हिंदू है या मुस्लिम। घटना केरल के उत्तरी जिले मलप्पुरम की है।

कमिटी के सदस्यों के साथ संता और उनकी बेटी सत्या

कमिटी के सदस्यों के साथ संता और उनकी बेटी सत्या


कमिटी ने न केवल सालाना फीस भरी बल्कि एक सदस्य ने एक साल की फीस और दान कर दी। कमिटी के एक सदस्य ने अपना नाम न बताते हुए कहा, 'हमने यह काम पब्लिसिटी के लिए नहीं किया है। लेकिन अगर इससे समाज में अच्छा संदेश जाता है तो हमें खुशी होगी।' 

आए दिन हमें कहीं न कहीं से धार्मिक उन्माद की खबरें सुनने को मिलती रहती हैं। सोशल मीडिया के दौर में अफवाह के जरिए उन्माद फैलाना काफी आसान हो गया है। लेकिन समाज में अभी भी कई ऐसे लोग हैं जिनके लिए धर्म नहीं बल्कि इंसानियत मायने रखती है। केरल में एक मुस्लिम संगठन ने पैसे इकट्ठे कर एक जरूरतमंद लड़की की एक लाख की फीस भरी। उन्होंने इस बात की परवाह नहीं की कि लड़की हिंदू है या मुस्लिम। घटना केरल के उत्तरी जिले मलप्पुरम की है। यहां की मुस्लिम महल कमिटी ने सत्या नाम की लड़की की फीस भरी। सत्या के पिता का हाल ही में देहांत हो गया था।

TNM के मुताबिक सत्या के पिता रमेश और मां संता मजदूरी कर अपने परिवार का गुजारा करते थे। उन्होंने किसी तरह पैसे जुटाकर अपनी बेटी की 12वीं तक की पढ़ाई कराई। सत्या का मन आगे भी पढ़ने का था। लेकिन न तो रमेश के पास पैसे थे और न ही सत्या के 12वीं में इतने अच्छे नंबर कि उसे कोई सरकारी बैंक लोन दे सके। सत्या के माता-पिता भी चाहते थे कि उनकी बेटी आगे की पढ़ाई पूरी करे। रमेश ने किसी तरह पैसों का इंतजाम किया और बेटी का एडमिशन करा दिया।

लेकिन बीते साल नवंबर 2017 में देहांत हो गया। इसके बाद मानों सत्या पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। बीएससी की हर साल 1 लाख रुपये की फीस भरना तो दूर की बात थी। पिता की मौत के बाद सत्या की मां संता ने किसी तरह पैसे जुटाकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया। सत्या का भाई अभी 12वीं कक्षा में है इसलिए उसकी भी फीस भरनी होती है। दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करने वाली संता के लिए इतने पैसे जुटाकर दोनों बच्चों को पढ़ाना मुश्किल लग रहा था। मदद की आस लिए संता ने पड़ोस में ही मुस्लिम मोती महल जाकर अपनी हालत बयां की।

संता ने बताया, 'मेरी बेटी का रो रो कर बुरा हाल हो गया था। उसे बस यही चिंता सताए जा रही थी कि कॉलेज की फीस न भर पाने से उसके सारे सपने बिखर जाएंगे। मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इस मुश्किल को हल किया जाए। यह सिर्फ सत्या का नहीं बल्कि उसके पिता का भी सपना था कि वह अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करे।' सत्या के पिता की मौत के बाद कॉलेज वालों ने फीस में 20,000 रुपये की छूट भी दे दी। लेकिन बाकी के पैसे जुटाना भी मुश्किल काम था। इसलिए उसे क्लास में बैठने की इजाजत नहीं मिल रही थी। संता के पड़ोसी चंद्रन ने उसकी हालत देखकर महल कमिटी से मिलने को कहा।

संता जब महल कमिटी से मिली तो उन्होंने मदद का आश्वासन दिया। वह बताती हैं, 'एक दिन मैं चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी इकट्ठा करने जा रही थी तो कमिटी के सदस्य ने मुझे फोन किया और बुलाया। मैं उनके पास गई तो उन्होंने कॉलेज के बैंक खाते की डीटेल मांगी।' यह सुनकर संता अपने आंसू नहीं रोक पाईं। कमिटी ने न केवल सालाना फीस भरी बल्कि एक सदस्य ने एक साल की फीस और दान कर दी। कमिटी के एक सदस्य ने अपना नाम न बताते हुए कहा, 'हमने यह काम पब्लिसिटी के लिए नहीं किया है। लेकिन अगर इससे समाज में अच्छा संदेश जाता है तो हमें खुशी होगी।' उन्होने कहा कि मदद के लिए इंसानियत मायने रखती है, धर्म नहीं।

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