आधी आबादी की सुरक्षा क्यों है खतरे में?
यूपी में आधी आबादी की सुरक्षा पर छाई डेढ़ दशक से अमावास की कालिमा...
उ.प्र. में सुशासन की उम्मीद के उजले ख्वाब को अपनी काली स्याही से बेनूर करती रही है, बढ़ते स्त्री अपराध की दर । विदित हो कि सूबे में केसरिया सरकार को काबिज हुये एक साल का वक्त गुजर चुका है लेकिन आज भी महिलायें सुबक रही हैं।
यूपी पुलिस के ताजा आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में हत्या जैसे संगीन अपराध से भी ज्यादा बलात्कार की घटनाएं दर्ज की गई हैं। साल 2017 में 3,873 बलात्कार की वारदातें सामने आईं। वहीं इस दौरान हत्या के 3,847 मामले, लूट के 3663 मामले, चोरी 3,873 मामले और डकैती के 221 मामले दर्ज किए गए हैं।
महिलाओं की बढ़ती असुरक्षा, उ.प्र. की नैसर्गिक समस्या बन चुकी है। विगत दो दशक महिला सुरक्षा के इतिहास में अमावस से कम नहीं रहे। सूबे में हुकूमतें बदलती रहीं, पुलिस अफसरों के तबादले होते रहे, ताश के पत्तों की तरह डीजीपी जैसे औहदेदारों को फेंटा गया। कभी बहुजनवादी तो कभी समाजवादी तो कभी राष्ट्रवादी सरकारें वजूद में आती रहीं लेकिन इन तमाम तब्दीलियों के बावजूद नहीं बदली तो महिला सुरक्षा की स्थिति। उ.प्र. में सुशासन की उम्मीद के उजले ख्वाब को अपनी काली स्याही से बेनूर करती रही है, बढ़ते स्त्री अपराध की दर । विदित हो कि सूबे में केसरिया सरकार को काबिज हुये एक साल का वक्त गुजर चुका है लेकिन आज भी महिलायें सुबक रही हैं। हालांकि उ.प्र. जैसे विशाल प्रदेश के लिये एक साल का वक्त दशकों से बिगड़ी व्यवस्था को मुकम्मल करने के लिये बेहद कम है लेकिन परिवर्तन की बुनावट की भविष्यगामी दिशा और दशा को प्रकट करने के लिये पर्याप्त है।
बात अगर महिला सुरक्षा की जाये तो आधी आबादी के हिस्से के सूरज को तो आज भी अपराधियों के ग्रहण ने प्रकाशहीन कर रखा है। लखीमपुर खीरी में महिला का सरेआम हाथ काटने की घटना, बरेली में दो बहनों को घर में घुस कर जिन्दा जलाया जाना, गाजियाबाद में नर्स का अपहरण कर गैंगरेप होना, रामपुर में सरेआम दो लड़कियों से सरेराह छेड़छाड़ और अश्लील हरकतें करने का वीडियो वॉयरल होना, फिर रामपुर में ही एक युवती को रास्ते से अपहरण कर जंगल में खींचकर रेप की कोशिश करना और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में छेड़छाड़ और लाठीचार्ज आदि ऐसी अनेक प्रतिनिधित्व करती घटनाएं हैं जो 'महिला सुरक्षा के सरकारी दावे को सिरे से खारिज करती हैं। रही सही कसर उन्नाव की कथित घटना ने पूरी कर दी है।
विभीषिका का आलम यह है कि उन्नाव गैंग रेप काण्ड में सरकार और अदालत की सक्रियता के बावजूद यूपी के चार अलग-अलग इलाकों से नाबालिगों से दुष्कर्म का मामला सामने आया, जिनमे से तीन मामलों में रेप के बाद हत्या कर दी गई। पहला मामला एटा का है जहां शादी समारोह में गई एक 7 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसकी गला रेत कर हत्या कर दी गई। दूसरा मामला इटावा का हैं जहां शौच के लिए घर से निकली दो सगी बहनों के साथ दुष्कर्म के बाद उनकी हत्या कर शव को खेत में फेक दिया। तीसरा मामला गंगोह का है जहां दिन दहाड़े घर में घुस कर नाबालिग के साथ दुष्कर्म का प्रयास किया गया और उसकी अश्लील तस्वीरे खीचने कि कोशिश की गई। चौथा मामला नोएडा के थाना क्षेत्र फेज-3 का है जहां एक युवती को दो युवकों ने जबरन अपनी कार में बैठा लिया और होटल में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया।
एनकाउंटरों की लंबी कतारों के बावजूद, दुष्कर्मों की यह अनवरत श्रंखला, अपराधियों के दुस्साहस को बखूबी बयान करती है। प्रदेश में महिलाएं कितनी सुरक्षित है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2017 में अन्य अपराधों की तुलना में सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले प्रकाश में आए हैं। यूपी पुलिस के ताजा आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में हत्या जैसे संगीन अपराध से भी ज्यादा बलात्कार की घटनाएं दर्ज की गई हैं। साल 2017 में 3,873 बलात्कार की वारदातें सामने आईं। वहीं इस दौरान हत्या के 3,847 मामले, लूट के 3663 मामले, चोरी 3,873 मामले और डकैती के 221 मामले दर्ज किए गए हैं।
एंटी रोमियो स्क्वॉड का गठन तो हुआ लेकिन वूमेन पावर हेल्प लाइन को मिली शिकायतों में कॉलेज आने जाने वाली, कामकाजी और गैर कामकाजी 20 से 25 वर्ष की लड़कियों के साथ छेड़छाड़ के मामले सबसे ज्यादा दर्ज किए गए हैं। ऐसा नहीं है कि योगी सरकार महिला सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। सरकार द्वारा 1090 विमेन पावर लाइन, घरेलू हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं के लिए 181 महिला हेल्पलाइन का संचालन किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि 1090 वीमेन पावर लाइन को बेहतर बनाने के लिए इसे यूपी 100 और एंटी रोमियो स्क्वॉयड से जोड़ा जाए। उन्होंने जिलों के अधिकारियों और सामाजिक संगठनों, शैक्षणिक संस्थाओं और महिला संगठनों के साथ मिलकर 1090 सहित अलग-अलग पुलिस सेवाओं के बारे में आमजन को जागरूक करने की जरूरत बताई। नाबालिग लड़कियों से बलात्कार करने वालों को सजा-ए-मौत के लिए कानून में जरूरी प्रावधान भी किया गया है। यह सारे प्रयास इस बात की तस्दीक करते हैं कि सरकार स्त्री सुरक्षा को लेकर नाकामयाब सही लेकिन गंभीर है।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के साथ घटी उपरोक्त वणित घटनाओं के अलावा भी तमाम ऐसी घटनाएं हैं जो किसी के भी रोंगटे खड़े कर देंगी लेकिन, यहां इन घटनाओं को केवल इसलिए लिया गया है कि ये बताती हैं कि योगी निजाम में भी महिलायें घर के अन्दर और बाहर, कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। ये घटनाएं महिलाओं को लेकर पुलिस, प्रशासन और सरकार के नजरिये की पोल भी खोलती हुई दिखती हैं। इनसे यह भी पता लगता है कि उत्तर प्रदेश में एक छोटे से गांव से लेकर बड़े-बड़े शहरों तक और यहां तक कि एक शिक्षण संस्थान जिसकी दुनिया में एक अलग पहचान है, में भी लड़कियां असुरक्षित हैं।
खैर योगी सरकार की यह स्थिति देख कर विपक्ष की खुशी भी बड़ी हैरतंगेज है। विपक्ष, महिला सुरक्षा के मोर्चे पर मौजूदा सरकार की नाकामयाबी में मिशन 2019 में सफलता का पथ तलाश रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश तो यूं व्यथित दिखाई पड़ते हैं मानों अपनी हुकूमत में महिला सुरक्षा को लेकर बड़े गंभार रहे हों। सपा हुकूमत में तो सूबे के कानून-व्यवस्था के आला मरकज डीजीपी कार्यालय, के पीछे दरख्त पर उल्टा लटका एक स्त्री का क्षत-विक्षत, बेलिबास शव, प्रांत में महिला सुरक्षा की सारी कहानी कह देता है। बुलन्दशहर में मां-बेटी के हुए गैंगरेप की सिसकियां आज भी इंसाफ मांगती सुनी जा सकती हैं।
विडम्बना थी कि सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान सूबे में प्रत्येक प्रकृति का अपराध नये कीर्तमान गढ़ रहा था। बच्चों से लेकर वृद्धों तक, बच्चियों से लेकर महिलाओं तक सभी खौफ के साये में थे। आलम यह था कि राजधानी का हाई सिक्योरिटी जोन अपराधियों का सफारी जोन बन गया था। उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति के मद्देनजर यह मुद्दा 'हॉट टॉपिक' बन गया था।
बुलन्दशहर में मां और बेटी के साथ हुई रेप की घटना ने तो पूरे उत्तर प्रदेश के साथ देश को भी हिला कर रख दिया, साथ ही दलित अत्याचार की घटनाएं भी अखिलेश सरकार के लिए चुनौती बन गई। अपराध नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पिछले पांच वर्षों में प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 61 प्रतिशत वृद्धि हुई। रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 2012-13 में महिलाओं के खिलाफ 24552 आपराधिक घटनाएं हुईं। वहीं वर्ष 2013-14 में यह बढ़ कर 31810 हो गईं। वहीं वर्ष 2016 के मार्च से अगस्त महीने तक में ही प्रदेश में बलात्कार की 1012 और महिला उत्पीडऩ की 4520 घटनाएं हुईं।
दरअसल समाजवादी सरकार में महिला केंद्रित अपराधों का विस्तार समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के बलात्कार की घटनाओं पर दिये गये उस बयान के बाद हुआ, जब उन्होंने कहा था कि लड़कों से गलती हो जाती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जाए। देखते ही देखते अपराधियों ने बदायूं में दो बच्चियों की हत्या कर उन्हें पेड़ पर लटका दिया। इसके बाद से तो राजधानी ही नहीं, प्रदेश भर में मासूम बच्चियों और महिलाओं के साथ बलात्कार और नृशंस हत्या का सैलाब ही आ गया। तात्कालीन आंकड़ों पर नजर डालें तो राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश की सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश महिलाओं के प्रति अपराध में अव्वल था।
नेशनल क्राइम रिकॉर्डस बोर्ड (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक गैंगरेप की घटनाओं में उत्तर प्रदेश सबसे आगे था। साल 2014 में देश भर में 2300 गैंगरेप के मामले सामने आए, जिनमें से अकेले 570 मामले उत्तर प्रदेश के थे। हैरत है कि कहीं चार साल की बच्ची के साथ बलात्कार हो रहा था तो एक साल तक की मासूम भी महफूज नहीं रही। यहां किसी मासूम की रेप के बाद जुबान काट ली गई, तो किसी की इज्जत तार-तार कर उसे ङ्क्षजदा जला दिया गया।
हरदोई में पीडि़ता की आंखे ही फोड़ दी जाती हैं तो लखनऊ में महानगर थाने से कुछ दूरी पर दिनदहाड़े निशातगंज स्थित कन्या स्कूल में पढऩे वाली 8वीं की छात्रा को अगवा करके रेप कर दिया जाता है। यही नहीं शाहजहांपुर जिले के हरेवा गांव में तो दबंगों ने क्रूरता की सारी हदें लांघ दी। पांच दलित महिलाओं को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया गया। तीन घंटे बाद महिलाओं को बेरहमी से मारते हुए दबंग अपने घर ले आए और जानवरों को बांधने की जगह पर बैठा दिया।
2014 के आंकड़े के मुताबिक, देश भर में कुल 197 रेप पुलिस कस्टडी में किए गए थे। इनमें से करीब 90 फीसदी यानी 189 मामले अकेले उत्तर प्रदेश के थे। क्या कोई पुलिस अधिकारी यह बतायेगा कि पुलिस कस्टडी में रेप के सबसे अधिक मामले उ.प्र. में होने की वजह क्या थी? शायद यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहेगा।
सपा सरकार में दरकी कानून-व्यवस्था पर बसपा सुप्रीमों मायावती ने तंज करते हुए कहा था कि लोग मेरे कार्यकाल को याद कर रहे हैं। लेकिन शायद वह भूल गई थीं कि बसपाराज में आधा दर्जन मंत्री-विधायक वसूली, लूट और बलात्कार के आरोपों में जेल में बन्द हुए थे। मायाराज में ही शीलू काण्ड हुआ था जिसमें 17 वर्षीया किशोरी के साथ बसपा विधायक ने बलात्कार किया था, निघासन थाने में एक बच्ची को बलात्कार के बाद फांसी पर लटका दिया गया था। वर्ष 2007 से 2011 तक बसपाराज में प्रतिदिन औसत चार से पांच बलात्कार की घटनाएं हुई थीं। गर बुलन्दशहर में मां और बेटी के साथ हुई रेप की घटना आज लोगों की जबान पर है तो निघासन कांड के दाग भी लोग भूले नहीं हैं।
खैर यह तो वह आंकड़े हैं जो पीडि़ता की हिम्मत के कारण पुलिस अभिलेखों में दर्ज हैं अन्यथा बहुतायत मामले या तो मर्यादा के नाम पर दम तोड़ देते हैं या पीडि़ता थाने की दहलीज तक जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाती है। ये एक दुखद सत्य है कि किसी भी समाज में किसी व्यक्ति के न्याय पाने की संभावना उसकी सामाजिक स्थिति के समानुपाती होती है। जिनका सामाजिक ओहदा- धर्म, जाति, संख्या, आर्थिक या लैंगिक किसी भी आधार पर कमतर है उनको न्याय मिल पाने की संभावना बहुत क्षीण होती है। ऐसी स्थिति में दलित स्त्रियां दोहरा दमन झेलती हैं।
दलित महिलाओं के बलात्कार, अत्याचार पर चुप्पी का, प्रशासन, कानून और मीडिया, तीनों का ही बहुत लंबा इतिहास रहा है। लिहाजा समझ लेना चाहिए कि जितना दिखाई पड़ रहा है, जख्म उससे कहीं अधिक गहरा है। निजाम किसी का भी हो, महिला की सुरक्षा हमेशा दांव पर रही है। घर की देहरी से लेकर स्कूल के परिसर तक, गांव की पगडंडी से लेकर शहर के राजमार्ग तक, हर तरफ घूरती निगाहों के लिये औरत सिर्फ एक शिकार है। ऐसे हालातों में कभी सरकार बेबस दिखती है तो कभी सरकारी नजरिया तंग दिखता है, लेकिन दोनों हालातों में महिला का दामन ही नम दिखता है।
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