जब तक जीऊंगी तब तक खेलूंगी और जीतूंगी: 95 वर्षीय 'स्प्रिंटर दादी' भगवानी देवी
उम्र महज एक संख्या है और मैदान पर भगवानी देवी की उपलब्धियां इसका प्रमाण हैं. स्प्रिंटर दादी, जैसा कि उन्हें कहा जाता है, ने हाल ही में पोलैंड में आयोजित 9वीं वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स इंडोर चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीते.
रविकांत पारीक
Friday April 07, 2023 , 7 min Read
कुछ दिन पहले, दिल्ली की 95 वर्षीय एथलीट, भगवानी देवी डागर (Bhagwani Devi Dagar), गर्व से अपने चारों ओर भारतीय ध्वज लपेटे हुए और उनके गले में लटके हुए तीन चमकदार स्वर्ण पदकों के साथ भारतीय धरती पर उतरीं. ये स्वर्ण पदक उन्होंने हाल ही में टोरून, पोलैंड में आयोजित की गई 9वीं वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स इंडोर चैंपियनशिप में जीते थे.
जैसे ही वह दिल्ली हवाईअड्डे से बाहर निकलीं, भीड़ ने उनका हौसला बढ़ाया, उन्हें उठा लिया, मालाएं पहनाकर उनका स्वागत किया और उन्हें प्यार से अभिभूत कर दिया. भगवानी देवी कैमरों की ओर मुड़ीं और विजय चिन्ह दिया, उनका झुर्रीदार चेहरा गर्व और खुशी से दमक रहा था,
उन्होंने YourStory को बताया, "मुझे बहुत बढ़िया लग रहा है कि ये अपने देश के लिए कर पाई."
एथलीट ने टोरून में 60 मीटर दौड़, शॉट पुट और डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक जीता था. पिछले साल, फ़िनलैंड के टाम्परे में आयोजित वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में, भगवानी देवी ने 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक और शॉट पुट और डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक जीते.
आज भगवानी देवी एक निपुण एथलीट हैं, लेकिन उनकी सफलता की राह आसान नहीं थी, क्योंकि उन्होंने अपने पूरे जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया.
शुरुआती संघर्ष
भगवानी देवी का जन्म 1928 में हरियाणा के खेड़का गांव में हुआ था. बचपन में उन्हें गांव की लड़कियों के साथ कबड्डी खेलना बहुत पसंद था. उन्होंने कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की, और 12 वर्ष की छोटी उम्र में, उनकी शादी विजय सिंह से कर दी गई, जो दिल्ली के पास मलिकपुर गाँव में रहते थे.
जब वह 18 वर्ष की हुई, तो उन्हें एक बच्चा हुआ, लेकिन कुछ ही महीनों में उसका निधन हो गया. तीन साल बाद उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया.
जब वह 30 साल की थी और छह महीने की गर्भवती थी, तब उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. उनके पति का निधन हो गया.
चार साल बाद उनकी बेटी का भी निधन हो गया और अब वह अपने बेटे हवा सिंह डागर के साथ रह गईं.
भगवानी देवी ने इस कठिन समय में जबरदस्त ताकत दिखाई. अपनी बहन के सहयोग से उन्होंने अपने बेटे को शिक्षित किया.
उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई और अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए खेतों में दिन-रात काम किया. आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उनके बेटे ने अस्सी के दशक में दिल्ली नगर निगम में बतौर क्लर्क सरकारी नौकरी हासिल की.
94 साल की उम्र में स्पोर्ट्स
प्रतिस्पर्धी खेल के साथ भगवानी देवी की कोशिश 94 साल की उम्र में शुरू हुई थी. इस दौड़ से उनका परिचय पिछले साल ही उनके पोते विकास डागर ने कराया था, जो एक पैरा-एथलीट और खेल रत्न पुरस्कार विजेता थे. भगवानी देवी और उनका पोता अब दिल्ली में रहते हैं.
विकास याद करते हैं कि कैसे उनकी दादी बचपन में उनके द्वारा खेले जाने वाले खेलों के बारे में बात किया करती थीं. विकास कहते हैं कि वह अपने द्वारा खेले जाने वाले खेलों के बारे में चर्चा करते समय अपनी उत्तेजना को रोक नहीं पाती थी और वह घर लाए गए पदकों से मंत्रमुग्ध हो जाती थी.
विकास बताते हैं, “वह उन्हें छूती और महसूस करती थी. मैं उनकी आंखों में देख सकता था कि वह खेलना चाहती थी और पदक जीतना चाहती थी."
वह अपनी दादी को सक्रिय खेलों से परिचित कराना चाहते थे, लेकिन उनकी उम्र और हृदय की स्थिति के बारे में चिंतित थे, क्योंकि 2007 में उनकी बाईपास सर्जरी हुई थी.
हालांकि, उन्होंने चुनौती लेने और भगवानी देवी को खेलों में शामिल करने का फैसला किया. पिछले साल जनवरी में, उन्होंने उन्हें एक शॉट (शॉट पुट में इस्तेमाल होने वाली धातु की गेंद) दी और उसे फेंकने के लिए कहा. हालांकि, उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया.
लेकिन अगले दिन, वह विकास के पास आई और बोली, "वो चीज दियो जो कल दे रहा था."
विकास खुश हुए और अपनी दादी को पास के मैदान में ले गए और शॉट फेंकने को कहा. भगवानी देवी ने उसे सहजता से 3.75 मीटर के पार फेंक दिया. यह देखकर वे अचंभित रह गए.
“उन्होंने अपनी उम्र को देखते हुए बहुत अच्छा काम किया है. मैं बस अपने दिल में यह जानता था कि वह खेलने के लिए बनी है,” वह कहते हैं.
तब से, पोते-दादी की जोड़ी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
विकास ने भगवानी देवी को प्रशिक्षण देने की पूरी जिम्मेदारी ली ताकि वह अंतरराष्ट्रीय सर्किट में भारत का प्रतिनिधित्व कर सकें.
भगवानी देवी अपनी उम्र को लेकर काफी सक्रिय हैं. हालांकि, उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती प्रतियोगिताओं के बुनियादी नियमों और तकनीकीताओं को समझना रही है. उन्होंने दृढ़ संकल्प के साथ इस चुनौती को पार कर लिया.
विकास कहते हैं, "उनका अनुशासन, लचीलापन और आशावाद उनकी मुख्य ताकत रहे हैं."
सफलता की राह
94 वर्ष की उम्र में किसी भी खेल के लिए प्रशिक्षण एक दुर्जेय कार्य है, और वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए भगवानी देवी की यात्रा कोई अपवाद नहीं थी.
इस उम्र में मांसपेशियां कमजोर होती हैं. इसलिए, हम उन पर कोई सख्त प्रशिक्षण व्यवस्था लागू नहीं करते हैं,” विकास बताते हैं.
"वह रोजाना 3-4 किमी चलती है, और मैं उन्हें नियमों और फेंकने की तकनीकों के साथ प्रशिक्षित करता हूं, जिसे उन्हें सप्ताह में दो या तीन दिन शॉट पुट और डिस्कस थ्रो में इस्तेमाल करने की जरूरत होती है. वह घर का बना खाना खाती हैं लेकिन उन चीजों से परहेज करती हैं जिनमें बहुत अधिक वसा होती है क्योंकि उनकी बाईपास सर्जरी हो चुकी है.
अपने शरीर की ताकत के आधार पर, भगवानी देवी ने तीन श्रेणियों - 100 मीटर स्प्रिंट, शॉट पुट और डिस्कस थ्रो की तैयारी शुरू कर दी.
कुछ ही महीनों के प्रशिक्षण में, उन्होंने ढेर सारे पदक जीते — अप्रैल 2022 में आयोजित दिल्ली स्टेट मास्टर्स एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में तीन स्वर्ण, उसके बाद पिछले साल चेन्नई में 26 अप्रैल से 2 मई के बीच आयोजित 42वीं राष्ट्रीय मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में तीन और स्वर्ण पदक जीते.
उन्होंने 90-94 वर्ष की आयु वर्ग में फ़िनलैंड में वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2022 के लिए भी क्वालीफाई किया, जिससे पूरे परिवार को खुशी हुई लेकिन समान रूप से चिंता हुई.
विदेश यात्रा का मतलब लंबी उड़ान भरना था. साथ ही वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए काफी अभ्यास करना पड़ा. 94 साल की उम्र में किसी के लिए यह बेहद कठिन था. लेकिन भगवानी देवी ने इस मौके का फायदा उठाया.
उन्होंने अपने परिवार से कहा, “मैं बहुत साल जी ली हूं, मौत से डरने के लिए. अगर मुझे कुछ भी हो गया तो मुझे वापस मेरे देश ले आना, पर मुझे वहां जाने दो, ताकि मैं अपने देश के लिए खेल सकूं और जीत सकूं."
उनकी अमर भावना और अनुकरणीय कौशल ने उन्हें टूर्नामेंट जीतने में मदद की. और जल्द ही लोग उन्हें "स्प्रिंटर दादी" (Sprinter Dadi) कहने लगे.
हालांकि, कुछ लोगों ने उनकी उम्र में प्रतिस्पर्धा करने की उनकी क्षमता पर सवाल उठाया. उन्होंने इतनी बड़ी उम्र में खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उनके कोच विकास के फैसले पर भी सवाल उठाया.
लेकिन भगवानी देवी ने इन विचारों को कभी भी अपने उत्साह को कम नहीं होने दिया. उन्होंने लोगों की बातों को नजरअंदाज किया और इसके बजाय अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की.
25 से 31 मार्च के बीच टोरून, पोलैंड में 9वीं वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स इंडोर चैंपियनशिप 2023 आयोजित की गई थी.
तीनों प्रतियोगिताओं में W95 प्लस (महिला 95-99) वर्ग में भगवानी देवी अकेली प्रतियोगी थीं. उन्होंने 36.59 सेकंड में 60 मीटर स्प्रिंट दौड़ लगाई और शॉटपुट में 2.93 मीटर और डिस्कस में 4.67 मीटर का थ्रो किया. इस प्रतिस्पर्धा में तीन स्वर्ण पदक हासिल किए.
भगवानी देवी की उपलब्धियां इस विश्वास का प्रमाण हैं कि उम्र महज एक संख्या है.
फिलहाल उनका ध्यान फिलीपींस में नवंबर में होने वाली एशिया मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप पर है, जिसके बाद वह अगले साल स्वीडन में होने वाली वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हिस्सा लेंगी.
भगवानी देवी का कहना है कि वह पहले से कहीं ज्यादा मजबूत महसूस कर रही हैं.
वह अंत में कहती हैं, “जब तक जीऊंगी तब तक खेलूंगी और जीतूंगी.”