Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

IT प्रोफेशनल्स ने मिलकर कर बनाई एक ऐसी संस्था, जो प्रथामिक शिक्षा में ला रही है क्रांतिकारी परिवर्तन

मुंबई का उमंग फाउंडेशन वंचित छात्रों के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए स्टेशनरी किट का उपयोग कर रहा है और सबसे अच्छी बात है कि इस फाउंडेशन की मदद से अब तक दो लाख से भी अधिक छात्रों की ज़िन्दगी में बदलाव लाने में कामयाब रही है...

IT प्रोफेशनल्स ने मिलकर कर बनाई एक ऐसी संस्था, जो प्रथामिक शिक्षा में ला रही है क्रांतिकारी परिवर्तन

Wednesday June 07, 2017 , 7 min Read

शिक्षा समाज में स्थायी परिवर्तन लाने का मुख्य आधार है। हालांकि, अभी भी लोगों की शिक्षा तक पहुंच और गुणवत्ता के मामले में बहुत से सुधारों की आवश्यकता है। मुंबई की उमंग फाउंडेशन नामक संस्था वंचित छात्रों के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने का प्रयास कर रही है और अपनी स्थापना के बाद से इसके प्रयास से दो लाख से भी अधिक छात्रों की ज़िन्दगी में बदलाव ला चुकी है। 2008 में उमंग की स्थापना तीन आईटी प्रोफेशनल्स ने की थी, जो वीकेंड पर कुछ करना चाहते थे। नौ साल पहले, उनके पहले स्टेशनरी वितरण अभियान में 30 छात्रों ने भागीदारी की थी। तब से ये एक आशा से भरी हुयी प्रेरक यात्रा रही है और कड़ी मेहनत से एक बड़ा प्रभाव पैदा किया जा सका है। 30 छात्रों से शुरू हुयी संख्या अब बढ़कर 30,000 से भी ऊपर हो गई है...

image


30 छात्रों वाली क्लास में केवल एक पाठ्यपुस्तक होने से न केवल सीखने का अनुभव धीमा होता है, बल्कि ये चीज़ छात्रों को हतोत्साहित भी कर सकती है और यही वो वजह है, जिससे छात्रों के सरकारी स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि हो सकती है और उमंग की कोशिश इस घटती दर को बढ़ाना है, ताकि किताब,कॉपी और पेंसिल हर हाथ में हो।

उमंग फाउंडेशन को उम्मीद है कि बच्चों को समग्र रूप से शिक्षित करने तथा शिक्षा और गुणवत्ता के बीच की खाई को पाटने के लिए कुछ संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए। नोटबुक, पेन और पेंसिल से युक्त स्टेशनरी किटों को वितरित करना एक ऐसा ही संसाधन है, जो उमंग द्वारा बच्चों को मुहैया कराया जाता है। 30 छात्रों वाली क्लास में केवल एक पाठ्यपुस्तक होने से, न केवल सीखने का अनुभव धीमा होता है, बल्कि यह छात्रों को हतोत्साहित भी कर सकता है, जिससे छात्रों के सरकारी स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि हो सकती है और उमंग की कोशिश इस घटती दर को बढ़ाना है, ताकि किताब, कॉपी और पेंसिल हर हाथ में हो। 2008 में उमंग की स्थापना तीन आईटी पेशेवरों ने की थी जो सप्ताहांत पर कुछ करना चाहते थे। नौ साल पहले, उनके पहले स्टेशनरी वितरण अभियान में 30 छात्रों ने भागीदारी की थी। तब से यह एक आशा से भरी हुयी प्रेरक यात्रा रही है, और कड़ी मेहनत से एक बड़ा प्रभाव पैदा किया जा सका है। 30 छात्रों से शुरू हुयी संख्या 2016 में बढ़कर 30,000 हो गयी है।

ये भी पढ़ें,

कैंसर से लड़ते हुए इस बच्चे ने 12वीं में हासिल किए 95% मार्क्स

संस्थापकों में से एक आशीष गोयल हमेशा से स्थिरता और दीर्घकालिक प्रभाव के विचार पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ये पूछने पर कि उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काम करने का निर्णय क्यों लिया, तो वे बताते हैं, "कैसे एक छात्र जो अशिक्षित है, उसे बाहर जाने के बजाय शौचालय का इस्तेमाल करने के लिए बार-बार बताना और समझाना पड़ता है। शिक्षा के साथ व्यक्ति को पहले से ही चीजों के विषय में पता होने लगता है और इस तरह अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार शिक्षा और जागरूकता के बीच अन्य सहसंबंधों को बढ़ाया और लागू किया जा सकता है और यही वो वजह है, जिसने मुझे इस क्षेत्र में काम करने के लिए प्रेरित किया। शिक्षा में बहुत सी समस्यायों का समाधान देने की क्षमता है। न केवल शिक्षा तक पहुंच आज एक समस्या है, बल्कि संसाधनों की कमी भी समान रूप से चिंता का विषय है। उमंग के माध्यम से हम शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना चाहते हैं।"

विजयतै विद्यामंदिर की प्रिंसिपल वसुधा पवार उमंग के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताती है, "मैं उनके सहयोग और समर्थन के लिए उमंग फाउंडेशन की बहुत आभारी हूँ। वे हमारे स्कूल के लिए स्तम्भ के समान हैं और पिछले चार वर्षों से हमारे साथ काम कर रहे हैं।"

कुछ समय पहले उमंग फाउंडेशन ने ठाणे के उल्हासनगर क्षेत्र में 150 विद्यालयों में अध्ययन करने वाले 50,000 से अधिक छात्रों के लिए ड्राइंग प्रतियोगिता का आयोजन किया था। छात्रों को मुफ्त स्टेशनरी किट के साथ ही 1,000 से अधिक पुस्तकें स्कूल की लाइब्रेरी में दान में दी गयी थीं। इन गतिविधियों के कारण छात्रों की उपस्थिति में वृद्धि हुई है और अब उनकी योजना स्कूल में एक डिजिटल कक्ष स्थापित करने की है। उमंग ने 100 से अधिक छात्रों के लिए आईपीएल मैच टिकट जैसे मनोरंजक गतिविधियों की व्यवस्था की और मुंबई मैराथन में उनकी भागीदारी भी करवायी है।

किसी भी अन्य संस्था की तरह, उमंग फाउंडेशन को इस मुहीम से जोड़ने और धन जुटाने के मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। छात्रों को इस मिशन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अभियान चलाया गया है। उमंग का संचालन एक स्वैच्छिक व्यापार मॉडल पर किया जाता है और अकेले मुंबई में 10,000 लोग ऐसे हैं, जिन्होंने कम से कम एक स्वयंसेवा की है। इन स्वयंसेवकों में सभी क्षेत्रों से लोग शामिल होते हैं, जैसे कॉलेज के छात्र, पेशेवर लोग या गृहिणियां। उनके अभियानों के लिए धन ज्यादातर 100 रुपए और उस से अधिक के व्यक्तिगत चंदे के रूप में आता है, जबकि कॉर्पोरेट भागीदारी परियोजना पर आधारित होती है। साथ ही उमंग विभिन्न क्राउड फंडिंग के माध्यम से भी धन जुटाता है। फंड रेजिंग की ऐसी ही एक परियोजना जस्टिन बीबर के मुंबई दौरे के दौरान भी चलायी गयी थी, जिसका लक्ष्य इसमें योगदान करने के लिए इस गायक के प्रशंसकों से आग्रह करके 2,00,000 रुपये से अधिक का संग्रह करना था।

ये भी पढ़ें,

तेलंगाना के 17 वर्षीय सिद्धार्थ ने बनाई रेप रोकने की डिवाइस

उमंग ने लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी वर्ष 2012 में वंचित छात्रों को एक दिन में सबसे अधिक स्टेशनरी किटों के वितरण लिए अपना नाम दर्ज करवाया था।

आशीष अपनी प्रेरणाओं के बारे में सोचकर खुशी जाहिर करते हुए कहते है, "बच्चों के चेहरे की मुस्कुराहट मेरे लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है। यह इस बात का ठोस सबूत है कि हम जो काम कर रहे हैं उसका परिणाम मिल रहा है।" आशीष गोयल (33) और उनकी पत्नी पूजा अग्रवाल गोयल (32) फिलहाल इस फाउंडेशन को चला रहे है और उमंग को लेकर अपमी कल्पनाओं को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे है। इस साल उन्होंने 1 लाख और छात्रों को स्टेशनरी किट प्रदान करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने मुंबई के आसपास के स्कूलों को साफ पेयजल उपलब्ध करने की भी एक परियोजना शुरू की है, जिसके तहत 700 स्कूलों को इसका लाभ मिलना शुरू भी हो चुका है। इस प्रकार उमंग मानवता की अधिक से अधिक भलाई के लिए नि:स्वार्थता और प्रतिबद्धता का एक पुरातन स्वरूप है और इस फाउंडेशन द्वारा किये जा रहे प्रयासों को ध्यान में रख कर निदा फ़ाज़ली का ये शेर याद आता है,

"घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये..."

शिक्षा की गुणवत्ता सभी के लिए क्यों है चिंता का विषय?

प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट (PISA), गणित, विज्ञान और पढाई के क्षेत्रों में 15 वर्ष से अधिक आयु के छात्रों की शैक्षिक क्षमताओं का परीक्षण करने के लिए का विश्वव्यापी मूल्यांकन है। आर्थिक सहकारिता और विकास संगठन (ओईसीडी) द्वारा हर तीन साल पर इस मूल्यांकन का आयोजन किया जाता है, जिसका उद्देश्य प्रतिभागी देशों को अपनी प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता के बारे में बेहतर समझ प्राप्त करने में मदद करना है ताकि उचित नीति उपायों में सुधार किया जा सके।

ये भी पढ़ें,

सोशल साइट बैन के बाद 16 साल के लड़के ने बनाया ‘कैशबुक’

पहले और एकमात्र अवसर पर 2009 में भारत ने पीसा में भाग लिया था। भाग ले रहे 74 देशों में भारत का स्थान 72वां था। यद्यपि सिर्फ दो राज्यों, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश के छात्रों ने इस मूल्यांकन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, फिर भी इसके परिणाम देश में प्राथमिक शिक्षा की समग्र स्थिति को बयां कर देते हैं। 2013 में प्रथम फाउंडेशन द्वारा जारी एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) के अनुसार, यह देखा गया कि कक्षा-पांच के 47 प्रतिशत वंचित छात्र ही कक्षा-दो की पुस्तकों को पढ़ सकते थे। इसके अलावा, प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में, वंचित बच्चों को स्कूल में दाखिले के लिए सुविधाओं का आभाव, बुनियादी ढांचे की कमी, संसाधनों की अनुपलब्धता और रचनात्मक प्रोत्साहन न होने के कारण निरंतर संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है।

-प्रकाश भूषण सिंह