Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

लेखन और सृजन की इस दुनिया में चोरों की नहीं है कमी

चोरी कर ले गया बावरे अपने कवि की रचना...

लेखन और सृजन की इस दुनिया में चोरों की नहीं है कमी

Monday April 09, 2018 , 12 min Read

फिल्म 'इश्किया' में जब गुलजार के लोकप्रिय गीत 'इब्ने बतूता, बगल में जूता' पर विवाद हुआ और हिन्दी के साहित्यकारों ने एक स्वर से गुलजार की आलोचना की कि हिन्दी के विख्यात कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता चुरा कर उन्होंने यह गीत लिख दिया, तो गुलजार इसका कोई जवाब नहीं दे पाए। 

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


पिछले साल मई में बेंगलुरु की लेखिका अन्विता ने चेतन भगत पर साहित्यिक चोरी का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट भी दर्ज करा दी थी। लेखिका का आरोप था कि चेतन भगत ने अपनी किताब 'वन इंडियन गर्ल' में उनकी पुस्तक 'लाइफ, ओड्स एंड इंड्स' के किरदारों, स्थानों और भावनाओं की नकल की है। 

दूसरे की कविता, दूसरे का लेख चुराकर, अपनी बताकर सरेआम मंच से पढ़ देना, यहां तक कि उस कवि के सामने ही, अपने नाम से प्रकाशित-प्रसारित तक कर लेना, हमारे समय में, ये कैसी बेशर्मी है! कविताओं की चोरी पर जनगीतकार राम सेंगर कहते हैं कि ''यह तो ज़माने से होता आया है। और अब तो कविता की इस तरह की चोरियों ने या कहें हाथ की सफाई ने बेशर्मी की हदें ही पार कर दी हैं। गुमान में अंधे इन लोगों की चोरियां या हेराफेरियाँ पकड़ में तुरंत आ जाती हैं क्योंकि इनमें इतनी भी अक़ल नहीं होती कि चोरी किसकी रचनाओं की कर रहे हैं।

एक मीडिया-संवाद में कुछ साल पहले समाजशास्त्री शिव विश्वनाथन ने प्रसंगवश कहा था कि, पश्चिमी देशों में एक मशहूर कहावत है देह व्यापार सबसे पुराना पेशा है लेकिन आज की कहावतों की मानें तो मिलावट और प्लेजियरिज़्म, जिसे साहित्यिक चोरी या आइडिया की चोरी भी कह सकते हैं, उससे भी पुराना पेशा है। दूसरे की कविता, दूसरे का लेख चुराकर, अपनी बताकर सरेआम मंच से पढ़ देना, यहां तक कि उस कवि के सामने ही, अपने नाम से प्रकाशित-प्रसारित तक कर लेना, हमारे समय में, ये कैसी बेशर्मी है! किसी दूसरे की भाषा, विचार, उपाय, शैली आदि का अधिकांशतः नकल करते हुए उसे अपनी मौलिक कृति के रूप में प्रस्तुत करना साहित्यिक चोरी होती है।

यूरोप में अट्ठारहवीं सदी के बाद ही इस तरह का व्यवहार अनैतिक व्यवहार माना जाने लगा था। मिलावट और साहित्यिक चोरी उस रचना से छेड़छाड़ कर उसकी मौलिकता को ख़त्म कर देती है या उसे घिसापिटा बना देती है। मिलावट में भ्रष्ट संस्करण के ही मूल होने का दिखावा किया जाता है, जबकि साहित्यिक चोरी खुद को मौलिक होने का दिखावा करती है। साहित्यिक चोरी बड़े स्तर पर भी हो सकती है और व्यक्तिगत भी। परीक्षाओं में सामूहिक रूप से नकल बड़े पैमाने पर होने वाली चोरी का एक उदाहरण है जबकि शोध कार्य के किसी मौलिक हिस्से का नकल करना कहीं ज़्यादा व्यक्तिगत बात है।

कवि-सम्मेलन वाले जमाने पर तंज करते हुए कवि साहेबलाल 'सरल' लिखते हैं, 'कविता चोरों की हुई आज बड़ी भरमार, एक चाहिए ढूँढना, पाओ कई हजार। चोरी की सापेक्षता, स्वारथ करती सिद्ध, पल में मौसेरा बने, होने को परसिद्ध।' कई नामचीन लेखकों पर भी आजकल चोरी के आरोप लगाए जा रहे हैं। युवा कवि अंजु शर्मा ने चालीस पार महिलाओं पर आधारित एक कविता लिखी। जैसे ही यह कविता प्रसिद्ध हुई, तो दूसरे लेखक उन पर चोरी का आरोप लगाने लगे। साथ ही साथ दूसरे युवा कवि उनकी इस लोकप्रिय कविता को अपने नाम से पोस्ट भी करने लगे।

पंकज सुबीर का कहानी संग्रह है ‘चौपड़े की चुड़ैलें’। किसी ने उनकी कहानी के विषय वस्तु पर हूबहू एक सी ग्रेड फिल्म बना दी। उन्होंने फिल्मकार को अपनी कहानी के बारे में बताया, प्रमाण भी प्रस्तु‍त किए लेकिन कुछ नहीं हुआ। उनकी कई कविताएं कॉपी पेस्ट कर अपने नाम से फेसबुक वॉल पर लगा लेने के साथ ही ढिठाई ये भी हुई कि उन्हीं को मैसेज कर इसकी सूचना भी दे दी गई।

फ़िरदौस ख़ान का कहना है, 'आख़िर ग़ैरत नाम की भी कोई चीज़ होती है। लोग इतने बेग़ैरत भी हो सकते हैं। फ़ेसबुक पर ऐसे लोगों को देखकर बेज़ारी होती है। इन लोगों को किसी का कोई भी लेख या गीत, ग़ज़ल या नज़्म अच्छी लगती है, फ़ौरन उसे अपनी दीवार, अपने ग्रुप या अपने पेज पर पोस्ट कर देते हैं, बिना लेखक का नाम शामिल किए। कुछ महाचोर या महा डकैत रचना के नीचे अपना नाम भी लिख देते हैं। इसे चोरी कहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि ये तो सरासर डकैती है। एक साहित्यिक डकैती। कोई बेग़ैरत और कमज़र्फ़ ही ऐसा कर सकता है। जो लोग फ़ेसबुक पर दूसरों की रचनाएं चुराते हैं, फ़ेसबुक से बाहर ये लोग न जाने क्या-क्या चुराते होंगे। इसलिए ऐसे लोगों से सावधान रहें।'

पिछले साल मई में बेंगलुरु की लेखिका अन्विता ने चेतन भगत पर साहित्यिक चोरी का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट भी दर्ज करा दी थी। लेखिका का आरोप था कि चेतन भगत ने अपनी किताब 'वन इंडियन गर्ल' में उनकी पुस्तक 'लाइफ, ओड्स एंड इंड्स' के किरदारों, स्थानों और भावनाओं की नकल की है। उसका जवाब देते हुए चेतन भगत का कहना था कि ‘मैं इतना मूर्ख नहीं हूं, जो किसी प्रकाशित किताब की नकल करूंगा। यह सरासर फर्जी मामला है।...अगर उन्होंने ऐसा किया होता तो लेखिका के काम और उनके काम का स्क्रीन शॉट सभी जगहों पर सोशल मीडिया के जरिए वायरल हो चुका होता।’

वर्ष 2017 में ही मंचीय कवि कुमार विश्वास ने ‘नीड़ का निर्माण’ नाम से हरिवंश राय बच्चन की कविता गाते हुए उसे यूट्यूब पर अपलोड कर दिया था। बाद में उन्होंने इसके लिए माफी मांग ली और वह वीडियो भी हटाने के लिए तैयार हो गए लेकिन अभिनेता अमिताभ बच्चन ने साहित्यिक चोरी का उन पर आरोप लगाते हुए नोटिस भेज दिया। उन्होंने कुमार को कविता हटाने के लिए आगाह करते हुए इससे होने वाली कमाई भी वापस करने के लिए कहा। अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की कविता, बिना इजाजत के पब्लिक प्लेटफॉर्म पर किसी दूसरे को पढ़ते हुए देखना उन्हें कत्तई गंवारा न हुआ।

इसी तरह कानपुर के वरिष्ठ साहित्‍यकार और गीतकार कन्हैया लाल वाजपेयी ने भी कुमार विश्वास को लीगल नोटिस भेजकर उनसे जवाब तलब कर लिया था। आर्थि‍क क्षति‍ के तौर पर उन्होंने दस लाख रुपए का हर्जाना भुगतने की चेतावनी भी थी। वाजपेयी बताते हैं कि उन्‍होंने 'आधा जीवन जब बीत गया, बनवासी सा गाते रोते, अब पता चला इस दुनिया में सोने के हिरन नहीं होते' नामक गीत लिखा था। इसका प्रकाशन मुम्बई की साहित्यिक मासिक पत्रिका 'नवनीत' में हुआ था। सन् 2000 में प्रकाशित गीत संग्रह 'मेरी प्रतीक्षा अब न करना' के पेज 76 पर 'सोने के हिरन नहीं होते' नामक शीर्षक से प्रकाशित हुआ था।

और तो और, पिछले साल ही अगस्त में हाईकोर्ट ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगे साहित्यिक चोरी के आरोप की सुनवाई करते हुए उस मामले में राहत देने से इंकार कर दिया था। अदालत ने उन पर 20 हजार रुपये जुर्माना भी कर दिया था। जेएनयू के पूर्व शोधकर्ता और लोकसभा चुनाव लड़ चुके अतुल कुमार सिंह ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि उनके शोध कार्य की नकल कर पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एडीआरआई) के सदस्य सचिव शेबल गुप्ता ने उसे किताब के रूप में प्रकाशित करा लिया और उस किताब को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अनुलेखित भी कर दिया।

ज्यादातर फिल्मी लेखक साहित्यिक रचनाओं के पात्रों को ज्यों का त्यों उठा लेते हैं। यही कारण है कि फिल्मों में गाहेबगाहे इस तरह के सीन शामिल होते हैं, जो भले ही नए आकार में होते हैं, लेकिन उनका असली रचयिता कहानीकार ही होता है। फिल्मी गीतकार हिन्दी और उर्दू के रचनाकारों की रचनाओं के मुखड़े उठाकर नया गीत रच देते हैं। आरोप लगते रहे हैं कि ख्यात गीतकार गुलजार अपने ज्यादातर गीतों में इसी तरकीब का इस्तेमाल करते हैं।

फिल्म 'इश्किया' में जब गुलजार के लोकप्रिय गीत 'इब्ने बतूता, बगल में जूता' पर विवाद हुआ और हिन्दी के साहित्यकारों ने एक स्वर से गुलजार की आलोचना की कि हिन्दी के विख्यात कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता चुरा कर उन्होंने यह गीत लिख दिया, तो गुलजार इसका कोई जवाब नहीं दे पाए। लोकप्रिय गीत 'दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन' की पहली दो पंक्तियां ग़ालिब के मशहूर शेर 'जी ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन' से मिलती-जुलती है। इसी तरह फैज अहमद फैज के कविता संग्रह 'दस्ते सबा' की उनकी एक नज्म 'तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है' को उड़ाकर मजरूह सुलतानपुरी ने फिल्म 'चिराग' में पूरा गीत ही लिख दिया था।

इसी तरह ‘कोर्ट में कुत्ता’ नामक कविता को लेकर अभिनेता अमिताभ बच्चन कवि जगबीर राठी के निशाने पर आ जाते हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक सहायक प्रोफेसर दिल्ली हाई कोर्ट में तलब कर लिए जाते हैं। 'हैरी पॉटर' की लेखिका जेके रोलिंग साहित्य चोरी के आरोप से घिर जाती हैं। स्वतंत्र मिश्र बताते हैं कि एक बार 'पहल' संपादक ज्ञानरंजन ने उनसे कहा था- 'इंटरनेट के कारण कई लोग लेखक बन गए हैं। अंग्रेजी से अनुवाद करके अपने नाम से छपवा लेने का काम खूब हो रहा है। पुराने समय से साहित्य और पत्रकारिता में चोरी की जाती रही है, परंतु नयी पीढ़ी के लेखकों को इससे बचना चाहिए।' ऐसे ही हालात पर कभी वरिष्ठ जनगीतकार मुकुट बिहारी सरोज ने यह 'चोर के प्रति' कविता लिखी होगी -

चोरी कर ले गया बावरे अपने कवि की, पीड़ित कवि की

ऐसे कवि की जिसने तेरा दर्द गीत के स्वर में गाया

जिसकी भरी जवानी में भी स्वप्न एक रंगीन न आया।

जिसने चोरी कभी नहीं की तेरे जलते अरमानों से

जिसने मुँह न चुराया अब तक, दुखियों के गीले गानो से

ऐसे कवि की कुटिया में घुसते, लज्जा तो आई होगी

कदम-कदम पर दबी-ढँकी बैठी विपन्नता तुझे देख कर

बेचारी बेहद शरमाई तो होगी।

छूते छूते मेरा आँसू भरा खजाना एक बार रोया तो होगा

तय है तेरे हाथों में आते ही सपना हिलकी भर-भर रोया होगा।

लेकिन तू नासमझ अर्थ का दीवाना क्या लोभी निकला

कवि की चोरी करते-करते तेरा अन्तस ज़रा न पिघला

और न गिरते गिरते सम्हला कुटिया को तो देख लिया होता ओ पापी !

दीवारों का मौन, फर्श की पहिचानी-सी घिरी उदासी

लेकिन तू तो पत्थर निकला और न गिरते-गिरते सम्हला।

क्योंकि अबोध दुधमुँहों के तू आँसू पीकर आया होगा

अधनंगी पत्नी के घावों को खुद सी कर आया होगा

तू तो आता नहीं मगर जठराग्नि तुझे ले आई होगी.

भूख तुझे ले आई होगी, प्यास तुझे ले आई होगी।

तेरे अरमानो का धारक सोने की लंका में होगा

स्वर्ग-नरक के दो पाटों के बीच बड़ी शंका में होगा।

सम्भव है तेरे जीवन की पहली-पहली चोरी होगी

दृढ़ता से कह सकता हूँ मैं इससे पहले तेरी बुद्दि अछूती होगी, कोरी होगी।

इससे पहले तू रामायण झूम-झूम कर गाता होगा

मन्दिर-मन्दिर में जा-जाकर अपनी व्यथा सुनाता होगा

सन्तोषो से अपनी अग्नि बुझाता होगा।

कुछ भी हो पर तेरा निश्चय बहुत बुरा था, बुरा किया है

तूने अपने ही जनकवि की मस्ती तक को चुरा लिया है

इतना तो विश्वास किया होता तूने मेरी कविता पर

मैं लिखवा लेता मुक्त हँसी के छन्द आँसुओं की सरिता पर

आज नहीं तो कल सपनों को नंगे पैरों आना होगा

जो कुछ भी रच देता है वह इन्सानों को गाना होगा

लेकिन तूने अपने कवि को आकाशी माया ही जाना

बिलकुल ही झूठा अनुमाना।

तूने ही मजबूर कर दिया मैं अब तुझको एक लुटेरा-लम्पट कह दूँ

तूने ही मजबूर कर दिया मैं तुझको अब एक छिछोरा-कायर कह दूँ

अपने पर तो थोड़ा-सा विश्वास किया होता ओ पागल

मेरे बदले तू ही लेता देख धरा की छाती घायल

मर्दानों की तरह बदलता अपने दोहन की गाथाएँ

विद्रोही की तरह निकलता बाँहों में लेकर ज्वालाएँ

इतना ही तो होता तू मर जाता लड़ते-लड़ते रण में

लेकिन तेरा रक्त जगा जाता ज्वालामुखी धरती के सोये कण-कण में

कोई कहता मुक्ति-दूत था कोई कहता वह सपूत था

कितना प्यारा दिन होता जब दीवानों की टोली तुझको शीश झुकाती

आने वाली पीढ़ी तुझ पर फूल चढ़ाती

लेकिन आज कलंकित कर दी पौरुष की वज्रों सी छाती

तूने आज बुझा डाली है अपने कर से अपनी बाती

अंधियारी के आशिक़ ! मेरा दीप बुझाना नहीं सरल था

उसमे नेह नाम को ही था उसमे बेहद भरा गरल था।

अच्छा किया पीर दे डाली और लबालब कर दी प्याली

लेकिन ज़रा देख भी लेना चुपके-चुपके पीछे-पीछे

मैं तूफ़ान बना चलता हूँ या चलता हूँ आँखे मीचे।

कविताओं की चोरी पर जनगीतकार राम सेंगर कहते हैं कि ''यह तो ज़माने से होता आया है। और अब तो कविता की इस तरह की चोरियों ने या कहें हाथ की सफाई ने बेशर्मी की हदें ही पार कर दी हैं। गुमान में अंधे इन लोगों की चोरियां या हेराफेरियाँ पकड़ में तुरंत आ जाती हैं क्योंकि इनमें इतनी भी अक़ल नहीं होती कि चोरी किसकी रचनाओं की कर रहे हैं। हर शहर में ऐसे शातिर बदमाश दो-चार मिल ही जाएंगे, जो दूसरों की रचनाओं से पका-पकाया माल लेकर रातोंरात महान बनने के फेर में रहे हैं। अपनी इस तरह से बनायी गयी नक़ली हैसियतों को इन चोरों-उचक्कों ने भ्रम फैला कर साहित्य समाज में भुनाया भी ख़ूब है। प्रामाणिक तौर पर इन्हें नंगा करना कठिन नहीं है।

उम्मीद है, इस विषय पर भुक्तभोगी ज़रूर कुछ न कुछ कहेंगे। भगवान स्वरूप सरस की सारी कविताएं अरुणा दुबे ने चोरी कर लीं, और वह कई बड़े कवियों की कृपा पात्र हैं। हेरफेर कर के कविताएं बना लीं। ऐसी कविताओं के मामले कोर्ट तक गए हैं। छत्तीसगढ़ के कवि श्रीधर आचार्य लिखते हैं - 'कविता चोरी के विषय में क्या कहा जाय! मेरे साथ तो ऐसा वाकया हुआ है कि एक कवि गोष्ठी के दौरान मेरे सामने ही एक महोदय मेरी कविता को अपनी बताकर पाठ करने लगे। मैं तो अवाक् रह गया। मेरा खून खौलने लगा। एक पद पढ़ने के उपरान्त मैंने उनका जब कड़ा विरोध किया, तब उन्होंने अपनी गलती मानी। इस तरह से कविता की चोरी करना आम बात हो गयी है। बड़े-बड़े रचनाकारों की रचनाओं को अपना बताकर छपने और छापने वालों की कमी नहीं है। अनायास ही इनसे सामना होता है। बड़ी विचित्र स्थिति होती है, सारी रचनाएं तो प्रकाशित, प्रसारित नहीं हुईं होतीं। इनके लिए मेरे विचार से कोई उपाय नहीं है।'

यह भी पढ़ें: एजुकेशन सेक्टर: छोटे राज्यों में बड़े-बड़े घोटाले