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निर्भया मामले में फांसी की सजा सुनाए जाने के मद्देनजर भारत में मौत की सजा पर एक नजर

निर्भया मामले में फांसी की सजा सुनाए जाने के मद्देनजर भारत में मौत की सजा पर एक नजर

Wednesday January 08, 2020 , 3 min Read

निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में दिल्ली की एक अदालत द्वारा मंगलवार को चार दोषियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के मद्देनजर भारत में फांसी की सजा और उनको अमल में लाए जाने पर एक नजर -


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फोटो क्रेडिट: NewsClick



कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि दोषियों को तब तक शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दायर करने का समय है जो याचिका पर विचार कर सकता है या नहीं भी कर सकता है।


विशेषज्ञों का कहना है कि उपचारात्मक याचिकाएं दायर करने के अलावा उनके पास अब कोई दूसरा कानूनी उपचार नहीं है।


वरिष्ठ वकील अजित सिन्हा ने कहा,

‘‘वे उपचारात्मक याचिकाएं दायर करेंगे। यही उपाय बचा है। अन्यथा हर चीज अंतिम है। कोई भी इसे नहीं रोक सकता है (उपचारात्मक याचिकाओं को) लेकिन क्या इस पर सुनवाई होगी, सवाल यह हैं उनके पास 22 जनवरी तक का समय है।’’

संसद ने पिछले वर्ष यौन शोषण से बच्चों की रक्षा (पॉक्सो) कानून के तहत 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान किया था।


दिल्ली में राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालय की तरफ से मौत की सजा पर जारी परियोजना 39ए के मुताबिक 2000 से 2014 के बीच निचली अदालतों ने 1810 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी। इनमें से आधे से अधिक सजाओं को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया गया और दोषियों में एक चौथाई या 443 को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने बरी कर दिया।


उच्चतम न्यायालय ने इन कैदियों में से 73 की मौत की सजा बरकरार रखी थी जिनमें से कई पहले ही मौत की सजा पाकर भी एक दशक जेल में गुजार चुके हैं।





उच्चतम न्यायालय ने 2018 में 11 मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया जबकि निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले में समीक्षा याचिका पर सुनवाई करते हुए तीन मामलों में मौत की सजा की पुष्टि की।


भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने चार पीठों का गठन कर मौत की सजा पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई की। हर पीठ में तीन न्यायाधीश थे जिन्होंने छह हफ्ते से अधिक समय तक सुनवाई कर मौत की सजा पर निर्णय किया।


उच्चतम न्यायालय ने 2017 में सात मौत की सजा की पुष्टि की जबकि 2016 में इसने एक मौत की सजा की पुष्टि की और सात मामलों में सजा बदल दी।


बहरहाल, भारत में निचली अदालतों ने 2018 में 162 लोगों को फांसी की सजा दी जो 2000 के बाद करीब दो दशक में सर्वाधिक थी। इनमें से 45 मामले हत्या और 58 मामले हत्या एवं यौन अपराधों के थे।


स्वतंत्र भारत के शुरुआत में फांसी की सजाओं में नाथूराम गोडसे और नारायण डी. आप्टे की सजा शामिल थी जो महात्मा गांधी के हत्यारे थे। उन्हें 15 नवम्बर 1949 को हरियाणा के अंबाला केंद्रीय कारागार में फांसी पर लटकाया गया था।


‘कॉर्नेल सेंटर ऑन डेथ पेनाल्टी वर्ल्डवाइड’ के मुताबिक भारत में अंतिम बार मौत की सजा 30 जुलाई 2015 को याकूब मेमन को दी गई थी जो 1993 के मुंबई बम हमले का वित्त पोषण करने का दोषी था।


वर्ष 2001 में संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को उच्चतम न्यायालय ने 18 दिसम्बर 2002 को मौत की सजा सुनाई थी और इसके दस वर्ष बाद नौ फरवरी 2013 को उसे फांसी पर लटकाया गया।


2008 में मुंबई हमले में शामिल आतंकवादी अजमल अमीर कसाब को 21 नवम्बर 2012 को फांसी पर लटकाया गया था।