कश्मीर के ग्रामीण अंचल में महिलाएं हो रही हैं खराब स्वास्थ्य सेवाओं का शिकार
कश्मीर के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति स्थानीय नागरिकों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है, लेकिन यह सबसे ज्यादा महिलाओं को प्रभावित कर रही है। स्त्री रोग विशेषज्ञों की कमी के चलते उन्हें छोटी समस्याओं के लिए भी राजधानी श्रीनगर जाना पड़ता है।
महिलाओं को मिल रही खराब स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कई बार मांग उठाई जा चुकी है। नाम नहीं छापने की शर्त पर विभिन्न जिला अस्पतालों के अधिकारियों ने बताया कि वह मानव संसाधन की कमी की वजह से मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
कश्मीर के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति स्थानीय नागरिकों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है, लेकिन यह सबसे ज्यादा महिलाओं को प्रभावित कर रही है। स्त्री रोग विशेषज्ञों की कमी के चलते उन्हें छोटी समस्याओं के लिए भी राजधानी श्रीनगर जाना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं और निम्न आय वर्ग वाले व्यक्ति खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। स्थानीय निवासी इस बात का उदाहरण देते हुए आरोप लगाते हैं कि श्रीनगर के 114 किलोमीटर उत्तर में स्थित सुगाम लोलाब के उप जिला अस्पताल में दो स्त्री रोग विशेषज्ञ, जिनमें एक डिप्लोमा धारक है, एक हफ्ते में केवल दो दिन ही अस्पताल आते हैं।
VillageSquare.in से बात करते हुए स्थानीय नागरिकों का यह भी कहना था कि इनमें से एक डॉक्टर एनआरएचएम (राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन) के तहत नियुक्त की गई है, लेकिन वह भी रात के समय कभी भी उपलब्ध नहीं होती हैं।
गर्भवती महिलाओं के लिए किसी भी प्रकार की आकस्मिक स्वास्थ्य सुविधा के लिए उनके परिजनों को जिला अस्पताल ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके बाद बेहतर इलाज के लिए श्रीनगर स्थित लाल देड अस्पताल भेजा जाता है, जो कि कश्मीर का प्रमुख मातृत्व देखभाल अस्पताल है।
दूरदराज इलाकों से यात्रा
श्रीनगर के एक निजी अस्पताल में अपनी 15 वर्षीय बेटी का इलाज करा रहीं शहज़ाद, कुपवाड़ा के लोलाब जिले के ग्रामीण अंचल से हैं। वह बताती हैं कि एक सामान्य स्त्री रोग समस्या के इलाज के लिए भी उन्हें महीनों तक उप जिला अस्पताल और जिला अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े। वह बताती हैं कि पिछले 15 दिनों से वह अपने एक रिश्तेदार के घर में रह रही हैं, जो स्वयं किराए के घर में रहता है। वह कहती हैं कि यदि उनकी बेटी को वहीं पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पातीं तो शायद उन्हें एक छोटे से इलाज के लिए इतनी दूर नहीं आना पड़ता।
हालांकि, कुपवाड़ा जिले के चीफ मेडिकल ऑफिसर प्रहलाद् सिंह बताते हैं कि कुपवाड़ा जिला अस्पताल में रोगियों को अब उचित देखभाल मिलती है। वह कहते हैं कि हमारे पास लंबे समय से चिकित्सा कर्मचारियों से संबंधित मुद्दे थे, लेकिन अब हमने उन्हें काफी हद तक ठीक कर लिया है। उन्होंने VillageSquare.in को बताया कि अब हमारे पास तीन स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की खराब स्थिति पर उन्होंने टिप्पणी से इनकार कर दिया।
स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती मांग
महिलाओं को मिल रही खराब स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कई बार मांग उठाई जा चुकी है। नाम नहीं छापने की शर्त पर विभिन्न जिला अस्पतालों के अधिकारियों ने बताया कि वह मानव संसाधन की कमी की वजह से मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि कश्मीर के किसी भी अस्पताल में एचडीयू यानि हाइ डिपेन्डेंसी यूनिट तक नहीं है। यह इन्टेंसिव केयर यूनिट यानि आईसीयू के पहले का चरण होता है, जिसमें उन मरीजों को रखा जाता है जो सामान्य वार्ड और आईसीयू के मध्य होता है। इसे इंटरमीडियट केयर यूनिट भी कहा जाता है। यह मरीजों को आईसीयू से सामान्य वार्ड में भेजने के पहले की स्थिति में उपयोगी होता है।
कम होती आशा
इसी साल मार्च में जम्मू-कश्मीर के स्वास्थय एवं चिकित्सा मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर में रोगी-डॉक्टर का देश भर में सबसे कम है। देश में प्रति 2000 लोगों पर एक डॉक्टर है, वहीं जम्मू-कश्मीर में प्रति 3866 लोगों पर एक एलेपैथिक डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के हिसाब से प्रति 1000 लोगों पर 1 डॉक्टर होना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर में, सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों दवारा राज्य की 14.3 मिलियन आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं दी जा रही हैं। यही उनकी 97 प्रतिशत स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करता है। वहीं भौगोलिक विषमताओं, सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील और प्रतिबंधित भूमि नियमों के कारण निजी स्वास्थ्य संस्थान यहां नहीं पहुंच पा रहा है।
वर्तमान स्थिति
2017 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर राज्य के अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओँ के बुनियादी ढांचे और मानव संसाधन की कमी के बारे में एक चेतावनी भी उठाई थी। राज्य के 84 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) और उप-जिला अस्पतालों (एसडीएच) में सीएजी द्वारा आयोजित प्रदर्शन लेखा परीक्षा के अनुसार, 504 विशेषज्ञों के स्वीकृत स्थानों पर केवल 270 विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध थे। इन स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञों की 46 प्रतिशत कमी थी।
इतना ही नहीं सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक, जिला अस्पतालों में स्थित ब्लड बैंकों की स्थिति बदतर बताई गई थी, इन ब्लड बैंकों में 132 स्वीकृत पदों पर सिर्फ 10 कर्मचारी उपलब्ध थे। यह आंकड़े प्रदेश की वर्तमान स्थिति बताने के लिए काफी हैं।
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