कूड़ा बीनने वाले बच्चों के जीवन को शिक्षा से संवारने में जुटे हैं बनारस के प्रो. राजीव श्रीवास्तव
कूड़ा बीनने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं राजीव...अब तक 467 बच्चों को कर चुके हैं शिक्षित...यूएन के साथ कई देशों ने राजीव को किया सम्मानित...
जिस वक्त हमारे और आपके बच्चे कंधे पर बैग और हाथों में बॉटल लेकर स्कूल जाते हैं। ठीक उसी समय समाज में कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं। जो कूड़ा बीनने के लिए घरों से बाहर निकलते हैं। जीने की जद्दोजहद और गरीबी से लड़ने के लिए इन बच्चों ने कूड़े को सहारा बनाया है। कूड़े के ढेर पर ही वो जिंदगी का फलसफा सीखते हैं। जीने का नज़रिया उन्हें यहीं से मिलता है। वाराणसी में ऐसे ही बच्चों की जिंदगी संवार रहे हैं राजीव श्रीवास्तव। शहर के लल्लापुरा इलाके में रहने वाले राजीव श्रीवास्तव बीएचयू में इतिहास के सहायक प्रोफेसर हैं। और अब कूड़ा बीनने वाले बच्चों की तस्वीर बदलने के लिए पहचाने जाते हैं। राजीव अब इन बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं। तालीम के जरिए वे गरीब बच्चों की तकदीर बदलना चाहते हैं। इन बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करना चाहते हैं। ताकि ये भी समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सके। यकीनन राह कठिन थी लेकिन राजीव ने इस मुश्किल काम को कर दिखाया। साल 1988 में राजीव ने कुछ लोगों की मदद से विशाल भारत नाम की एक संस्था बनाई और फिर लग गए अपने मिशन में। राजीव के लिए ये काम इतना आसान नहीं था। लेकिन अपने धुन के पक्के राजीव ने इसे साकार करके ही दम लिया। राजीव रोज सुबह कूड़ा बीनने वाले बच्चों को लल्लापुरा स्थित अपने संस्था में पढ़ाते हैं।
राजीव के कूड़ा बीनने वाले बच्चों के साथ जुड़ने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। राजीव योर स्टोरी को बताते हैं,
''साल 1988 में अप्रैल का महीना था। दोपहर के वक्त लू के थपेड़ों के बीच मैं इंटरमीडिएट की परीक्षा देकर लौट रहा था। परीक्षा सेंटर से कुछ दूरी पर मैं अपने दोस्तों के साथ मिठाई की एक दुकान में रुक गया। इसी दौरान दुकान के पास एक हैंडपंप पर मैले कुचले कपड़े में एक छोटा बच्चा पहुंचा। उसके कंधे पर एक बोरा लटका था और उसमें कुछ सामान था। जेठ की चिलचिलाती धूप में वो बच्चा दुकान के पास लगे हैंडपंप पर पानी पीने लगा, लेकिन तभी वहां मौजूद दुकानदार वहां पहुंचा और छड़ी लेकर उस बच्चे पर बरस पड़ा। बेचारा छोटा बच्चा बगैर पानी पीए वहां से चला गया। इस घटना के बाबत जब मैंने दुकानदार से पूछा तो जो जवाब मिला वो बेहद हैरान करने वाला था। दुकानदार ने बताया कि अगर ये कूड़ा बीनने वाला बच्चा यहां पानी पीएगा तो उसकी दुकान पर मिठाई खाने के लिए कोई नहीं आएगा। इस पूरे वाक्ये ने मेरे जेहन को झकझोर कर रख दिया और उसी दिन मैंने इन ग़रीब बच्चों के लिए कुछ करने की कसम खाई। ''
यकीनन इस घटना ने राजीव की पूरी जिंदगी बदल दी। उस रात राजीव के मन में बस यही ख्याल आता रहा आखिर इन बच्चों का क्या कसूर है। क्या इन बच्चों को गरीब होने की सजा दी जाती है। क्या सिर्फ गरीब होने के चलते इनसे पढ़ने का हक छीन लिया गया है। क्या देश में गरीबों को शिक्षित होने का कोई अधिकार नहीं है। इस घटना से आहत राजीव ने कूड़ा बीनने वाले बच्चों को शिक्षित करने का मिशन बनाया और अगले ही दिन से अपने मिशन को मंजिल देने में जुट गए। उस वक्त राजीव मुगलसराय रहते थे। राजीव ने मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बीनने वाले बच्चों को इकट्ठा किया और उन्हें पढ़ाने लगे। हालांकि ये काम इतना आसान नहीं था। राजीव बताते हैं कि शुरू में उन्हें बेहद परेशानी हुई। कूड़ा बिनने वाले बच्चे उनके साथ जुड़ने के लिए तैयार नहीं थे। इन बच्चों के लिए रोजी रोटी पहली प्राथमिकता थी। ये बच्चे पढ़ाई को अहमियत नहीं देते थे। लेकिन राजीव ने भी हार नहीं मानी। कभी वो शहर की गलियों की खाक छानते तो कभी कूड़े के ढेर के आसपास पूरे दिन मंडराते रहते। राजीव गरीब बच्चों से मिलते। उन्हें पढ़ाई के प्रति जागरुक करते रहते। दिन गुजरे। हफ्ते बीते। महीनों बाद राजीव की मेहनत रंग लाई। काफी मेहनत के बाद गरीब बच्चों का एक समूह उनके साथ आने को तैयार हुआ। राजीव की परेशानी सिर्फ बच्चों की तलाश में ही नहीं हुई। बल्कि उन्हें मुहल्ले और परिवार के लोगों से भी ताने सुनने को मिले।
राजीव कहते हैं,
''जब मैं कूड़ा बीनने वाले बच्चों को पढ़ाई के प्रति जागरुक करता तो ये देख आसपास के लोग मुझ पर हंसते। मेरी खिल्ली उड़ाते। लेकिन मैंने इन बातों की कभी परवाह नहीं की। लोगों की हंसी मेरे जुनून को और जिंदा करती। मैं अपने रास्ते पर और मजबूती के साथ आगे बढ़ता चला गया।''
राजीव ने गरीब बच्चों को शिक्षित करने का जो सपना अपने आंखों में संजोया था। उसे हर हाल में वो हासिल करना चाहते थे। और हुआ भी कुछ ऐसा। वक्त बीतने के साथ राजीव का सपना साकार भी होने लगा है। राजीव ने अपने संस्थान में कूड़ा बिनने वाले बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। हालांकि शुरुआत में बच्चों की संख्या चुनिंदा थी, लेकिन वक्त बीतने के साथ राजीव की इस मुहिम से बच्चों के जुड़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो अब तक जारी है। हर रोज सुबह लल्लापुरा स्थित विशाल भारत संस्थान में कूड़ा बीनने वाले बच्चों की पाठशाला लगती है। यहां बच्चों की पढ़ाई के साथ साथ उनका नैतिकता के भी पाठ पढ़ाए जाते हैं। उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि अब तक 467 बच्चे साक्षर हो चुके हैं। इनमें से कुछ ने तो राजीव की पाठशाला से निकलने के बाद पीएचडी तक की शिक्षा हासिल की है।
राजीव हर वक्त इन बच्चों के साथ मजबूती के साथ खड़े रहते हैं। खुशी हो गया फिर गम, राजीव का साथ इन बच्चों को हौसला देती है। जन्म से ही मां-बाप के साये से महरुम कुछ बच्चे तो राजीव को ही अपना पिता मानते हैं। और पिता के कॉलम में राजीव का ही नाम लिखते हैं। राजीव की पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चे बहुमुखी प्रतिभा के भी धनी हैं। आप जानकर हैरान होंगे की जिस काम को हमारे नेता नहीं कर सकते उसे यहां पढ़ने वाले बच्चों ने साकार कर दिखाया है। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को उठाने के लिए बच्चों ने बकायदा एक बाल संसद बना रखी है। इस संसद में हर तरह के मुद्दे उठाए जाते है। गरीब बच्चों की कैसे मदद की जाए। उनके मुद्दों को समाज के सामने कैसे उठाया जाय। बाल श्रम को कैसे रोका जाय। तरह-तरह के मुद्दे को इस संसद में उठाया जाता है। इस संसद में जोरदार चर्चा होती है। बस फर्क यही है कि यहां नेताओं की तरह शोर शराबा और हो हल्ला नहीं होता है, बल्कि शालीनता होती है। मासूमियत होती है। सिर्फ बाल संसद ही नहीं इन बच्चों ने चिल्ड्रेन बैंक भी बना रखा है। जिसमें बच्चे अपना पैसा जमा करते हैं। जरुरतमंद बच्चों की बैंक की ओर से मदद की जाती है।
राजीव की इस पहल के लिए उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं। पढ़ाई के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा टर्की, ट्यूनिशिया और जाम्बिया देश की ओर से विशेष सम्मान मिला है। सरकार ने नारा दिया है--सब पढ़े, सब बढ़े, लेकिन समाज में कुछ ही ऐसे लोग हैं जो सरकार के सपने को साकार कर रहे हैं और राजीव उन्हीं लोगों में से एक है। यकीनन राजीव की एक छोटी सी पहल ने सैकड़ों बच्चों के लबों पर मुस्कान बिखेर दी है और समाज सेवा की एक मिसाल पेश की है।