छड़ी की मार भूल जाइए, यह टीचर बच्चों से हाथ जोड़कर मनाता है पढ़ने के लिए
तमिलनाडु के सबसे बड़े जिले विल्लुपुरम में एक हेडमास्टर जी. बालू बच्चों को पढ़ाने के लिए एक अलग तरह की तकनीक अपना रहे हैं। जो बच्चे पढ़ने में आनाकानी करते हैं वे उनके सामने घुटने के बल हाथ जोड़ लेते हैं और पढ़ने के लिए निवेदन करते हैं...
56 वर्षीय हेडमास्टर का यह तरीका काफी अनोखा और लोगों को आकर्षित करने वाला लगा। इसीलिए किसी ने उनका विडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया और यह वायरल हो गया। लेकिन बालू ऐसा पहली बार नहीं कर रहे थे।
हममें से अधिकतर भारतीय अपनी पढ़ाई के शुरुआती दिनों को जब याद करते हैं तो टीचर की छड़ी या उनका थप्पड़ जरूर याद आता है। देश के हर इलाके में स्कूल में पढ़ाने वाले टीचरों में एक बात सबसे कॉमन होती है, पिटाई। हमारे भीतर टीचरों को लेकर एक अलग तरह का ही खौफ होता था। लेकिन अब समय बदल चुका है। तमिलनाडु के सबसे बड़े जिले विल्लुपुरम में एक हेडमास्टर जी. बालू बच्चों को पढ़ाने के लिए एक अलग तरह की तकनीक अपना रहे हैं। जो बच्चे पढ़ने में आनाकानी करते हैं वे उनके सामने घुटने के बल हाथ जोड़ लेते हैं और पढ़ने के लिए निवेदन करते हैं।
एडएक्स लाइव के मुताबिक जी बालू अपने स्कूल में बच्चों के प्रदर्शन से काफी नाखुश थे। क्योंकि 12वीं में पढ़ने वाले सिर्फ 25 फीसदी छात्र ही छमाही इम्तिहान में पास हुए। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए मनाने के लिए यह उपाय सोचा। उन्होंने बताया, 'जब मैंने रिजल्ट देखा तो मुझे काफी बुरा लगा। मैं उन सभी फेल हुए बच्चों के घर गया और उनके माता-पिता से बात की। मैंने बच्चों के सामने हाथ जोड़कर विनती की कि अच्छे से पढ़ाई करो और आने वाले एग्जाम में बेहतर करो।'
56 वर्षीय हेडमास्टर का यह तरीका काफी अनोखा और लोगों को आकर्षित करने वाला लगा। इसीलिए किसी ने उनका विडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया और यह वायरल हो गया। लेकिन बालू ऐसा पहली बार नहीं कर रहे थे। उन्होंने बताया कि क्लास में भी वे बच्चों को प्यार से ही पढ़ने के लिए मनाते हैं। वे पिछले 30 सालों से बच्चों को पढ़ा रहे हैं। तीन साल पहले उन्हें स्कूल के हेडमास्टर की जिम्मेदारी मिली। मदर टेरेसा और दक्षिण भारत के बड़े समाज सुधारक पेरियार को आदर्श मानने वाले बालू कहते हैं कि बच्चों को सिर्फ प्यार से ही पढ़ाया जा सकता है, मारपीट से नहीं।
वे बताते हैं, 'हमारे स्कूल में आने वाले अधिकतर बच्चे पिछड़े और गरीब तबके के होते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होती है। उनकी जिंदगी में कुछ खास इच्छाएं नहीं होती हैं। वे पढ़ने के काम को काफी कठिन मानते हैं। आप इन बच्चों के साथ कड़ाई के साथ नहीं पेश आ सकते हैं। क्योंकि ऐसा करने पर वे पढ़ना ही छोड़ देंगे।' बालू कहते हैं कि घुटनों के बल किसी छात्र के सामने खड़े होने पर उन्हें बुरा नहीं लगता। उनका तो सिर्फ एक ही मकसद है पढ़ने के लिए बच्चों को राजी करना। वे बताते हैं कि इस तरीके से बच्चे पढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं।
बालू के स्कूल में पढ़ाई की हालत काफी बदतर है। उन्होंने बताया कि कई बच्चे तो यहां ऐसे थे जो शराब पीकर क्लास में आ जाते थे। लेकिन बालू ने स्कूल की तस्वीर ही बदल दी। एक सच्चे शिक्षाविद की तरह बालू कहते हैं कि बच्चों के साथ धैर्य से पेश आना चाहिए और उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए तब जाकर उन्हें बाकी की चीजें समझ में आती हैं। उनका कहना है कि बच्चों के साथ जोर-जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। लेकिन बालू अपने स्कूल में पढ़ाने वाले बाकी अध्यापकों से ये तरीका फॉलो करने को नहीं कहते हैं। वे कहते हैं कि सबका पढ़ाने और बच्चों के साथ पेश आने का अपना तरीका होता है। लेकिन टीचरों को बच्चों के साथ दोस्ताना रवैया रखना चाहिए।
बालू का मानना है कि इस तरीके से बच्चों में काफी परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा, 'कोई भी छात्र अपनी जिंदगी में आगे चलकर कुछ भी करे, लेकिन उसे एक अच्छा इंसान तो होना ही चाहिए। और वे अच्छे इंसान तब बनेंगे जब उनके साथ ऐसा व्यवहार होगा। उनकी पिटाई करने पर उनपर बुरा असर पड़ेगा और उनके अंदर एक तरह की कुंठा पैदा होगी।' वास्तव में देश के हर सरकारी स्कूल में बालू जैसे अध्यापकों की आवश्यकता है जो अपने काम को इतनी गंभीरता से लेते हैं और बच्चों को पढ़ाने के लिए नए नए तरीके अपनाते हैं। देश में एजुकेशन सिस्टम को सुधारने के लिए शायद ये सबसे जरूरी है।
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