रेलवे स्टेशनों में चार चांद लगाने में जुटा है एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर
पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर ने मुंबई के एक रेलवे स्टेशन को गोद लिया, जिसके बाद उसने उसका ऐसा कायाकल्प किया कि आज रेलवे ने दूसरे कई स्टेशनों को चमकाने की जिम्मेदारी उसे दे दी है। ‘डाई हार्ड इंडियन’ संगठन के संस्थापक गौरांग दमानी कभी अमेरिका में नौकरी करता थे लेकिन मिट्टी की खुशबू और देश के लिए कुछ करने का जज्बा उनको अपने वतन वापस खींच लाई। आज 14सौ ज्यादा वालंटियर की टीम के साथ वो मुंबई के अलग अलग रेलवे स्टेशन को सजाने सवांरने में जुटे हैं।
गौरांग दमानी ने साल 1993 में मुंबई यूनिवर्सिटी से बीई की पढ़ाई पूरी की इसके बाद वो प्रोगामर के रूप में काम करने के लिए अमेरिका चले गये। उन्होने देखा कि वहां के लोगों को अपनी सभ्यता और संस्कृति में बहुत गर्व है। इसी कारण आज उनका विश्व में प्रथम स्थान है। गौरांग का मानना था कि भारतीय लोग चाहे भारत में रहें या विदेश में अपने देश को लेकर उनकी सोच नकारात्मक ही रहती है। जबकि वो मानते थे कि यदि हम भारतीय चाहे तो कई चीजों में हम भी विश्व में प्रथम स्थान बना सकते हैं। इसी सोच के साथ उन्होने साल 2000 में ‘डाई हार्ड इंडियन डॉट कॉम’ की स्थापना की। इसमें वो भारतीयों की सफलता की कहानियों को जगह देते थे। लेकिन इस वेबसाइट को चलाते हुए उन्होने सोचा कि अमेरिका मे रहकर वो अपने देश के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाएंगे इसलिए 8 साल वहां गुजारने के बाद वो मुंबई लौट आए।
यहां आकर उन्होने अपनी वेबसाइट के काम को जारी रखा। इस दौरान उन्होने देखा कि सरकारी विभागों में काम कराने के लिए लोगों को बहुत चक्कर लगाने पड़ते हैं। वो चाहे बीएमसी हो या पुलिस विभाग हर जगह काम कराने के लिए लोगों को पैसा देना पड़ता था। तब गौरांग ने सोचा कि अगर जब किसी काम को कराने के लिए लोगों के पास पूरी जानकारी और पेपर होंगे तो भ्रष्टाचार अपने आप कम हो जायेगा। इसके लिए उन्होने खुद ही जानकारियां जुटाई और उनको अपनी वेबसाइट में डाला। ताकि लोगों को पता चल सके कि किस काम को करवाने के लिए क्या क्या पेपर चाहिए। गौरांग मुबंई के किंग्स सर्कल रेलवे स्टेशन के पास रहते हैं। इसलिए उनका इस स्टेशन में बहुत आना जाना रहता था। वहां की गंदगी को देखकर उन्होने कई बार बीएमसी और सीएसटी में इसकी लिखित शिकायत की। इससे परेशान होकर सीएसटी के एक ऑफिसर ने अगस्त 2014 में उन्हें बुलाकर कहा कि आपको अगर सफाई की इतनी चिन्ता है तो आप खुद क्यों नहीं सफाई कर देते। इस पर गौरांग ने कहा कि अगर रेलवे इसकी इजाजत दे तो वो इसे साफ कर देगें। जिसके बाद उसी साल दिसम्बर रेलवे ने उनको स्टेशन की सफाईकी इजाजत दे दी।
गौरांग ने स्टेशन को साफ करने के लिए सबसे पहले युवाओं को वालंटियर के तौर पर अपने साथ जोड़ा। इसके बाद उन्होने इनके अलग अलग समून बनाकर उनको अलग अलग काम दिये। वालंटियर के तौर पर इन्होने ना सिर्फ युवाओं को जोड़ा बल्कि अपनी सोसायटी के लोगों की भी मदद ली। इसके बाद गौरांग और उनकी टीम ने ने पूरे स्टेशन को साफ कर दिया। इस दौरान इन्होने देखा कि स्टेशन पर कूड़ेदान नहीं होने के कारण लोग कचरा इधर उधर फेंक देते थे। इतना ही नहीं स्टेशन में जरूरत के मुताबिक लाइट की भी व्यवस्था नहीं थी। इस वजह से चोरी के अलावा वहां पर मर्डर भी होते थे। इसके लिए उन्होने स्टेशन में डस्टबिन की व्यवस्था की और बीएमसी, रेलवे और दूसरी संस्थाओं की मदद से 30 स्ट्रीट लाइट लगवाई। इससे जहां एक ओर स्टेशन और उसके आसपास अपराध कम हुए वहीं दूसरी ओर वो इलाका भी काफी हद तक साफ रहने लगा।
इसके अलावा स्टेशन की दीवार पर लोग पेशाब और थूक कर गंदा कर देते थे। तब गौरांग ने ना सिर्फ उस दीवार को साफ करवाया बल्कि स्कूली बच्चों की मदद से वहां पर सुन्दर चित्रकारी करवाई जिससे कि लोग वहां पर न थूकें। इस तरह एक महीने में ही गौरांग और उनकी टीम ने किंग्स सर्कल रेलवे स्टेशन को एकदम साफ सुथरा कर दिया। स्टेशन के सौन्दर्यीकरण के लिए उन्होने वहां पर फूलों के गमले और खाली जगह पर पौधे लगायें और उनकी देखभाल के लिए एक आदमी को भी रखा ताकि वो उन पौधों को नियमित तौर पर पानी दे सके। इसके अलावा उन्होने एक सफाई कर्मचारी को भी रखा। इस काम में उन्होने 7 सौ वालंटियर का साथ मिलकर किया।
किंग्स सर्कल रेलवे स्टेशन की साफ सफाई देख रेलवे ने उनको दूसरे स्टेशनों पर भी इसी तरह के काम करने की अनुमति दे दी। जिसके बाद उन्होने सायन के रेलवे स्टेशन को साफ करने का बीडा उठाया। इस स्टेशन को साफ करने के लिए भी उन्होने किंग्स सर्कल रेलवे स्टेशन के तरीके को ही अपनाया। गौरांग का कहना है कि सायन रेलवे स्टेशन की सफाई उनके लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि सायन स्टेशन एशिया के सबसे बड़े स्लम धारावी के पास स्थित है। यहां पर उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी स्टेशन की दीवार, जिसे लोगों ने काफी गंदा किया हुआ था। इसके लिए गौरांग और उनकी टीम ने मदद ली स्कूली बच्चों की। इन बच्चों की मदद से स्टेशन और उसके आसपास जागरूकता और हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। साथ ही रेलवे पुलिस से अनुरोध किया कि जो लोग दीवारों को गंदा करे उन पर जुर्माना लगाया जाये। इस दौरान स्कूली बच्चों ने 6 हजार से ज्यादा लोगों से हस्ताक्षर कराये। बावजूद इसके गौरांग का मानना है कि उनको इस काम में उतनी सफलता नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी, बावजूद वो स्टेशन को चमकाने के काम में जुटे हुए हैं। सायन रेलवे स्टेशन की सुंदरता को बनाये रखने के लिए गौरांग और उनकी टीम को कॉलेज के छात्रों और दूसरी संस्थाओं की काफी मदद मिल रही है। साथ ही इनके इस काम को देखते हुए कॉरपोरेट जगत भी इनकी मदद को आगे आया है। सायन में टाइटन, टीसीएस और महिंद्रा लाइफस्पेसेस के कर्मचारियों ने वालंटियर के तौर पर यहां की साफ सफाई में हिस्सा लिया। वहीं महिंद्रा लाइफस्पेसेस ने तो इनको सफाई के इस काम के लिए फंडिग भी दी है। इसके अलावा कुछ और लोग भी हैं जो इनकी आर्थिक और दूसरे तरीके से मदद करते हैं।
गौरांग इस साल फरवरी से माहिम रेलवे स्टेशन में भी सफाई अभियान चला रहे हैं, इसके अलावा उन्होने रे रोड में भी सफाई का काम शुरू किया है। रे रोड पर उन्होने ज्यादातर पिलरों को अलग अलग पेंटिग से सजाया है। जो कि अलग भारतीय कलाओं पर आधारित है। अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में गौरांग का कहना है फिलहाल उनका काम रे रोड और माहिम रेलवे स्टेशन पर चल रहा है और किसी भी स्टेशन को साफ करने के लिए उनको कम से कम 6 महीने का समय लगता है। इसके बाद ही वो आगे किसी और स्टेशन की सफाई के बारे में सोचेंगे।