सबसे कम उम्र में सीएम ऑफिस का जिम्मा संभालने वाली IAS अॉफिसर स्मिता सब्बरवाल
यूपीएससी के सिविल एग्जाम में भी उन्हें 4th रैंक मिली थी। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 23 साल थी। जिसके बाद उन्हें देश की सबसे प्रतिष्ठित नौकरी आईएएस जॉइन करने का मौका मिला।
अब तक उन्होंने वारंगल, विजाग, करीम नगर, चित्तूर जैसे जिलों में काम किया है। यहां के लोग आज भी उनके काम को याद करते हैं। मूल रूप से बंगाल के दार्जीलिंग की रहने वाली स्मिता के पिता आर्मी में थे।
पहले जहां मरीज सरकारी अस्पताल जाने से परहेज करते थे वहीं स्मिता के जाने के बाद वहां महिलाओं को सरकारी अस्पताल में आने के लिए अभियान चलाए गए।
तेलंगाना चीफ मिनिस्टर के ऑफिस में हाल ही में अडिशनल सेक्रेटरी के पद पर तैनात आईएएस ऑफिसर स्मिता सब्बरवाल ने इतिहास बना दिया है। सीएम ऑफिस में यह पद संभालने वाली वह सबसे युवा अधिकारी हैं इससे पहले इस उम्र में सीएम ऑफिस के साथ जुड़कर किसी अधिकारी ने काम नहीं किया। इसके पीछे वजह ये है कि एक तो उन्होंने काफी कम उम्र यानी 23 साल में ही यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली थी दूसरा उनके काम का ट्रैक रिकॉर्ड इतना अच्छा रहा है कि हर कोई उनकी तारीफ ही करता है। उनकी सर्विस को अब 15 साल हो गए हैं। उनके काम की वजह से ही उन्हें 'द पीपल्स ऑफिसर' कहा जाता है।
अब तक उन्होंने वारंगल, विजाग, करीम नगर, चित्तूर जैसे जिलों में काम किया है। यहां के लोग आज भी उनके काम को याद करते हैं। मूल रूप से बंगाल के दार्जीलिंग की रहने वाली स्मिता के पिता आर्मी में थे। इस वजह से उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने को मिला और उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई भी ऐसे ही हुई। उनके पिता कर्नल पी के दास सेना से रिटायर होने के बाद हैदराबाद में ही बस गए इसलिए स्मिता ने अपनी 12वीं की पढ़ाई शहर के सेंट ऐन्स से की और सेंट फ्रांसिस कॉलेज से कॉमर्स में ग्रैजुएट हुईं।
वह 12वीं में ISC बोर्ड की टॉपर भी रही थीं। यूपीएससी के सिविल एग्जाम में भी उन्हें 4th रैंक मिली थी। उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 23 साल थी। जिसके बाद उन्हें देश की सबसे प्रतिष्ठित नौकरी आईएएस जॉइन करने का मौका मिला। उनके काम की वजह से उन्हें कई सारे पुरस्कारों से नवाजा गया, लेकिन स्मिता कहती हैं कि उन्हें इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनका काम ही उनका सच्चा पुरस्कार है। इसके बारे में उन्होंने बताया था कि यह उनके पिता का सपना था। इसी वजह से ग्रैजुएशन खत्म होने के बाद से ही वह सिविल की तैयारी में लग गई थीं।
परिणाम आने के बाद उन्हें ऑल इंडिया रेडियो से 4वीं रैंक हासिल करने की खबर मिली थी। कॉमर्स में पढ़ाई करने के बाद भी स्मिता ने मानव विज्ञान और लोक प्रशासन को अपना वैकल्पिक विषय चुना था। आईएएस में अच्छी रैंक आने के बाद उन्हें हैदराबाद कैडर मिला। उस वक्त प्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था। उन्हें वारंगल में नगर पंचायत कमिश्नर की जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने वहां 'फंड योर सिटी' नाम से एक योजना लॉन्च की जिसके तहत वहां के रहने वाले लोगों से नक्सल प्रभावित इलाकों में इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में सहयोग की अपील की गई। इसमें वहां के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इस वजह से वहां फुटओवर ब्रिज, ट्रैफिक जंक्शन्स तैयार हुआ। ये सब स्मिता के नेक इरादों की बदौलत ही संभव हो पाया।
यहां पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर काम करने के बाद उन्हें अगलीबार करीमनगर जिले की जिम्मेदारी मिली। यह तेलंगाना का काफी पिछड़ा जिला माना जाता है। उन्हें 2011 में करीमनगर का डीएम बनाया गया। स्मिता ने जब ये जिम्मेदारी संभाली तो उन्होंने वहां की ध्वस्त पड़ी चिकित्सा और शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का बीड़ा उठाीया। उन्होंने वहां 'अम्मा लालना' नाम से एक आइडिया लेकर आईं जिसके तहत सरकारी अस्पतालों की सफाई की गई और स्टाफ को अच्छी सुविधा उपलब्ध कराने के निर्देश मिले। उसके बाद से मातृत्व महिलाओं को फ्री में चेकअप की भी व्यवस्था की गई।
पहले जहां मरीज सरकारी अस्पताल जाने से परहेज करते थे वहीं स्मिता के जाने के बाद वहां महिलाओं को सरकारी अस्पताल में आने के लिए अभियान चलाए गए। उन्होंने सभी प्राइमरी हेल्थकेयर सेंटर और बड़े सरकारी अस्पतालों में कंप्यूटर लगवाए और उन्हें इंटरनेट से सुसज्जित करवाया। वे हर अस्पताल को स्काइप के जरिए देखती थीं। उस अभियान को याद करते हुए वह बताती हैं, 'अम्मा लालना' का मकसद गरीब महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाना था। उन्हें डिलिवरी के लिए प्राइवेट अस्पताल में 30 से 50 हजार रुपये खर्च करने पड़ते थे। अगर हम सरकारी अस्पतालों में ही अच्छी सुविधा मुहैया करवा दें तो कोई प्राइवेट अस्पताल क्यों जाना चाहेगा?'
स्मिता ने न केवल अस्पतालों की सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की बल्कि सफाई अभियान पर भी जोर दिया। उन्होंने अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या दुरुस्त करवाई और मेडिकल उपकरण भी मुहैया करवाए। आज पूरे प्रदेश में स्मिता का मॉडल अपनाया गया है। मेडिकल के साथ ही एजुकेशन के क्षेत्र में भी उन्होंने कई सराहनीय कार्य किए जिसकी वजह से उन्हें 'पीपल्स ऑफिसर' के खिताब से नवाजा गया। वह कहती हैं कि उन्हें नहीं पता कि ये कहां से आया, शायद लोगों का प्यार ही था ये जिसकी वजह से उन्हें इस नाम से बुलाया जाने लगा। वह आम जन के लिए हमेशा सुलभ रहती थीं। ऐसा कभी नहीं होता था कि कोई जरूरतमंद उनसे मिल न से।
कलेक्टर के तौर पर वह रोजाना 200 से 300 लोगों से मिलती थीं और उनकी समस्याएं सुनकर उनका समाधान करती थीं। इससे लोगों के चेहरे पर मुस्कान के साथ ही सरकारी सिस्टम के प्रति आत्मविश्वास भी आता था। आंध्र प्रदेश का विभाजन होने के बाद नया राज्य तेलंगाना गठित हुआ तो उन्हें तेलंगाना के चीफ मिनिस्टर ऑफिस की जिम्मेदारी मिलगई। वह इतने कम उम्र में यहां पहुंचने वाली पहली महिला ऑफिसर हैं। उन्होंने सरकारी कार्यालयों में होने वाले लैंगिक विभेद पर भी काम किया और महिलाओं के लिए सरकारी ऑफिसों को सुलभ बनाया।
उनकी शादी एक आईपीएस ऑफिसर से हुई जो कि उन्हीं के बैच से हैं। उन्होंने मसूरी में साथ में ही ट्रेनिंग ली थी इसके बाद वे दोस्त बने और दोनों परिवारों की रजामंदी से उन्होंने साथ जिंदगी बिताने का फैसला किया। उनके दो बच्चे भी हैं। बच्चों के साथ समय बिताने के बारे में वह कहती हैं कि हमने जो चुना था वह हम कर रहे हैं लेकिन इस वजह से बच्चों के साथ कम समय मिल पाता है। उनकी जिंदगी वाकई मिसाल है उन तमाम महिलाओं और लड़कियों के लिए जो आसमान की बुलंदियों को छूने के सपने देखती हैं। लेकिन उन्हें ये भी देखना होगा कि उसके लिए कितने त्याग की भी जरूरत पड़ती है।
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