स्वतंत्रता सेनानियों के गुमनाम परिवारों को पहचान दिला रहा ये शख़्स
पेशे से पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता शिवनाथ झा इस तरह पहचान दिला रहे हैं गुमनामी के अंधेरे में खो चुके स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को...
"इंडियन मार्टियर्स" नाम की संस्था के माध्यम से शिवनाथ झा अब तक गुमनाम क्रान्तिकारियों और शहीदों के लगभग 60 वंशजों को ढूंढ चुके हैं। तथा 6 पुस्तकों के माध्यम से 6 शहीद क्रांतिकारियों के वंशजों के परिवारों को गुमनामी के जीवन से निकाल कर प्रकाश में लाये हैं। इन परिवारों में तात्या टोपे, बहादुर शाह ज़फर, उधम सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल के वंशज प्रमुख हैं।
हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहाँ हमें अपने पड़ोसी के बारे में तो पता होता नहीं, तो स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों का पता कहाँ से होगा। लेकिन एक शख़्स ऐसा भी है जो इन परिवारों के लिए बेहतरीन तरीके से काम कर रहा है और उसका एक ही लक्ष्य है कि किस तरह इन गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को एक अलग पहचान दिलवाई जाये।
मुझे वो दिन याद है जब हम जनवरी की कडकडाती ठण्ड में सुबह से ही दिल्ली के इन्डिया गेट पर जा कर बैठ गये थे। इतनी ठण्ड होने के बाबजूद भी ठण्ड का अहसास ही नहीं हो रहा था क्योकि मन में गणतंत्र दिवस की परेड देखने के उत्साह ने ही रक्त को गरम कर दिया था। उस दिन दिल्ली का राजपथ बिल्कुल दुल्हन की तरह सजा हुआ था। परेड को देख कर तो मन प्रफुल्लित हो उठता है। तभी आकाश से गेंदे और गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों को बरसते हुए भारतीय वायु सेना के हेलीकाप्टर उड़ान भरते हैं। फिर जब वायुसेना के लड़ाकू विमान कलाबाजियाँ करते हुए तिरंगे रंग से आसमान को भर देते है तब मन गदगद हो उठता है, ऐसा लगता है छाती गर्व से 6 इंच ज्याद फूल गयी हो। आज हम सब आज़ाद भारत में रह कर इन सबका मज़ा ले रहे हैं।
जिस आज़ाद हिन्द में आज हम इतने आज़ाद घूम रहे हैं, ये आज़ादी हमें उन तमाम क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की वजह से मिली है जिन्हें हम सम्मान तो देते हैं लेकिन ये भूल चुके हैं कि आज़ादी के बाद से इन स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार कहाँ हैं, कैसे हैं, किस हालात में हैं और क्या कर रहे हैं? हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहाँ हमें अपने पड़ोसी के बारे में तो पता होता नहीं, तो इन लापता स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों का पता कहाँ से होगा। लेकिन इसी समाज में एक शख़्स ऐसा भी है जिसे इन संवतंत्रता सेनानियों के परिवारों से लेना-देना है और उसका एक ही लक्ष्य है इन गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को एक अलग पहचान दिलवाना।
हम बात कर रहे है पेशे से पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता शिवनाथ झा की। शिवनाथ झा ने अपने जीवन की शुरुआत 1968 में आठ साल की उम्र में एक अखबार बेचने वाले के रूप में की। अपने माता-पिता की मदद करने के लिए खेलने-कूदने की उम्र से ही उन्होंने अखबार बेचना शुरू कर दिया। कहते हैं न कि ऊपर वाला सबको देखता है तो फिर ये नन्हा बच्चा उसकी नज़र से कैसे बच सकता था। 18 मार्च 1975 को जब सारा देश क्रांति के महानायक जय प्रकाश नारायण की क्रांति का जश्न मना रहा था उस दिन पटना से प्रकाशित होने वाले अखबार "आर्यावर्त-इण्डियन नेशन" में सिर्फ साढ़े चौदह साल के शिवनाथ ने प्रूफ रीडर के रूप में काम करना शुरू किया और उस के बाद से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
1975 से लेकर 2018 तक शिवनाथ ने भारत के लगभग सभी प्रमुख समाचार पत्रों, संपादकों के साथ संवादाता के रूप में कार्य करते हुए, ऑस्ट्रेलिया से उद्घोषित स्पेशल ब्रॉडकास्टिंग रेडियो सर्विस के हिंदी प्रसारण सेवा में भी देश का प्रतिनिधित्व करके देश का परचम लहराया। गरीबी को बहुत नजदीक से देखने वाले शिवनाथ झा आज भी भूख से होने वाले पेट-दर्द की पीड़ा को भीतर तक महसूस करते हैं। यही कारण है कि शिवनाथ ने अपनी पत्रकारिता की सम्पूर्ण सीख को एक ऐसी दिशा की ओर मोड़ दिया है जिसकी तरफ आज़ादी के बाद सत्तर सालों से किसी ने भी देखा नहीं या यूँ कहें की देखने की कोशिश तक न की। परन्तु भारतीय राजनीतिक में जब भी अपने फायदे की बात आती है, तो उन्ही लोगों की याद सबको आती है।
हम बात कर रहे हैं क्रांतिकारियों की, जिनमे से महज गिने-चुने हुए नामों को छोड़ कर बाकी सारे नामों को भुला दिया गया। जब उन क्रांतिकारियों को ही भुला दिया गया है तो उनके परिवार वालों को कौन याद रखेगा। शिवनाथ झा ने इन गुमनाम हो चुके क्रांतिकारियों के परिवारों को ढूंढने की मुहीम छेड़ रखी है। इस काम के लिए उन्होंने एक "इंडियन मार्टियर्स" नाम की संस्था बनाई है। इस संस्था के माध्यम से शिवनाथ अब तक गुमनाम क्रान्तिकारियों और शहीदों के लगभग 60 वंशजों को ढूंढ चुके हैं। तथा 6 पुस्तकों के माध्यम से 6 शहीद क्रांतिकारियों के वंशजों के परिवारों को गुमनामी के जीवन से निकाल कर प्रकाश में लाये हैं। इन परिवारों में तात्या टोपे, बहादुर शाह ज़फर, उधम सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल के वंशज प्रमुख हैं।
शहीदों और क्रांतिकारियों के परिवारों को ढूंढने के ख्याल के बारे में पूछने पर वो बताते है कि इस प्रयास की शुरुआत वर्ष 2005 से हुई जब भारत रत्न शहनाई सम्राट बिस्मिल्लाह खान को अपने जीवन के अंतिम बसन्त में अपने लिए मदद की गुहार लगनी पड़ी। शिवनाथ और उनकी पत्नी नीना झा (जो कि पेशे से शिक्षिका हैं) इसके लिए आगे आये और एक किताब “उस्ताद बिस्मिल्लाह खान : मोनोग्राफ" लिखी। इस किताब का विमोचन स्वयं खान साहब ने वर्ष 2006 में अपने जन्मदिवस पर किया था। और इसी वर्ष 21 अगस्त को उस्ताद अल्लाह के पास चले गए। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने दिल्ली के लाल किले पर स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर अपनी शहनाई से स्वतंत्र भारत का स्वागत किया था।
शिवनाथ कहते हैं, कि भारत में हज़ारों प्रकाशक हैं और लाखों-करोड़ों किताबों का प्रकाशन होता है। परन्तु शायद ही कोई किताब किसी के जीवन को बदल पायी हो, सिवाय प्रकाशक के जीवन को छोड़कर। साथ ही वे ये भी कहते हैं कि,“एक मनुष्य के नाते लोग इतना तो कर ही सकते हैं कि वे हमारे प्रयास का साथ दें, मदद करें अथवा नहीं।”
शिवनाथ के अनुसार,"आज की पीढ़ी अपने बच्चों को स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में, शहीदों के बारे में, उनके बलिदानों के बारे में या उनके त्याग के बारे में एक शब्द भी नहीं बताते हैं। लेकिन अपने बच्चों से ये उम्मीद जरूर रखते हैं कि उनकी संतान संस्कारी होने के साथ-साथ एक इंसान भी बने और वो राष्ट्र के प्रति समर्पित भी हो। यह सारी चीजें एक साथ संभव नहीं है। हाथ में स्मार्ट फोन होने या स्मार्ट सिटी में रहने से आपकी मानसिकता स्मार्ट नहीं हो सकती। और एक यही कारण है की आज के बच्चे मंगल पण्डे के रूप में आमिर खान को, भगत सिंह के रूप में अजय देवगन को जानते हैं।"
शिवनाथ झा शहीदों के परिवारों की मदद के लिए पुस्तक लिखते हैं और उससे मिलने वाली राशि को उन शहीदों के वंशजों को दे देते हैं। जैसे कि उन्होंने अपनी पहली पुस्तक के माध्यम से शहनाई सम्राट बिस्मिल्लाह खान साहब के परिवार के लिए किया था। अब तक वे कई पुस्तकों के माध्यम से क्रांतिकारियों के परिवारों की मदद कर चुके हैं।
2013 में शिवनाथ ने एक और किताब "फॉरगोटेन हीरोज एंड मार्टर्स ऑफ इंडिया ऑफ़ फ्रीडम मूवमेंट" का प्रकाशन किया जिसका उद्देश्य बिजेंद्र सिंह को मदद करना था। सुलभ स्वच्छता आंदोलन के संस्थापक, डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने बेटी की शादी के लिए बिजेंद्र सिंह को 200,000 रुपये का चेक सौंप दिया।
उनकी हाल की किताब, '1857-1947 फॉरगॉटन हीरोज़ एंड मार्टर्स ऑफ इंडिया ऑफ़ फ्रीडम मूवमेंट,' में उस समय के 200 क्रांतिकारियों, नायकों और शहीदों के सचित्र विवरण शामिल हैं जिन्हें फांसी दी गई थी, उन्हें मार दिया गया था या विभिन्न जेलों में मर गया था।
शिवनाथ अभी सभी शहीदों के वंशजों को मिलाकर एक “1857-1947 मार्टियर्स ब्लडलाईन्स” नाम की किताब की डमी बना चुके है जिसका प्रकाशन होना बाकी है। इसी उद्देश से वो प्रकाशकों के पास चक्कर लगा रहे हैं कि पुस्तक प्रकाशित हो जाये और फिर मिले हुए पैसों से क्रांतिकारियों के परिवारों की मदद हो सके। अभी पुस्तक प्रकाशित नहीं हो पाई है इससे वो थोड़े उदास हैं, लेकिन वे कहते हैं कि,"ऊपर वाला सब देख रहा है, वही कुछ मदद करेगा।"
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