घर का खर्च चलाने के लिए ढाबा खोलने वाले इस युवा को मिला IIM में एडमिशन
शशांक जब इंजीनियरिंग कॉलेज में सेंकंड ईयर की पढ़ाई कर रहे थे तो उनका दिन सुबह 6 बजे से ही शुरू हो जाता था। आपको जानकर हैरानी होगी कि वह इतने सुबह पढ़ने के लिए नहीं बल्कि बाजार से सब्जी लाने के लिए उठते थे।
मुश्किलें किसकी जिंदगी में नहीं होतीं, लेकिन कुछ लोग घबराकर हार मान जाते हैं और कुछ अपनी इच्छाशक्ति से उस पर विजय हासिल कर लेते हैं। इंदौर के रहने वाले शशांक की कहानी कुछ ऐसी ही है जिन्होंने जिंदगी में आई कठिनाइयों से लड़ने का फैसला किया और जीत भी हासिल की। शशांक जब इंजीनियरिंग कॉलेज में सेंकंड ईयर की पढ़ाई कर रहे थे तो उनका दिन सुबह 6 बजे से ही शुरू हो जाता था। आपको जानकर हैरानी होगी कि वह इतने सुबह पढ़ने के लिए नहीं बल्कि बाजार से सब्जी लाने के लिए उठते थे।
दरअसल बचपन में ही शशांक के सिर से पिता का साया उठ गया था। इसके बाद शशांक के दादा ने अपनी पेंशन से उनकी परवरिश की। स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद शशांक को इंदौर में ही एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया। लेकिन इसी बीच उनके दादाजी का भी देहांत हो गया। अब शशांक के पास खर्चे के लिए पैसों का कोई स्रोत नहीं था। उनका घर चलना भी मुश्किल हो रहा था।
शशांक ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, 'दादा जी के गुजर जाने के बाद घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई। मुझे अपनी फीस भरनी थी और घर को भी देखना था।' इस कशकमकश के बीच शशांक ने कहीं से 50 हजार रुपये उधार लिए और अपने घर के पास ही एक ढाबा खोल दिया। वे कहते हैं, 'इंदौर में भंवर कुआं स्क्वॉयर नाम की एक जगह है जहां पर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों की भीड़ रहती है। यहां पर कई सारे कोचिंग सेंटर भी हैं। इसलिए मैंने यहीं पर एक छोटी सी जगह किराए पर ली और ढाबा खोल दिया।'
शशांक ने ढाबा चलाने के लिए कुक समेत 5 लोगों को नौकरी पर भी रखा। वे कहते हैं कि एक स्टूडेंट होने के नाते उन्हें पता था कि खाने पीने के लिए कितनी मुश्किलें उठानी पड़ती हैं। उन्होंने अनोखी तरकीब अपनाते हुए 50 रुपये में भरपेट खाना खिलाने का ऑफर रख दिया। शशांक बताते हैं, 'यह आइडिया सही चल निकला और लोगों ने इसे अच्छा रिस्पॉन्स दिया। कुछ ही दिन में मुझे हर महीने 30 हजार रुपये की आय होने लगी।' हालांकि शशांक की पढ़ाई भी चल रही थी इसलिए उन्होंने अपने काम और पढ़ाई के बीच संतुलन बनाए रखा।
वे हर रोज सुबह 6 बजे उठते थे और ढाबे के लिए सब्जी समेत सारा सामान लाकर कॉलेज निकल जाते। वहां से लौट कर फिर से सीधे ढाबे पर लौटते और देर रात 11 बजे तक काम करते। अपने ढाबे के लिए काम करते-करते शशांक को पता चल गया था कि बिजनेस कैसे किया जाता है। हालांकि इंजीनियरिंग खत्म होने के बाद शशांक को हैदराबाद के एक स्टार्टअप में नौकरी मिल गई जहां वे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोर्स मटीरियल डिजाइन करते थे। इसी दौरान उन्हें कैट एग्जाम के बारे में पता चला और उन्होंने इस एग्जाम को क्वॉलिफाई करने की ठान ली। पहली बार में ही शशांक ने कैट एग्जाम में 98 पर्सेंटाइल हासिल कर लिए। उन्हें आईआईएम रोहतक में दाखिला मिला जहां से वे फिलहाल पोस्ट ग्रैजुएशन कर रहे हैं।
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