देश सेवा के बाद अब कृषि व्यवस्था को बेहतर बना रहे यह पूर्व नौसेना अधिकारी
बिना मिट्टी के फ़सलें उगाने की सिखाते हैं तरक़ीब
पिछले कुछ समय से भारत में खेती करने लायक ज़मीन का प्रतिशत साल दर साल गिरता जा रहा है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा की गई 10वीं गणना के अनुसार भारत में 2010-11 में 1.15 हेक्टेयर्स की अपेक्षा 2015-16 में यह आंकड़ा 1.08 हेक्टेयर्स तक पहुंच गया।
इस परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए अब ज़रूरत है कि फ़सलों की उगाही के लिए दूसरे विकल्पों की ओर रुख़ किया जाए। हाइड्रोपॉनिक्स भी एक समाधान हो सकता है, क्योंकि इसके अंतर्गत पौधों को बढ़ने के लिए मिट्टी की ज़रूरत नहीं होती और पौधे मिनरल्स, न्यूट्रीएंट्स और पानी की मदद से बढ़ सकते हैं। तमामा फ़ायदों और सहूलियत के बावजूद हाइड्रोपॉनिक्स को भारत में उतनी तरजीह नहीं मिल रही है, जितनी मिलनी चाहिए।
इस संबंध में आज हम पूर्व नेवी अधिकारी लेफ़्टिनेंट सीवी प्रकाश के प्रयासों की चर्चा करने जा रहे हैं, जो हाइड्रोपॉनिक्स के विषय में जागरूकता फैला कर और प्रशिक्षण सत्रों के माध्यम से किसानों और विद्यार्थियों की मदद से इस परिदृश्य को बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं।
2008 में उन्होंने कर्नाटक के धरवाड़ ज़िले में पेट भरो प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी, जिसके अंतर्गत वे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मिट्टी के बिना फल, सब्ज़ियां, औषधियां और फूल आदि उगाना सिखाते थे। 2008 से लेकर अभी तक वह 10 हज़ार से ज़्यादा विद्यार्थियों को हाइड्रोपॉनिक्स विधि से फ़सलें उगाना सिखा चुके हैं।
पेट भरो प्रोजेक्ट के फ़ार्मर-इन-चीफ़ प्रकाश ने योर स्टोरी से बातचीत में कहा, "मेरा उद्देश्य है कि मैं लोगों को किफ़ायती क़ीमतों पर पोषण से भरपूर और कीटनाशकों के इस्तेमाल से रहित खाना उपलब्ध कराना चाहता हूं। हाइड्रोपॉनिक्स की विधि में ये सभी ज़रूरतें पूरी करने की क्षमता है और इसलिए ही मैंने इस दिशा में काम करना शुरू किया।"
इंडियन नेवी से 1997 में 35 साल की उम्र में रिटायरमेंट लेने के बाद सीवी प्रकाश दुबई चले गए और वहां पर ऐवियॉनिक्स स्पेस में काम करने लगे। इस काम में उनका मन नहीं लगा और उन्होंने तय किया वह किसी दूसरे काम की शुरुआथ करेंगे जैसे कि टी-शर्ट्स, सेकंड हैंड फ़र्नीचर बेचना या फिर टैक्सी चलाना।
कुछ महीनों बाद, वह ऑस्ट्रेलिया चले गए। सिर्फ़ एक लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्शन की मदद से उन्होंने एक कन्सल्टिंग कंपनी की शुरुआत की, जिसकी मदद से वह भारत, ऑस्ट्रेलिया और यूईए के बाहर की कंपनियों को अपने ट्रांजैक्शन सही ढंग में करने में मदद करते थे। यही समय था, जब डाइड्रोपॉनिक्स विधि से उनका परिचय हुआ।
पुराने दिनों को याद करते हुए वह बताते हैं, "एक दिन, काम के सिलसिले में उन्होंने एक श्रीलंका की कंपनी का दौरा किया, जो कोको-पीट का आयात करती थी। उस कंपनी ने दो ग्रीन हाउस तैयार किए थे, जिनमें बिना मिट्टी के फूल और सब्ज़ियां उगाई गई थीं। यहीं से मुझे प्रेरणा मिली और विशेषज्ञों से मैंने मिट्टी की मदद के बिना खेती करने की कला सीखना शुरू किया। "
ऑस्ट्रेलिया में उन्हें लगभग हर प्रकार के खेतों में हाइड्रोपॉनिक्स की विधि को आज़माकर देखा और वह इस क्षेत्र में 8 सालों तक रिसर्च करते रहे। इसके बाद सीवी प्रकाश ने तय किया कि वह भारत में इस विधि का प्रचार करेंगे और इस उद्देश्य के साथ ही, उन्होंने पेट भरो प्रोजेक्ट की शुरुआत की।
इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत सीवी प्रकाश नियमित समय पर वर्कशॉप्स का आयोजन कराते रहते हैं। साथ ही, तीन महीने का रेज़िडेंशल कोर्स भी आयोजित किया जाता है, जिसके तहत लोगों को बीज लगाने से लेकर फ़सल काटने तक की जानकारी देते हुए, 40 से ज़्यादा फ़सलों को उगाना सिखाया जाता है।
अनिल लालवानी, एक किसान हैं, जो ममेहा ऐग्रो नाम से एक कंपनी चलाते हैं। अनिल ने सीवी प्रकाश द्वारा सीखे तरीक़ों से अपनी पैदावार को पहले से कहीं अधिक बेहतर बना लिया है। वह बताते हैं कि पेट भरो मुहिम के अंतर्गत चलने वाले प्रशिक्षण सत्रों से उन्होंने कई किफ़ायती और प्रभावी तरीक़े सीखे, जिनकी मदद से उन्होंने अपने फ़सलों से बेहतर पैदावार हासिल की।
फ़िलहाल, सीवी प्रकाश भारत के 13 शहरों के दौर पर हैं और इस दौरान वह भारत के किसानों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों को बिना मिट्टी के खेती करने के गुर सिखा रहे हैं और इस पूरे दौरे में वह 44 वर्कशॉप्स आयोजित करेंगे।
सीवी प्रकाश ने जानकारी दी कि जो किसान हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक की मदद से खेती करना चाहते हैं, उनके लिए मार्कट में हाइड्रोपॉनिक किट उपलब्ध है। इस किट में कोको पीट, हेल्दी माइक्रोब्स, न्यूट्रिएंट्स (स्प्रे के रूप में) आदि सभी कुछ मौजूद होता है। प्रकाश बताते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया में एकबार का खर्च मात्र 22 हज़ार रुपए है।
प्रकाश कहते हैं, "अनियमित मौसम की परिस्थितियों के बावजूद आप हाइड्रोपॉनिक्स की मदद से बेहतर पैदावार हासिल कर सकते हैं, लेकिन देशभर में इस तकनीक को फैलाने के लिए सरकार की ओर से भी मदद की आवश्यकता होगी।"
किसानों और विद्यार्थियों के अलावा प्रकाश अनाथ आश्रमों और वृद्धाश्रमों में भी जाते हैं। वह इन बेसहारा बुज़ुर्गों और बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए किफ़ायती ढंग से फल और सब्ज़ियां उगाना सिखाते हैं। अपने असाधारण प्रयासों के लिए प्रकाश को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान भी मिल चुके हैं। 2016 में उन्हें हॉरीकल्चर क्षेत्र में अपने असाधारण प्रयासों के लिए धरवाड़ के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय की ओर से जय जवान जय किसान सम्मान से नवाज़ा गया।
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