जीएम सरसों को मंजूरी देने की सिफारिश, सरकार जल्द देगी फैसला
देश में बीस साल बाद जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) सरसों की खेती को मंजूरी मिल गई है. जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने व्यावसायिक खेती के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों को मंजूरी दे दी है. यह सरसों की किस्म मस्टर्ड हाइब्रिड -11 (डीएमएच-11) है. इसे दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर डॉ. दीपक पेंटल और दिल्ली यूनिवर्सिटी के साउथ दिल्ली कैंपस स्थित सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) द्वारा विकसित किया गया है.
जीएम फसल वे होती हैं जो कि वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित करके तैयार की जाती हैं. सरसों की इस क़िस्म को लेकर दावा किया गया है कि इससे सरसों के उत्पादन में 30 फीसदी तक वृद्धि हो जाएगी और जीएम बीजों की फसल पर्यावरण कि दृष्टि से सही रहेगी. जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (GEAC) की 147वीं बैठक में सरसों की इस किस्म की सिफारिश को मंजूरी दी गई थी. जीईएसी की सिफारिशों को सरकार की मंजूरी मिलने के बाद ही सरसों की इस किस्म को चालू रबी सीजन में उगाना संभव हो पाएगा.
भारत में जीएम फसलों पर नीतिगत बहस वर्षों से चल रही है. साल 2009 में यूपीए सरकार में पर्यावरण मंत्री रहे जयराम रमेश ने भारत में पहले जीएम फूड बीटी बैंगन को मंजूरी दी थी. बीटी कपास हो या बीटी ब्रिंजल इन दोनों को लेकर बहसें हुई हैं. एक ओर जीएम बीजों की मदद से उत्पादन बढ़ाकर आयात पर निर्भरता कम करने की बात होती है, वहीँ इसका व्यापक विरोध भी किया जाता रहा है.
नेशनल अकैडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइँसेज ने कहा था कि बीटी कपास का अनुभव कहता है कि जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों का प्रयोग असफल रहा है. बीटी कपास की फसल साल 2006 तक तेजी से बोई गई लेकिन इसके बाद इसका उत्पादन तेजी से गिरने लगा. इससे किसानों को नुकसान होने लगा. विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों के मत में जेनेटिकली मोडिफाइड बीज के दूरदर्शी परिणाम पर्यावरण और इकोसिस्टम के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं. इस तरह के कदम उत्पादन तो बढाते हैं लेकिन पर्यावरण, कृषि और खाद्य प्रणाली के नज़रिए से बहुत हानिकारक साबित होते हैं.
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